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कोरोना : दुनिया भर के साढ़े पांच करोड़ से ज्यादा मजदूरों के रोजगार पर संकट

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Published : Jun 20, 2020, 8:03 PM IST

अंतरराष्ट्रीय श्रम संगठन ने चेतावनी दी है कि दुनिया भर में साढ़े पांच करोड़ से अधिक श्रमिकों को कोविड-19 लॉकडाउन के कारण अपनी नौकरी और आजीविका खोने का खतरा है. चूंकि अधिकांश घरेलू श्रमिक अनौपचारिक क्षेत्र में हैं, इसलिए उनके पास रोजी-रोटी कमाने का दूसरा तरीका नहीं है.

impact of corona
कोरोना वायरस का असर

जिनेवा : अंतरराष्ट्रीय श्रम संगठन (आईएलओ) के नए अनुमानों के अनुसार, दुनिया भर के लगभग तीन-चौथाई से अधिक घरेलू कामगारों पर लॉकडाउन के कारण अपनी नौकरी खोने का खतरा मंडरा रहा है.

जून की शुरुआत में किए गए एक सर्वे से पता चला है कि सबसे अधिक प्रभावित क्षेत्र दक्षिण पूर्व एशिया और प्रशांत क्षेत्र है, जहां 76 प्रतिशत श्रमिक हैं. वहीं अमेरिका में 74 प्रतिशत, अफ्रीका में 72 प्रतिशत और यूरोप में 45 प्रतिशत श्रमिक हैं.

कोरोना वायरस से औपचारिक और अनौपचारिक रोजगार प्रभावित हुआ है. वहीं सबसे ज्यादा असर अनौपचारिक रोजगार पर पड़ा है.अनौपचारिक क्षेत्र में काम करने वाले लगभग 76 प्रतिशत श्रमिकों की नौकरी खतरे में है. लॉकडाउन का सख्ती से पालन करने वाले देशों में घरेलू श्रमिक, जो औपचारिक रूप से या अनौपचारिक रूप से काम कर रहे थे, काम पर जाने में असमर्थ हैं.

औपचारिक रूप से नियोजित कुछ लोगों के पास बेरोजगारी बीमा है लेकिन अनौपचारिक रोजगार में श्रमिकों के लिए घर में रहने का मतलब है कि बिना किसी सुरक्षा या बीमा के अपनी आजीविका को खोना, जिससे उनके लिए अपना और अपने परिवार का पेट पालना मुश्किल हो रहा है.

कोरोना महामारी ने पहले से मौजूद मुद्दों और परेशनियों को बढ़ा दिया है. केवल 10 प्रतिशत श्रमिकों के पास सामाजिक सुरक्षा है, यानि बचे हुए 90% श्रमिकों को कोई सवेतनिक, स्वास्थ्य गारंटी या बेरोजगारी बीमा नहीं दिया जाता है. कई घरेलू कामगारों को औसतन मजदूरी का 25 प्रतिशत तक मिलता है, जिससे उनके पास कुछ नहीं बचता.

वल्नेरबल वर्कर्स के आईएलओ तकनीकी अधिकारी क्लेयर हॉब्डन ने कहा, 'कोविड-19 संकट ने अनौपचारिक घरेलू श्रमिकों की विशेष भेद्यता को उजागर किया है, जिसमें यह सुनिश्चित करने की तत्काल आवश्यकता पर बल दिया गया है कि वे श्रम और सामाजिक सुरक्षा में प्रभावी रूप से शामिल हैं.'

पढ़ें :- वापस लौट आए प्रवासी श्रमिकों को सरकार देगी चार महीने का रोजगार

कुछ क्षेत्रों में, घरेलू श्रमिक मुख्य रूप से प्रवासी होते हैं जो अपना परिवार चलाने के लिए दूसरे राज्यों में कमाने जाते हैं. मजदूरी का भुगतान नहीं होने और प्रेषण सेवाओं को बंद करने से प्रवासी मजदूरों के परिवारों पर गरीबी और भुखमरी का खतरा मंडरा रहा है.

कुछ मामलों में, नियोक्ताओं ने अपने स्वयं के वित्तीय परिस्थितियों या घरेलू श्रमिकों को अपने वेतन की आवश्यकता नहीं है, क्योंकि वे बाहर नहीं जा सकते हैं, यह सोचकर श्रमिकों को भुगतान नहीं दिया है. वहीं कुछ देशों में, जहां प्रवासी मजदूरों को अपने नियोक्ताओं के साथ रहना पड़ता है, उन्हें नियोक्ताओं ने वायरस के संक्रमण के डर से सड़कों पर छोड़ दिया है.

पढ़ें :- रोजगार खोने के भय से महानगरों की ओर फिर लौट रहे श्रमिक : सर्वे

घरेलू कामगारों के स्वास्थ्य और आजीविका सुनिश्चित करने के लिए आईएलओ घरेलू कामगार संगठनों और नियोक्ता संगठनों के साथ काम कर रहा है. यह उनके सामने आने वाले जोखिमों के स्तर का तेजी से आकलन कर रहा है, जिससे सरकार ऐसी नीतियों को तैयार कर सके, जो इन मजदूरों को कम से कम बुनियादी सामाजिक सुरक्षा की गारंटी दे सके, जिसमें आवश्यक स्वास्थ्य देखभाल और बुनियादी आय सुरक्षा शामिल है.

जिनेवा : अंतरराष्ट्रीय श्रम संगठन (आईएलओ) के नए अनुमानों के अनुसार, दुनिया भर के लगभग तीन-चौथाई से अधिक घरेलू कामगारों पर लॉकडाउन के कारण अपनी नौकरी खोने का खतरा मंडरा रहा है.

जून की शुरुआत में किए गए एक सर्वे से पता चला है कि सबसे अधिक प्रभावित क्षेत्र दक्षिण पूर्व एशिया और प्रशांत क्षेत्र है, जहां 76 प्रतिशत श्रमिक हैं. वहीं अमेरिका में 74 प्रतिशत, अफ्रीका में 72 प्रतिशत और यूरोप में 45 प्रतिशत श्रमिक हैं.

कोरोना वायरस से औपचारिक और अनौपचारिक रोजगार प्रभावित हुआ है. वहीं सबसे ज्यादा असर अनौपचारिक रोजगार पर पड़ा है.अनौपचारिक क्षेत्र में काम करने वाले लगभग 76 प्रतिशत श्रमिकों की नौकरी खतरे में है. लॉकडाउन का सख्ती से पालन करने वाले देशों में घरेलू श्रमिक, जो औपचारिक रूप से या अनौपचारिक रूप से काम कर रहे थे, काम पर जाने में असमर्थ हैं.

औपचारिक रूप से नियोजित कुछ लोगों के पास बेरोजगारी बीमा है लेकिन अनौपचारिक रोजगार में श्रमिकों के लिए घर में रहने का मतलब है कि बिना किसी सुरक्षा या बीमा के अपनी आजीविका को खोना, जिससे उनके लिए अपना और अपने परिवार का पेट पालना मुश्किल हो रहा है.

कोरोना महामारी ने पहले से मौजूद मुद्दों और परेशनियों को बढ़ा दिया है. केवल 10 प्रतिशत श्रमिकों के पास सामाजिक सुरक्षा है, यानि बचे हुए 90% श्रमिकों को कोई सवेतनिक, स्वास्थ्य गारंटी या बेरोजगारी बीमा नहीं दिया जाता है. कई घरेलू कामगारों को औसतन मजदूरी का 25 प्रतिशत तक मिलता है, जिससे उनके पास कुछ नहीं बचता.

वल्नेरबल वर्कर्स के आईएलओ तकनीकी अधिकारी क्लेयर हॉब्डन ने कहा, 'कोविड-19 संकट ने अनौपचारिक घरेलू श्रमिकों की विशेष भेद्यता को उजागर किया है, जिसमें यह सुनिश्चित करने की तत्काल आवश्यकता पर बल दिया गया है कि वे श्रम और सामाजिक सुरक्षा में प्रभावी रूप से शामिल हैं.'

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कुछ क्षेत्रों में, घरेलू श्रमिक मुख्य रूप से प्रवासी होते हैं जो अपना परिवार चलाने के लिए दूसरे राज्यों में कमाने जाते हैं. मजदूरी का भुगतान नहीं होने और प्रेषण सेवाओं को बंद करने से प्रवासी मजदूरों के परिवारों पर गरीबी और भुखमरी का खतरा मंडरा रहा है.

कुछ मामलों में, नियोक्ताओं ने अपने स्वयं के वित्तीय परिस्थितियों या घरेलू श्रमिकों को अपने वेतन की आवश्यकता नहीं है, क्योंकि वे बाहर नहीं जा सकते हैं, यह सोचकर श्रमिकों को भुगतान नहीं दिया है. वहीं कुछ देशों में, जहां प्रवासी मजदूरों को अपने नियोक्ताओं के साथ रहना पड़ता है, उन्हें नियोक्ताओं ने वायरस के संक्रमण के डर से सड़कों पर छोड़ दिया है.

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घरेलू कामगारों के स्वास्थ्य और आजीविका सुनिश्चित करने के लिए आईएलओ घरेलू कामगार संगठनों और नियोक्ता संगठनों के साथ काम कर रहा है. यह उनके सामने आने वाले जोखिमों के स्तर का तेजी से आकलन कर रहा है, जिससे सरकार ऐसी नीतियों को तैयार कर सके, जो इन मजदूरों को कम से कम बुनियादी सामाजिक सुरक्षा की गारंटी दे सके, जिसमें आवश्यक स्वास्थ्य देखभाल और बुनियादी आय सुरक्षा शामिल है.

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