नई दिल्ली : केंद्र की ओर से बनाए गए तीन कृषि कानूनों के खिलाफ किसानों का प्रदर्शन लगातार जारी है.
इसको लेकर नीति आयोग के सदस्य (कृषि) रमेश चंद ने कहा, आंदोलनकारी किसान नए कृषि कानूनों को पूरी तरह समझ नहीं पाए हैं.
नए कृषि कानूनों में किसानों की आय को बड़े पैमाने पर बढ़ाने की क्षमता है. चालू वित्त वर्ष 2020-21 में कृषि क्षेत्र की वृद्धि दर 3.5 प्रतिशत से कुछ बेहतर रहेगी.
नीति आयोग के सदस्य ने कहा, नए कृषि कानूनों को ठीक से समझ नहीं पाए हैं. चंद ने कहा कि इन कानूनों का मकसद वह नहीं है, जो आंदोलन कर रहे किसानों को समझ आ रहा है. इन कानूनों का उद्देश्य इसके बिल्कुल उलट है.
चंद ने पीटीआई-भाषा से साक्षात्कार में कहा, जिस तरीके से मैं देख रहा हूं, मुझे लगता है कि आंदोलन कर रहे किसानों ने इन कानूनों को पूरी तरह या सही तरीके से समझा नहीं है.
उन्होंने कहा कि यदि इन कानूनों का क्रियान्वयन होता है, तो इस बात की काफी अधिक संभावना है कि किसानों की आमदनी में वृद्धि होगी. कुछ राज्यों में तो किसानों की आय दोगुना तक हो जाएगी. उनसे पूछा गया था कि क्या सरकार को अब भी भरोसा है कि वह 2022 तक किसानों की आय को दोगुना कर पाएगी.
प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी की अगुवाई वाली राष्ट्रीय जनतांत्रिक गठबंधन (राजग) सरकार ने 2022 तक किसानों की आय को दोगुना करने का लक्ष्य रखा है.
राष्ट्रपति राम नाथ कोविंद ने 27 सितंबर को तीन कृषि विधेयकों, किसान उपज व्यापार एवं वाणिज्य (संवर्धन और सुविधा) विधेयक, 2020, कृषक (सशक्तीकरण व संरक्षण) मूल्य आश्वासन और कृषि सेवा पर करार विधेयक, 2020 और आवश्यक वस्तु (संशोधन) विधेयक, 2020 को मंजूरी दी थी.
नीति आयोग ने सदस्य ने बताया कि किसानों का कहना है कि आवश्यक वस्तु अधिनियम को हटा दिया गया है और स्टॉकिस्ट, कालाबाजारी करने वालों को पूरी छूट दे दी गई है.
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चंद ने इसे स्पष्ट करते हुए कहा, वास्तव में आवश्यक वस्तु अधिनियम में संशोधन किया गया है. इसके तहत प्रावधान किया गया है कि यह कानून कब लागू होगा. यदि अनाज, तिलहन या दालों के दाम 50 प्रतिशत बढ़ जाते हैं, तो इस कानून को लागू किया जाएगा.
इसी तरह यदि प्याज और टमाटर के दाम 100 प्रतिशत बढ़ जाते हैं, तो यह कानून लागू होगा. उन्होंने उदाहरण देते हुए कहा कि जब प्याज के दाम चढ़ रहे थे, तो केंद्र ने 23 अक्टूबर को यह कानून लगाया था. उन्होंने कहा उस समय यह जरूरी था. राज्यों से स्टॉक की सीमा लगाने को भी कहा गया था.
ठेका या अनुबंध पर खेती को लेकर किसानों की आशंकाओ को दूर करने का प्रयास करते हुए चंद ने कहा कि कॉरपोरेट के लिए खेती और ठेके पर खेती दोनों में बड़ा अंतर है.
उन्होंने कहा, देश के किसी भी राज्य में कॉरपोरेट खेती की अनुमति नहीं है. कई राज्यों में ठेका खेती पहले से हो रही है. एक भी उदाहरण नहीं है, जबकि किसान की जमीन निजी क्षेत्र की कंपनी ने ली हो.
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नीति आयोग के सदस्य ने कहा कि कृषक (सशक्तीकरण व संरक्षण) मूल्य आश्वासन और कृषि सेवा पर करार कानून किसानों के पक्ष में झुका हुआ है.
कृषि क्षेत्र की वृद्धि दर पर चंद ने कहा, चालू वित्त वर्ष 2020-21 में कृषि क्षेत्र की वृद्धि दर 3.5 प्रतिशत से कुछ अधिक रहेगी. बीते वित्त वर्ष 2019-20 में कृषि और संबद्ध क्षेत्रों की वृद्धि दर 3.7 प्रतिशत रही थी.
प्याज के निर्यात पर बार-बार रोक के बारे में पूछे जाने पर चंद ने कहा, कीमतें जब भी एक दायरे से बाहर जाती हैं, तो सरकार हस्तक्षेप करती है. यह सिर्फ भारत ही नहीं, अमेरिका और ब्रिटेन में भी होता है.