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हथियार सौंपने को राजी नहीं हैं नागा विद्रोही गुट

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Published : Nov 4, 2019, 6:41 PM IST

नागा शांति समझौते को लेकर केन्द्र सरकार भले ही गंभीर हो, लेकिन नागा (आईएम) गुट हथियार डालने को राजी नहीं हो रहे हैं. उनका कहना है कि वे हथियार नहीं सौंपेगें. इस मुद्दे पर बातचीत अटकी हुई है. आइए जानते हैं आखिर क्या है उनकी मांग.

हथियार सौंपने को राजी नहीं हैं नागा विद्रोही गुट

भारत सरकार के साथ बातचीत कर रहे नेशनल सोशलिस्ट काउंसिल ऑफ नगालिम (एनएससीएम-आईएम) के थुइगालेंग मुइवा के नेतृत्व वाले नागा भूमिगत सशस्त्र विद्रोहियों ने मुद्दों का आखरी हल निकलने और समझौते पर हस्ताक्षर होने तक, जो अब तक मायावी सा लगता है, हथियार डाल आत्मसमर्पण न करने पर अपना रुख नहीं बदला है.

एक शीर्ष सूत्र ने नाम न छापने की शर्त पर ईटीवी भारत को बताया कि जब कुछ साल पहले हथियारों के आत्मसमर्पण का मुद्दा सामने आया था, तो एनएससीएन (आईएम) के नेतृत्व ने साफ़ तौर पर अपने हथियार रखने से इनकार कर दिया था. इस मामले को तत्कालीन वार्ताकार द्वारा तत्कालीन भारतीय सेना प्रमुख के पास ले जाया गया था, जिन्होंने सुझाव दिया था- हथियारों का फायरिंग पिन और ब्रीच ब्लॉक निकालकर 'बेकार' किया जा सकता है.

यह व्यवस्था सुनिश्चित करेगी कि नागा गुरिल्ला लड़ाके अपने हथियारों से लैस तो रहेंगे, लेकिन असलियत में, न तो वो हथियार काम करेंगे और न इस्तेमाल किये जा सकेंगे. इस तरह, एनएससीएन (आईएम) को एक 'सम्मानजनक समाधान' प्राप्त हो जायेगा और सरकार की ज़रुरत भी पूरी जो जाएगी.

एनएससीएन (आईएम) के पास विभिन्न प्रकार के लगभग 5,000 घातक हथियार हैं, इनमें एके-47, जी श्रृंखला की बंदूकें, पिस्तौल की तरह के छोटे हथियार और 9 एमएम बंदूकें, ऑटोमेटिक बंदूकें, मोर्टार, रॉकेट लॉन्चर इत्यादि जैसे असलहे शामिल हैं. इनके कैडर– जो तथाकथित नागा सेना के नाम से जाने जाते हैं - इन हथियारों के अधिकांश संचालन में अच्छी तरह से प्रशिक्षित हैं. उनकी युद्ध की मुख्य विधा गुरिल्ला लड़ाई होती है, जो खासतौर से पूर्वोत्तर भारत के पहाड़ी और घने जंगलों में प्रचलित ‘प्रहार करके भागने' वाली शैली है.

नागा विद्रोह को स्पेन में बास्क आंदोलन के बाद दुनिया की दूसरी सबसे लंबे समय तक चलने वाला उग्रवाद कहा जाता है और इसे 'सभी विद्रोहों की माँ' भी कहा जाता है, जिसने मणिपुर, असम, त्रिपुरा, और मेघालय (इस क्षेत्र में पड़ोसी राज्य हैं) में उग्रवाद आंदोलनों के गठन में बड़ा योगदान दिया है.

नागा द्वारा इस्तेमाल किये जाने वाले पहले हथियार दूसरे विश्व युद्ध के दौरान पीछे हटने वाली जापानी सेनाओं द्वारा छोड़ी गयीं बंदूकें थी. वर्तमान में, नागा विद्रोही दक्षिण-पूर्व एशिया और मध्य एशिया के संगठित अवैध बाजारों से अपने हथियार खरीदते हैं.

विद्रोहियों के पुनर्वास के मुद्दे पर, दो अलग-अलग विचार हैं. जबकि सरकार केंद्रीय अर्धसैनिक बलों में सभी योग्य और उपयुक्त एनएससीएन के लड़ाकूओं की भर्ती करने के लिए सहमत हैं, एनएससीएन सेना से एक अलग नागा बल बनाने के लिए तत्पर है, जिसका अलग नाम होगा- 'नागा सुरक्षा बल', जिसके लिए नागालैंड में पुलिस की जिम्मेदारियों का अंजाम देने के साथ-साथ अंतर्राष्ट्रीय सीमा पर चौकसी बनाए रखना अनिवार्य होगा.

पूर्व नागा विद्रोहियों की एक बड़ी संख्या पहले से ही बीएसएफ, जो अर्धसैनिक बल हैं, में शामिल है, जो सीमाओं की सुरक्षा के लिए तैनात हैं. कैडरों और हथियारों के मुद्दों के अलावा, चल रही वार्ता में अन्य मुद्दे भी हैं जैसे एक अलग नागा संविधान, राष्ट्रीय ध्वज या पूर्वोत्तर भारत के चार राज्यों में नागा-आबाद क्षेत्रों को सम्मिलित करने की मांग जिन्होंने स्थिति को और भी पेचीदा बना दिया है.

अंधेरे में तीर चलाने और तंत्रिकाओं के खेल के बीच, नागा विद्रोही नेतृत्व के साथ एक समझौता दस्तावेज तैयार किया जाये जिसमें उन मुद्दों को शामिल करें जिसपर सहमती हो चुकी है और अनसुलझे मुद्दों को बाद की वार्ता पर छोड़ देना चाहिए. बहर-हाल, नागा मुद्दा, एक ऐतिहासिक सफलता हासिल करने के दावे के बावजूद, अतीत में जैसा था वैसा ही आज भी असाध्य और जटिल है.

(संजीब बरुआ)

भारत सरकार के साथ बातचीत कर रहे नेशनल सोशलिस्ट काउंसिल ऑफ नगालिम (एनएससीएम-आईएम) के थुइगालेंग मुइवा के नेतृत्व वाले नागा भूमिगत सशस्त्र विद्रोहियों ने मुद्दों का आखरी हल निकलने और समझौते पर हस्ताक्षर होने तक, जो अब तक मायावी सा लगता है, हथियार डाल आत्मसमर्पण न करने पर अपना रुख नहीं बदला है.

एक शीर्ष सूत्र ने नाम न छापने की शर्त पर ईटीवी भारत को बताया कि जब कुछ साल पहले हथियारों के आत्मसमर्पण का मुद्दा सामने आया था, तो एनएससीएन (आईएम) के नेतृत्व ने साफ़ तौर पर अपने हथियार रखने से इनकार कर दिया था. इस मामले को तत्कालीन वार्ताकार द्वारा तत्कालीन भारतीय सेना प्रमुख के पास ले जाया गया था, जिन्होंने सुझाव दिया था- हथियारों का फायरिंग पिन और ब्रीच ब्लॉक निकालकर 'बेकार' किया जा सकता है.

यह व्यवस्था सुनिश्चित करेगी कि नागा गुरिल्ला लड़ाके अपने हथियारों से लैस तो रहेंगे, लेकिन असलियत में, न तो वो हथियार काम करेंगे और न इस्तेमाल किये जा सकेंगे. इस तरह, एनएससीएन (आईएम) को एक 'सम्मानजनक समाधान' प्राप्त हो जायेगा और सरकार की ज़रुरत भी पूरी जो जाएगी.

एनएससीएन (आईएम) के पास विभिन्न प्रकार के लगभग 5,000 घातक हथियार हैं, इनमें एके-47, जी श्रृंखला की बंदूकें, पिस्तौल की तरह के छोटे हथियार और 9 एमएम बंदूकें, ऑटोमेटिक बंदूकें, मोर्टार, रॉकेट लॉन्चर इत्यादि जैसे असलहे शामिल हैं. इनके कैडर– जो तथाकथित नागा सेना के नाम से जाने जाते हैं - इन हथियारों के अधिकांश संचालन में अच्छी तरह से प्रशिक्षित हैं. उनकी युद्ध की मुख्य विधा गुरिल्ला लड़ाई होती है, जो खासतौर से पूर्वोत्तर भारत के पहाड़ी और घने जंगलों में प्रचलित ‘प्रहार करके भागने' वाली शैली है.

नागा विद्रोह को स्पेन में बास्क आंदोलन के बाद दुनिया की दूसरी सबसे लंबे समय तक चलने वाला उग्रवाद कहा जाता है और इसे 'सभी विद्रोहों की माँ' भी कहा जाता है, जिसने मणिपुर, असम, त्रिपुरा, और मेघालय (इस क्षेत्र में पड़ोसी राज्य हैं) में उग्रवाद आंदोलनों के गठन में बड़ा योगदान दिया है.

नागा द्वारा इस्तेमाल किये जाने वाले पहले हथियार दूसरे विश्व युद्ध के दौरान पीछे हटने वाली जापानी सेनाओं द्वारा छोड़ी गयीं बंदूकें थी. वर्तमान में, नागा विद्रोही दक्षिण-पूर्व एशिया और मध्य एशिया के संगठित अवैध बाजारों से अपने हथियार खरीदते हैं.

विद्रोहियों के पुनर्वास के मुद्दे पर, दो अलग-अलग विचार हैं. जबकि सरकार केंद्रीय अर्धसैनिक बलों में सभी योग्य और उपयुक्त एनएससीएन के लड़ाकूओं की भर्ती करने के लिए सहमत हैं, एनएससीएन सेना से एक अलग नागा बल बनाने के लिए तत्पर है, जिसका अलग नाम होगा- 'नागा सुरक्षा बल', जिसके लिए नागालैंड में पुलिस की जिम्मेदारियों का अंजाम देने के साथ-साथ अंतर्राष्ट्रीय सीमा पर चौकसी बनाए रखना अनिवार्य होगा.

पूर्व नागा विद्रोहियों की एक बड़ी संख्या पहले से ही बीएसएफ, जो अर्धसैनिक बल हैं, में शामिल है, जो सीमाओं की सुरक्षा के लिए तैनात हैं. कैडरों और हथियारों के मुद्दों के अलावा, चल रही वार्ता में अन्य मुद्दे भी हैं जैसे एक अलग नागा संविधान, राष्ट्रीय ध्वज या पूर्वोत्तर भारत के चार राज्यों में नागा-आबाद क्षेत्रों को सम्मिलित करने की मांग जिन्होंने स्थिति को और भी पेचीदा बना दिया है.

अंधेरे में तीर चलाने और तंत्रिकाओं के खेल के बीच, नागा विद्रोही नेतृत्व के साथ एक समझौता दस्तावेज तैयार किया जाये जिसमें उन मुद्दों को शामिल करें जिसपर सहमती हो चुकी है और अनसुलझे मुद्दों को बाद की वार्ता पर छोड़ देना चाहिए. बहर-हाल, नागा मुद्दा, एक ऐतिहासिक सफलता हासिल करने के दावे के बावजूद, अतीत में जैसा था वैसा ही आज भी असाध्य और जटिल है.

(संजीब बरुआ)

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