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दिल्ली हिंसा के एक आरोपी को जमानत मिली, कोर्ट ने पुलिस पर उठाए सवाल

दिल्ली हिंसा के एक आरोपी को कड़कड़डूमा कोर्ट से जमानत मिल गई है. कोर्ट ने दिल्ली पुलिस की ओर से पेश सीसीटीवी फुटेज भी सवाल उठाते हुए कहा कि घटना 25 फरवरी 2020 की है, जबकि फुटेज 24 फरवरी 2020 की है. उसके बाद कोर्ट ने आरोपी को बीस हजार रुपये के मुचलके पर जमानत देने का आदेश दिया.

delhi violence accused gets bail
दिल्ली की कड़कड़डूमा कोर्ट ने सुनाया फैसला
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Published : Jan 16, 2021, 10:17 PM IST

नई दिल्ली : दिल्ली की कड़कड़डूमा कोर्ट ने दिल्ली हिंसा के मामले में एक दुकान और घर में लूटपाट और आगजनी के आरोपी को जमानत दे दिया है. एडिशनल सेशंस जज विनोद यादव ने कहा कि घटना 25 फरवरी 2020 की है, जबकि दिल्ली पुलिस जो सीसीटीवी फुटेज दिखा रही है वो 24 फरवरी की है. कोर्ट ने आरोपी अशरफ अली की पहचान करनेवाले बीट कॉन्स्टेबलों की विश्वसनीयता पर भी सवाल उठाया है.

25 फरवरी 2020 की घटना

घटना 25 फरवरी 2020 की है. शिकायतकर्ता नीतू गौतम ने 1 मार्च 2020 को पुलिस से शिकायत की कि उनकी दुकान और घर में 25 फरवरी 2020 को दंगाईयों की भीड़ ने लूटपाट की और आगजनी की. शिकायतकर्ता के मुताबिक वो घटना वाले दिन एक शादी में हिस्सा लेने के लिए मेरठ गई थी. जब वो मेरठ से वापस से लौटी तो उसे अपना घर और दुकान जली हुई हालत में मिले.

'वीडियो फुटेज घटनास्थल वाले दिन का नहीं'

आरोपी अशरफ अली की ओर से वकील सलीम मलिक ने कहा कि उसे झूठे तरीके से फंसाया गया है. आरोपी को पहले गोकलपुरी के दूसरे मामले में गिरफ्तार किया गया था. आरोपी का एफआईआर में नाम नहीं है और न ही उसके पास से कुछ बरामद हुआ है. मलिक ने कहा कि 25 फरवरी को दो समुदायों के बीच तनावपूर्ण माहौल बन गया था और उसकी वजह से पत्थरबाजी शुरु हो गई थी.

सीसीटीवी फुटेज 24 फरवरी 2020 की

उन्होंने कहा कि घटना 25 फरवरी 2020 की है, लेकिन पुलिस ने जो सीसीटीवी फुटेज 24 फरवरी 2020 की है. उन्होंने कहा कि आरोपी उसी इलाके में रहता है जहां घटना घटी है और वह घटना के समय रोड पर खड़ा था. मलिक ने कहा कि कॉन्स्टेबल विपिन और हेड कॉन्स्टेबल हरि बाबू विश्वसनीय गवाह नहीं हैं. अगर वे घटना के गवाह हैं, तो उन्होंने 7 अप्रैल 2020 तक घटना की सूचना क्यों नहीं दी. मलिक ने कहा कि इस मामले के तीन सह-आरोपियों को जमानत मिल चुकी है. इसलिए आरोपी अशरफ को भी जमानत दी जानी चाहिए.

'दिल्ली दंगा एक गहरी साजिश का हिस्सा थी'

आरोपी की जमानत का विरोध करते हुए दिल्ली पुलिस की ओर से वकील डीके भाटिया ने कहा कि उत्तर-पूर्वी दिल्ली में हुई हिंसा व्यापक थी, जिसमें 53 निर्दोष लोगों की जानें गई थीं और निजी और सार्वजनिक संपत्तियों का नुकसान हुआ था. उन्होंने कहा कि दिल्ली दंगा एक गहरी साजिश का हिस्सा थी. नागरिकता संशोधन कानून का विरोध करने की आड़ में ये सब कुछ किया गया जो 26 फरवरी तक चला. भाटिया ने कहा कि आरोपी घटनास्थल पर दंगाईयों की भीड़ में मौजूद था. ये भीड़ पत्थर, डंडों, पेट्रोल बमों, एसिड की बोतलें के साथ मौजूद थी. उन्होंने कहा कि आरोपी को एक दूसरे मामले में गिरफ्तार किया गया था.

इस मामले में आरोपी की गिरफ्तारी 16 अप्रैल को मंडोली जेल से की गई थी. उन्होंने कहा कि क्राइम ब्रांच ने जो सीसीटीवी फुटेज दिया है, वो 24 फरवरी का है जिसमें आरोपी साफ-साफ दिख रहा है. उन्होंने कहा कि आरोपी की पहचान दो बीट कॉन्स्टेबलों ने 7 अप्रैल को की थी.

पढ़ें: दिल्ली चिड़ियाघर में मृत मिला उल्लू, सैंपल टेस्ट में बर्ड फ्लू की पुष्टि

पुलिस कॉन्स्टेबल सवालों के घेरे में

कोर्ट ने कहा कि आरोपी का नाम एफआईआर में नहीं है और उसके खिलाफ खास आरोप नहीं लगाए गए हैं. दो पुलिस कॉन्स्टेबलों की ओर से आरोपी की पहचान 7 अप्रैल को किया जाना संदेह से परे नहीं है. जब उन्होंने आरोपी को घटना के समय 25 फरवरी 2020 को देखा था, तो उन्होंने पुलिस थाने या उच्च अधिकारियों को सूचना क्यों नहीं दी. कोर्ट ने दिल्ली पुलिस की ओर से पेश सीसीटीवी फुटेज भी सवाल उठाते हुए कहा कि घटना 25 फरवरी 2020 की है, जबकि फुटेज 24 फरवरी 2020 की है. उसके बाद कोर्ट ने आरोपी को बीस हजार रुपये के मुचलके पर जमानत देने का आदेश दिया.

नई दिल्ली : दिल्ली की कड़कड़डूमा कोर्ट ने दिल्ली हिंसा के मामले में एक दुकान और घर में लूटपाट और आगजनी के आरोपी को जमानत दे दिया है. एडिशनल सेशंस जज विनोद यादव ने कहा कि घटना 25 फरवरी 2020 की है, जबकि दिल्ली पुलिस जो सीसीटीवी फुटेज दिखा रही है वो 24 फरवरी की है. कोर्ट ने आरोपी अशरफ अली की पहचान करनेवाले बीट कॉन्स्टेबलों की विश्वसनीयता पर भी सवाल उठाया है.

25 फरवरी 2020 की घटना

घटना 25 फरवरी 2020 की है. शिकायतकर्ता नीतू गौतम ने 1 मार्च 2020 को पुलिस से शिकायत की कि उनकी दुकान और घर में 25 फरवरी 2020 को दंगाईयों की भीड़ ने लूटपाट की और आगजनी की. शिकायतकर्ता के मुताबिक वो घटना वाले दिन एक शादी में हिस्सा लेने के लिए मेरठ गई थी. जब वो मेरठ से वापस से लौटी तो उसे अपना घर और दुकान जली हुई हालत में मिले.

'वीडियो फुटेज घटनास्थल वाले दिन का नहीं'

आरोपी अशरफ अली की ओर से वकील सलीम मलिक ने कहा कि उसे झूठे तरीके से फंसाया गया है. आरोपी को पहले गोकलपुरी के दूसरे मामले में गिरफ्तार किया गया था. आरोपी का एफआईआर में नाम नहीं है और न ही उसके पास से कुछ बरामद हुआ है. मलिक ने कहा कि 25 फरवरी को दो समुदायों के बीच तनावपूर्ण माहौल बन गया था और उसकी वजह से पत्थरबाजी शुरु हो गई थी.

सीसीटीवी फुटेज 24 फरवरी 2020 की

उन्होंने कहा कि घटना 25 फरवरी 2020 की है, लेकिन पुलिस ने जो सीसीटीवी फुटेज 24 फरवरी 2020 की है. उन्होंने कहा कि आरोपी उसी इलाके में रहता है जहां घटना घटी है और वह घटना के समय रोड पर खड़ा था. मलिक ने कहा कि कॉन्स्टेबल विपिन और हेड कॉन्स्टेबल हरि बाबू विश्वसनीय गवाह नहीं हैं. अगर वे घटना के गवाह हैं, तो उन्होंने 7 अप्रैल 2020 तक घटना की सूचना क्यों नहीं दी. मलिक ने कहा कि इस मामले के तीन सह-आरोपियों को जमानत मिल चुकी है. इसलिए आरोपी अशरफ को भी जमानत दी जानी चाहिए.

'दिल्ली दंगा एक गहरी साजिश का हिस्सा थी'

आरोपी की जमानत का विरोध करते हुए दिल्ली पुलिस की ओर से वकील डीके भाटिया ने कहा कि उत्तर-पूर्वी दिल्ली में हुई हिंसा व्यापक थी, जिसमें 53 निर्दोष लोगों की जानें गई थीं और निजी और सार्वजनिक संपत्तियों का नुकसान हुआ था. उन्होंने कहा कि दिल्ली दंगा एक गहरी साजिश का हिस्सा थी. नागरिकता संशोधन कानून का विरोध करने की आड़ में ये सब कुछ किया गया जो 26 फरवरी तक चला. भाटिया ने कहा कि आरोपी घटनास्थल पर दंगाईयों की भीड़ में मौजूद था. ये भीड़ पत्थर, डंडों, पेट्रोल बमों, एसिड की बोतलें के साथ मौजूद थी. उन्होंने कहा कि आरोपी को एक दूसरे मामले में गिरफ्तार किया गया था.

इस मामले में आरोपी की गिरफ्तारी 16 अप्रैल को मंडोली जेल से की गई थी. उन्होंने कहा कि क्राइम ब्रांच ने जो सीसीटीवी फुटेज दिया है, वो 24 फरवरी का है जिसमें आरोपी साफ-साफ दिख रहा है. उन्होंने कहा कि आरोपी की पहचान दो बीट कॉन्स्टेबलों ने 7 अप्रैल को की थी.

पढ़ें: दिल्ली चिड़ियाघर में मृत मिला उल्लू, सैंपल टेस्ट में बर्ड फ्लू की पुष्टि

पुलिस कॉन्स्टेबल सवालों के घेरे में

कोर्ट ने कहा कि आरोपी का नाम एफआईआर में नहीं है और उसके खिलाफ खास आरोप नहीं लगाए गए हैं. दो पुलिस कॉन्स्टेबलों की ओर से आरोपी की पहचान 7 अप्रैल को किया जाना संदेह से परे नहीं है. जब उन्होंने आरोपी को घटना के समय 25 फरवरी 2020 को देखा था, तो उन्होंने पुलिस थाने या उच्च अधिकारियों को सूचना क्यों नहीं दी. कोर्ट ने दिल्ली पुलिस की ओर से पेश सीसीटीवी फुटेज भी सवाल उठाते हुए कहा कि घटना 25 फरवरी 2020 की है, जबकि फुटेज 24 फरवरी 2020 की है. उसके बाद कोर्ट ने आरोपी को बीस हजार रुपये के मुचलके पर जमानत देने का आदेश दिया.

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