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शरीर पर चोट का निशान न होना यौन दुर्व्यवहार का प्रमाण नहीं : मद्रास हाई कोर्ट

मद्रास उच्च न्यायालय ने यौन उत्पीड़न के एक मामले की सुनवाई के दौरान कहा कि अगर पीड़ित के शरीर पर चोट के निशान नहीं मिलें हैं तो इस आधार पर यह नहीं कहा जा सकता कि यौन उत्पीड़न नहीं हुआ है.

फाइल फोटो
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Published : Oct 19, 2019, 9:24 PM IST

चेन्नई : मद्रास उच्च न्यायालय ने कहा है कि कथित रूप से यौन दुर्व्यवहार के पीड़ित किसी नाबालिग के शरीर पर चोट के निशान नहीं होने के आधार पर ये नहीं कहा जा सकता कि कोई अपराध नहीं हुआ है.

उच्च न्यायालय ने निचली अदालत के एक आदेश को बरकरार रखते हुए यह बात कही, जिसमें एक व्यक्ति को भादवि के तहत 10 साल और यौन अपराधों से बच्चों के संरक्षण अधिनियम, 2012 (पोक्सो कानून, 2012) के तहत सात साल के सश्रम कारावास की सजा सुनाई गई थी.

न्यायाधीश एस. वैद्यनाथन ने आरोपी के वकील के इस तर्क को खारिज कर दिया कि शारीरिक चोट नहीं लगी, जिसकी वजह से ये नहीं कहा जा सकता है कि पीड़ित का यौन उत्पीड़न हुआ.

न्यायाधीश ने कहा, 'यह आरोपियों के वकील द्वारा दिया गया एक बेहद अपमानजनक तर्क है, क्योंकि नाबालिग लड़की को यह भी नहीं पता था कि उसे क्यों खींचा जा रहा है और क्यों छुआ गया.'

उन्होंने कहा, 'इसलिए, यह अनुमान लगाया जा सकता है कि नाबालिग लड़की कोई विरोध नहीं कर सकती है और किसी भी तरह के विरोध के अभाव में स्वाभाविक रूप से शरीर पर चोट लगने की कोई गुंजाइश नहीं है.'

पढ़ें - हिन्दू समाज पार्टी के नेता कमलेश तिवारी की गोली मारकर हत्या

न्यायाधीश ने कहा कि सिर्फ शारीरिक चोट के अभाव में यह नहीं कहा जा सकता कि कोई अपराध हुआ ही नहीं, खासतौर से तब जबकि यह पता चला हो कि लड़की के कपड़ों पर वीर्य पाया गया है.

आपको बता दें कि पीड़ित लड़की की मां ने 27 मई 2016 को शिकायत दर्ज कराई थी कि आरोपी प्रकाश ने 12 साल की लड़की को जबरन अपने घर ले गया और उसके साथ यौन दुर्व्यवहार किया.

निचली अदालत ने प्रकाश को दोषी ठहराया और आईपीसी के तहत 10 साल और पोक्सो कानून के तहत सात साल के सश्रम कारावास की सजा सुनाई.

चेन्नई : मद्रास उच्च न्यायालय ने कहा है कि कथित रूप से यौन दुर्व्यवहार के पीड़ित किसी नाबालिग के शरीर पर चोट के निशान नहीं होने के आधार पर ये नहीं कहा जा सकता कि कोई अपराध नहीं हुआ है.

उच्च न्यायालय ने निचली अदालत के एक आदेश को बरकरार रखते हुए यह बात कही, जिसमें एक व्यक्ति को भादवि के तहत 10 साल और यौन अपराधों से बच्चों के संरक्षण अधिनियम, 2012 (पोक्सो कानून, 2012) के तहत सात साल के सश्रम कारावास की सजा सुनाई गई थी.

न्यायाधीश एस. वैद्यनाथन ने आरोपी के वकील के इस तर्क को खारिज कर दिया कि शारीरिक चोट नहीं लगी, जिसकी वजह से ये नहीं कहा जा सकता है कि पीड़ित का यौन उत्पीड़न हुआ.

न्यायाधीश ने कहा, 'यह आरोपियों के वकील द्वारा दिया गया एक बेहद अपमानजनक तर्क है, क्योंकि नाबालिग लड़की को यह भी नहीं पता था कि उसे क्यों खींचा जा रहा है और क्यों छुआ गया.'

उन्होंने कहा, 'इसलिए, यह अनुमान लगाया जा सकता है कि नाबालिग लड़की कोई विरोध नहीं कर सकती है और किसी भी तरह के विरोध के अभाव में स्वाभाविक रूप से शरीर पर चोट लगने की कोई गुंजाइश नहीं है.'

पढ़ें - हिन्दू समाज पार्टी के नेता कमलेश तिवारी की गोली मारकर हत्या

न्यायाधीश ने कहा कि सिर्फ शारीरिक चोट के अभाव में यह नहीं कहा जा सकता कि कोई अपराध हुआ ही नहीं, खासतौर से तब जबकि यह पता चला हो कि लड़की के कपड़ों पर वीर्य पाया गया है.

आपको बता दें कि पीड़ित लड़की की मां ने 27 मई 2016 को शिकायत दर्ज कराई थी कि आरोपी प्रकाश ने 12 साल की लड़की को जबरन अपने घर ले गया और उसके साथ यौन दुर्व्यवहार किया.

निचली अदालत ने प्रकाश को दोषी ठहराया और आईपीसी के तहत 10 साल और पोक्सो कानून के तहत सात साल के सश्रम कारावास की सजा सुनाई.

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पीटीआई-भाषा संवाददाता 20:7 HRS IST




             
  • शरीर पर चोट के निशान नहीं होने के चलते यह नहीं कहा जा सकता कि यौन दुर्व्यवहार नहीं हुआ : न्यायालय



चेन्नई, 19 अक्टूबर (भाषा) मद्रास उच्च न्यायालय ने कहा है कि कथित रूप से यौन दुर्व्यवहार के पीड़ित किसी नाबालिग के शरीर पर चोट के निशान नहीं होने के आधार पर ये नहीं कहा जा सकता है कि कोई अपराध नहीं हुआ है।



न्यायालय ने निचली अदालत के एक आदेश को बरकरार रखते हुए यह बात कही, जिसमें एक व्यक्ति को भादवि के तहत 10 साल के सश्रम कारावास और यौन अपराधों से बच्चों के संरक्षण अधिनियम, 2012 (पोक्सो कानून, 2012) के तहत सात साल के सश्रम कारावास की सजा सुनाई गई थी।



न्यायाधीश एस वैद्यनाथन ने आरोपी के वकील के इस तर्क को खारिज कर दिया कि किसी भी शारीरिक हिंसा की स्थिति में जो व्यक्ति हिंसा का शिकार हुआ है, उसे शारीरिक चोट लगी होगी, जिसके अभाव में ये नहीं कहा जा सकता है कि पीड़ित का यौन उत्पीड़न हुआ।



न्यायाधीश ने कहा, ‘‘यह आरोपियों के वकील द्वारा दिया गया एक बेहद अपमानजनक तर्क है, क्योंकि नाबालिग लड़की को यह भी नहीं पता था कि उसे क्यों खींचा जा रहा है और क्यों छुआ गया।’’



उन्होंने, ‘‘इसलिए, यह अनुमान लगाया जा सकता है कि नाबालिग लड़की कोई विरोध नहीं कर सकती है और किसी भी तरह के विरोध के अभाव में स्वाभाविक रूप से शरीर पर चोट लगने की कोई गुंजाइश नहीं है।’’



न्यायाधीश ने कहा कि सिर्फ शारीरिक चोट के अभाव में यह नहीं कहा जा सकता है कि कोई अपराध हुआ ही नहीं, खासतौर से तब जबकि यह पता चला हो कि लड़की के कपड़ों पर वीर्य पाया गया है।



पीड़ित लड़की की मां ने 27 मई 2016 को शिकायत दर्ज कराई थी कि आरोपी प्रकाश ने 12 साल की लड़की को जबरन अपने घर ले गया और उसके साथ यौन दुर्व्यवहार किया।



निचली अदालत ने प्रकाश को दोषी ठहराया और आईपीसी के तहत 10 साल के सश्रम कारावास और पोक्सो कानून के तहत सात साल के सश्रम कारावास की सजा सुनाई।


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