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'कांग्रेस में वरिष्ठ बनाम युवा समस्या नहीं, राहुल को संभालनी चाहिए कमान'

कांग्रेस के दिग्गज नेता हरीश रावत ने राहुल गांधी से भव्य और पुरानी पार्टी की बागडोर संभालने का आग्रह करते हुए दावा किया है कि संगठन में वरिष्ठ बनाम युवा नेताओं के बीच वर्चस्व की लड़ाई नहीं है. वरिष्ठ पत्रकार अमित अग्निहोत्री ने उत्तराखंड के पूर्व मुख्यमंत्री हरीश रावत के साथ खास बातचीत की. पढ़ें पूरी खबर...

Congress veteran Harish Rawat interview
हरीश रावत से खास बातचीत.
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Published : Aug 30, 2020, 5:25 PM IST

नई दिल्ली : कांग्रेस पार्टी नेतृत्व संकट से जूझ रही है. पिछले एक साल से अधिक समय से सोनिया गांधी पार्टी की अंतरिम अध्यक्ष बनी हुई हैं. कई वरिष्ठ नेता पार्टी में संगठन स्तर के चुनाव की वकालत कर रहे हैं. कांग्रेस में आंतरिक असंतोष तब और ऊभरा जब सोनिया गांधी को नेतृत्व के मुद्दे पर पत्र भी लिखे गए. हालांकि, डैमेज कंट्रोल की कवायद के तहत कई वरिष्ठ नेता पार्टी में किसी भी तरह के असंतोष को खारिज करते रहे हैं. कांग्रेस किन समस्याओं का सामना कर रही है. यह समझने के लिए ईटीवी भारत ने उत्तराखंड के पूर्व मुख्यमंत्री हरीश रावत से बात की. आइए जानते हैं कि इस दौरान हरीश रावत ने क्या कुछ कहा...

उत्तराखंड के पूर्व मुख्यमंत्री हरीश रावत से खास बातचीत.

सवाल : 23 वरिष्ठ नेताओं द्वारा लिखे गए असहमति जताते हुए पत्र ने कांग्रेस में नेतृत्व के मुद्दे को सामने ला दिया है. क्या वरिष्ठ बनाम युवा नेताओं की बहस कांग्रेस की बढ़त को प्रभावित कर रही है?

जवाब : देखें, ऐतिहासिक रूप से कांग्रेस पार्टी ने युवा नेताओं का समर्थन किया है और उन्हें प्रोत्साहित किया है. इंदिरा गांधी के समय में, कई युवा पार्टी में शामिल हुए. संजय गांधी ने कमलनाथ जैसे कई युवाओं को पार्टी की सदस्यता दिलाई. बाद में, जब राजीव गांधी ने सत्ता संभाली, तो उनके समेत, गुलाम नबी आजाद, अहमद पटेल, आनंद शर्मा और मुकुल वासनिक सहित कई युवा पार्टी में आए. वास्तव में जो लोग संजय गांधी और राजीव गांधी के समय में कांग्रेस में शामिल हुए थे. वह आज पार्टी का संचालन कर रहें हैं. हमारे बाद अविनाश पांडे जैसे युवा आए और बहुत अच्छा काम कर रहे हैं. इसी तरह राजीव सातव और गौरव गोगोई जैसे कई युवा राहुल गांधी के सक्रिय राजनीति में शामिल होने के बाद आए और तब से उन्होंने ऊंचा मुकाम हासिल किया है. कांग्रेस का युवा पीढ़ी के प्रति स्वाभाविक झुकाव रहा है. पार्टी में वरिष्ठ बनाम युवा नेताओं को लेकर कोई बहस नहीं है. हम सभी युवा पीढ़ी को समायोजित करने और उन्हें समर्थन देने के लिए तैयार हैं. हालांकि, ज्योतिरादित्य सिंधिया की तरह एक या दो उदाहरण हैं. उन्हें पार्टी द्वारा कुछ ही समय में इतना कुछ दिया गया. मैं एक निजी किस्सा सुनाता हूं. 1980 में मैं ज्योतिरादित्य के पिता (दिवंगत माधवराव सिंधिया) के साथ संसद सदस्य था और दशकों बाद मनमोहन सिंह सरकार में राज्य मंत्री के रूप में काम किया, जिसमें ज्योतिरादित्य भी सदस्य थे. मुद्दा यह है कि हमने सब्र से काम लिया. अगर ज्योतिरादित्य पार्टी में ही रहते, तो वे मध्य प्रदेश के मुख्यमंत्री बना दिए जाते, लेकिन वह अधीर हो गए और पार्टी को छोड़ दिए.

सवाल : यदि ऐसा है, तो असंतुष्टों द्वारा चिह्नित मुद्दों पर चर्चा करने के लिए 24 अगस्त को कांग्रेस वर्किंग कमेटी (सीडब्ल्यूसी) की बैठक के दौरान अनुभवी गुलाम नबी आजाद को क्यों निशाना बनाया गया था?

जवाब : देखिए पत्र लिखना किसी के लिए भी चिंता का विषय नहीं था. उसको लिखने का समय और जिस तरह से इसे उसपर जोर दिया गया था और मीडिया में लीक किया गया, उसने सीडब्ल्यूसी सदस्यों को नाराज कर दिया और उन्हें निराश किया था. वह सोच रहे थे कि ऐसा क्यों हुआ? आजाद एक अनुभवी और मंझे हुए राजनेता हैं. वास्तव में, आजाद, अहमद पटेल और अंबिका सोनी सहित तीन नेताओं का पार्टी में विशेष स्थान है. हमने हमेशा उनका सम्मान किया है. बैठक के दौरान यदि वह खड़े हो जाते हैं, तो हम भी कुर्सी पर नहीं बैठते हैं. आजाद को पार्टी के लिए संकटमोचक माना जाता था. अगर हम कुछ भी गलत कर देते थे, तो आजाद इसे सही करते थे. वहीं अहमद पटेल के लिए माना जाता रहा है, जब असहमति का पत्र सामने आया और आजाद का नाम इस प्रकरण के प्रमुख नामों में से एक के रूप में आया, तो हमें आश्चर्य हुआ, क्यों?

आजाद सिर्फ सोनिया गांधी से मिल सकते थे या उन्हें फोन कर सकते थे. उनकी बात जरूर सुनी जाती. इसके बजाय, पार्टी के बारे में हर तरह की नकारात्मक खबरें घूम रही थीं और इसने हमें पीड़ा दी. यह भावना सीडब्ल्यूसी की बैठक में परिलक्षित हुई. ऐसा नहीं था कि आजाद ने किसी प्रकार के तख्तापलट का प्रयास किया था, लेकिन सीडब्ल्यूसी सदस्यों ने पत्र के लीक होने के तरीके पर अपनी चिंता व्यक्त की. यह वास्तव में इसने चर्चा को लंबा खींच दिया, लेकिन अंत में सोनिया गांधी ने हम सभी को आश्वासन दिया कि हमारी भावनाओं को संबोधित किया जाएगा.

सवाल : क्या राहुल गांधी के कांग्रेस अध्यक्ष बनने को लेकर पार्टी में संशय है ?

जवाब : सीडब्ल्यूसी ने चर्चा की कि अगर राहुल पदभार लेने से हिचक रहे हैं तो इन सभी मुद्दों पर चर्चा करने के लिए एक अखिल भारतीय कांग्रेस कमेटी का सत्र बुलाया जाए. हम चाहते हैं कि राहुल जल्द से जल्द पदभार संभालें. सीडब्ल्यूसी में भी यह सर्वसम्मत था. यहां तक कि अगस्त 2019 में आयोजित विस्तारित सीडब्ल्यूसी ने राहुल से अपना इस्तीफा वापस लेने का आग्रह किया था. कांग्रेस कार्यकर्ताओं को उनके नेतृत्व पर पूरा भरोसा है. राहुल ने उस समय पदभार संभाला, जब बहुत सारी चुनौतियां थीं. हम सभी महसूस करते हैं आज देश में संसदीय प्रणाली और संवैधानिक लोकतंत्र को चुनौती दी जा रही है. राहुल पीएम मोदी और उनकी सरकार की कार्यशैली पर करारा जवाब दे रहे हैं. वह कांग्रेस के मजबूत नेता के रूप में उभरे हैं और उन्होंने विपक्ष के नेता के स्थान को हासिल किया है. इन परिस्थितियों में मुझे लगता है कि कांग्रेस को एक युवा नेता की आवश्यकता है और भारत को एक युवा विपक्षी नेता की आवश्यकता है. उन्होंने पूरे देश की यात्रा की और लोगों से मुलाकात की है. उन्होंने अनुभव प्राप्त किया है. समय अब बदल रहा है. लोगों ने रोजी-रोटी से संबंधित मुद्दों को उठाना शुरू कर दिया है. यह समय है जब राहुल को कांग्रेस अध्यक्ष पद संभालना चाहिए.

सवाल : इस तथ्य के बारे में क्या कहेंगे कि दो दशकों से सीडब्ल्यूसी के चुनाव नहीं हुए हैं?

जवाब : यह मुद्दा पार्टी के भीतर का है न कि यह सार्वजनिक बहस का विषय है. सीडब्ल्यूसी को फिर से मिलना चाहिए और नेताओं से परामर्श किया जाना चाहिए कि जिला स्तर तक के विभिन्न पार्टी पदों के लिए चुनाव होने चाहिए या नहीं. आजाद कुछ नया नहीं कह रहे हैं. यह पुराने कांग्रेस के विचार हैं. वास्तव में यह राहुल ही थे, जिन्होंने युवा कांग्रेस की शुरुआत की और युवा विंग में आंतरिक चुनाव शुरू किए. यदि राहुल सत्ता संभालते हैं, तो वह निश्चित रूप से आंतरिक पार्टी चुनावों को प्राथमिकता देंगे, लेकिन आज, देश के द्वारा सामना की जा रही चुनौतियां हमारे अविभाजित ध्यान की मांग कर रहीं हैं. हम सभी इस सिद्धांत से सहमत हैं कि आंतरिक चुनाव होने चाहिए, लेकिन इसके लिए समय हम तय करेंगे.

सवाल : तो क्या असंतुष्टों द्वारा उठाए गए मुद्दों को सुलझा लिया गया है?

जवाब : असंतुष्ट नेताओं द्वारा पत्र में उठाए गए मुद्दों पर विस्तृत तौर पर सीडब्ल्यूसी में चर्चा की गई है. मुझे लगता है कि सोनिया की निष्कर्षपूर्ण टिप्पणी ने मामले को समाप्त कर दिया है. आजाद भी उतने ही चिंतित हैं, जितने कांग्रेस पार्टी के लिए मैं फिक्रमंद हूं और मुझे लगता है कि इस मुद्दे को जगजाहिर करने का गलत इरादा किसी का भी नहीं था. अखिल भारतीय कांग्रेस कमेटी का एक सत्र अगले छह महीनों में आयोजित किया जाएगा. अगर इस बीच कुछ और नई बात आती है, तो मैं नहीं कह सकता, लेकिन अब राहुल को कांग्रेस अध्यक्ष के रूप में देखा जाना चाहिए. तब तक हम एक रचनात्मक विपक्ष की भूमिका निभाना चाहते हैं और मोदी सरकार को घेरने के लिए बेरोजगारी, असहिष्णुता और ध्वस्त अर्थव्यवस्था जैसी सार्वजनिक मुद्दों को उठाने के लिए तैयार हैं.

सवाल : लेकिन कांग्रेस एक आक्रामक विपक्ष की भूमिका क्यों नहीं निभा पा रही है?

जवाब : दुर्भाग्य से पिछले दो वर्षों से हम एक अप्राकृतिक राजनीतिक परिदृश्य देख रहे हैं जो कांग्रेस के काम करने के तरीके के अनुरूप नहीं है. भारतीय जनता पार्टी और राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ ने सांप्रदायिक आधार पर देश की राजनीति को विभाजित करने में कामयाबी हासिल की है. हमने इसे साफतौर पर 2017 के उत्तर प्रदेश और उत्तराखंड विधानसभा चुनाव में देखा है. हमें उम्मीद थी कि उत्तर प्रदेश में हम समाजवादी पार्टी के साथ गठबंधन में वापस आएंगे और उत्तराखंड में भी ऐसी ही उम्मीद थी, लेकिन प्रधानमंत्री मोदी ने चुनाव प्रचार के दौरान 'कब्रिस्तान-श्मशान' प्रकार की टिप्पणी शुरू कर दी, जिसने चुनावों का ध्रुवीकरण कर दिया. परिणामस्वरूप हम हार गए. उसी वर्ष गुजरात विधानसभा चुनावों के बाद, हम मजबूत नजर आ रहे थे क्योंकि बेरोजगारी और आर्थिक मंदी का मुद्दा सार्वजनिक पटल पर हावी था, लेकिन फिर दुर्भाग्यपूर्ण 2019 पुलवामा आतंकी हमला हुआ. सीमा पार से आतंकी ठिकानों पर भारतीय वायुसेना द्वारा बाद में किए गए बालाकोट हमलों को प्रधानमंत्री और मीडिया ने भुनाया. अफसोस की बात है कि कांग्रेस को पाकिस्तान समर्थक के रूप में चित्रित किया गया. यह एक दुर्भाग्यपूर्ण बात थी. पारंपरिक भारतीय लोकाचार सभी धर्मों की समानता की बात करता है, लेकिन भाजपा सांप्रदायिक आधार पर राजनीति को विभाजित करने में सफल रही. यह एक अपरिचित मोर्चा है जिस पर हम खुद को पाते हैं और यही कारण है कि हम 2019 के लोकसभा का चुनाव हार गए.

सवाल : क्या पिछले दशकों में कांग्रेस अध्यक्षों की कार्यशैली में बदलाव नजर आ रहा है?

जवाब : कांग्रेस पार्टी में कार्य करने की शैली में नैतिकता इंदिरा गांधी के समय से एक समान है. इसमें राजीव गांधी, पीवी नरसिंहा राव, सीताराम केसरी, सोनिया गांधी और राहुल गांधी के क्रमिक अध्यक्षता के दौरान बदलाव नहीं देखा गया है. राहुल ने पिछले 12 वर्षों में विभिन्न क्षमताओं में सोनिया के अधीन काम किया है. आज हमारी कार्यशैली और आंतरिक तंत्र के साथ कोई समस्या नहीं है, लेकिन पिछले वर्षों में जो कुछ बदला है वह देश का राजनीतिक माहौल है. यह प्रदूषित हो गया है और कांग्रेस के लिए उपयुक्त नहीं है.

सवाल : क्या आपको उम्मीद है कि परिस्थितियों में बदलाव आएगा?

जवाब : चीजें तब बदल जाएंगी जब लोग अपनी रोजी-रोटी के मुद्दों, नौकरियों की कमी और फिसलती हुई अर्थव्यवस्था के बारे में सोचना शुरू कर देंगे. वह फिर से कांग्रेस द्वारा किए गए कार्यों की सराहना करना शुरू कर देंगे. देश में विभाजनकारी माहौल आरएसएस के प्रमुख मोहन भागवत और प्रधानमंत्री मोदी द्वारा संयुक्त रूप से तैयार किया गया है. कांग्रेस के पास इसका जवाब है, लेकिन कांग्रेस अपने पाले में खेलेगी और कोई भी उसे वहां नहीं हरा सकता है.

नई दिल्ली : कांग्रेस पार्टी नेतृत्व संकट से जूझ रही है. पिछले एक साल से अधिक समय से सोनिया गांधी पार्टी की अंतरिम अध्यक्ष बनी हुई हैं. कई वरिष्ठ नेता पार्टी में संगठन स्तर के चुनाव की वकालत कर रहे हैं. कांग्रेस में आंतरिक असंतोष तब और ऊभरा जब सोनिया गांधी को नेतृत्व के मुद्दे पर पत्र भी लिखे गए. हालांकि, डैमेज कंट्रोल की कवायद के तहत कई वरिष्ठ नेता पार्टी में किसी भी तरह के असंतोष को खारिज करते रहे हैं. कांग्रेस किन समस्याओं का सामना कर रही है. यह समझने के लिए ईटीवी भारत ने उत्तराखंड के पूर्व मुख्यमंत्री हरीश रावत से बात की. आइए जानते हैं कि इस दौरान हरीश रावत ने क्या कुछ कहा...

उत्तराखंड के पूर्व मुख्यमंत्री हरीश रावत से खास बातचीत.

सवाल : 23 वरिष्ठ नेताओं द्वारा लिखे गए असहमति जताते हुए पत्र ने कांग्रेस में नेतृत्व के मुद्दे को सामने ला दिया है. क्या वरिष्ठ बनाम युवा नेताओं की बहस कांग्रेस की बढ़त को प्रभावित कर रही है?

जवाब : देखें, ऐतिहासिक रूप से कांग्रेस पार्टी ने युवा नेताओं का समर्थन किया है और उन्हें प्रोत्साहित किया है. इंदिरा गांधी के समय में, कई युवा पार्टी में शामिल हुए. संजय गांधी ने कमलनाथ जैसे कई युवाओं को पार्टी की सदस्यता दिलाई. बाद में, जब राजीव गांधी ने सत्ता संभाली, तो उनके समेत, गुलाम नबी आजाद, अहमद पटेल, आनंद शर्मा और मुकुल वासनिक सहित कई युवा पार्टी में आए. वास्तव में जो लोग संजय गांधी और राजीव गांधी के समय में कांग्रेस में शामिल हुए थे. वह आज पार्टी का संचालन कर रहें हैं. हमारे बाद अविनाश पांडे जैसे युवा आए और बहुत अच्छा काम कर रहे हैं. इसी तरह राजीव सातव और गौरव गोगोई जैसे कई युवा राहुल गांधी के सक्रिय राजनीति में शामिल होने के बाद आए और तब से उन्होंने ऊंचा मुकाम हासिल किया है. कांग्रेस का युवा पीढ़ी के प्रति स्वाभाविक झुकाव रहा है. पार्टी में वरिष्ठ बनाम युवा नेताओं को लेकर कोई बहस नहीं है. हम सभी युवा पीढ़ी को समायोजित करने और उन्हें समर्थन देने के लिए तैयार हैं. हालांकि, ज्योतिरादित्य सिंधिया की तरह एक या दो उदाहरण हैं. उन्हें पार्टी द्वारा कुछ ही समय में इतना कुछ दिया गया. मैं एक निजी किस्सा सुनाता हूं. 1980 में मैं ज्योतिरादित्य के पिता (दिवंगत माधवराव सिंधिया) के साथ संसद सदस्य था और दशकों बाद मनमोहन सिंह सरकार में राज्य मंत्री के रूप में काम किया, जिसमें ज्योतिरादित्य भी सदस्य थे. मुद्दा यह है कि हमने सब्र से काम लिया. अगर ज्योतिरादित्य पार्टी में ही रहते, तो वे मध्य प्रदेश के मुख्यमंत्री बना दिए जाते, लेकिन वह अधीर हो गए और पार्टी को छोड़ दिए.

सवाल : यदि ऐसा है, तो असंतुष्टों द्वारा चिह्नित मुद्दों पर चर्चा करने के लिए 24 अगस्त को कांग्रेस वर्किंग कमेटी (सीडब्ल्यूसी) की बैठक के दौरान अनुभवी गुलाम नबी आजाद को क्यों निशाना बनाया गया था?

जवाब : देखिए पत्र लिखना किसी के लिए भी चिंता का विषय नहीं था. उसको लिखने का समय और जिस तरह से इसे उसपर जोर दिया गया था और मीडिया में लीक किया गया, उसने सीडब्ल्यूसी सदस्यों को नाराज कर दिया और उन्हें निराश किया था. वह सोच रहे थे कि ऐसा क्यों हुआ? आजाद एक अनुभवी और मंझे हुए राजनेता हैं. वास्तव में, आजाद, अहमद पटेल और अंबिका सोनी सहित तीन नेताओं का पार्टी में विशेष स्थान है. हमने हमेशा उनका सम्मान किया है. बैठक के दौरान यदि वह खड़े हो जाते हैं, तो हम भी कुर्सी पर नहीं बैठते हैं. आजाद को पार्टी के लिए संकटमोचक माना जाता था. अगर हम कुछ भी गलत कर देते थे, तो आजाद इसे सही करते थे. वहीं अहमद पटेल के लिए माना जाता रहा है, जब असहमति का पत्र सामने आया और आजाद का नाम इस प्रकरण के प्रमुख नामों में से एक के रूप में आया, तो हमें आश्चर्य हुआ, क्यों?

आजाद सिर्फ सोनिया गांधी से मिल सकते थे या उन्हें फोन कर सकते थे. उनकी बात जरूर सुनी जाती. इसके बजाय, पार्टी के बारे में हर तरह की नकारात्मक खबरें घूम रही थीं और इसने हमें पीड़ा दी. यह भावना सीडब्ल्यूसी की बैठक में परिलक्षित हुई. ऐसा नहीं था कि आजाद ने किसी प्रकार के तख्तापलट का प्रयास किया था, लेकिन सीडब्ल्यूसी सदस्यों ने पत्र के लीक होने के तरीके पर अपनी चिंता व्यक्त की. यह वास्तव में इसने चर्चा को लंबा खींच दिया, लेकिन अंत में सोनिया गांधी ने हम सभी को आश्वासन दिया कि हमारी भावनाओं को संबोधित किया जाएगा.

सवाल : क्या राहुल गांधी के कांग्रेस अध्यक्ष बनने को लेकर पार्टी में संशय है ?

जवाब : सीडब्ल्यूसी ने चर्चा की कि अगर राहुल पदभार लेने से हिचक रहे हैं तो इन सभी मुद्दों पर चर्चा करने के लिए एक अखिल भारतीय कांग्रेस कमेटी का सत्र बुलाया जाए. हम चाहते हैं कि राहुल जल्द से जल्द पदभार संभालें. सीडब्ल्यूसी में भी यह सर्वसम्मत था. यहां तक कि अगस्त 2019 में आयोजित विस्तारित सीडब्ल्यूसी ने राहुल से अपना इस्तीफा वापस लेने का आग्रह किया था. कांग्रेस कार्यकर्ताओं को उनके नेतृत्व पर पूरा भरोसा है. राहुल ने उस समय पदभार संभाला, जब बहुत सारी चुनौतियां थीं. हम सभी महसूस करते हैं आज देश में संसदीय प्रणाली और संवैधानिक लोकतंत्र को चुनौती दी जा रही है. राहुल पीएम मोदी और उनकी सरकार की कार्यशैली पर करारा जवाब दे रहे हैं. वह कांग्रेस के मजबूत नेता के रूप में उभरे हैं और उन्होंने विपक्ष के नेता के स्थान को हासिल किया है. इन परिस्थितियों में मुझे लगता है कि कांग्रेस को एक युवा नेता की आवश्यकता है और भारत को एक युवा विपक्षी नेता की आवश्यकता है. उन्होंने पूरे देश की यात्रा की और लोगों से मुलाकात की है. उन्होंने अनुभव प्राप्त किया है. समय अब बदल रहा है. लोगों ने रोजी-रोटी से संबंधित मुद्दों को उठाना शुरू कर दिया है. यह समय है जब राहुल को कांग्रेस अध्यक्ष पद संभालना चाहिए.

सवाल : इस तथ्य के बारे में क्या कहेंगे कि दो दशकों से सीडब्ल्यूसी के चुनाव नहीं हुए हैं?

जवाब : यह मुद्दा पार्टी के भीतर का है न कि यह सार्वजनिक बहस का विषय है. सीडब्ल्यूसी को फिर से मिलना चाहिए और नेताओं से परामर्श किया जाना चाहिए कि जिला स्तर तक के विभिन्न पार्टी पदों के लिए चुनाव होने चाहिए या नहीं. आजाद कुछ नया नहीं कह रहे हैं. यह पुराने कांग्रेस के विचार हैं. वास्तव में यह राहुल ही थे, जिन्होंने युवा कांग्रेस की शुरुआत की और युवा विंग में आंतरिक चुनाव शुरू किए. यदि राहुल सत्ता संभालते हैं, तो वह निश्चित रूप से आंतरिक पार्टी चुनावों को प्राथमिकता देंगे, लेकिन आज, देश के द्वारा सामना की जा रही चुनौतियां हमारे अविभाजित ध्यान की मांग कर रहीं हैं. हम सभी इस सिद्धांत से सहमत हैं कि आंतरिक चुनाव होने चाहिए, लेकिन इसके लिए समय हम तय करेंगे.

सवाल : तो क्या असंतुष्टों द्वारा उठाए गए मुद्दों को सुलझा लिया गया है?

जवाब : असंतुष्ट नेताओं द्वारा पत्र में उठाए गए मुद्दों पर विस्तृत तौर पर सीडब्ल्यूसी में चर्चा की गई है. मुझे लगता है कि सोनिया की निष्कर्षपूर्ण टिप्पणी ने मामले को समाप्त कर दिया है. आजाद भी उतने ही चिंतित हैं, जितने कांग्रेस पार्टी के लिए मैं फिक्रमंद हूं और मुझे लगता है कि इस मुद्दे को जगजाहिर करने का गलत इरादा किसी का भी नहीं था. अखिल भारतीय कांग्रेस कमेटी का एक सत्र अगले छह महीनों में आयोजित किया जाएगा. अगर इस बीच कुछ और नई बात आती है, तो मैं नहीं कह सकता, लेकिन अब राहुल को कांग्रेस अध्यक्ष के रूप में देखा जाना चाहिए. तब तक हम एक रचनात्मक विपक्ष की भूमिका निभाना चाहते हैं और मोदी सरकार को घेरने के लिए बेरोजगारी, असहिष्णुता और ध्वस्त अर्थव्यवस्था जैसी सार्वजनिक मुद्दों को उठाने के लिए तैयार हैं.

सवाल : लेकिन कांग्रेस एक आक्रामक विपक्ष की भूमिका क्यों नहीं निभा पा रही है?

जवाब : दुर्भाग्य से पिछले दो वर्षों से हम एक अप्राकृतिक राजनीतिक परिदृश्य देख रहे हैं जो कांग्रेस के काम करने के तरीके के अनुरूप नहीं है. भारतीय जनता पार्टी और राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ ने सांप्रदायिक आधार पर देश की राजनीति को विभाजित करने में कामयाबी हासिल की है. हमने इसे साफतौर पर 2017 के उत्तर प्रदेश और उत्तराखंड विधानसभा चुनाव में देखा है. हमें उम्मीद थी कि उत्तर प्रदेश में हम समाजवादी पार्टी के साथ गठबंधन में वापस आएंगे और उत्तराखंड में भी ऐसी ही उम्मीद थी, लेकिन प्रधानमंत्री मोदी ने चुनाव प्रचार के दौरान 'कब्रिस्तान-श्मशान' प्रकार की टिप्पणी शुरू कर दी, जिसने चुनावों का ध्रुवीकरण कर दिया. परिणामस्वरूप हम हार गए. उसी वर्ष गुजरात विधानसभा चुनावों के बाद, हम मजबूत नजर आ रहे थे क्योंकि बेरोजगारी और आर्थिक मंदी का मुद्दा सार्वजनिक पटल पर हावी था, लेकिन फिर दुर्भाग्यपूर्ण 2019 पुलवामा आतंकी हमला हुआ. सीमा पार से आतंकी ठिकानों पर भारतीय वायुसेना द्वारा बाद में किए गए बालाकोट हमलों को प्रधानमंत्री और मीडिया ने भुनाया. अफसोस की बात है कि कांग्रेस को पाकिस्तान समर्थक के रूप में चित्रित किया गया. यह एक दुर्भाग्यपूर्ण बात थी. पारंपरिक भारतीय लोकाचार सभी धर्मों की समानता की बात करता है, लेकिन भाजपा सांप्रदायिक आधार पर राजनीति को विभाजित करने में सफल रही. यह एक अपरिचित मोर्चा है जिस पर हम खुद को पाते हैं और यही कारण है कि हम 2019 के लोकसभा का चुनाव हार गए.

सवाल : क्या पिछले दशकों में कांग्रेस अध्यक्षों की कार्यशैली में बदलाव नजर आ रहा है?

जवाब : कांग्रेस पार्टी में कार्य करने की शैली में नैतिकता इंदिरा गांधी के समय से एक समान है. इसमें राजीव गांधी, पीवी नरसिंहा राव, सीताराम केसरी, सोनिया गांधी और राहुल गांधी के क्रमिक अध्यक्षता के दौरान बदलाव नहीं देखा गया है. राहुल ने पिछले 12 वर्षों में विभिन्न क्षमताओं में सोनिया के अधीन काम किया है. आज हमारी कार्यशैली और आंतरिक तंत्र के साथ कोई समस्या नहीं है, लेकिन पिछले वर्षों में जो कुछ बदला है वह देश का राजनीतिक माहौल है. यह प्रदूषित हो गया है और कांग्रेस के लिए उपयुक्त नहीं है.

सवाल : क्या आपको उम्मीद है कि परिस्थितियों में बदलाव आएगा?

जवाब : चीजें तब बदल जाएंगी जब लोग अपनी रोजी-रोटी के मुद्दों, नौकरियों की कमी और फिसलती हुई अर्थव्यवस्था के बारे में सोचना शुरू कर देंगे. वह फिर से कांग्रेस द्वारा किए गए कार्यों की सराहना करना शुरू कर देंगे. देश में विभाजनकारी माहौल आरएसएस के प्रमुख मोहन भागवत और प्रधानमंत्री मोदी द्वारा संयुक्त रूप से तैयार किया गया है. कांग्रेस के पास इसका जवाब है, लेकिन कांग्रेस अपने पाले में खेलेगी और कोई भी उसे वहां नहीं हरा सकता है.

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