नई दिल्ली : नागरिकता संशोधन कानून (सीएए) के खिलाफ लगातार हो रहे विरोध प्रदर्शनों में सभी वाम दल एकजुट होकर सड़कों पर उतरे और अन्य विपक्षी पार्टियों से भी एक साथ आने की अपील करते रहे हैं. लेकिन ऐसा देखा गया है कि देश की कई प्रमुख विपक्षी पार्टियां सीधे तौर पर सीएए के खिलाफ मोर्चा खोलने से कन्नी काटती रही हैं.
दो प्रमुख वाम दल - भारतीय कम्युनिस्ट पार्टी (सीपीआई) और मार्क्सवादी कम्युनिस्ट पार्टी (सीपीआईएम) के नेताओं ने राष्ट्रीय राजधानी में बुधवार को एक मंच से सीएए के खिलाफ हुए विरोध प्रदर्शनों के दौरान पुलिस बर्बरता की आलोचना की और अन्य विपक्षी पार्टियों से समर्थन में एक साथ आने की अपील भी की.
लेकिन इस मंच पर भी सीपीआई, सीपीएम और राजद के राज्यसभा सांसद मनोज झा के अलावा शरद यादव ही मौजूद रहे. कहीं ना कहीं सीएए के खिलाफ एकजुट विपक्ष की मौजूदगी देखने को अब तक नहीं मिली है. ऐसे में सवाल उठते हैं कि क्या नागरिकता संशोधन कानून पर देश की सभी प्रमुख विपक्षी पार्टियां अपना रुख तय नहीं कर पाई हैं?
ईटीवी भारत ने इस विषय पर सीपीआई और सीपीएम दोनों प्रमुख वाम दलों के राष्ट्रीय महासचिवों से बातचीत की. सीपीआई के महासचिव डी.राजा ने कहा कि कुछ स्थानीय कारणों से कुछ विपक्षी पार्टियों ने जरूर नागरिकता संशोधन कानून के खिलाफ हो रहे विरोध प्रदर्शनों से दूरी बना रखी है, लेकिन एक बड़े मुद्दे को ध्यान में रखते हुए देशहित में सभी विपक्षी पार्टियों को साथ आना चाहिए.
डी. राजा ने कहा कि मोदी सरकार लगातार यह साबित करने की कोशिश कर रही है कि उसका लिया फैसला देशहित में है. लेकिन ऐसा कहकर वह सिर्फ झूठ फैलाने की कोशिश कर रही है.
वहीं सीपीआईएम के जनरल सेक्रेटरी सीताराम येचुरी का भी मानना है कि अब तक सभी विपक्षी पार्टियां एकजुट होकर पूरी शक्ति से इसका विरोध नहीं कर पाई है. लेकिन साथ ही उन्होंने उम्मीद जताई कि अन्य पार्टियां भी देर सबेर उनकी इस मुहिम में शामिल होंगी और पूरा विपक्ष एकजुट होकर सीएए के खिलाफ खड़ा होगा.
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दिल्ली में विधानसभा चुनाव होने वाले हैं, ऐसे में आम आदमी पार्टी ने भी सीएए पर अब तक चुप्पी ही साध रखी है. उत्तर प्रदेश में प्रमुख राजनीतिक पार्टी बहुजन समाज पार्टी की भी कोई कड़ी प्रतिकृया देखने को नहीं मिली है, जबकि सबसे ज्यादा हिंसक विरोध प्रदर्शन की तस्वीरें उत्तर प्रदेश से ही सामने आई थी और 20 से अधिक मौतें भी हुई थीं.