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नई राष्ट्रीय शिक्षा नीति, समितियां और आयोग के सुझाव पर एक नजर

केंद्र सरकार ने नई शिक्षा नीति को मंजूरी दे दी है. नई शिक्षा नीति प्राथमिक शिक्षा से लेकर उच्च शिक्षा तक कई बड़े बदलावों को लेकर आएगी. बोर्ड परीक्षाओं के महत्व को कम किया गया है. इसमें वास्तविक ज्ञान की परख की जाएगी. कक्षा पांच तक मातृभाषा को निर्देशों का माध्यम बनाया जाएगा. रिपोर्ट कार्ड में सब चीजों की जानकारी होगी. आइये जानते हैं कैसी रही अब तक की राष्ट्रीय शिक्षा नीति...

नई शिक्षा नीति  कई बड़े बदलावों को लेकर आएगी
नई शिक्षा नीति कई बड़े बदलावों को लेकर आएगी
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Published : Jul 30, 2020, 9:41 AM IST

हैदराबादः केंद्रीय मंत्रिमंडल ने बुधवार को नयी शिक्षा नीति(एनईपी) को मंजूरी दे दी, जिसमें स्कूली शिक्षा से लेकर उच्च शिक्षा तक कई बड़े बदलाव किये गए हैं। साथ ही, शिक्षा क्षेत्र में खर्च को सकल घरेलू उत्पाद का 6 प्रतिशत करने तथा उच्च शिक्षा में साल 2035 तक सकल नामांकन दर 50 फीसदी पहुंचने का लक्ष्य निर्धारित किया गया है.

राष्ट्रीय शिक्षा नीति देश में शिक्षा के विकास का मार्गदर्शन करने के लिए एक रूपरेखा है. देश में 34 साल बाद शिक्षा नीति में महत्वपूर्ण बदलाव किए गए हैं. अब पांचवी कक्षा तक की शिक्षा मातृ भाषा में होगी. हायर एजुकेशन (उच्च शिक्षा) के लिए सिंगल रेगुलेटर रहेगा (लॉ और मेडिकल एजुकेशन को छोड़कर). आइये नजर डालते हैं अब तक की राष्ट्रीय शिक्षा नीति के विभिन्न पड़ावों पर.

भारत में राष्ट्रीय शिक्षा नीतियां

  • कांग्रेस सांसद ने 1 मई 1964 को लोकसभा में एक प्रस्ताव रखा कि सरकार शिक्षा पर पर्याप्त ध्यान नहीं दे रही है इसलिए शिक्षा के क्षेत्र में प्रभावी सोच का अभाव है. उन्होंने सुझाव दिया कि सांसदों की एक समिति को राष्ट्रीय शिक्षा नीति के गठन पर ध्यान देना चाहिए.
  • शिक्षा मंत्री एमसी छागला इससे सहमत हुए कि शिक्षा पर राष्ट्रीय समन्वय नीति होनी चाहिए. उन्होंने घोषणा की कि सरकार एक राष्ट्रीय आयोग का गठन करेगी.
  • 1964 में यूजीसी अध्यक्ष डी एस कोठारी की अध्यक्षता में 17 सदस्यीय शिक्षा आयोग की स्थापना की गई इस आयोग के सुझावों के आधार पर, संसद ने 1968 में पहला एनईपी पारित किया।
  • 1976 में, 42 वें संविधान संशोधन द्वारा शिक्षा को राज्य से समवर्ती सूची में स्थानांतरित कर दिया गया.
  • जनता पार्टी जिसमें बीजेपी के अग्रणी नेतागण थे, उन्होंने 1979 में एक नीति बनाने का प्रयास किया था, लेकिन इसे केंद्रीय सलाहकार बोर्ड फॉर एजुकेशन (CABE) द्वारा अनुमोदित नहीं किया गया था, जो सरकार का शिक्षा के क्षेत्र में महत्वपूर्ण सलाहकार निकाय था.
  • शिक्षा पर दूसरी राष्ट्रीय नीति, 1986 तब लाई गई थी जब राजीव गांधी भारत के प्रधानमंत्री थे.
  • 1992 में राष्ट्रीय शिक्षा नीति संशोधित की गई जब पी.वी. नरसिम्हा राव पीएम थे.

शिक्षा पर पहली राष्ट्रीय नीति 1968

  • पहली राष्ट्रीय शिक्षा नीति के तहत शिक्षा के 10+2+ 3 शिक्षा की संरचना और तीन भाषा के फॉर्म्यूले जिसे अधिकांश स्कूल फॉलो करते हैं, इस नीति के स्थायी विरासतों में से एक हैं.
  • शिक्षा में विज्ञान और गणित की प्राथमिकता एक और महत्वपूर्ण बात है.
  • इस नीति में शुरुआती स्कूल के वर्षों में मातृभाषा के उपयोग की वकालत की गई. विश्वविद्यालय प्रणाली में अनुसंधान को मजबूत करना एक और प्रमुख सिफारिश थी.

दूसरी राष्ट्रीय शिक्षा नीति 1986

  • 1986 की नीति में प्रधानमंत्री राजीव गांधी के आधुनिकीकरण की झलक दिखी. और शिक्षा में सूचना प्रौद्योगिकी की भूमिका पर ध्यान केंद्रित किया.
  • सर्व शिक्षा अभियान, मध्याह्न भोजन योजना, नवोदय विद्यालय (एनवीएस स्कूल), केंद्रीय विद्यालय (केवी स्कूल) और शिक्षा में आईटी का उपयोग 1986 के राष्ट्रीय शिक्षा नीति का परिणाम है.
  • इसने शिक्षक, शिक्षा, बचपन की देखभाल, महिला सशक्तीकरण और वयस्क साक्षरता के पुनर्गठन पर अधिक ध्यान दिया.
  • इसमें शैक्षिक संस्थानों का विकास और विश्वविद्यालयों और कॉलेजों की स्वायत्तता पर भी ध्यान दिया गया.
  • पी वी नरसिम्हा राव के पीएम बनने पर 1992 में राष्ट्रीय शिक्षा नीति को संशोधित किया गया. यह काफी हद तक पिछली नीति से मेल खाता था.

राष्ट्रीय शिक्षा नीतियों का कार्यान्वयन

  • 1968 में शिक्षा राज्य का विषय था, और इस नीति को लागू करने में केंद्र की बहुत कम भूमिका थी.
  • पहली नीति के लिए, सरकार एक उचित कार्यक्रम लाने में विफल रही और धन की कमी से कार्यान्वयन में कई अड़चनें आई.
  • दूसरा एनईपी 1976 के संवैधानिक संशोधन के बाद आया और केंद्र ने व्यापक जिम्मेदारी ली और कई कार्यक्रम बनाए
  • 1986 की राष्ट्रीय नीति को बेहतर तरीके से लागू किया गया.

शिक्षा पर विभिन्न आयोगों और समितियों पर एक नोट

विश्वविद्यालय शिक्षा आयोग (1948-49): 1948 में विश्वविद्यालय शिक्षा आयोग का गठन राधाकृष्णन आयोग के रूप में लोकप्रिय हुआ. इसमें स्वतंत्र भारत में उच्च शिक्षा के लक्ष्यों और उद्देश्यों को पूरा करने के लिए यह मील का पत्थर साबित हुआ.

माध्यमिक शिक्षा आयोग (1952-53): 23 सितंबर, 1952 को भारत सरकार ने डॉ. एएल स्वामी मुदलियार की अध्यक्षता में माध्यमिक शिक्षा आयोग की नियुक्ति की. इसे मुदलियार आयोग के नाम से भी जाना जाता है. आयोग ने देश में माध्यमिक शिक्षा की विभिन्न समस्याओं का अध्ययन किया और 29 अगस्त 1953 को 240 पन्नों की रिपोर्ट प्रस्तुत की.

माध्यमिक शिक्षा पर नरेन्द्रदेव समितियां

  • माध्यमिक शिक्षा में सुधार के लिए सुझाव देने के लिए दो नरेन्द्रदेव समितियां बनाई गईं.
  • प्रथम नरेंद्रदेव समिति की स्थापना 1939 में यूपी में की गई थी.
  • समिति ने हिंदी को 7 से 14 वर्ष की आयु के बच्चों के लिए शिक्षा के माध्यम के रूप में सिफारिश की. इसने बेसिक शिक्षा और माध्यमिक शिक्षा के लिए सात सुझाव दिए.
  • दूसरी नरेन्द्रदेव समिति की स्थापना 1952-53 में की गई थी. यूपी में माध्यमिक शिक्षा की वर्तमान प्रणाली इस समिति की देन है.

राम मूर्ति रिपोर्ट, 1990

  • राष्ट्रीय मोर्चा सरकार ने 1990 की शुरुआत में सत्ता में आई और प्रो. राम मूर्ति की अध्यक्षता में एक शिक्षा समिति का गठन किया.
  • इसका उद्देश्य पुरानी शिक्षा नीतियों की जांच करना और देश के ग्रामीण क्षेत्रों के औद्योगीकरण और विकास को बढ़ावा देने के लिए नए उपायों के लिए सुझाव देना था. इसके अलावा इसने शिक्षा प्रणाली के विकेंद्रीकरण और 1986 की ऑपरेशन ब्लैक बोर्ड योजना को और अधिक सफल बनाने के लिए उपयुक्त उपाय सुझाए.

जनार्दन रेड्डी की रिपोर्ट, 1992

  • केंद्रीय सलाहकार बोर्ड ऑफ़ एजुकेशन के तहत 1990 में प्रो. राम मूर्ति द्वारा प्रस्तुत की गई रिपोर्ट की विस्तृत जांच करने के लिए 1992 में जनार्दन रेड्डी समिति की नियुक्ति की गई.
  • रेड्डी समिति ने आगे सिफारिश की कि देश में सभी राज्य सरकार को अनुसूचित जाति और जनजाति के लोगों को अधिक से अधिक शिक्षित करने के लिए भी समितियों की नियुक्ति करनी चाहिए.
  • यह भी सुझाव दिया कि नवोदय विद्यालय देश के प्रत्येक राज्य के सभी जिलों में स्थापित किया जाना चाहिए.

ये भी पढ़ें - नई शिक्षा नीति को केंद्र की मंजूरी, जानें क्या अहम बदलाव हुए

टीएसआर सुब्रमण्यम समिति की रिपोर्ट (27 मई, 2016)

  • पैनल ने कक्षा पांचवी के बाद पढ़ाई छोड़ चुके छात्रों को शिक्षा के अधिकार (RTE) अधिनियम में संशोधन कर वापस पढ़ाई करने के लिए प्रेरित करने पर जोर दिया और स्कूलों में आर्थिक रूप से कमजोर बच्चों को रिजर्वेशन दिया जाए.
  • इसने प्री स्कूल शिक्षा और माध्यमिक शिक्षा के लिए मिड डे मील योजना को कवर करने के लिए आरटीई के दायरे का विस्तार करने की सिफारिश की है.
  • रिपोर्ट में महत्वपूर्ण नियुक्तियों में हस्तक्षेप के लिए सरकारों की आलोचना भी की गई.

हैदराबादः केंद्रीय मंत्रिमंडल ने बुधवार को नयी शिक्षा नीति(एनईपी) को मंजूरी दे दी, जिसमें स्कूली शिक्षा से लेकर उच्च शिक्षा तक कई बड़े बदलाव किये गए हैं। साथ ही, शिक्षा क्षेत्र में खर्च को सकल घरेलू उत्पाद का 6 प्रतिशत करने तथा उच्च शिक्षा में साल 2035 तक सकल नामांकन दर 50 फीसदी पहुंचने का लक्ष्य निर्धारित किया गया है.

राष्ट्रीय शिक्षा नीति देश में शिक्षा के विकास का मार्गदर्शन करने के लिए एक रूपरेखा है. देश में 34 साल बाद शिक्षा नीति में महत्वपूर्ण बदलाव किए गए हैं. अब पांचवी कक्षा तक की शिक्षा मातृ भाषा में होगी. हायर एजुकेशन (उच्च शिक्षा) के लिए सिंगल रेगुलेटर रहेगा (लॉ और मेडिकल एजुकेशन को छोड़कर). आइये नजर डालते हैं अब तक की राष्ट्रीय शिक्षा नीति के विभिन्न पड़ावों पर.

भारत में राष्ट्रीय शिक्षा नीतियां

  • कांग्रेस सांसद ने 1 मई 1964 को लोकसभा में एक प्रस्ताव रखा कि सरकार शिक्षा पर पर्याप्त ध्यान नहीं दे रही है इसलिए शिक्षा के क्षेत्र में प्रभावी सोच का अभाव है. उन्होंने सुझाव दिया कि सांसदों की एक समिति को राष्ट्रीय शिक्षा नीति के गठन पर ध्यान देना चाहिए.
  • शिक्षा मंत्री एमसी छागला इससे सहमत हुए कि शिक्षा पर राष्ट्रीय समन्वय नीति होनी चाहिए. उन्होंने घोषणा की कि सरकार एक राष्ट्रीय आयोग का गठन करेगी.
  • 1964 में यूजीसी अध्यक्ष डी एस कोठारी की अध्यक्षता में 17 सदस्यीय शिक्षा आयोग की स्थापना की गई इस आयोग के सुझावों के आधार पर, संसद ने 1968 में पहला एनईपी पारित किया।
  • 1976 में, 42 वें संविधान संशोधन द्वारा शिक्षा को राज्य से समवर्ती सूची में स्थानांतरित कर दिया गया.
  • जनता पार्टी जिसमें बीजेपी के अग्रणी नेतागण थे, उन्होंने 1979 में एक नीति बनाने का प्रयास किया था, लेकिन इसे केंद्रीय सलाहकार बोर्ड फॉर एजुकेशन (CABE) द्वारा अनुमोदित नहीं किया गया था, जो सरकार का शिक्षा के क्षेत्र में महत्वपूर्ण सलाहकार निकाय था.
  • शिक्षा पर दूसरी राष्ट्रीय नीति, 1986 तब लाई गई थी जब राजीव गांधी भारत के प्रधानमंत्री थे.
  • 1992 में राष्ट्रीय शिक्षा नीति संशोधित की गई जब पी.वी. नरसिम्हा राव पीएम थे.

शिक्षा पर पहली राष्ट्रीय नीति 1968

  • पहली राष्ट्रीय शिक्षा नीति के तहत शिक्षा के 10+2+ 3 शिक्षा की संरचना और तीन भाषा के फॉर्म्यूले जिसे अधिकांश स्कूल फॉलो करते हैं, इस नीति के स्थायी विरासतों में से एक हैं.
  • शिक्षा में विज्ञान और गणित की प्राथमिकता एक और महत्वपूर्ण बात है.
  • इस नीति में शुरुआती स्कूल के वर्षों में मातृभाषा के उपयोग की वकालत की गई. विश्वविद्यालय प्रणाली में अनुसंधान को मजबूत करना एक और प्रमुख सिफारिश थी.

दूसरी राष्ट्रीय शिक्षा नीति 1986

  • 1986 की नीति में प्रधानमंत्री राजीव गांधी के आधुनिकीकरण की झलक दिखी. और शिक्षा में सूचना प्रौद्योगिकी की भूमिका पर ध्यान केंद्रित किया.
  • सर्व शिक्षा अभियान, मध्याह्न भोजन योजना, नवोदय विद्यालय (एनवीएस स्कूल), केंद्रीय विद्यालय (केवी स्कूल) और शिक्षा में आईटी का उपयोग 1986 के राष्ट्रीय शिक्षा नीति का परिणाम है.
  • इसने शिक्षक, शिक्षा, बचपन की देखभाल, महिला सशक्तीकरण और वयस्क साक्षरता के पुनर्गठन पर अधिक ध्यान दिया.
  • इसमें शैक्षिक संस्थानों का विकास और विश्वविद्यालयों और कॉलेजों की स्वायत्तता पर भी ध्यान दिया गया.
  • पी वी नरसिम्हा राव के पीएम बनने पर 1992 में राष्ट्रीय शिक्षा नीति को संशोधित किया गया. यह काफी हद तक पिछली नीति से मेल खाता था.

राष्ट्रीय शिक्षा नीतियों का कार्यान्वयन

  • 1968 में शिक्षा राज्य का विषय था, और इस नीति को लागू करने में केंद्र की बहुत कम भूमिका थी.
  • पहली नीति के लिए, सरकार एक उचित कार्यक्रम लाने में विफल रही और धन की कमी से कार्यान्वयन में कई अड़चनें आई.
  • दूसरा एनईपी 1976 के संवैधानिक संशोधन के बाद आया और केंद्र ने व्यापक जिम्मेदारी ली और कई कार्यक्रम बनाए
  • 1986 की राष्ट्रीय नीति को बेहतर तरीके से लागू किया गया.

शिक्षा पर विभिन्न आयोगों और समितियों पर एक नोट

विश्वविद्यालय शिक्षा आयोग (1948-49): 1948 में विश्वविद्यालय शिक्षा आयोग का गठन राधाकृष्णन आयोग के रूप में लोकप्रिय हुआ. इसमें स्वतंत्र भारत में उच्च शिक्षा के लक्ष्यों और उद्देश्यों को पूरा करने के लिए यह मील का पत्थर साबित हुआ.

माध्यमिक शिक्षा आयोग (1952-53): 23 सितंबर, 1952 को भारत सरकार ने डॉ. एएल स्वामी मुदलियार की अध्यक्षता में माध्यमिक शिक्षा आयोग की नियुक्ति की. इसे मुदलियार आयोग के नाम से भी जाना जाता है. आयोग ने देश में माध्यमिक शिक्षा की विभिन्न समस्याओं का अध्ययन किया और 29 अगस्त 1953 को 240 पन्नों की रिपोर्ट प्रस्तुत की.

माध्यमिक शिक्षा पर नरेन्द्रदेव समितियां

  • माध्यमिक शिक्षा में सुधार के लिए सुझाव देने के लिए दो नरेन्द्रदेव समितियां बनाई गईं.
  • प्रथम नरेंद्रदेव समिति की स्थापना 1939 में यूपी में की गई थी.
  • समिति ने हिंदी को 7 से 14 वर्ष की आयु के बच्चों के लिए शिक्षा के माध्यम के रूप में सिफारिश की. इसने बेसिक शिक्षा और माध्यमिक शिक्षा के लिए सात सुझाव दिए.
  • दूसरी नरेन्द्रदेव समिति की स्थापना 1952-53 में की गई थी. यूपी में माध्यमिक शिक्षा की वर्तमान प्रणाली इस समिति की देन है.

राम मूर्ति रिपोर्ट, 1990

  • राष्ट्रीय मोर्चा सरकार ने 1990 की शुरुआत में सत्ता में आई और प्रो. राम मूर्ति की अध्यक्षता में एक शिक्षा समिति का गठन किया.
  • इसका उद्देश्य पुरानी शिक्षा नीतियों की जांच करना और देश के ग्रामीण क्षेत्रों के औद्योगीकरण और विकास को बढ़ावा देने के लिए नए उपायों के लिए सुझाव देना था. इसके अलावा इसने शिक्षा प्रणाली के विकेंद्रीकरण और 1986 की ऑपरेशन ब्लैक बोर्ड योजना को और अधिक सफल बनाने के लिए उपयुक्त उपाय सुझाए.

जनार्दन रेड्डी की रिपोर्ट, 1992

  • केंद्रीय सलाहकार बोर्ड ऑफ़ एजुकेशन के तहत 1990 में प्रो. राम मूर्ति द्वारा प्रस्तुत की गई रिपोर्ट की विस्तृत जांच करने के लिए 1992 में जनार्दन रेड्डी समिति की नियुक्ति की गई.
  • रेड्डी समिति ने आगे सिफारिश की कि देश में सभी राज्य सरकार को अनुसूचित जाति और जनजाति के लोगों को अधिक से अधिक शिक्षित करने के लिए भी समितियों की नियुक्ति करनी चाहिए.
  • यह भी सुझाव दिया कि नवोदय विद्यालय देश के प्रत्येक राज्य के सभी जिलों में स्थापित किया जाना चाहिए.

ये भी पढ़ें - नई शिक्षा नीति को केंद्र की मंजूरी, जानें क्या अहम बदलाव हुए

टीएसआर सुब्रमण्यम समिति की रिपोर्ट (27 मई, 2016)

  • पैनल ने कक्षा पांचवी के बाद पढ़ाई छोड़ चुके छात्रों को शिक्षा के अधिकार (RTE) अधिनियम में संशोधन कर वापस पढ़ाई करने के लिए प्रेरित करने पर जोर दिया और स्कूलों में आर्थिक रूप से कमजोर बच्चों को रिजर्वेशन दिया जाए.
  • इसने प्री स्कूल शिक्षा और माध्यमिक शिक्षा के लिए मिड डे मील योजना को कवर करने के लिए आरटीई के दायरे का विस्तार करने की सिफारिश की है.
  • रिपोर्ट में महत्वपूर्ण नियुक्तियों में हस्तक्षेप के लिए सरकारों की आलोचना भी की गई.

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