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गंगा-जमुनी तहजीब की दिखी मिसाल, मुस्लिम महिलाएं बनाती हैं छठ के लिए चूल्हे

छठ पूजा को लेकर पटना के अदालतगंज इलाके में रहने वाले मुस्लिम परिवार दशहरा से ही छठ पूजा के लिए मिट्टी के चूल्हे बनाती हैं. इस चूल्हे का प्रयोग छठ व्रत करने वाले परिवार इस्तेमाल करती हैं.

गंगा-जमुनी तहजीब की दिखी मिसाल
गंगा-जमुनी तहजीब की दिखी मिसाल
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Published : Nov 17, 2020, 8:30 AM IST

पटना : सूर्य उपासना का महापर्व छठ ना केवल लोक आस्था का पर्व है बल्कि लोगों की मजहबों के बीच दूरियां भी मिट जाती हैं. बिहार में छठ पर्व के लिए जिस चूल्हे पर छठ व्रती प्रसाद बनाती हैं, वह मुस्लिम परिवारों द्वारा बनाया जाता है. इतना ही नहीं कई मुस्लिम महिला भी छठ पर्व का व्रत भी करती हैं.

छठ के लिए चूल्हे


वहीं, चूल्हा बनाने वाली मुस्लिम समुदाय के महिलाओं का कहना है कि छठ पूजा बहुत शुद्धता से की जाती है. इसके लिए हम लोग दशहरा बाद से ही मांस और मछली खाना छोड़ देते हैं और छठ व्रती के लिए मिट्टी का चूल्हा बनाने में लग जाती हैं.

छठ पूजा में मुस्लिम परिवार की भूमिका
हर साल छठ पूजा को लेकर राजधानी पटना के अदालतगंज इलाके में रहने वाले मुस्लिम परिवार दशहरा से ही छठ पूजा के लिए मिट्टी के चूल्हे बनाती हैं. इस चूल्हे का प्रयोग छठ व्रत करने वाले परिवार इस्तेमाल करती हैं. चूल्हा बनाने वाली पूरे उरेशा खातून, सहीना खातून, इम्तियाज अंसारी के अलावा कई मुस्लिम परिवार के लोग पिछले कई दशकों से छठ पूजा के लिए मिट्टी के चूल्हा बनाने का काम कर रहे हैं.

बता दें कि छठ पूजा में प्रसाद तैयार करने के लिए मिट्टी के चूल्हे का इस्तेमाल किया जाता है. ऐसे में यह परिवार इस अवधि के दौरान चूल्हे बनाने में व्यस्त हो जाते हैं. खास बात यह है कि इन दिनों यह मुस्लिम परिवार शाकाहारी हो जाते हैं. मांस मछली के साथ-साथ यह प्याज लहसुन तक खाना छोड़ देते हैं.

छठ पूजा के लिए मिट्टी की चूल्हे
छठ पूजा के लिए मिट्टी की चूल्हे

छठ अवधि के दौरान मुस्लिम महिला शाकाहारी भोजन का सेवन
ईटीवी भारत से बातचीत में मुस्लिम परिवार का कहना है कि पूजा के लिए मिट्टी का चूल्हे बनाना अच्छा लगता है. जब कोई मेरे काम की तारीफ करता है तो मुझे अच्छा लगता है. दशहरा से ही छठ पूजा के अंत तक केवल शाकाहारी भोजन का ग्रहण करते हैं ताकि पवित्रता बनी रहे. परिवारों का कहना है कि इन चूल्हों की कीमत 100 रुपये से लेकर 150 रुपये तक रखे हैं, लेकिन कोई भी व्यक्ति इससे भी कम पैसा देता है तो हम उसे यह मिट्टी के चूल्हे दे देते हैं.

पढ़ें :कोरोना काल में छठ पूजा को लेकर बिहार सरकार ने जारी किया गाइडलाइन, पढ़ें

10 साल से इस कार्य में लगी है मुस्लिम परिवार
35 साल की शानिजा खातून बताती हैं कि वो पिछले 10 सालों से पूजा के लिए मिट्टी के चूल्हा बनाने का काम कर रही है. हमारे पूर्वज भी इसी काम को करते थे. इस मुस्लिम परिवार की महिला का कहना है कि लोग इस पर्व में कोई भेदभाव भी नहीं करते हैं. हमारे परिवार भी कई सालों से छठ पूजा का व्रत होता है.

पटना : सूर्य उपासना का महापर्व छठ ना केवल लोक आस्था का पर्व है बल्कि लोगों की मजहबों के बीच दूरियां भी मिट जाती हैं. बिहार में छठ पर्व के लिए जिस चूल्हे पर छठ व्रती प्रसाद बनाती हैं, वह मुस्लिम परिवारों द्वारा बनाया जाता है. इतना ही नहीं कई मुस्लिम महिला भी छठ पर्व का व्रत भी करती हैं.

छठ के लिए चूल्हे


वहीं, चूल्हा बनाने वाली मुस्लिम समुदाय के महिलाओं का कहना है कि छठ पूजा बहुत शुद्धता से की जाती है. इसके लिए हम लोग दशहरा बाद से ही मांस और मछली खाना छोड़ देते हैं और छठ व्रती के लिए मिट्टी का चूल्हा बनाने में लग जाती हैं.

छठ पूजा में मुस्लिम परिवार की भूमिका
हर साल छठ पूजा को लेकर राजधानी पटना के अदालतगंज इलाके में रहने वाले मुस्लिम परिवार दशहरा से ही छठ पूजा के लिए मिट्टी के चूल्हे बनाती हैं. इस चूल्हे का प्रयोग छठ व्रत करने वाले परिवार इस्तेमाल करती हैं. चूल्हा बनाने वाली पूरे उरेशा खातून, सहीना खातून, इम्तियाज अंसारी के अलावा कई मुस्लिम परिवार के लोग पिछले कई दशकों से छठ पूजा के लिए मिट्टी के चूल्हा बनाने का काम कर रहे हैं.

बता दें कि छठ पूजा में प्रसाद तैयार करने के लिए मिट्टी के चूल्हे का इस्तेमाल किया जाता है. ऐसे में यह परिवार इस अवधि के दौरान चूल्हे बनाने में व्यस्त हो जाते हैं. खास बात यह है कि इन दिनों यह मुस्लिम परिवार शाकाहारी हो जाते हैं. मांस मछली के साथ-साथ यह प्याज लहसुन तक खाना छोड़ देते हैं.

छठ पूजा के लिए मिट्टी की चूल्हे
छठ पूजा के लिए मिट्टी की चूल्हे

छठ अवधि के दौरान मुस्लिम महिला शाकाहारी भोजन का सेवन
ईटीवी भारत से बातचीत में मुस्लिम परिवार का कहना है कि पूजा के लिए मिट्टी का चूल्हे बनाना अच्छा लगता है. जब कोई मेरे काम की तारीफ करता है तो मुझे अच्छा लगता है. दशहरा से ही छठ पूजा के अंत तक केवल शाकाहारी भोजन का ग्रहण करते हैं ताकि पवित्रता बनी रहे. परिवारों का कहना है कि इन चूल्हों की कीमत 100 रुपये से लेकर 150 रुपये तक रखे हैं, लेकिन कोई भी व्यक्ति इससे भी कम पैसा देता है तो हम उसे यह मिट्टी के चूल्हे दे देते हैं.

पढ़ें :कोरोना काल में छठ पूजा को लेकर बिहार सरकार ने जारी किया गाइडलाइन, पढ़ें

10 साल से इस कार्य में लगी है मुस्लिम परिवार
35 साल की शानिजा खातून बताती हैं कि वो पिछले 10 सालों से पूजा के लिए मिट्टी के चूल्हा बनाने का काम कर रही है. हमारे पूर्वज भी इसी काम को करते थे. इस मुस्लिम परिवार की महिला का कहना है कि लोग इस पर्व में कोई भेदभाव भी नहीं करते हैं. हमारे परिवार भी कई सालों से छठ पूजा का व्रत होता है.

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