छिंदवाड़ा: महात्मा गांधी का मध्यप्रदेश से बेहद लगाव था. जहा आज भी इतिहास में दर्ज गांधीजी की स्मृतियां उनके महात्मा होने की तस्दीक करती हैं, संघर्ष के दौरान उनके कदम जहां-जहां पड़े, वो धरा आज भी धरोहर की तरह सहेजी जा रही है.
इतिहास के पन्ने पलटें तो पता चलता है कि गांधीजी ने मध्यप्रदेश की 10 यात्राएं की थी, जिनमें से तीसरी यात्रा के दौरान वे 6 जनवरी, 1921 को छिंदवाड़ा पहुंचे थे और यहीं से उन्होंने असहयोग आंदोलन की दुंदुभी बजाई थी.
1914 में दक्षिण अफ्रीका से लौटने के बाद गांधी के राजनीतिक गुरु गोपाल कृष्ण गोखले ने उन्हें देश भ्रमण करने की सलाह दी थी, जिसके बाद पहली बार दिसंबर 1920 में नागपुर में हुए कांग्रेस के राष्ट्रीय अधिवेशन में गांधीजी शामिल हुए, जिसमें उन्होंने जिद करके असहयोग आंदोलन का प्रस्ताव पास कराया.
हालांकि, असहयोग आंदोलन की रणनीति नागपुर अधिवेशन में बन चुकी थी, उसके बाद 6 जनवरी 1921 को महात्मा गांधी छिंदवाड़ा गए और उन्होंने चिट्नवीस गंज में सभा की और यहीं से असहयोग आंदोलन की व्यापकता और उसके उद्देश्य की घोषणा की थी.
यूं ही नाम रख लेने से कोई गांधी नहीं बन जाता है, गांधी बनने के लिए बड़ा त्याग करना पड़ता है. इसी त्याग ने गांधी को महात्मा बना दिया, जिनकी हर स्मृति को आज भी विरासत की तरह सहेजा जा रहा है. मध्यप्रदेश से भी बापू की तमाम यादें जुड़ी हुई हैं, जिन्हें संजोने के लिए गांव-कस्बों तक का नाम बदलकर गांधी के नाम कर दिया गया, ताकि उनकी स्मृति बनी रहे.