नई दिल्ली: बीस साल बाद इतिहास ने खुद को दोहराया है. जैसी जोड़ी अटल बिहारी वाजपेयी और लाल कृष्ण आडवाणी की थी, नरेन्द्र मोदी और अमित शाह की तुलना उनसे की जा रही है. मोदी यूपी के वाराणसी से सांसद हैं और शाह गुजरात के गांधी नगर से.
1998 में तब वाजपेयी पीएम बने. वाजपेयी ने आडवाणी को गृह मंत्री बनाया. दोनों की जोड़ी राजनीति में सबसे अच्छी जोड़ी मानी जाती रही है. कहा जाता है कि वायपेयी को आडवाणी का साथ मिला, तभी वो प्रधानमंत्री बन सके. संगठन पर आडवाणी की पकड़ थी. दो सांसदों वाली पार्टी को 181 तक पहुंचाने में उनकी भूमिका सबसे अहम थी. ये अलग बात है कि आडवाणी को फिर एक और आडवाणी नहीं मिल सका, और वो पीएम पद की कुर्सी तक नहीं पहुंच सके.
इस बार भी मोदी और शाह के बीच कुछ वैसी ही जुगलबंदी देखी जा रही है. मोदी को शाह जैसा मेहनती और संगठन की समझ रखने वाला शख्स मिला. 2014 में शाह को यूपी का प्रभारी बनाया गया था. और तब शाह ने 72 सीटें लाकर जो करिश्मा दिखाया, मोदी उनके दीवाने हो गए. और फिर उसके बाद तो शाह ने रूकने का नाम ही नहीं लिया.
शाह ने एक के बाद एक चुनावों को जीतने का जो सिलसिला शुरू किया, भाजपा पूरे देश में छा गई. वह आज दुनिया की नंबर वन पार्टी बन गई. 40 सालों के बाद किसी एक पार्टी की सरकार दोबारा सत्ता में लौट सकी है.
गुजरात में जब मोदी सीएम थे, तो उन्होंने शाह को गृह मंत्री बनाया था. एक बार फिर से मोदी ने शाह को वही विभाग दिया है. लेकिन इस बार वे देश के गृह मंत्री बने हैं.
पढ़ें-गृह मंत्री बने अमित शाह, एक नजर उनके राजनीतिक सफर पर
भाजपा के सामने कश्मीर, धारा 370, 35ए, एनआरसी और राम मंदिर जैसे मुद्दे हैं. गृह मंत्री का इन मुद्दों पर कैसा रूख रहेगा, यह देखना दिलचस्प होगा.