नई दिल्ली : राष्ट्रीय आपदा प्रतिक्रिया बल (एनडीआरएफ) का मानना है कि यदि सही समय पर सूचना मिलती तो खुले बोरवेल में गिरे दो वर्षीय मासूम सुजीत विल्सन के जीवित रहने की संभावना बढ़ जाती. सुजीत को मृत घोषित किये जाने के एक दिन बाद एनडीआरएफ कमान में दूसरे स्तर के अधिकारी राजेश नेगी ने ईटीवी भारत से विशेष बातचीत में कुछ ऐसा ही कहा.
बता दें कि तमिलनाडु के त्रिची में सुजीत अपने घर के पास एक खुले बोरवेल में गिर गया था.करीब पांच दिन के अथक प्रयासों के बाद प्रशासन ने उसे मंगलवार को मृत घोषित कर दिया. दरअसल सुजीत को बचाने के लिए एनडीआरएफ का ऑपरेशन 80 घंटे तक चला था.
राजेश नेगी ने बताया, 'हमने बच्चे को बचाने के लिए सभी संभव रणनीति का इस्तेमाल किया. हमारी तरफ से कोई कमी नहीं थी, लेकिन बचाव दल को समय पर सूचना देने से पीड़ित के बचने की संभावना बढ़ जाती.'
नेगी ने कहा, 'बोरवेल की गहराई में बचाव कार्य करना और समय की कमी के कारण यह एक जोखिम भरा ऑपरेशन था. आम तौर पर बचाव अभियान जिला स्तर पर शुरू होता है, फिर राज्य स्तर पर और फिर राष्ट्रीय स्तर पर ऑपरेशन होता है. पिछले 6-7 वर्षों में हमने कई सफल बोरवेल ऑपरेशन किए है. हालांकि केवल सुजीत ने ही बोरवेल में गिरकर जान नहीं गवायी.'
बता दें कि भारत दुनिया में भूजल का सबसे बड़ा उपयोगकर्ता है. देशभर में लगभग 2.7 करोड़ बोरवेल हैं. एक रिपोर्ट के अनुसार 2009 के बाद से 40 से अधिक बच्चे बोरवेल में गिर चुके हैं और औसतन 70 प्रतिशत बचाव अभियान असफल रहे.
गौरतलब है कि एनडीआरएफ के आंकड़ों के अनुसार हरियाणा, तमिलनाडु और गुजरात लगभग 17.6 प्रतिशत के साथ बोरवेल की घटनाओं में सबसे ऊपर हैं. राजस्थान 11.8 प्रतिशत के साथ अगले नंबर पर आता है. फिर 8.8 प्रतिशत के साथ कर्नाटक और मध्य प्रदेश, उत्तर प्रदेश, आंध्र प्रदेश और महाराष्ट्र में लगभग 5.9 प्रतिशत और असम में 2.9 प्रतिशत हैं.
नेगी ने कहा कि ऐसे बोरवेल को बंद करने के लिए समाज को शामिल होना चाहिए. उन्होंने कहा, 'इस तरह की आपदा की जिम्मेदारी उस व्यक्ति पर है, जो बोरवेल खोदता है और स्थानीय प्रशासन पर भी, जो इसके लिए आदेश जारी करता है.'
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अधिकारी ने आगे कहा कि कार्यबल की कमी एनडीआरएफ के बचाव कार्य में भी बाधा डालती है. एनडीआरएफ की 12 बटालियन हैं, जिसका मतलब है कि हमारे पास पूरे भारत में 12,000 लोग हैं.'
बता दें कि 2014-18 के दौरान NDRF ने कई बोरवेल बचाव अभियान चलाया. इनमें 15 ऑपरेशनों में पीड़ित जीवित बचाये गये और वहीं पांच वर्षों में 16 ऑपरेशनों के दौरान पीड़ित मृत पाये गये.