एक समय में जब ज्यादातर पोषण सर्वे (एनएफएचएस-4, सीएनएनएस आदि) भारत पर बढ़ते पोषण की कमी के बोझ की तरफ इशारा कर रहे हैं और मोटापा भी एक बड़ी समस्या बनता जा रहा है, ऐसे में, ब्राजील के राष्ट्रपति जेयर बोल्सोनारो को 71वें गणतंत्र दिवस पर विशिष्ट अतिथि की तरह बुलाना सराहनीय कदम था. पोषण समुदाय इस कदम से उत्साहित था, क्योंकि ब्राजील ने अपने यहाँ कुपोषण की दर को चार दशकों में कारगर तरह से 55%-6% तक ला दिया है. इसके साथ साथ बच्चों में विकास की कम को कम करने में भी ब्राजील कामयाब रहा है. ब्राजील ने यह कैसे किया? ब्राज़ील ने पहले बच्चों में अवरुद्ध विकास के कारणों की पहचान की. इन कारणों में, अच्छे खाने तक पहुँच, बच्चों और महिलाओं के लिये अच्छी सुविधाओं की कमी, नाकाफी स्वास्थ्य सेवाएँ, और सेहतमंद वातावरण का न होना प्रमुख थे. क्या यह कुछ याद दिलाते हैं? जी हाँ- काफी हद तक भारत में यह हालात मौजूद हैं. अन्य देशों से समाधान अपनाना और अपने यहाँ सीधे लागू करना पूरी तरह सही नहीं होगा. सीधे नकल करना शायद सही समाधान नहीं होगा, लेकिन, सही तरह से शोध कर इन्हें लागू करना शायद काफी मददगार हो.
हमें क्या जरूरत है. कुछ नया नहीं- केंद्र सरकार के 'कुपोषण मुक्त भारत-2022' के लिये और ताक़त और सहायता. मैं, कुपोषण के अलग अलग किस्मों को खत्म करने के लिये ई-एफ-एफ-ई-सी-टी (इफेक्ट) कार्यक्रम पेश करना चाह रही हूँ.
क. एविडेंस (ई) – जमीन पर एक्शन के लिये, डाटा इकठ्ठा करने के ठोस और कारगर तरीकों के इस्तेमाल करने की जरूरत है. सहीं निगरानी और मुल्यांकन भी इस कार्यक्रम के असर को सही तरह से बढ़ाने में कारगर साबित होंगे.
ख. खाद्य प्रणाली (एफ) – यह सेहतमंद आबादी के लिये सबसे जरूरी कड़ी है. मौजूदा खाद्य प्रणाली फैट, शुगर और नमक की अधिक मात्रा वाले खाने को बढ़ावा दे रही है. इसके कारण घर में बने खाने, जो ताजा होता है, प्रोटीन और अन्य तत्वों से भरपूर होता है, उनके इस्तेमाल में कमी आ गई है. हमारे राष्ट्रीय पोषण कार्यक्रम अनाज के इस्तेमाल पर जोर देते हैं, लेकिन इसके साथ ही घरेलू पारंपरिक खाने को बढ़ावा देने से न केवल अच्छा खाना लोगों तक पहुँचेगा बल्कि पारंपरिक भारतीय खाने को भी बढ़ावा मिलेगा.
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ग. वित्तीय साधन (एफ) – बिना पैसे के कुछ नही होता है. स्वास्थ्य और पोषण योजनाओं को लगातार आर्थिक सहायता की जरूरत है, साथ ही आर्थिक मदद से लोगों को स्वस्थ खाने के लिये प्रोत्साहित करना भी कारगर साबित होगा. गरीबी उन्मूलन, लिंग और आय में समानता को जन लुभावने कार्यक्रमों से हासिल करना जरूरी है. सरकार की तरफ़ से कदम उठाये जा रहे हैं, लेकिन आय के बेहतर बंटवारे, और बेहतर खाने और पोषण तक पहुँच बढ़ाने से गरीब तपके के लोगों को काफी मदद मिलेगी. भ्रष्टाचार और जवाबदेही की कमी के कारण लाभार्थियो को होने वाले नुकसान को तुरंत चिन्हित कर रोकने की जरूरत है.
घ. स्तनपान और आईवाईसीएफ तरीके (ई)- जहां एक तरफ़ सरकार की ज़िम्मेदारी से काफ उम्मीदें हैं, वहीं, नवजात शिशुओं और उनके पोषण के लिये हमारी ज़िम्मेदारी भी अहम है. हमारी आदतों को शक्ल देने में कई बाहरी कारणों का भी हाथ होता है (परिवार के तौर तरीके, सामाजिक-आर्थिक स्थिति, कार्य क्षेत्र की नीतियाँ आदि), लेकिन हमारे 2 साल से कम के बच्चों में से 2% के पूरी तरह पोषण युक्त भोजन से दूर रहने के पीछे शायद ही कोई बहाना काम आये. कुपोषण नवजात बच्चों के शुरुआती दिनों में नहीं दिखता है और इसलिये कई दाई सही मात्रा में पोषण युक्त खाना नहीं दे पाती हैं. हमारे समाज में पूर्ण रूप से स्तनपान काफी पहले बंद कर दिया जाता है. इंन्फेक्शन को रोकने के लिये, साफ़ तरह से खाना बनाना, टीकाकरण और साफ सफाई काफी जरूरी है. हम सब जानते हैं कि शुरू के 1000 दिनों में सेहत को पहुँचे नुक़सान (खासतौर पर पूर्ण विकास और दिमाग के विकास) को पूरी तरह से ठीक नहीं किया जा सकता है. इस क्षेत्र में परेशानी का एक और कारण है, भुखमरी और कम पोषण को कम करने के लिये छोटे उपाय.बच्चों को कार्बोहायडेट से भरपूर खाना देकर ( घर ले जाने वाला राशन, आंगनवाड़ी कार्यक्रम में मिलने वाला खाना) हम उन्हें 'सैम' से तो दूर कर रहे हैं, लेकिन निःसंदेह बच्चों में नॉन क्मयूनिकेबल डिसीसेज (एनसीडी) का खतरा पैदा कर रहे हैं. इस बात का खास ध्यान रखा जाना चाहिये कि बच्चों को कुपोषण के एक खतरे से बचा कर दूसरे खतरे की तरफ न धकेला जाये. कुछ राज्यों में अंडे, सब्जी और फलों के जरिये स्थिति बेहतर की जा रही है, लेकिन अभी इसमें काफी कुछ करने की जरूरत है.
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ड. परिवर्तन और क्षमता निर्माण (सी) - पोषण पर असर डालने वाले अन्य पहलुओं, जैसे कि पानी, साफ सफाई, रोजगार, शिक्षा, प्रचार, कृषि आदि के साथ समन्वय बिठाना बहुत जरूरी है. अलग अलग क्षेत्रों के बीच तालमेल बिठाने के लिहाज से पोषण एक अहम भूमिका निभा सकता है. इसमें जवाबदेही, साझेदारी, प्लानिंग, आदि काफी मददगार साबित हो सकते हैं. क्षमताओं की कमी की पूरती के लिये, रिक्त पदों को भरना, भर्तियों में देरी को रोकना, समय पर पदोन्नति, प्रशिक्षण आदि अच्छी शुरुआत हो सकते हैं. प्रशिक्षित और प्रेरिरत कर्मचारी भी इन कमियों को कम करने में अहम भूमिका निभा सकते है. शोध बताते हैं कि स्कूल से पहले की शिक्षा, कई तरह के कागजी कारणों के कारण पूरी तरह से लागू नहीं हो पा रही है.
च. बेहतर पोषण के लिये, तथ्यों को एक्शन में बदलने के लिये तकनीक (टी) – पोषण के क्षेत्र में सरकारी और एकल स्तर पर तेजी लाने के लिये तकनीक का इस्तेमाल एक बड़ी भूमिका निभा सकता है. एक तरफ तकनीक लोगों को बेहतर और समझदार चुनाव करने में मदद करती है, वहीं, सोशल मीडिया की मदद से जन आंदोलन में जान डालने के लिये नीतिकारों तक पहुँच को आसान करती है. यह जरूरी है कि हम उच्च श्रेणी की सकारात्मक तकनीक का इस्तेमाल स्वाभाव में बदलाव लाने के लिये करें.
अगर प्रयास सही दिशा में हैं, तो असर देर सबेर दिखाई देगा. भारत उन चुनिंदा देशों में से है जो अपने यहाँ की बड़ी आबादी के लिये अलग अलग तरह के पोषण संबंधी कार्यक्रमों के बारे में गर्व से कह सकता है. हालाँकि, इन कार्यक्रमों में और जवाबदेही, और मदद, बेहतर समन्वय वो मदद साबित हो सकती है, जिसकी देश में पोषण से जुड़े कार्यक्रमों को सबसे ज्यादा जरूरत है.
लेखक : श्वेता खंडेलवाल (प्रमुख, न्यूट्रीशियन रिसर्च एंड एडिशनल प्रोफेसर, पब्लिक हेल्थ फाउंडेशन ऑफ इंडिया)