नई दिल्ली : भारत विरोधी टिप्पणियों और अपने विवादास्पद कार्यों के कारण नेपाली प्रधानमंत्री के.पी. शर्मा ओली के इस्तीफे की मांग लगातार उठ रही है. हालांकि हिमालयी राष्ट्र में राजनीतिक घटनाक्रमों पर पैनी नजर रखने वाले पर्यवेक्षकों का मानना है कि ओली फिलहाल कहीं नहीं जा रहे हैं और कम से कम एक महीने तक अपने पद पर बने रह सकते हैं.
दो पूर्व प्रधानमंत्रियों - पुष्प कमल दहल, जो सत्तारूढ़ नेपाल कम्युनिस्ट पार्टी (एनसीपी) के सह-अध्यक्ष भी हैं, और पार्टी के वरिष्ठ नेता माधव नेपाल ने गुरुवार को काठमांडू में एक बैठक के दौरान ओली से फिर इस्तीफा देने की मांग की.
खबरों के मुताबिक, दहल और नेपाल ने ओली से उनके द्वारा खड़े किए जा रहे राजनीतिक और कूटनीतिक विवादों के कारण इस्तीफा देने को कहा. ओली एनसीपी की स्थाई समिति के अधिकतर सदस्यों के दबाव में हैं, जो अब उनकी कार्यशैली पर गंभीर सवाल उठा रहे हैं.
इस बीच, नेपाल के विकास में मुख्य सहायक देशों में से एक भारत के साथ कूटनीतिक संबंध सबसे निचले स्तर पर जा पहुंचे, जब ओली ने पिछले महीने संसद के माध्यम से एक नया राजनीतिक मानचित्र पारित किया. इस मानचित्र में कालापानी, लिपुलेख और लिंपियाधुरा नेपाल की सीमा में शामिल दर्शाए गए जबकि वे तीनों स्थान भारतीय क्षेत्र में आते हैं. यह विवादास्पद कदम मई में भारतीय गृह मंत्री राजनाथ सिंह द्वारा कैलाश मानसरोवर जाने वाले तीर्थयात्रियों के लिए लिपुलेख तक बनाई गई एक सड़क के उद्घाटन के बाद उठाया गया है.
प्रतिनिधि सभा के बाद, संसद के निचले सदन ने पहली बार 13 जून को विधेयक पारित किया. भारतीय विदेश मंत्रालय के प्रवक्ता अनुराग श्रीवास्तव ने इस पर यह कहते हुए प्रतिक्रिया व्यक्त की, 'दावों का यह कृत्रिम इजाफा ऐतिहासिक तथ्य या सबूतों पर आधारित नहीं है और न ही इसका कोई औचित्य है. यह कदम सीमा से जुड़े शेष मुद्दों पर बातचीत करने के लिए हमारी मौजूदा समझ का भी उल्लंघन है.'
हालांकि, ओली को शर्मिंदगी से बचने के लिए नेपाल के विदेश मंत्री प्रदीप कुमार ज्ञावली ने कहा कि विवाद को राजनयिक प्रयासों के माध्यम से हल किया जाना चाहिए. उन्होंने कहा, 'हमें पूरा विश्वास है कि विवाद को राजनयिक प्रयासों से सुलझा लिया जाएगा. ऐसा कोई भी कदम नहीं उठाया जाएगा, जिससे नेपाल-भारत बहुआयामी संबंधों पर प्रतिकूल प्रभाव पड़ता हो. सीमा मुद्दे को लेकर भारत के साथ नेपाल के संबंधों की समग्र स्थिति को किसी भी तरह से कमजोर नहीं करना चाहिए,' ज्ञावली ने गत 29 जून को संसद में एक बैठक में यह वक्तव्य दिया था.
यह वक्तव्य ओली के बयान के परिपेक्ष में आया, जब उन्होंने एक दिन पहले ही काठमांडू में एक सार्वजनिक कार्यक्रम में यह कहकर अपने भारत विरोधी रुख को जारी रखा कि नई दिल्ली उन्हें उनके पद से हटाने की कोशिश कर रहा है.
मौजूदा कोविड-19 महामारी के बीच लोगों की परेशानी को और ज्यादा बढ़ाते हुए ओली की पार्टी ने नागरिकता संशोधन विधेयक भी पेश कर दिया, जिसको संसदीय राज्य मामलों और सुशासन समिति के सदस्यों द्वारा 21 अप्रैल को समर्थन भी प्राप्त हो गया है.
नए संशोधन के अनुसार नेपाली पुरुषों से विवाहित विदेशी महिलाओं को देशीयकरण द्वारा नागरिकता हासिल करने के लिए सात साल तक इंतजार करना होगा जबकि पहले ऐसी महिलाओं को शादी के तुरंत बाद ही नागरिकता प्राप्त करने की अनुमति थी. इस विधेयक ने दोनों देशों के लोगों के बीच, विशेष रूप से सीमा के भारतीय ओर के परिवारों में जबर्दस्त असंतोष पैदा किया क्योंकि उनमें से कई ने अपनी बेटियों की शादी नेपाली पुरुषों से कर रखी है.
फिर इस हफ्ते की शुरुआत में ओली ने कहा कि भगवान राम का जन्मस्थान (असली अयोध्या) नेपाल के परसा जिले में था. ओली के इस बयान पर उनकी ही पार्टी के नेता बाम्हन गौतम सहित सिविल सोसाइटी के सदस्यों और पार्टी नेताओं के बीच गुस्सा फूट पड़ा, जिन्होंने ओली से जनता से माफी मांगने की मांग की.
पर्यवेक्षकों के अनुसार, देश में कोविड-19 महामारी से निबटने में अक्षमता के कारण प्रधानमंत्री ओली को अपनी ही पार्टी में भरी विरोध का सामना करना पड़ रहा है और इस बढ़ते दबाव से लोगों का ध्यान भटकाने के लिए वह भारत विरोधी कदम उठा रहे हैं.
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दहल द्वारा ओली से प्रधानमंत्री पद और एनसीपी के सह-अध्यक्ष के तौर इस्तीफे की मांग के साथ ही एनसीबी स्थाई समिति ने उनके भविष्य का फैसला करने के लिए कई बैठकें की हैं. शुक्रवार को होने वाली एक और स्थाई समिति की बैठक रविवार तक के लिए स्थगित कर दी गई है.
ओली को एनसीपी स्थायी समिति के 44 में से केवल 13 सदस्यों का समर्थन प्राप्त है. इस बीच, ओली ने विश्वास मत से बचने के लिए संसद को भी राष्ट्रपति के फरमान की मदद से स्थगित करवा दिया है.
अब पर्यवेक्षकों का मानना है कि जल्दबाजी में ओली अपने पदों को छोड़ने के लिए तैयार हो जाएं, ऐसी संभावना नहीं है और कम से कम एक महीने तक चलने वाले इस मुश्किल समय में वह कहीं जाने वाले नहीं लग रहे हैं.
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राजनीतिक अर्थशास्त्री हरि रोका ने काठमांडू से फोन पर ईटीवी भारत से बातचीत में कहा कि रविवार को एनसीपी की स्थाई समिति की बैठक निर्णायक नहीं होगी. रोका ने कहा, 'उनके द्वारा अगस्त की दूसरे पखवारे में पार्टी की केंद्रीय समिति की बैठक बुलाने की संभावना है और तब ओली के भविष्य को लेकर निर्णायक फैसला होगा.'
उन्होंने कहा कि एक तरफ ओली जोड़तोड़ करने में माहिर हैं तो दूसरी तरफ विदेश मंत्री ज्ञावली एक भरोसेमंद सहयोगी हैं, जो विवादों में घिरने के बाद उन्हें शर्मिंदगी से बचाने आगे आ जाते हैं. ताजा उदाहरण के तौर पर जब ओली ने अयोध्या के बारे में विवादित टिप्पणी की तो नेपाल के विदेश मंत्रालय को स्पष्टीकरण का एक बयान जारी करना पड़ा. बयान के अनुसार ओली की टिप्पणी किसी भी राजनीतिक विषय से जुड़ी नहीं थी और किसी की भावना और मत को आहत करने का इरादा बिल्कुल भी नहीं था.
इस बयान में कहा गया है- 'श्री राम और उनसे जुड़े स्थानों के बारे में कई मिथक और संदर्भ हैं. प्रधानमंत्री बस इस विशाल सांस्कृतिक भूगोल के शोध और अध्ययन के महत्व पर प्रकाश डाल रहे थे ताकि राम से जुड़ी जानकारियों और रामायण से प्राप्त तथ्यों को समृद्ध सभ्यता से जुड़े विभिन्न स्थानों से जोड़ा जा सके.'
हालांकि, नेपाल की संसद द्वारा नए राजनीतिक मानचित्र को पारित किए जाने के बाद भारत ने आधिकारिक रूप से प्रतिक्रिया व्यक्त की थी, लेकिन नई दिल्ली ने ओली की अयोध्या संबंधी टिप्पणी पर चुप्पी बनाए रखी है.
ऑब्जर्वर रिसर्च फाउंडेशन के वरिष्ठ सदस्य के योम ने कहा, 'भारत एक बड़ा देश होने के तौर पर, एक अधिक समझदार दृष्टिकोण अपना रहा है.'
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योम ने कहा, 'हमें वास्तव में अधिक समझदारी से काम लेना चाहिए,' साथ ही वह कहते हैं कि नई दिल्ली को नेपाल द्वारा जारी किए हर भारत विरोधी बयान पर प्रतिक्रिया देने की आवश्यकता नहीं है.
विश्वसनीय सूत्रों से यह पता चला है कि नौ सदस्यीय एनसीपी सचिवालय द्वारा शनिवार को काठमांडू में एक बैठक आहूत किए जाने की संभावना है, जिसके दौरान वह अगस्त के अंत या सितंबर की शुरुआत में एक केंद्रीय समिति की बैठक की सिफारिश करेगा. रविवार की स्थाई समिति की बैठक में इसका समर्थन करने की उम्मीद है क्योंकि पार्टी का दहल गुट ऐसा ही चाहता है.
केंद्रीय समिति की बैठक के बाद ही ओली को अपने भविष्य का पता चल सकेगा. आर्थिक स्थिति और महामारी के कारण यह स्थिति उत्पन्न हुई है.
एक पर्यवेक्षक ने नाम न छापने की शर्त पर ईटीवी भारत को बताया, 'पार्टी के भीतर विवाद गहरा होता जा रहा है और यह विभाजन की कगार पर है. लेकिन कोई भी इस मोड़ पर जोखिम नहीं लेना चाहता. बिल्ली के गले में आखिर घंटी कौन बांधेगा?'
(अरुणिम भुयान)