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24 साल से बेटे की रिहाई के इंतजार में पथराई मां फातिमा की आंखें

1996 में दिल्ली और जयपुर में हुए बम धमाकों में शामिल होने के आरोप में गिरफ्तार जावेद अहमद खान की 70 वर्षीय मां फातिमा बेगम पिछले 24 सालों से अपने बेटे की रिहाई की मांग कर रही हैं. हालांकि धमाकों के आरोप में पकड़े गए अन्य आरोपियों को पिछसे साल ही कोर्ट द्वारा बरी कर दिया गया, जबकि जावेद खान को उम्र कैद की सजा दी गई है.

फातिमा बेगम
फातिमा बेगम
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Published : Aug 27, 2020, 4:48 PM IST

श्रीनगर : जम्मू कश्मीर के खनका मोला की रहने वाली 70 वर्षीय फातिमा बेगम अपने बेटे की तस्वीर को लालसा भरी निगाहों से देख रही हैं. उनका बेटा, जो पिछले 24 सालों से हिरासत में है.

फातिमा के बेटे जावेद अहमद खान को चार अन्य कश्मीरी व्यापारियों के साथ 1996 में दिल्ली और राजस्थान के जयपुर में हुए बम धमाकों में शामिल होने के आरोप में गिरफ्तार किया गया था.

चार में से तीन को राजस्थान उच्च न्यायालय ने पिछले साल 22 जुलाई को बरी कर दिया था, लेकिन जावेद खान को उम्र कैद की सजा सुनाई थी.

फातिमा का कहना है कि पिछले साल जब उनके इलाके के दो नौजवान मिर्जा निसार हुसैन और लतीफ अहमद वाजा 24 साल जेल की सजा काटने के बाद घर लौटे, तो मैं बहुत खुश थी. मुझे उम्मीद थी कि मेरे बेटे की रिहाई जल्द होगी, लेकिन ऐसा नहीं हुआ है.

उन्होंने कहा कि अगर वह सब निर्दोष थे, तो मेरा बेटा दोषी कैसे हो सकता है. फातिमा फिलहाल अपने घर में अकेली रहती हैं और कभी-कभी उनकी बड़ी बेटी हाल-चाल पूछने आ जाती हैं.

फातिमा का कहना है कि पिछले साल जुलाई में पति की मृत्यु हो गई फिर खबर आई कि मेरे बेटे को जेल में उम्रकैद की सजा सुनाई गई है. मुझे समझ नहीं आ रहा था कि उसका क्या कसूर था. वह इस समय दिल्ली की तिहाड़ जेल में बंद है.

वह कहती हैं कि उसकी आंखों से अब आंसू नहीं टपकते हैं और दिखाई भी कम देता है.

फातिमा ने अपना दुख व्यक्त करते हुए कहा कि मैंने पिछले सात सालों से अपने बेटे को नहीं देखा. वह तिहाड़ जेल से कभी-कभी केवल पांच मिनट के लिए फोन करके हाल-चाल पूछता है. केवल माता-पिता को ही जेल में उससे मिलने की अनुमति है. इसलिए जब तक मेरे पति ठीक थे, हम उसे देखने गए.

मिलने के समय भी वहां तैनात पुलिसकर्मी बहुत समस्यांए पैदा करते थे, लेकिन उनके बेटे को देखकर उन सभी समस्याओं का समाधान हो जाता.

उन्होंने कहा कि मैं अब बुढ़ापे की वजह से उसे देखने नहीं जाती. इतनी लंबी यात्रा संभव नहीं है और पति के गुजर जाने के बाद यह और भी मुश्किल है. पिछले साल 5 अगस्त को ईद पर प्रतिबंध और वैश्विक महामारी के बाद कई मुश्किलें का सामना करना पड़ा. मेरी आमदनी का कोई जरिया नहीं है. मेरे पति एक सरकारी एम्पोरियम में काम करते थे. उन्हें जो भी पेंशन मिलती है वह मेरे इलाज पर खर्च हो जाती है.

पढ़ें - पुलवामा हमले से पहले मसूद के भतीजे के बैंक खाते में भेजे गए थे ₹10 लाख

क्या आपको अपने बेटे की रिहाई के लिए कोई कानूनी मदद मिली है?

इस सवाल के जवाब में उन्होंने कहा कि मेरे बेटे का केस इस समय सुप्रीम कोर्ट में है, लेकिन कभी सुनवाई नहीं होती, क्योंकि वकील बिना फीस के सुनवाई के लिए अदालत में हाजिर नहीं होते.

मुझे नहीं पता कि उसके भविष्य में क्या लिखा है? मैं लाचार हूं और मदद के लिए भी कोई आगे नहीं आया. मुझे पता है कि मेरा बेटा निर्दोष है, लेकिन ऐसा कुछ भी नहीं है मैं कुछ नहीं कर सकती, मैं बेबस हूं.

बता दें कि पिछले साल 5 जुलाई को जावेद अहमद खान के पिता शफी अहमद खान की मृत्यु हो गई थी, लेकिन जावेद को पैरोल नहीं दी गई थी.

श्रीनगर : जम्मू कश्मीर के खनका मोला की रहने वाली 70 वर्षीय फातिमा बेगम अपने बेटे की तस्वीर को लालसा भरी निगाहों से देख रही हैं. उनका बेटा, जो पिछले 24 सालों से हिरासत में है.

फातिमा के बेटे जावेद अहमद खान को चार अन्य कश्मीरी व्यापारियों के साथ 1996 में दिल्ली और राजस्थान के जयपुर में हुए बम धमाकों में शामिल होने के आरोप में गिरफ्तार किया गया था.

चार में से तीन को राजस्थान उच्च न्यायालय ने पिछले साल 22 जुलाई को बरी कर दिया था, लेकिन जावेद खान को उम्र कैद की सजा सुनाई थी.

फातिमा का कहना है कि पिछले साल जब उनके इलाके के दो नौजवान मिर्जा निसार हुसैन और लतीफ अहमद वाजा 24 साल जेल की सजा काटने के बाद घर लौटे, तो मैं बहुत खुश थी. मुझे उम्मीद थी कि मेरे बेटे की रिहाई जल्द होगी, लेकिन ऐसा नहीं हुआ है.

उन्होंने कहा कि अगर वह सब निर्दोष थे, तो मेरा बेटा दोषी कैसे हो सकता है. फातिमा फिलहाल अपने घर में अकेली रहती हैं और कभी-कभी उनकी बड़ी बेटी हाल-चाल पूछने आ जाती हैं.

फातिमा का कहना है कि पिछले साल जुलाई में पति की मृत्यु हो गई फिर खबर आई कि मेरे बेटे को जेल में उम्रकैद की सजा सुनाई गई है. मुझे समझ नहीं आ रहा था कि उसका क्या कसूर था. वह इस समय दिल्ली की तिहाड़ जेल में बंद है.

वह कहती हैं कि उसकी आंखों से अब आंसू नहीं टपकते हैं और दिखाई भी कम देता है.

फातिमा ने अपना दुख व्यक्त करते हुए कहा कि मैंने पिछले सात सालों से अपने बेटे को नहीं देखा. वह तिहाड़ जेल से कभी-कभी केवल पांच मिनट के लिए फोन करके हाल-चाल पूछता है. केवल माता-पिता को ही जेल में उससे मिलने की अनुमति है. इसलिए जब तक मेरे पति ठीक थे, हम उसे देखने गए.

मिलने के समय भी वहां तैनात पुलिसकर्मी बहुत समस्यांए पैदा करते थे, लेकिन उनके बेटे को देखकर उन सभी समस्याओं का समाधान हो जाता.

उन्होंने कहा कि मैं अब बुढ़ापे की वजह से उसे देखने नहीं जाती. इतनी लंबी यात्रा संभव नहीं है और पति के गुजर जाने के बाद यह और भी मुश्किल है. पिछले साल 5 अगस्त को ईद पर प्रतिबंध और वैश्विक महामारी के बाद कई मुश्किलें का सामना करना पड़ा. मेरी आमदनी का कोई जरिया नहीं है. मेरे पति एक सरकारी एम्पोरियम में काम करते थे. उन्हें जो भी पेंशन मिलती है वह मेरे इलाज पर खर्च हो जाती है.

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क्या आपको अपने बेटे की रिहाई के लिए कोई कानूनी मदद मिली है?

इस सवाल के जवाब में उन्होंने कहा कि मेरे बेटे का केस इस समय सुप्रीम कोर्ट में है, लेकिन कभी सुनवाई नहीं होती, क्योंकि वकील बिना फीस के सुनवाई के लिए अदालत में हाजिर नहीं होते.

मुझे नहीं पता कि उसके भविष्य में क्या लिखा है? मैं लाचार हूं और मदद के लिए भी कोई आगे नहीं आया. मुझे पता है कि मेरा बेटा निर्दोष है, लेकिन ऐसा कुछ भी नहीं है मैं कुछ नहीं कर सकती, मैं बेबस हूं.

बता दें कि पिछले साल 5 जुलाई को जावेद अहमद खान के पिता शफी अहमद खान की मृत्यु हो गई थी, लेकिन जावेद को पैरोल नहीं दी गई थी.

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