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किसान संगठनों ने एमएसपी में वृद्धि को बताया नाम मात्र

किसान संगठनों ने सरकार द्वारा रबी की फलस के लिए की गई एमएसपी की घोषणा को बहुत कम बताया है. किसान संगठनों का कहना है कि गेहूं की एमएसपी में सिर्फ 2.6 प्रतिशत की वृद्धि गई है, जोकि महंगाई दर छह प्रतिशत से बहुत कम है.

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एमएसपी में वृद्धि
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Published : Sep 22, 2020, 11:02 PM IST

नई दिल्ली : कृषि संबंधी विधेयकों को लेकर किसानों के विरोध के बीच केंद्र सरकार ने सोमवार को रबी की फसल के लिए न्यूनतम समर्थन मूल्य (एमएसपी) की घोषणा की. छह रबी फसलों की खरीद के लिए एमएसपी में न्यूनतम 50 रुपये प्रति क्विंटल से 300 रुपये प्रति क्विंटल तक की वृद्धि की गई है.

सरकार का कहना है कि एमएसपी स्वामीनाथन कमेटी की सिफारिशों के अनुसार है और 2018-19 से, सरकार किसान द्वारा पैदा की गई औसत लागत और लागत पर न्यूनतम 50 प्रतिशत लाभ की गणना के आधार पर एमएसपी तय कर रही है.

हालांकि, किसान संगठनों ने फिर से सरकार के दावे को खारिज कर दिया है. उनका कहना है कि बढ़ती आजीविका लागत की जरूरतों को पूरा करने के लिए 2.6 प्रतिशत की बढ़ोतरी बहुत कम है. एआईकेएससीसी ने मंगलवार को एक बार फिर से एमएसपी गारंटी कानून की मांग है, जो C2 + 50% फॉर्मूला पर एमएसपी का आश्वासन देता है, जिसकी संस्तुति वास्तव में स्वामीनाथन समिति द्वारा की गई है.

एआईकेएससीसी के संयोजक वीएम सिंह ने कहा सीजन 2019-20 के लिए गेहूं का एमएसपी 1925 रुपये प्रति क्विंटल था, लेकिन आज यह बाजार में 1400 रुपये प्रति क्विंटल पर बिक रहा है, जिससे किसानों को बड़े पैमाने पर नुकसान हो रहा है. यदि सरकार वास्तव में किसानों के लिए ईमानदार है, तो उसे आगे आना चाहिए और अपनी घोषित एमएसपी 1925 रुपये प्रति क्विंटल पर खरीदारी करनी चाहिए.

एआईकेएससीसी द्वारा मंगलवार को जारी एक बयान में कहा गया है कि डीजल और पेट्रोल की कीमत बढ़ रही है और 2020 में बिजली बिल पर सभी सब्सिडी को वापस लेने और सभी आम उपभोक्ताओं से 10.20 रुपये प्रति यूनिट वसूलने का इरादा है. उर्वरक सब्सिडी भी लागत में वृद्धि के लिए वापस ले ली गई है और साथ ही कालाबाजारी भी बढ़ गई है. आजीविका की लागत उच्च दरों पर बढ़ रही है, लेकिन एमएसपी में 2.6 प्रतिशत की वृद्धि इस देश के किसानों पर एक क्रूर मजाक है.

आधिकारिक आंकड़ों के अनुसार, केवल छह प्रतिशत किसान अपनी उपज को एमएसपी पर बेच पाते हैं या उनकी उपज की खरीद सरकार द्वारा एमएसपी पर की जाती है. अन्य किसानों को अब भी अपनी फसल उन बाजारों में बेचनी पड़ती है, जहां व्यापारी बमुश्किल सरकार द्वारा घोषित एमएसपी पर फसल खरीदते हैं.

यह भी पढ़ें- मोदी सरकार ने गेहूं का एमएसपी ₹50 बढ़ाकर 1,975 प्रति क्विंटल किया

वीएम सिंह ने कहा कि सरकार आमतौर पर अक्टूबर के महीने में एमएसपी की घोषणा करती थी, लेकिन इस बार उन्होंने सितंबर में सिर्फ यह दिखाने की घोषणा की है कि किसानों के लिए एमएसपी जारी रहेगा. सवाल यह है कि क्या सरकार इन दरों पर किसान की उपज की खरीद करेगी या घोषित एमएसपी में खरीद का आश्वासन देगी? लेकिन ऐसा कभी नहीं होता है. मक्का के लिए एमएसपी पिछले साल 1760 रुपये प्रति क्विंटल था, लेकिन किसानों को 700 से 900 रुपये प्रति क्विंटल की दर से बेचना पड़ा.

किसान नेता पुष्पेंद्र सिंह ने भी एमएसपी में वृद्धि की तुलना महंगाई दर करते हुए सरकार के खिलाफ अपनी नाराजगी जाहिर की.

किसान शक्ति संघ के अध्यक्ष चौधरी पुष्पेन्द्र सिंह ने कहा कि एमएसपी में यह वृद्धि बहुत कम है. महंगाई दर लगभग 6 प्रतिशत है, लेकिन गेहूं की एमएसपी में वृद्धि सिर्फ 2.6 प्रतिशत की गई है. इसका मतलब है कि किसानों को गेहूं पर 3.4 प्रतिशत कम दाम मिल रहा है.

नई दिल्ली : कृषि संबंधी विधेयकों को लेकर किसानों के विरोध के बीच केंद्र सरकार ने सोमवार को रबी की फसल के लिए न्यूनतम समर्थन मूल्य (एमएसपी) की घोषणा की. छह रबी फसलों की खरीद के लिए एमएसपी में न्यूनतम 50 रुपये प्रति क्विंटल से 300 रुपये प्रति क्विंटल तक की वृद्धि की गई है.

सरकार का कहना है कि एमएसपी स्वामीनाथन कमेटी की सिफारिशों के अनुसार है और 2018-19 से, सरकार किसान द्वारा पैदा की गई औसत लागत और लागत पर न्यूनतम 50 प्रतिशत लाभ की गणना के आधार पर एमएसपी तय कर रही है.

हालांकि, किसान संगठनों ने फिर से सरकार के दावे को खारिज कर दिया है. उनका कहना है कि बढ़ती आजीविका लागत की जरूरतों को पूरा करने के लिए 2.6 प्रतिशत की बढ़ोतरी बहुत कम है. एआईकेएससीसी ने मंगलवार को एक बार फिर से एमएसपी गारंटी कानून की मांग है, जो C2 + 50% फॉर्मूला पर एमएसपी का आश्वासन देता है, जिसकी संस्तुति वास्तव में स्वामीनाथन समिति द्वारा की गई है.

एआईकेएससीसी के संयोजक वीएम सिंह ने कहा सीजन 2019-20 के लिए गेहूं का एमएसपी 1925 रुपये प्रति क्विंटल था, लेकिन आज यह बाजार में 1400 रुपये प्रति क्विंटल पर बिक रहा है, जिससे किसानों को बड़े पैमाने पर नुकसान हो रहा है. यदि सरकार वास्तव में किसानों के लिए ईमानदार है, तो उसे आगे आना चाहिए और अपनी घोषित एमएसपी 1925 रुपये प्रति क्विंटल पर खरीदारी करनी चाहिए.

एआईकेएससीसी द्वारा मंगलवार को जारी एक बयान में कहा गया है कि डीजल और पेट्रोल की कीमत बढ़ रही है और 2020 में बिजली बिल पर सभी सब्सिडी को वापस लेने और सभी आम उपभोक्ताओं से 10.20 रुपये प्रति यूनिट वसूलने का इरादा है. उर्वरक सब्सिडी भी लागत में वृद्धि के लिए वापस ले ली गई है और साथ ही कालाबाजारी भी बढ़ गई है. आजीविका की लागत उच्च दरों पर बढ़ रही है, लेकिन एमएसपी में 2.6 प्रतिशत की वृद्धि इस देश के किसानों पर एक क्रूर मजाक है.

आधिकारिक आंकड़ों के अनुसार, केवल छह प्रतिशत किसान अपनी उपज को एमएसपी पर बेच पाते हैं या उनकी उपज की खरीद सरकार द्वारा एमएसपी पर की जाती है. अन्य किसानों को अब भी अपनी फसल उन बाजारों में बेचनी पड़ती है, जहां व्यापारी बमुश्किल सरकार द्वारा घोषित एमएसपी पर फसल खरीदते हैं.

यह भी पढ़ें- मोदी सरकार ने गेहूं का एमएसपी ₹50 बढ़ाकर 1,975 प्रति क्विंटल किया

वीएम सिंह ने कहा कि सरकार आमतौर पर अक्टूबर के महीने में एमएसपी की घोषणा करती थी, लेकिन इस बार उन्होंने सितंबर में सिर्फ यह दिखाने की घोषणा की है कि किसानों के लिए एमएसपी जारी रहेगा. सवाल यह है कि क्या सरकार इन दरों पर किसान की उपज की खरीद करेगी या घोषित एमएसपी में खरीद का आश्वासन देगी? लेकिन ऐसा कभी नहीं होता है. मक्का के लिए एमएसपी पिछले साल 1760 रुपये प्रति क्विंटल था, लेकिन किसानों को 700 से 900 रुपये प्रति क्विंटल की दर से बेचना पड़ा.

किसान नेता पुष्पेंद्र सिंह ने भी एमएसपी में वृद्धि की तुलना महंगाई दर करते हुए सरकार के खिलाफ अपनी नाराजगी जाहिर की.

किसान शक्ति संघ के अध्यक्ष चौधरी पुष्पेन्द्र सिंह ने कहा कि एमएसपी में यह वृद्धि बहुत कम है. महंगाई दर लगभग 6 प्रतिशत है, लेकिन गेहूं की एमएसपी में वृद्धि सिर्फ 2.6 प्रतिशत की गई है. इसका मतलब है कि किसानों को गेहूं पर 3.4 प्रतिशत कम दाम मिल रहा है.

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