कोलकाता : जिंदगी किस मोड़ पर आकर खड़ी हो जाए, किसी को पता नहीं. ऐसा ही एक घटना पश्चिम बंगाल में देखने को मिली है. जहां पूर्व पार्षद बाबू दास को परिवार का भरण-पोषण करने के लिए मालवाहक ठेला चलाना पड़ रहा है. वह अपने परिवार से एकमात्र कमानेवाले हैं. बाबू दास गोबरडांगा नगर पालिका के वार्ड नंबर 2 के पार्षद हुआ करते थे.
जब 1971 में बांग्लादेश एक अलग देश बना था. तब बाबू दास बांग्लादेश के खुलना से पश्चिम बंगाल चले आए और तब से गोबरडांगा शहर के गाईपुर में रहने लगे.
वह पारिवारिक जिम्मेदारियों के कारण शिक्षा पूरी नहीं कर सके, क्योंकि घर में और कोई पैसा कमाने वाला नहीं था. बाबू दास के पास भले ही किताबी ज्ञान नहीं था, लेकिन उन्हें व्यवहारिक ज्ञान था. इतना ही नहीं बाबू दास किसी भी व्यक्ति की मदद करने के लिए हमेशा तैयार रहते थे. सन् 2000 के नगपालिका चुनाव में उन्हें माकपा ने उम्मीदवार चुना. जिसमें उन्होंने अपने प्रतिद्वंदी को भारी वोट से हराया. इसके बाद लगातार दो पंचवर्षी पार्षद रहे. इस समय उन्हें केवल 250 रुपये प्रति माह का मानदेय भत्ता मिलता था.
लेकिन विडंबना यह है कि मानदेय भत्ते से उनके परिवार का खर्च नहीं चल पा रहा था. जिसके चलते उन्हें किराने की दुकान खोलनी पड़ी. 2010 में सरकार ने वार्ड नं 2 को महिलाओं के लिए आरक्षित कर दिया. जिसके बाद बाबू दास को पार्षद पद से इस्तीफा देना पड़ा. फिर 2011 में राजनीतिक उथल-पुथल हुई. सत्ता का समीकरण भी बदल गया. जिसके चलते उन्हें किराने की दुकान भी खोनी पड़ी.
बाबू दास के घर में उनकी पत्नी और तीन बेटियां हैं. उनका पेट भरने के लिए बाबू दास को मजबूरन ठेला चलाना पड़ रहा है.
मदद के लिए सरकारी दफ्तरों के चक्कर
इतना ही नहीं उन्होंने कर्ज लेकर अपनी बेटी की शादी की. कर्ज चुकाने के लिए उन्हें अपने घर तक को बेचना पड़ा. उन्हें घर को कुछ दिनों में खाली करना पड़ेगा. हालांकि उन्होंने सरकारी आवास के लिए आवेदन किया है. जब वह पार्षद हुआ करते थे, तो हजारों लोगों को सरकारी आवास मुहैया करवाया था. लेकिन आज उन्हें सरकारी आवास पाने के लिए नगरपालिका के चक्कर काटने पड़ रहे हैं.
हर सुबह बाबू दास ठेला लेकर रेलवे स्टेशन जाते हैं. वह दिनभर शहर की विभिन्न सड़कों पर ठेला चलाते हैं. स्थानीय निवासी और गोवर्धन नगरपालिका कार्यकर्ता सुजीत मजुमदार ने कहा कि मैंने उन्हें काफी अर्से पहले पार्षद के रूप में देखा था. वह बेहद ही इमानदार व्यक्ति हैं. उन्होंने अपने पद का कभी दुरुपयोग नहीं किया. अन्य राजनेताओं को उनसे सीखना चाहिए.
गोबरडांगा के वर्तमान महापौर और सेवानिवृत्त शिक्षक सुभाष दत्त ने कहा कि जहां तक मैं बाबू दास को जानता हूं. वह एक अच्छे पार्षद थे. उन्हें सत्ता से वित्तीय लाभ प्राप्त करने की कोई लालसा नहीं थी. उनका जीवन भ्रष्टाचार में लिप्त प्रतिनिधियों के लिए एक अच्छा सबक है. बाबू दास की पत्नी कहती हैं कि बाबू दास ने कभी पैसा कमाने के बारे में नहीं सोचा. उन्होंने कहा कि मुझे उन पर गर्व है.
ईटीवी भारत ने बाबू दास से बात की. इस दौरान उन्होंने कहा कि मैं दो बार पार्षद बना क्योंकि मैं लोगों के लिए काम करना चाहता था. मुझे आशा है कि मैं उस काम को ठीक से करने में सक्षम था. इसलिए, भले ही मैं आज एक पूर्व पार्षद हूं. हर कोई मुझे बहुत प्यार करता है.
जब ईटीवी भारत ने उनसे वर्तमान की राजनीति और राजनीतिक प्रतिनिधियों के बारे में कुछ कहने के लिए कहा गया तो उन्होंने कहा कि हमें लोगों के लिए काम करना है. हमारे लिए नहीं. अन्यथा, जब सत्ता चली जाएगी, तो लोग भी चले जाएंगे. कोई भी आपसे प्यार नहीं करेगा, कोई भी आपको याद नहीं करेगा.