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बिहार : मजदूर एक बार फिर रोजी-रोटी की जुगत में लौट रहे परदेस - bihar government

दरभंगा में अन्य राज्यों से वापस आए मजदूर एक बार फिर रोजी-रोटी की जुगत में परदेस जा रहे हैं. मजदूरों की मानें, तो जो काम वो यहां करेंगे, उसी काम के लिए हरियाणा या पंजाब में दोगुना रुपया मिलेगा.

Migrant workers
मजदूर एक बार फिर रोजी-रोटी की जुगत में लौट रहे परदेस
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Published : Jun 17, 2020, 11:04 PM IST

दरभंगा : बिहार में पलायन की समस्या को रोकने के लिए सरकार तमाम दावे कर रही है. लेकिन यह रुकता नजर नहीं आ रहा है. कुछ रोज पहले प्रदेश वापस लौटे मजदूर एक बार फिर काम की तलाश में अन्य राज्यों का रुख कर रहे हैं.

जहां एक ओर कोरोना वायरस के एक दिन में पहले की अपेक्षा दोगुने मामले मिलने शुरू हो गए हैं. तो वहीं दूसरी ओर मजदूर भी दोगुने डर के साथ पलायन कर रहे हैं. दरभंगा में मजदूर पंजाब, हरियाणा और दिल्ली वापस जा रहे हैं. इन प्रदेशों के जमींदार उन्हें धान रोपनी के लिए गाड़ियां भेज कर बिना भाड़ा चुकाए वापस बुला रहे हैं. ऐसी ही एक बस हरियाणा के कुरुक्षेत्र से दरभंगा जिले के बेनीपुर पहुंचीऔर आसपास के गांवों से मजदूरों को धानरोपनी के लिए ले गई.

ईटीवी भारत की रिपोर्ट

दरभंगा की कहानी विदेशों तक
बिहार में पलायन की सदियों पुरानी अंतहीन गाथा है. अभी हाल में जब कोरोना की वजह से लॉकडाउन हुआ, तो लाखों की संख्या में मजदूर ट्रेनों, रिक्शों-ठेलों, साइकिल और यहां तक कि पैदल चल कर सैकड़ों किमी दूर से बिहार के जिलों में पहुंचे. पलायन के इस दर्द की कहानी दरभंगा की उस 13 साल की ज्योति के बहाने अमेरिका तक पहुंची थी, जिसने अपने बीमार पिता को साइकिल पर बिठा कर गुरुग्राम से दरभंगा ला दिया था. इस कहानी को अमेरिकी राष्ट्रपति डोनाल्ड ट्रंप की बेटी इवांका ट्रंप ने भी ट्विटर के माध्यम से लोगों को बताया था.

धान रोपनी के लिए परदेस का रुख
जब मजदूर वापस लौट रहे थे, तो बिहार सरकार ने दावा किया था कि मजदूरों को उनके गांव, घर में रोजगार दिया जाएगा. पलायन को रोका जाएगा और उनकी मेहनत व प्रतिभा का उपयोग बिहार को संवारने में किया जाएगा. लेकिन अभी एक-डेढ़ महीना भी नहीं बीता और मजदूर धान रोपनी के लिए वापस परदेस जाने लगे हैं. वह भी ऐसे समय में जब बिहार में उनके गांवों में भी धानरोपनी के लिए मजदूरों का टोटा होने वाला है.

मजबूरी के लिए फिर दूरी
स्थानीय मजदूर रामलाल ने कहा कि वे मजदूरों के सरदार के मार्फत हरियाणा जा रहे हैं और वहां धानरोपनी करेंगे. इससे चार पैसे कमाएंगे. जब उनसे पूछा गया कि धानरोपनी तो यहां भी हो सकती है तो उन्होंने कहा कि यहां तो महज सौ रुपये मिलेंगे. उससे 6 लोगों का परिवार कैसे चलेगा. गांव में दूसरा कोई रोजगार नहीं है. सरकार की ओर से भी कोई मदद नहीं मिल रही है. ऐसे में उनके पास परदेस जाने के अलावा कोई दूसरा चारा नहीं है.

एक अन्य मजदूर बुलाकी दास ने कहा कि कोरोना के खौफ में भी रोजी-रोटी के लिए परदेस जाना उनकी मजबूरी है. गांव में रह कर क्या करेंगे. पेट कैसे चलेगा. बाहर जाकर कमाएंगे, तभी गुजारा होगा क्योंकि यहां तो बस पांच किलो चावल और पांच किलो गेहूं सरकार से मिला है.

जमींदार कर रहे व्यवस्था
वहीं, कुरुक्षेत्र, हरियाणा से आए ड्राइवर ने कहा कि वे इन मजदूरों को खेतों में काम करने के लिए ले जा रहे है. वहां के जमींदारों ने इन्हें गाड़ी भेज कर खुद किराया देकर बुलाया है. रास्ते में इनके भोजन का इंतजाम भी है. वहां जाकर इन्हें धानरोपनी करनी है.

दरभंगा : बिहार में पलायन की समस्या को रोकने के लिए सरकार तमाम दावे कर रही है. लेकिन यह रुकता नजर नहीं आ रहा है. कुछ रोज पहले प्रदेश वापस लौटे मजदूर एक बार फिर काम की तलाश में अन्य राज्यों का रुख कर रहे हैं.

जहां एक ओर कोरोना वायरस के एक दिन में पहले की अपेक्षा दोगुने मामले मिलने शुरू हो गए हैं. तो वहीं दूसरी ओर मजदूर भी दोगुने डर के साथ पलायन कर रहे हैं. दरभंगा में मजदूर पंजाब, हरियाणा और दिल्ली वापस जा रहे हैं. इन प्रदेशों के जमींदार उन्हें धान रोपनी के लिए गाड़ियां भेज कर बिना भाड़ा चुकाए वापस बुला रहे हैं. ऐसी ही एक बस हरियाणा के कुरुक्षेत्र से दरभंगा जिले के बेनीपुर पहुंचीऔर आसपास के गांवों से मजदूरों को धानरोपनी के लिए ले गई.

ईटीवी भारत की रिपोर्ट

दरभंगा की कहानी विदेशों तक
बिहार में पलायन की सदियों पुरानी अंतहीन गाथा है. अभी हाल में जब कोरोना की वजह से लॉकडाउन हुआ, तो लाखों की संख्या में मजदूर ट्रेनों, रिक्शों-ठेलों, साइकिल और यहां तक कि पैदल चल कर सैकड़ों किमी दूर से बिहार के जिलों में पहुंचे. पलायन के इस दर्द की कहानी दरभंगा की उस 13 साल की ज्योति के बहाने अमेरिका तक पहुंची थी, जिसने अपने बीमार पिता को साइकिल पर बिठा कर गुरुग्राम से दरभंगा ला दिया था. इस कहानी को अमेरिकी राष्ट्रपति डोनाल्ड ट्रंप की बेटी इवांका ट्रंप ने भी ट्विटर के माध्यम से लोगों को बताया था.

धान रोपनी के लिए परदेस का रुख
जब मजदूर वापस लौट रहे थे, तो बिहार सरकार ने दावा किया था कि मजदूरों को उनके गांव, घर में रोजगार दिया जाएगा. पलायन को रोका जाएगा और उनकी मेहनत व प्रतिभा का उपयोग बिहार को संवारने में किया जाएगा. लेकिन अभी एक-डेढ़ महीना भी नहीं बीता और मजदूर धान रोपनी के लिए वापस परदेस जाने लगे हैं. वह भी ऐसे समय में जब बिहार में उनके गांवों में भी धानरोपनी के लिए मजदूरों का टोटा होने वाला है.

मजबूरी के लिए फिर दूरी
स्थानीय मजदूर रामलाल ने कहा कि वे मजदूरों के सरदार के मार्फत हरियाणा जा रहे हैं और वहां धानरोपनी करेंगे. इससे चार पैसे कमाएंगे. जब उनसे पूछा गया कि धानरोपनी तो यहां भी हो सकती है तो उन्होंने कहा कि यहां तो महज सौ रुपये मिलेंगे. उससे 6 लोगों का परिवार कैसे चलेगा. गांव में दूसरा कोई रोजगार नहीं है. सरकार की ओर से भी कोई मदद नहीं मिल रही है. ऐसे में उनके पास परदेस जाने के अलावा कोई दूसरा चारा नहीं है.

एक अन्य मजदूर बुलाकी दास ने कहा कि कोरोना के खौफ में भी रोजी-रोटी के लिए परदेस जाना उनकी मजबूरी है. गांव में रह कर क्या करेंगे. पेट कैसे चलेगा. बाहर जाकर कमाएंगे, तभी गुजारा होगा क्योंकि यहां तो बस पांच किलो चावल और पांच किलो गेहूं सरकार से मिला है.

जमींदार कर रहे व्यवस्था
वहीं, कुरुक्षेत्र, हरियाणा से आए ड्राइवर ने कहा कि वे इन मजदूरों को खेतों में काम करने के लिए ले जा रहे है. वहां के जमींदारों ने इन्हें गाड़ी भेज कर खुद किराया देकर बुलाया है. रास्ते में इनके भोजन का इंतजाम भी है. वहां जाकर इन्हें धानरोपनी करनी है.

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