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मिसाल : UP का मुस्लिम परिवार वर्षों से बना रहा है कांवड़, जानें खासियत - kawad yatra

उत्तर प्रदेश के मेरठ में रहने वाला एक मुस्लिम परिवार वर्षों से कांवड़ यात्रा के दौरान शिव भक्तों के लिए कांवड़ तैयार कर रहा है. ईटीवी भारत से बात करते हुए परिवार के एक सदस्य मोहम्मद सौहेल ने बताया कि उनके पूर्वज भी कांवड़ बनाते थे.

ईटीवी बारत से बात करते सौहेल
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Published : Jul 9, 2019, 7:50 PM IST

मेरठ: उत्तराखंड के हरिद्वार से आगामी 17 जुलाई से कांवड़ यात्रा शुरू हो जाएगी. कांवड़ यात्रा के दौरान भगवान शिव पर आस्था रखने वाले लोग उत्तर प्रदेश के मेरठ के रास्ते से उत्तराखंड के हरिद्वार जाएंगे.

भारत में सालों से गंगा जमुनी तहजीब की मिसाल दी जाती रही है. इसी की एक बानगी है उत्तर प्रदेश के मेरठ का एक परिवार. दरअसल, मेरठ का ये परिवार हर साल होने वाली कांवड़ यात्रा के लिए श्रद्धालुओं के लिए कांवड़ तैयार करता है. यह परिवार पीढ़ी दर पीढ़ी इस काम को पूरी श्रद्धा के साथ बखूबी अंजाम दे रहा है.

खास बात यह है कि सावन महीने में कांवड़ यात्रा के श्रद्धालुओं के लिए कांवड़ बनाने वाला मेरठ का यह मुस्लिम परिवार दशहरा में रावण का पुतला भी तैयार करता है.

इस परिवार के एक सदस्य मोहम्मद सौहेल ने ईटीवी भारत से बात करते हुए बताया कि इनका पूरा परिवार कांवड़ बनाने का काम करता है. उनका पूरा परिवार करीब एक महीने पहले ही कांवड़ तैयार करने में लग जाता है और पूरे जोश और जज्बे के साथ कांवड़ तैयार करता है.

कांवड़ बनाने वाला मुस्लिम परिवार

सौहेल ने बताया कि वो हर साल कांवड़ तैयार कर उत्तराखंड के देहरादून में ले जाकर राम और शिव के भक्तों को बेचते हैं. उन्होंने बताया कि उनसे पहले उनके पूर्वज भी कांवड़ बनाने का व्यापार करते थे. उन्होंने कहा 'कांवड़ यात्रा में बूढ़े, बच्चे, युवा और महिलाएं सभी शामिल होते हैं. इस लिए इस बार उन्होंने कांवड़ बनाते समय वजन का भी ख्याल रखा है.'

सौहेल ने बताया कि कांवड़ में लकड़ियों के कारण वजन होता है. इसलिए उन्होंने इस बार लोहे के पाइप का कांवड़ तैयार किया है. इसका वजन कम भी है और यह मजबूत भी है.

पढ़ें- कांवड़ यात्रा में डीजे और माइक पर प्रतिबंध नहीं, फिल्मी गाने पर रोक

उन्होंने बताया कि हिंदू - मुस्लिम जज्बे को एक तरफ रखकर गंगा जमुनी तहजीब के तहत वो यह काम करते हैं. इसके अलावा उन्होंने बताया कि देहरादून में भोला भाई (कावंड़ यात्री) मुझसे प्रेम से बात करते हैं और अच्छा व्यवहार करते हैं.

उन्होंने कहा कि व्यवसाय से अलग उनका मकसद कावड़ के कारोबार में हिंदू मुस्लिम भाईचारे को बढ़ावा देना है. उन्होंने बताया कि वो अलग-अलग तरह के कांवड़ बनाते हैं जिनकी कीमत 300 से लेकर 20 हजार तक है.

ये भी पढ़ें: 17 जुलाई को हरिद्वार से शुरू होगी कांवड़ यात्रा, चार राज्यों में सुरक्षा के कड़े इंतजाम

बता दें कि 17 जुलाई से शुरू होने वाली कांवड़ यात्रा को सुरक्षित बनाने के लिए उत्तर प्रदेश सरकार ने सभी तैयारियां पूरी कर ली हैं. इसके लिए दिल्ली, हरियाणा, राजस्थान और उत्तराखंड के अफसरों के साथ कोऑर्डिनेशन मीटिंग भी कर ली गई है.

मेरठ: उत्तराखंड के हरिद्वार से आगामी 17 जुलाई से कांवड़ यात्रा शुरू हो जाएगी. कांवड़ यात्रा के दौरान भगवान शिव पर आस्था रखने वाले लोग उत्तर प्रदेश के मेरठ के रास्ते से उत्तराखंड के हरिद्वार जाएंगे.

भारत में सालों से गंगा जमुनी तहजीब की मिसाल दी जाती रही है. इसी की एक बानगी है उत्तर प्रदेश के मेरठ का एक परिवार. दरअसल, मेरठ का ये परिवार हर साल होने वाली कांवड़ यात्रा के लिए श्रद्धालुओं के लिए कांवड़ तैयार करता है. यह परिवार पीढ़ी दर पीढ़ी इस काम को पूरी श्रद्धा के साथ बखूबी अंजाम दे रहा है.

खास बात यह है कि सावन महीने में कांवड़ यात्रा के श्रद्धालुओं के लिए कांवड़ बनाने वाला मेरठ का यह मुस्लिम परिवार दशहरा में रावण का पुतला भी तैयार करता है.

इस परिवार के एक सदस्य मोहम्मद सौहेल ने ईटीवी भारत से बात करते हुए बताया कि इनका पूरा परिवार कांवड़ बनाने का काम करता है. उनका पूरा परिवार करीब एक महीने पहले ही कांवड़ तैयार करने में लग जाता है और पूरे जोश और जज्बे के साथ कांवड़ तैयार करता है.

कांवड़ बनाने वाला मुस्लिम परिवार

सौहेल ने बताया कि वो हर साल कांवड़ तैयार कर उत्तराखंड के देहरादून में ले जाकर राम और शिव के भक्तों को बेचते हैं. उन्होंने बताया कि उनसे पहले उनके पूर्वज भी कांवड़ बनाने का व्यापार करते थे. उन्होंने कहा 'कांवड़ यात्रा में बूढ़े, बच्चे, युवा और महिलाएं सभी शामिल होते हैं. इस लिए इस बार उन्होंने कांवड़ बनाते समय वजन का भी ख्याल रखा है.'

सौहेल ने बताया कि कांवड़ में लकड़ियों के कारण वजन होता है. इसलिए उन्होंने इस बार लोहे के पाइप का कांवड़ तैयार किया है. इसका वजन कम भी है और यह मजबूत भी है.

पढ़ें- कांवड़ यात्रा में डीजे और माइक पर प्रतिबंध नहीं, फिल्मी गाने पर रोक

उन्होंने बताया कि हिंदू - मुस्लिम जज्बे को एक तरफ रखकर गंगा जमुनी तहजीब के तहत वो यह काम करते हैं. इसके अलावा उन्होंने बताया कि देहरादून में भोला भाई (कावंड़ यात्री) मुझसे प्रेम से बात करते हैं और अच्छा व्यवहार करते हैं.

उन्होंने कहा कि व्यवसाय से अलग उनका मकसद कावड़ के कारोबार में हिंदू मुस्लिम भाईचारे को बढ़ावा देना है. उन्होंने बताया कि वो अलग-अलग तरह के कांवड़ बनाते हैं जिनकी कीमत 300 से लेकर 20 हजार तक है.

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बता दें कि 17 जुलाई से शुरू होने वाली कांवड़ यात्रा को सुरक्षित बनाने के लिए उत्तर प्रदेश सरकार ने सभी तैयारियां पूरी कर ली हैं. इसके लिए दिल्ली, हरियाणा, राजस्थान और उत्तराखंड के अफसरों के साथ कोऑर्डिनेशन मीटिंग भी कर ली गई है.

Intro:رواں ماہ 16 تاریخ سے کاوڑ یاترا کی شروعات ہو جائے گی یہ اس رام اور شیو کے عقیدت مند پورے ریاست سے میرٹھ ہوتے ہوئے ریاست اتراکھنڈ کے ہریدوار شہر کا رخ کرتے ہیں.


Body:ہندو مذہب کی تہوار دسہرہ میں راون کا مجسمہ اور کاوڑ یاتریو کے لیے میرٹھ میں رہنے والے ایک مسلم خاندان نسل در نسل کاوڑ کی صنعت سے وابستہ ہیں.

محمد سہیل کا کہنا ہے کہ ان کا پورا خاندان ان کاوڑ کی تیاریوں میں ایک مہینہ قبل مصروف ہو جاتا ہے اور پورے عقیدت جوش و جذبے کے ساتھ کاوڑ کو تیار کرتا ہے انہوں نے کہا کہ ہر برس رام اور شیو کے عقیدت مند کے ہاتھ ریاست اتراکھنڈ کے دہرادون میں لے جاکر فروخت کرتا ہوں.

انہوں نے بتایا کہ اس سے قبل ہمارے دادا پردادا بھی کاوڑ بنانے کی صنعت میں مصروف تھے اور اسی جذبے کے ساتھ ہم اس کام کو کرتے ہیں.

محمد سہیل کہتے ہیں پورے ریاست سے رام اور شو کے عقیدت مند میرٹھ ہوتے ہوئے دہرادون جاتے ہیں ایسے میں بچے بوڑھے نوجوان سبھی اس یاترا میں شامل ہوتے ہیں. اسی اعتبار سے کاوڑ کے وزن کا خیال رکھا جاتا ہے. کاوڑ میں لکڑیوں کی زیادتی کی وجہ سے وزن دار ہو جاتا ہے اس کے پیش نظر اس بار لوہے کے پائپ کو استعمال کیا گیا ہے جو کم وزنی بھی ہیں مضبوط بھی ہیں.

انہوں نے بتایا کہ مسلم ہندو کے جذبے کو ایک طرف رکھ کر کے گنگا جمنی تہذیب کے تحت یہ کام کرتے ہیں اور پورے جوش وجذبے کے ساتھ یہ کام کرتے ہیں.

انہوں نے یہ بھی بتایا کہ دہرادون میں میں سبھی بھولا بھائی مجھے تہذیب اور ادب کے ساتھ پکارتے ہیں اور حسن سلوک کرتے ہیں. کاروباری نقطہ نظر سے ہٹ کر ان کا عقیدہ کاوڑ کی صنعت کاری میں میں ہندومسلم اتحاد کو فروغ دینا ہے
محمد سہیل بتاتے ہیں کہ مختلف قسم کے کاوڑ بنائے جاتے ہیں جس کی قیمت تین سو سے لے کر کے 20 ہزار تک کے ہے.

آپ کو بتا دیں کہ ہندو مذہب کے مطابق رام اور شیو کے عقیدت مندوں کا ماننا ہے کہ جو شخص ان پر گنکا جل چڑھائے اس کی ان کے ساتھ نجات ہوگی.


Conclusion:محمد سہیل کاوڑ کاریگر
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