चंदीगढ़ : पंडित जसराज का जाना सुरों की दुनिया से एक सितारे के टूटने जैसा है. उन्होंने सिर्फ भारत ही नहीं पूरी दुनिया में शास्त्रीय संगीत की परंपरा को पहुंचाने का काम किया. पंडित जसराज मूल रूप से हरियाणा के फतेहाबाद जिले के रहने वाले थे. उनके चले जाने से उनके पैतृक गांव पीली मंदोरी में मातम पसरा है.
गांव के लोगों ने कहा कि आज उन्होंने एक महान शख्सियत को खो दिया है. बता दें कि पीली मंदोरी पंडित जसराज का पैतृक गांव है. इसी गांव में पंडित जसराज का जन्म हुआ था, जिसके बाद वो हैदराबाद चले गए और वहां से कोलकाता उन्होंने अपने बड़े भाई से संगीत सीखा. इसके बाद पंडित जसराज सुरों के रसराज बने.
बेहद पसंद था हरियाणवी चूरमा और हलवा
खास बात यह है कि सफलता की बुलंदियां छूने के बाद भी पंडित जसराज अपने गांव को नहीं भूले. वो आखिरी बार करीब 5 साल पहले अपने गांव अपने लोगों के बीच आए थे. पंडित जसराज के भतीजे पंडित राम कुमार ने बताया कि उनके चाचा एक महान शख्सियत थे और वो गांव को नहीं भूले थे.
जब भी वो गांव आते थे तो गांव की नहर में नहाते थे. पंडित जसराज कॉफी के काफी शौकीन थे. वो जब भी गांव आते तो कॉफी जरूर पिया करते थे. इसके अलावा उन्हें हरियाणवी हलवा और चूरमा भी बेहद पसंद था.
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बता दें कि पंडित जसराज का जन्म 28 जनवरी 1930 को हरियाणा में हुआ था. उनके परिवार की चार पीढ़ियां शास्त्रीय संगीत परंपरा को लगातार आगे पहुंचाती आ रही थीं. खयाल शैली की गायकी के लिए मशहूर पंडित जसराज मेवाती घराने से जुड़े थे. पंडित जसराज के पिता पंडित मोतीराम भी मेवाती घराने के संगीतज्ञ थे.