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सही समय पर सूचना मिलती तो सुजीत के जीवित रहने की संभावना बढ़ जाती : NDRF

तमिलनाडु के त्रिची में घर के पास खुले बोरवेल में गिरे दो वर्षीय मासूम सुजीत विल्सन को तमाम कोशिशों के बावजूद नहीं बचाया जा सका और प्रशासन ने करीब पांच दिन बाद मंगलवार को उसे मृत घोषित कर दिया. हालांकि राष्ट्रीय आपदा प्रतिक्रिया बल (एनडीआरएफ) का मानना है कि सही समय पर सूचना मिलती तो बच्चे के जीवित रहने की संभावना बढ़ जाती. ईटीवी भारत से विशेष बातचीत में एनडीआरएफ कमान में दूसरे स्तर के अधिकारी राजेश नेगी ने कुछ ऐसा ही कहा. जानें विस्तार से...

सुजीत विल्सन का रेस्क्यू करता एनडीआरएफ
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Published : Oct 30, 2019, 11:32 PM IST

नई दिल्ली : राष्ट्रीय आपदा प्रतिक्रिया बल (एनडीआरएफ) का मानना है कि यदि सही समय पर सूचना मिलती तो खुले बोरवेल में गिरे दो वर्षीय मासूम सुजीत विल्सन के जीवित रहने की संभावना बढ़ जाती. सुजीत को मृत घोषित किये जाने के एक दिन बाद एनडीआरएफ कमान में दूसरे स्तर के अधिकारी राजेश नेगी ने ईटीवी भारत से विशेष बातचीत में कुछ ऐसा ही कहा.

बता दें कि तमिलनाडु के त्रिची में सुजीत अपने घर के पास एक खुले बोरवेल में गिर गया था.करीब पांच दिन के अथक प्रयासों के बाद प्रशासन ने उसे मंगलवार को मृत घोषित कर दिया. दरअसल सुजीत को बचाने के लिए एनडीआरएफ का ऑपरेशन 80 घंटे तक चला था.

राजेश नेगी ने बताया, 'हमने बच्चे को बचाने के लिए सभी संभव रणनीति का इस्तेमाल किया. हमारी तरफ से कोई कमी नहीं थी, लेकिन बचाव दल को समय पर सूचना देने से पीड़ित के बचने की संभावना बढ़ जाती.'

ईटीवी भारत से विशेष बातचीत करते एनडीआरएफ कमान में दूसरे स्तर के अधिकारी राजेश नेगी.

नेगी ने कहा, 'बोरवेल की गहराई में बचाव कार्य करना और समय की कमी के कारण यह एक जोखिम भरा ऑपरेशन था. आम तौर पर बचाव अभियान जिला स्तर पर शुरू होता है, फिर राज्य स्तर पर और फिर राष्ट्रीय स्तर पर ऑपरेशन होता है. पिछले 6-7 वर्षों में हमने कई सफल बोरवेल ऑपरेशन किए है. हालांकि केवल सुजीत ने ही बोरवेल में गिरकर जान नहीं गवायी.'

बता दें कि भारत दुनिया में भूजल का सबसे बड़ा उपयोगकर्ता है. देशभर में लगभग 2.7 करोड़ बोरवेल हैं. एक रिपोर्ट के अनुसार 2009 के बाद से 40 से अधिक बच्चे बोरवेल में गिर चुके हैं और औसतन 70 प्रतिशत बचाव अभियान असफल रहे.

गौरतलब है कि एनडीआरएफ के आंकड़ों के अनुसार हरियाणा, तमिलनाडु और गुजरात लगभग 17.6 प्रतिशत के साथ बोरवेल की घटनाओं में सबसे ऊपर हैं. राजस्थान 11.8 प्रतिशत के साथ अगले नंबर पर आता है. फिर 8.8 प्रतिशत के साथ कर्नाटक और मध्य प्रदेश, उत्तर प्रदेश, आंध्र प्रदेश और महाराष्ट्र में लगभग 5.9 प्रतिशत और असम में 2.9 प्रतिशत हैं.

नेगी ने कहा कि ऐसे बोरवेल को बंद करने के लिए समाज को शामिल होना चाहिए. उन्होंने कहा, 'इस तरह की आपदा की जिम्मेदारी उस व्यक्ति पर है, जो बोरवेल खोदता है और स्थानीय प्रशासन पर भी, जो इसके लिए आदेश जारी करता है.'

इसे भी पढ़ें - तमिलनाडु : बोरवेल में गिरे दो साल के मासूम सुजीत विल्सन की मौत

अधिकारी ने आगे कहा कि कार्यबल की कमी एनडीआरएफ के बचाव कार्य में भी बाधा डालती है. एनडीआरएफ की 12 बटालियन हैं, जिसका मतलब है कि हमारे पास पूरे भारत में 12,000 लोग हैं.'

बता दें कि 2014-18 के दौरान NDRF ने कई बोरवेल बचाव अभियान चलाया. इनमें 15 ऑपरेशनों में पीड़ित जीवित बचाये गये और वहीं पांच वर्षों में 16 ऑपरेशनों के दौरान पीड़ित मृत पाये गये.

नई दिल्ली : राष्ट्रीय आपदा प्रतिक्रिया बल (एनडीआरएफ) का मानना है कि यदि सही समय पर सूचना मिलती तो खुले बोरवेल में गिरे दो वर्षीय मासूम सुजीत विल्सन के जीवित रहने की संभावना बढ़ जाती. सुजीत को मृत घोषित किये जाने के एक दिन बाद एनडीआरएफ कमान में दूसरे स्तर के अधिकारी राजेश नेगी ने ईटीवी भारत से विशेष बातचीत में कुछ ऐसा ही कहा.

बता दें कि तमिलनाडु के त्रिची में सुजीत अपने घर के पास एक खुले बोरवेल में गिर गया था.करीब पांच दिन के अथक प्रयासों के बाद प्रशासन ने उसे मंगलवार को मृत घोषित कर दिया. दरअसल सुजीत को बचाने के लिए एनडीआरएफ का ऑपरेशन 80 घंटे तक चला था.

राजेश नेगी ने बताया, 'हमने बच्चे को बचाने के लिए सभी संभव रणनीति का इस्तेमाल किया. हमारी तरफ से कोई कमी नहीं थी, लेकिन बचाव दल को समय पर सूचना देने से पीड़ित के बचने की संभावना बढ़ जाती.'

ईटीवी भारत से विशेष बातचीत करते एनडीआरएफ कमान में दूसरे स्तर के अधिकारी राजेश नेगी.

नेगी ने कहा, 'बोरवेल की गहराई में बचाव कार्य करना और समय की कमी के कारण यह एक जोखिम भरा ऑपरेशन था. आम तौर पर बचाव अभियान जिला स्तर पर शुरू होता है, फिर राज्य स्तर पर और फिर राष्ट्रीय स्तर पर ऑपरेशन होता है. पिछले 6-7 वर्षों में हमने कई सफल बोरवेल ऑपरेशन किए है. हालांकि केवल सुजीत ने ही बोरवेल में गिरकर जान नहीं गवायी.'

बता दें कि भारत दुनिया में भूजल का सबसे बड़ा उपयोगकर्ता है. देशभर में लगभग 2.7 करोड़ बोरवेल हैं. एक रिपोर्ट के अनुसार 2009 के बाद से 40 से अधिक बच्चे बोरवेल में गिर चुके हैं और औसतन 70 प्रतिशत बचाव अभियान असफल रहे.

गौरतलब है कि एनडीआरएफ के आंकड़ों के अनुसार हरियाणा, तमिलनाडु और गुजरात लगभग 17.6 प्रतिशत के साथ बोरवेल की घटनाओं में सबसे ऊपर हैं. राजस्थान 11.8 प्रतिशत के साथ अगले नंबर पर आता है. फिर 8.8 प्रतिशत के साथ कर्नाटक और मध्य प्रदेश, उत्तर प्रदेश, आंध्र प्रदेश और महाराष्ट्र में लगभग 5.9 प्रतिशत और असम में 2.9 प्रतिशत हैं.

नेगी ने कहा कि ऐसे बोरवेल को बंद करने के लिए समाज को शामिल होना चाहिए. उन्होंने कहा, 'इस तरह की आपदा की जिम्मेदारी उस व्यक्ति पर है, जो बोरवेल खोदता है और स्थानीय प्रशासन पर भी, जो इसके लिए आदेश जारी करता है.'

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अधिकारी ने आगे कहा कि कार्यबल की कमी एनडीआरएफ के बचाव कार्य में भी बाधा डालती है. एनडीआरएफ की 12 बटालियन हैं, जिसका मतलब है कि हमारे पास पूरे भारत में 12,000 लोग हैं.'

बता दें कि 2014-18 के दौरान NDRF ने कई बोरवेल बचाव अभियान चलाया. इनमें 15 ऑपरेशनों में पीड़ित जीवित बचाये गये और वहीं पांच वर्षों में 16 ऑपरेशनों के दौरान पीड़ित मृत पाये गये.

Intro:New Delhi: A day after three years old Sujith Wilson of Tamil Nadu was declared dead, the National Disaster Response Force (NDRF) on Wednesday said that timely information to the force increase the survival chance of the victim.


Body:Nearly five days after three-year-old Sujith Wilson fell into an open borewell near his house in Tamil Nadu's Trichy, administration on Tuesday declared him dead. Operation to rescue Sujith lasted for 80 hours.

"We used the best possible strategy to rescue the kid...There was no shortcomings from our side but yes timely information to the rescue team increase the survival chance of the victim," said Rajesh Negi, second in command of NDRF in an exclusive interview to ETV Bharat.

"Borewell rescue is a risky operation due to depth and shortage of time. Normally a rescue operation starts at district level, then it starts at the state level and then the operation starts at the national level...in last 6-7 years we did several successful borewell operations," said Negi.

However, Sujith is not the only borewell victim.

India being the biggest user of groundwater in the world, there are approximately 27 million borewells across the country. As per reports, since 2009, more than 40 children fell into borewells and on an average 70 percent of conventional child rescue operations remain unsuccessful.

As per NDRF data, Haryana, Tamil Nadu and Gujarat tops the list of borewell incidents with almost 17.6 percent each.

Rajasthan comes next in the list with 11.8 percent. Karnataka with 8.8 percent, Madhya Pradesh, Uttar Pradesh, Andhra Pradesh and Maharastra almost 5.9 percent and Assam 2.9 percent.

Negi said that community should be involved in blocking such borewells.

"The responsibility of such disaster is on the person who dig the borewell and the local administration who issue order for it," said Negi.



Conclusion:The officer further said that shortage of manpower also hamper the rescue work of NDRF.

"There are 12 battalions of NDRF which means we have 12,000 people to carry rescue operations across India...," said Negi.

During 2014-2018, NDRF carried several borewell rescue operations, out of which in 15 operations the victims were alive and in 16 operations that took place in five years victims were found dead.

end.
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