भुवनेश्वर : हर वर्ष रथ यात्रा के दिन श्री जगन्नाथ मंदिर के सामने की भव्य सड़क पर बड़ी संख्या में लोग एकत्र होते हैं. मानवता के इस सागर में हर तरफ भगवान जगन्नाथ ही दिखाई देते हैं.
हजारों भक्त भगवान जगन्नाथ, भगवान बलभद्र और देवी सुभद्रा के रथ की झलक मात्र पाकर असीम शांति की अनुभूति करते हैं. भव्य रथों को खीचने वाले भक्तों का उत्साह देखते बनता है.
भक्तों का मानना है कि रथ से बांधी गई रस्सी को छूने मात्र से उनके सारे पाप धुल जाते हैं. भगवान जगन्नाथ की यह पवित्र भूमि और उनकी रथ यात्रा अपने आप में अनेक रहस्य समेटे हुए है. इन रस्सियों के पीछे की सच्चाई और वास्तविकता भी असाधारण है.
भगवान का रथ सभी धर्मों, संस्कृतियों, संपूर्ण मानवता और पशु जगत के साथ-साथ सभी देवी-देवताओं को धारण करता है. ऐसी रस्सियां, जिनके स्पर्श मात्र से सभी पाप मिट जाते हैं, साधारण नहीं हो सकतीं.
सेवादार डॉ. शरत मोहांती ने बताया कि पुराणिक (पुराने और पौराणिक) शास्त्रों के अनुसार, तीन रथों से बंधी रस्सियां एक नाग (कोबरा) और दो नागिन का प्रतीक हैं. भगवान श्री जगन्नाथ के नंदीघोष रथ से बंधी रस्सी को शंखचूड़ नागिन के नाम से जाना जाता है. मातृ शक्ति की प्रतीक देवी सुभद्रा के रथ दर्पदलन से बंधी रस्सी को स्वर्णचूड़ नागिन के नाम से जाना जाता है. इसी तरह भगवान बलभद्र के रथ तलध्वज से बंधी रस्सी को सर्प राज बासुकी के नाम से जाना जाता है.
तीनों रथों के लिए रस्सियों को विशेष शैली में बनाया जाता है. ये रस्सियां नारियल के रेशे से बनाई जाती हैं. रथों के अधीक्षक के अनुसार प्रत्येक रथ को खींचने के लिए चार रस्सियों की आवश्यकता होती है. प्रत्येक रस्सी की लंबाई 220 फीट और मोटाई आठ इंच होती है.
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ओडिशा कॉयर कॉर्पोरेशन ने इस वर्ष 20 रस्सियों की आपूर्ति की है. पुरी जिले में चंदनपुर के पास स्थित कॉर्पोरेशन के कारखाने में इन रस्सियों को तैयार किया गया है. इनमें 14 रस्सियों से रथों को खींचा जाएगा. शेष रस्सियों से रथ के चारों ओर घेरा बनाया जाएगा.
रथ यात्रा के दौरान भगवान और उनके भक्त एक हो जाते हैं. भक्त भगवान जगन्नाथ को करीब से देखकर खुद को भाग्यशाली मानते हैं. रथ पर विराजे ब्रह्मा के दर्शन पाकर भक्तों की सारी मनोकामनाएं पूर्ण हो जाती हैं.