नई दिल्ली : राज्य सभा में कृषि संबंधी दो विधेयकों के हंगामे में पारित होने के एक दिन बाद कई विपक्षी दलों ने राष्ट्रपति रामनाथ कोविंद से अनुरोध किया है कि वह इन दोनों प्रस्तावित कानूनों पर हस्ताक्षर न करें. इसके अलावा सरकार ने जिस तरीके से अपने एजेंडा को आगे बढ़ाया है, उसके बारे में भी विपक्षी दलों ने राष्ट्रपति को पत्र लिखा है.
कांग्रेस, वाम दलों, राकांपा, द्रमुक, सपा, तृणमूल कांग्रेस और राजद ने भेजा ज्ञापन
सूत्रों के अनुसार कांग्रेस, वाम दलों, राकांपा, द्रमुक, सपा, तृणमूल कांग्रेस और राजद सहित विभिन्न दलों के नेताओं ने राष्ट्रपति को भेजे ज्ञापन में इस मामले में उनसे हस्तक्षेप करने और विधेयकों पर हस्ताक्षर नहीं करने का अनुरोध किया है. राष्ट्रपति की मंजूरी मिलने के बाद ही विधेयक कानून बन सकता है. सरकार दोनों विधेयकों को कृषि क्षेत्र में सबसे बड़ा सुधार बता रही है. राज्य सभा ने रविवार को भारी हंगामे के बीच दोनों विधेयकों को ध्वनिमत से पारित कर दिया.
विपक्षी दलों ने मिलने के लिए राष्ट्रपति से मांगा समय
दोनों विधेयकों को प्रवर समिति में भेजने की मांग कर रहे विपक्षी सदस्यों ने मत विभाजन की मांग नहीं माने जाने पर सदन में भारी हंगामा किया. वह कोविड-19 दिशा-निर्देशों की अनदेखी करते हुए आसन के बिल्कुल पास आ गए और उप सभापति हरिवंश की ओर कागज भी फेके. राज्य सभा में रविवार को जिस तरह से विधेयकों को पारित किया गया, उसे विपक्षी दलों ने सत्तारूढ़ भाजपा द्वारा लोकतंत्र की हत्या करार दिया. विपक्षी दलों ने मिलने के लिए राष्ट्रपति से समय भी मांगा है. संभवत: मंगलवार को यह बैठक हो सकती है.
अभिषेक सिंघवी ने तैयार किया ज्ञापन
सूत्रों ने कहा कि विपक्षी नेताओं का ज्ञापन राष्ट्रपति को भेज दिया गया है. समझा जाता है कि कांग्रेस सांसद और मशहूर वकील अभिषेक सिंघवी ने ज्ञापन तैयार किया है. विपक्ष का दावा है कि दोनों विधेयक किसानों के हितों के खिलाफ हैं और इसमें खेती के कॉरपोरेट हाथों में जाने की आशंका है. विपक्षी नेताओं का यह भी दावा है कि यह कृषि क्षेत्र के लिए 'मौत का फरमान' साबित होगा. सरकार का कहना है कि इस कानून के तहत किसानों को अपनी उपज की बिक्री के लिए कोई उपकर या शुल्क नहीं देना होगा.