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कृषि से जुडे़ विधेयकों को लेकर भाजपा से खफा हो रहे सहयोगी दल

कृषि उपज व्यापार और वाणिज्य (संवर्द्धन और सुविधा) विधेयक, कृषक (सशक्तीकरण एवं संरक्षण) कीमत आश्वासन समझौता और कृषि सेवा पर करार विधेयक लोक सभा से पारित होने के बाद एनडीए के सहयोगी दल भाजपा से नाराज हो रहे हैं. विस्तार से पढ़ें रिपोर्ट...

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Published : Sep 18, 2020, 9:08 PM IST

डिजाइन फोटो
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नई दिल्ली : एनडीए की सहयोगी पार्टियां भारतीय जनता पार्टी (भाजपा) के आला नेताओं के रुख से असंतुष्ट होकर अलग रास्ता अख्तियार कर रही हैं. इसी कड़ी में नया नाम अकाली दल का है, जिसने कृषि उपज व्यापार और वाणिज्य (संवर्द्धन और सुविधा) विधेयक, कृषक (सशक्तीकरण एवं संरक्षण) कीमत आश्वासन समझौता और कृषि सेवा पर करार विधेयक पारित किए जाने के बाद सरकार के खिलाफ धावा बोल दिया है.

इससे पहले भाजपा की सबसे पुरानी सहयोगी पार्टी शिवसेना ने भी एनडीए से नाता तोड़ा था. जिसके बाद उनसे भाजपा के शीर्ष नेताओं पर आरोप लगाया था कि सरकार में उन्हें अहमियत नहीं दी जा रही थी और अब किसान संबंधित विधेयक पर शिरोमणि अकाली दल के नेता भाजपा पर उनकी पार्टी की बात नहीं सुनने का आरोप लगा रहे हैं और विधेयकों को किसान विरोधी बता रहे हैं.

दिलचस्प बात यह है कि केंद्रीय मंत्री हरसिमरत कौर बादल के इस्तीफे के बावजूद भाजपा की तरफ से उन्हें मनाने के लिए कोई भी आगे नहीं आया और न ही किसी ने बातचीत कर मसला सुलझाने की पहल की.

वहीं, दूसरी ओर पार्टी का रुख किसानों से संबंधित इन विधेयकों पर काफी आक्रामक है और सरकार इन विधेयकों को किसी भी हाल में वापस नहीं लेने के मूड में नजर आ रही है. जाहिर तौर पर सरकार को यह बात पहले से पता होगी कि इन विधेयकों के लाने के बाद उनके सहयोगियों के साथ यह स्थिति पैदा हो सकती है. बहरहाल इस परिस्थिति के लिए पार्टी और सरकार दोनों ही तैयार थे.

शिरोमणि अकाली दल के बाद हरियाणा में भाजपा की सहयोगी जननायक जनता पार्टी (जेजेपी) के नेता ने भी राज्य के मुख्यमंत्री एमएल खट्टर से मुलाकात कर इन विधेयकों पर अपनी आपत्ति जताई है, मगर न तो सरकार और न ही पार्टी बिल पर कोई समझौता करने के मूड में नजर आ रही है. जहिर है कि सरकार इस बिल को लेकर बैकफुट पर नहीं जाना चाहती, भले ही इस बिल की वजह से उसके सहयोगी ही क्यों न अलग हो जाएं.

2014 में नरेंद्र मोदी की सरकार जब पहली बार भारी मतों से जीत कर आई थी, तो खुद प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने सार्वजनिक मंच से यह बात कही थी कि भले ही भाजपा को इतनी सीटें मिली हैं कि वह अकेले दम पर सरकार बना सकती है, लेकिन बावजूद इसके जो उनके पुराने सहयोगी हैं वह उन्हें भी अपने मंत्रिमंडल में समुचित जगह और सम्मान देंगे क्योंकि भाजपा वह पार्टी है जो अपने पुराने सहयोगियों को कभी नहीं भूलती.

2019 में नरेंद्र मोदी के नेतृत्व में भारतीय जनता पार्टी को 2014 से भी ज्यादा सीटें मिलीं और धीरे-धीरे उनके सहयोगियों में भी अंतर आता गया. इस बीच हरियाणा में जेजेपी और बिहार में एलजेपी आंखें दिखा रही हैं.

ऐसे में यह सवाल उठता है कि प्रधानमंत्री के कथन के विपरीत, क्या भाजपा को अपने सहयोगियों की जरूरत नहीं है. पार्टी के एक वरिष्ठ नेता ने नाम न बताने की शर्त पर बताया कि पार्टी अब नई संभावनाओं की तलाश कर रही है और यह कोई जरूरी नहीं है कि अपने पुराने सहयोगियों को ही लेकर हमेशा उनकी गलत शर्तों को भी माना जाए.

सूत्रों की मानें तो दक्षिण और पूर्वोत्तर राज्यों में पार्टी नई संभावनाएं और नई पार्टियों को अपने साथ जोड़ने की मुहिम में काफी तेज गति से आगे बढ़ रही है. पार्टी को ऐसा लगता है कि उत्तर प्रदेश, बिहार और पंजाब के परंपरागत सहयोगियों के अलावा उसे अब उन राज्यों में सहयोगी बढ़ाने की आवश्यकता है, जहां पर पार्टी का जनाधार स्थापित होने की संभावना है, क्योंकि इन पुराने राज्यों में पार्टी हमेशा से जीतती आई है.

भाजपा को ऐसा लगता है कि वहां वह नरेंद्र मोदी के नाम पर अकेले ही चुनाव लड़ सकती है, ऐसे में उन राज्यों में जहां पार्टी नई संभावनाएं तलाश रही है. वहां नए सहयोगियों को तवज्जो देना भाजपा के लिए ज्यादा लाभदायक होगा. भारतीय जनता पार्टी के पुराने सहयोगियों की जगह आने वाले दिनों में एनडीए में कई नए सहयोगी शामिल किए जा सकते हैं.

पढ़ें - कृषि सुधार विधेयक ऐतिहासिक, किसानों को भ्रमित करने में लगीं कई 'शक्तियां': मोदी

इस संबंध में भारतीय जनता पार्टी के राष्ट्रीय प्रवक्ता सुदेश वर्मा का कहना है कि किसानों से संबंधित जितने भी बिल हैं, कानून बनने वाले हैं. यह किसानों को सशक्त बनाने के लिए है और भारतीय जनता पार्टी बिचौलियों को मजबूत नहीं कर सकती. इस कानून से किसान को फायदा होगा. किसान अपनी फसल की कीमत ले सकेगा. इसमें किसानों को एक समानांतर शक्ति दी गई है.

उन्होंने कहा कि न्यूनतम समर्थन मूल्य (एमएसपी) जारी रहेगी. इसके बारे में लोग भ्रम फैला रहे हैं और एमएसपी गारंटी देगा कि किसान को उपज की ज्यादा से ज्यादा कीमत मिले और अगर इससे भी ज्यादा कीमत उन्हें बाजार में मिलती है, तो उसे मिलना चाहिए. मगर लोग इसका लोग विरोध कर रहे हैं, यह समझना चाहिए कि जो लोग विरोध कर रहे हैं कि वह बिचौलियों का समर्थन कर रहे हैं न कि किसानों का.

वर्मा ने कहा कि यह बहुत ही क्रांतिकारी कदम है. अपने-अपने राजनीतिक कारणों से पार्टियां इसका विरोध कर रही हैं. भारतीय जनता पार्टी किसानों को समझएगी और हमें ऐसा विश्वास है कि किसान हमारी बात समझेंगे कि उनके लिए जो कानून है वह उन्हें मजबूत करने के लिए है.

उन्होंने आगे कहा कि कांग्रेस ने यह कहा था कि आवश्यक वस्तु अधिनियम, 1955 बहुत आउटडेटेड मैकेनिज्म है और इसे तभी ऑपरेट करना चाहिए जब इमरजेंसी हो. यही भारतीय जनता पार्टी ने किया है. हमने कृषि उपज मंडी समिति (एपीएमसी) को रिपीट नहीं किया है. हमने किसानों को मजबूत किया है ताकि वह बाढ़ और सूखा की स्थिति में मजबूत रह सकें.

नई दिल्ली : एनडीए की सहयोगी पार्टियां भारतीय जनता पार्टी (भाजपा) के आला नेताओं के रुख से असंतुष्ट होकर अलग रास्ता अख्तियार कर रही हैं. इसी कड़ी में नया नाम अकाली दल का है, जिसने कृषि उपज व्यापार और वाणिज्य (संवर्द्धन और सुविधा) विधेयक, कृषक (सशक्तीकरण एवं संरक्षण) कीमत आश्वासन समझौता और कृषि सेवा पर करार विधेयक पारित किए जाने के बाद सरकार के खिलाफ धावा बोल दिया है.

इससे पहले भाजपा की सबसे पुरानी सहयोगी पार्टी शिवसेना ने भी एनडीए से नाता तोड़ा था. जिसके बाद उनसे भाजपा के शीर्ष नेताओं पर आरोप लगाया था कि सरकार में उन्हें अहमियत नहीं दी जा रही थी और अब किसान संबंधित विधेयक पर शिरोमणि अकाली दल के नेता भाजपा पर उनकी पार्टी की बात नहीं सुनने का आरोप लगा रहे हैं और विधेयकों को किसान विरोधी बता रहे हैं.

दिलचस्प बात यह है कि केंद्रीय मंत्री हरसिमरत कौर बादल के इस्तीफे के बावजूद भाजपा की तरफ से उन्हें मनाने के लिए कोई भी आगे नहीं आया और न ही किसी ने बातचीत कर मसला सुलझाने की पहल की.

वहीं, दूसरी ओर पार्टी का रुख किसानों से संबंधित इन विधेयकों पर काफी आक्रामक है और सरकार इन विधेयकों को किसी भी हाल में वापस नहीं लेने के मूड में नजर आ रही है. जाहिर तौर पर सरकार को यह बात पहले से पता होगी कि इन विधेयकों के लाने के बाद उनके सहयोगियों के साथ यह स्थिति पैदा हो सकती है. बहरहाल इस परिस्थिति के लिए पार्टी और सरकार दोनों ही तैयार थे.

शिरोमणि अकाली दल के बाद हरियाणा में भाजपा की सहयोगी जननायक जनता पार्टी (जेजेपी) के नेता ने भी राज्य के मुख्यमंत्री एमएल खट्टर से मुलाकात कर इन विधेयकों पर अपनी आपत्ति जताई है, मगर न तो सरकार और न ही पार्टी बिल पर कोई समझौता करने के मूड में नजर आ रही है. जहिर है कि सरकार इस बिल को लेकर बैकफुट पर नहीं जाना चाहती, भले ही इस बिल की वजह से उसके सहयोगी ही क्यों न अलग हो जाएं.

2014 में नरेंद्र मोदी की सरकार जब पहली बार भारी मतों से जीत कर आई थी, तो खुद प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने सार्वजनिक मंच से यह बात कही थी कि भले ही भाजपा को इतनी सीटें मिली हैं कि वह अकेले दम पर सरकार बना सकती है, लेकिन बावजूद इसके जो उनके पुराने सहयोगी हैं वह उन्हें भी अपने मंत्रिमंडल में समुचित जगह और सम्मान देंगे क्योंकि भाजपा वह पार्टी है जो अपने पुराने सहयोगियों को कभी नहीं भूलती.

2019 में नरेंद्र मोदी के नेतृत्व में भारतीय जनता पार्टी को 2014 से भी ज्यादा सीटें मिलीं और धीरे-धीरे उनके सहयोगियों में भी अंतर आता गया. इस बीच हरियाणा में जेजेपी और बिहार में एलजेपी आंखें दिखा रही हैं.

ऐसे में यह सवाल उठता है कि प्रधानमंत्री के कथन के विपरीत, क्या भाजपा को अपने सहयोगियों की जरूरत नहीं है. पार्टी के एक वरिष्ठ नेता ने नाम न बताने की शर्त पर बताया कि पार्टी अब नई संभावनाओं की तलाश कर रही है और यह कोई जरूरी नहीं है कि अपने पुराने सहयोगियों को ही लेकर हमेशा उनकी गलत शर्तों को भी माना जाए.

सूत्रों की मानें तो दक्षिण और पूर्वोत्तर राज्यों में पार्टी नई संभावनाएं और नई पार्टियों को अपने साथ जोड़ने की मुहिम में काफी तेज गति से आगे बढ़ रही है. पार्टी को ऐसा लगता है कि उत्तर प्रदेश, बिहार और पंजाब के परंपरागत सहयोगियों के अलावा उसे अब उन राज्यों में सहयोगी बढ़ाने की आवश्यकता है, जहां पर पार्टी का जनाधार स्थापित होने की संभावना है, क्योंकि इन पुराने राज्यों में पार्टी हमेशा से जीतती आई है.

भाजपा को ऐसा लगता है कि वहां वह नरेंद्र मोदी के नाम पर अकेले ही चुनाव लड़ सकती है, ऐसे में उन राज्यों में जहां पार्टी नई संभावनाएं तलाश रही है. वहां नए सहयोगियों को तवज्जो देना भाजपा के लिए ज्यादा लाभदायक होगा. भारतीय जनता पार्टी के पुराने सहयोगियों की जगह आने वाले दिनों में एनडीए में कई नए सहयोगी शामिल किए जा सकते हैं.

पढ़ें - कृषि सुधार विधेयक ऐतिहासिक, किसानों को भ्रमित करने में लगीं कई 'शक्तियां': मोदी

इस संबंध में भारतीय जनता पार्टी के राष्ट्रीय प्रवक्ता सुदेश वर्मा का कहना है कि किसानों से संबंधित जितने भी बिल हैं, कानून बनने वाले हैं. यह किसानों को सशक्त बनाने के लिए है और भारतीय जनता पार्टी बिचौलियों को मजबूत नहीं कर सकती. इस कानून से किसान को फायदा होगा. किसान अपनी फसल की कीमत ले सकेगा. इसमें किसानों को एक समानांतर शक्ति दी गई है.

उन्होंने कहा कि न्यूनतम समर्थन मूल्य (एमएसपी) जारी रहेगी. इसके बारे में लोग भ्रम फैला रहे हैं और एमएसपी गारंटी देगा कि किसान को उपज की ज्यादा से ज्यादा कीमत मिले और अगर इससे भी ज्यादा कीमत उन्हें बाजार में मिलती है, तो उसे मिलना चाहिए. मगर लोग इसका लोग विरोध कर रहे हैं, यह समझना चाहिए कि जो लोग विरोध कर रहे हैं कि वह बिचौलियों का समर्थन कर रहे हैं न कि किसानों का.

वर्मा ने कहा कि यह बहुत ही क्रांतिकारी कदम है. अपने-अपने राजनीतिक कारणों से पार्टियां इसका विरोध कर रही हैं. भारतीय जनता पार्टी किसानों को समझएगी और हमें ऐसा विश्वास है कि किसान हमारी बात समझेंगे कि उनके लिए जो कानून है वह उन्हें मजबूत करने के लिए है.

उन्होंने आगे कहा कि कांग्रेस ने यह कहा था कि आवश्यक वस्तु अधिनियम, 1955 बहुत आउटडेटेड मैकेनिज्म है और इसे तभी ऑपरेट करना चाहिए जब इमरजेंसी हो. यही भारतीय जनता पार्टी ने किया है. हमने कृषि उपज मंडी समिति (एपीएमसी) को रिपीट नहीं किया है. हमने किसानों को मजबूत किया है ताकि वह बाढ़ और सूखा की स्थिति में मजबूत रह सकें.

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