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लिट्टे पर प्रतिबंध : सरकार ने फैसले के लिए न्यायाधिकरण का गठन किया - uapa

पूर्व प्रधानमंत्री राजीव गांधी की हत्या में संलिप्त रहे लिट्टे पर प्रतिबंध के संबंध में अहम फैसला लिया जा सकता है. इसके लिए केंद्र सरकार ने एक न्यायाधिकरण गठित किया है. जानें क्या है पूरा मामला

गृह मंत्री राजनाथ सिंह
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Published : May 27, 2019, 10:30 PM IST

Updated : May 28, 2019, 12:10 AM IST

नई दिल्ली: केंद्र ने लिबरेशन टाइगर्स ऑफ तमिल ईलम (लिट्टे) पर प्रतिबंध जारी रखने या हटाने के बारे में निर्णय करने के लिए न्यायाधिकरण का गठन किया है. सोमवार को इस संबंध में सूचना जारी की गई.

गैर-कानूनी गतिविधियां (रोकथाम) अधिनियम (यूएपीए) के तहत इन न्यायाधिकरणों का गठन किया जाता है. इसके जरिए प्रतिबंधित संगठनों को उनका पक्ष रखने का मौका दिया जाता है.

इससे करीब 15 दिन पहले ही सरकार ने पूर्व प्रधानमंत्री राजीव गांधी की हत्या के लिए जिम्मेदार इस आतंकी समूह पर प्रतिबंध को पांच साल तक के लिए बढ़ा दिया था.

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लिट्टे पर प्रतिबंध के लिए सरकार ने किया न्यायाधिकरण का गठन

लिट्टे पर प्रतिबंध की अवधि को बढ़ाते हुए गृह मंत्रालय ने कहा था कि समूह की लगातार जारी हिंसक और विध्वंसकारी गतिविधियां भारत की एकता और अखंडता के हिसाब से प्रतिकूल हैं. साथ ही इसका भारत-विरोधी रवैया भारतीय नागरिकों की सुरक्षा के लिए खतरा बना हुआ है.

श्रीलंका में भी लिट्टे ने कई आतंकी घटनाओं को अंजाम दिया था. लिट्टे की सबसे बड़ी साल 2006 की घटना को दिगमपटाया नरसंहार के नाम से जाना जाता है.

पढ़ेंः बांग्लादेश ने साझा की जानकारी, WB में हो सकता है आतंकी हमला, HM का अलर्ट

आपको बता दें, लिट्टे एक अलगाववादी संगठन है, जो औपचारिक रूप से उत्तरी श्रीलंका में सक्रिय है.

मई 1976 में स्थापित यह एक हिंसक पृथकतावादी अभियान शुरू कर के उत्तर और पूर्वी श्रीलंका में एक स्वतंत्र तमिल राज्य की स्थापना करना चाहते थे.

भारत के पूर्व पीएम राजीव गांधी की हत्या के पीछे भी लिट्टे का हाथ था.

भारत ने लिबरेशन टाइगर्स ऑफ तमिल ईलम (लिट्टे) पर गैरकानूनी गतिविधियों संबंधी अधिनियम के तहत 14 मई 1992 को प्रतिबंध लगा दिया था. यूरोपीय संघ, कनाडा और अमेरिका में भी इस संगठन पर प्रतिबंध था.

गौरतलब है कि श्रीलंका सरकार के विरुद्ध लिट्टे के संघर्ष के दौरान शांति बहाली के लिए द्वीपीय देश गई भारतीय सेना को वहां बल प्रयोग करना पड़ा था.

लिट्टे को गैरकानूनी एसोसिएशन के रूप में घोषित किया जाना चाहिए. और इसी मुद्दे पर केंद्र सरकार की राय है कि लिट्टे के जारी रहने के कारण हिंसक और विघटनकारी गतिविधियां भारत की अखंडता और संप्रभुता के लिए खतरा बन सकती हैं.

साथ ही यह भारतीय नागरिकों की सुरक्षा के लिए एक गंभीर खतरा बना हुआ है.

नई दिल्ली: केंद्र ने लिबरेशन टाइगर्स ऑफ तमिल ईलम (लिट्टे) पर प्रतिबंध जारी रखने या हटाने के बारे में निर्णय करने के लिए न्यायाधिकरण का गठन किया है. सोमवार को इस संबंध में सूचना जारी की गई.

गैर-कानूनी गतिविधियां (रोकथाम) अधिनियम (यूएपीए) के तहत इन न्यायाधिकरणों का गठन किया जाता है. इसके जरिए प्रतिबंधित संगठनों को उनका पक्ष रखने का मौका दिया जाता है.

इससे करीब 15 दिन पहले ही सरकार ने पूर्व प्रधानमंत्री राजीव गांधी की हत्या के लिए जिम्मेदार इस आतंकी समूह पर प्रतिबंध को पांच साल तक के लिए बढ़ा दिया था.

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लिट्टे पर प्रतिबंध के लिए सरकार ने किया न्यायाधिकरण का गठन

लिट्टे पर प्रतिबंध की अवधि को बढ़ाते हुए गृह मंत्रालय ने कहा था कि समूह की लगातार जारी हिंसक और विध्वंसकारी गतिविधियां भारत की एकता और अखंडता के हिसाब से प्रतिकूल हैं. साथ ही इसका भारत-विरोधी रवैया भारतीय नागरिकों की सुरक्षा के लिए खतरा बना हुआ है.

श्रीलंका में भी लिट्टे ने कई आतंकी घटनाओं को अंजाम दिया था. लिट्टे की सबसे बड़ी साल 2006 की घटना को दिगमपटाया नरसंहार के नाम से जाना जाता है.

पढ़ेंः बांग्लादेश ने साझा की जानकारी, WB में हो सकता है आतंकी हमला, HM का अलर्ट

आपको बता दें, लिट्टे एक अलगाववादी संगठन है, जो औपचारिक रूप से उत्तरी श्रीलंका में सक्रिय है.

मई 1976 में स्थापित यह एक हिंसक पृथकतावादी अभियान शुरू कर के उत्तर और पूर्वी श्रीलंका में एक स्वतंत्र तमिल राज्य की स्थापना करना चाहते थे.

भारत के पूर्व पीएम राजीव गांधी की हत्या के पीछे भी लिट्टे का हाथ था.

भारत ने लिबरेशन टाइगर्स ऑफ तमिल ईलम (लिट्टे) पर गैरकानूनी गतिविधियों संबंधी अधिनियम के तहत 14 मई 1992 को प्रतिबंध लगा दिया था. यूरोपीय संघ, कनाडा और अमेरिका में भी इस संगठन पर प्रतिबंध था.

गौरतलब है कि श्रीलंका सरकार के विरुद्ध लिट्टे के संघर्ष के दौरान शांति बहाली के लिए द्वीपीय देश गई भारतीय सेना को वहां बल प्रयोग करना पड़ा था.

लिट्टे को गैरकानूनी एसोसिएशन के रूप में घोषित किया जाना चाहिए. और इसी मुद्दे पर केंद्र सरकार की राय है कि लिट्टे के जारी रहने के कारण हिंसक और विघटनकारी गतिविधियां भारत की अखंडता और संप्रभुता के लिए खतरा बन सकती हैं.

साथ ही यह भारतीय नागरिकों की सुरक्षा के लिए एक गंभीर खतरा बना हुआ है.

Intro:New Delhi: Following an extension of ban on the Liberation Tigers for Tamil Eelam (LTTE) for five more years, the Ministry of Home Affairs on Monday, constituted a tribunal Justice Sangita Dhingra Sehgal to adjudicate whether or not there is sufficient cause for declaring LTTE as an unlawful association.

The development comes day after the Centre cited "violent and disruptive activities of LTTE" as the reason behind its step to extend the ban on the militant outfit. The official statement went on to add that the outfit's activities are prejudicial to the integrity and sovereignty of the country.


Body:Earlier, in 2014 as well the Delhi High Court tribunal was set up to review whether the ban on LTTE should be renewed for another five years.

On November 20, 2014, the tribunal headed by Justice G Pittal, upheld the Home Ministry's notification to declare the LTTE as an "unlawful organisation" for the next five years.


Conclusion:It is to be noted that even after its military defeat in May 2009 in Sri Lanka, the LTTE did not abandon its aim to establish 'Eelam', a separate land for Tamils, and had been clandestinely working towards the cause by undertaking fund-raising and propaganda activities.
Last Updated : May 28, 2019, 12:10 AM IST
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