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कोनेरू हंपी- शतरंज की राजकुमारी - शतरंज में कोनेरू हंपी

कोनेरू हंपी शतरंज का वो नाम है जो, 15 साल की उम्र में, विश्व शतरंज में ग्रैंडमास्टर बनी, युवा शतरंज में तीन ट्राइमास्टर गोल्ड मेडल हासिल किये. 10 साल की उम्र में विश्व जूनियर चैंपियनशिप का खिताब हासिल किया. यह लिस्ट लंबी होती जाती है.

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कोनेरू हंपी
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Published : Jan 6, 2020, 10:32 PM IST

इन सबके साथ ही, हंपी ने अपनी कामयाबियों की सूची में नया कीर्तिमान जोड़ा है. शादी होने के बाद, और मां बनने के बाद, हंपी को शतरंज की दुनिया से करीब दो साल तक दूरी बनानी पड़ी. और अब, दो साल की दूरी के बाद, हंपी ने विश्व शतरंज में धमाकेदार वापसी करते हुए, मौजूदा चैंपियनों के साथ मुकाबला किया और एक बार फिर विश्व चैंपियन का तमग़ा हासिल किया. वो भी खेल के एक ऐसे फॉर्मेट में, जो उनके खेलने की कला से बिलकुल अलग है.

शतरंज की इस ग्रैंडमास्टर कोनेरू हंपी के बारे में और क्या कह सकते हैं?
कोनेरू हंपी, भारतीय महिला शतरंज का चेहरा है. भारतीय शतरंज की शुरुआत से जुड़ी कई कामयाबियों का सेहरा, हंपी के सर है. भारत में शतरंज को लेकर जो सफलता का दौर, विश्वनाथन आनंद ने शुरू किया, उसे हंपी ने उतनी ही कामयाबी से महिला शतरंज में दोहराया. 2002 में, हंपी ने 15 साल और 67 दिन की आयु में, जूडिथ पोल्गर का रिकॉर्ड तोड़ा.

इसके बाद हंपी ने अपने करियर के सर्वोत्तम पलों में कई और कामयाबियां हासिल की. हालांकि, इस सबके बीच, हंपी के नाम कभी भी विश्व विजेता का खिताब नहीं लग सका था. इसकी उम्मीद विश्वनाथ आनंद के साथ साथ भारतीय शतरंज के फैंस को भी थी.

शादी के बाद कांस्य और मां बनने के बाद स्वर्ण पदक
चाहे खेल कोई भी हो, एक आम धारणा है कि शादी और परिवार हो जाने के बाद, महिला खिलाड़ी का करियर नीचे की तरफ जाने लगता है. लेकिन हंपी ने इस धारणा को गलत साबित करते हुए यह सुनिश्चित किया कि शादी और मां बनने के बाद उनका खेल और धारदार हो.

2014 में पसारी अनवेश से शादी करने के बाद, हंपी ने विश्व महिला शतरंज प्रतियोगिता (क्लासिक फॉर्मेट) में कांस्य पदक हासिल किया. हालांकि, इसके अगले साल ही, मां बने के कारण हंपी को शतरंज की दुनिया से दो सालों के लिये दूरी बनानी पड़ी.

अपनी बेटी के एक साल के होने तक हंपी ने शतरंज से दूरी बनाई रखी. दो सालों के अंतराल के बाद, शतरंज की दुनिया में हंपी ने जब वापसी की तो उन्हें कई सवालों का सामना करना पड़ा. इनमें, उनके फ़ॉर्म, और खेल और उनके बीच आये फ़ासले को लेकर लोगों का संशय प्रमुख था. लेकिन हंपी ने अपने प्रदर्शन से सभी का मुंह बंद कर दिया.

बिना किसी पेशेवर कोचिंग के, केवल अपने पिता की मदद से हंपी ने कुछ ही समय में अपना फॉर्म वापस हासिल कर लिया. हंपी ने इस साल की एफआईडीई ग्रां प्री खिताब अपने नाम कर सभी को चौंका दिया. यह उनके करियर की सबसे बड़ी कामयाबी है. लोगों में बिना किसी खास उम्मीद के बावजूद हंपी ने विश्व रैपिड शतरंज प्रतियोगिता में हिस्सा लिया और श्रेष्ठ स्थान हासिल किया. और तो और मीडिया ने भी इस मुकाबले पर ज्यादा ध्यान नहीं दिया था. लेकिन हंपी ने, रैपिड टाइम कंट्रोल के तहत खेले गये इस मुकाबले के सभी मैच एक-एक कर जीते और अंत में, एक टाई ब्रेकर के जरिये खिताब पर कब्जा किया.

अपने खेल के फॉर्मेट से अलग गेम में जीत
हंपी ने विश्व शतरंज मुकाबले में एक ऐसे फॉर्मेट में जीत हासिल कर सबसे चौंका दिया, जिसमें न तो उनका पहले कभी रुझान रहा है और न ही उन्होंने पहले इसमें हिस्सा लिया है. आमतौर पर हंपी क्लासिक फॉर्मेट खेलना पसंद करती हैं, जिसमें खेल लंबे समय तक चलता है. तेज गति वाले, रैपिड फॉर्मेट में हंपी पहले कभी तैयारी से नहीं खेली हैं. इस कारण से उनके चाहने वालों को इस मुकाबले से कोई खास उम्मीद भी नहीं थी. हालांकि, हंपी ने टूर्नामेंट की अच्छी शुरुआत की, और, फाइनल में, मुकाबले की फेवरेट खिलाड़ी ली टिंगजी के हल्के खेल ने हंपी को आत्मविश्वास दिला दिया.

हंपी ने एक टाइ ब्रेकर के जरिए मैच जीतकर खिताब पर अपना कब्जा किया. इस बारे में बोलते हुए हंपी ने कहा कि, 'रैपिड फॉर्मेट मेरा पसंदीदा फॉर्मेट नहीं है. आखिरी दिन मैच की शुरुआत देखकर मुझे अपनी जीत की उम्मीद कम थी. मुझे तो खेल के टाइ ब्रेकर तक पहुंचने की उम्मीद भी नहीं थी. लेकिन एक विश्व खिताब को कड़े मुकाबले में जीतना अच्छी अनुभूति होती है. अपने रेगुलर फॉर्मेट से अलग खेल में जीतना मेरे आत्मविश्वास के लिये काफी अच्छा है.'

नाम की पीछे की कहानी
कोनेरू हंपी के पिता, कोनेरू अशोक खुद एक एथलीट हैं. उन्होंने स्कूल के स्तर पर कई खेलों में हिस्सा लिया और इसके बाद शतरंज को पेशेवर तौर पर अपना लिया. शतरंज उन्होंने राष्ट्रीय स्तर तक खेला. खेल के क्षेत्र से आने के कारण, अशोक ने अपनी बच्ची का नाम भी 'हंपी' रखा, जो अंग्रेज़ी शब्द चैंपियन का हिस्सा है. अपनी विरासत को आगे बढ़ाते हुए अशोक अपनी बेटी को भी शतरंज की दुनिया में ले आए. कोनेरू भी अपने पिता के नाम को रौशन करते हुए विश्व चैंपियन बन गई. अपने नाम को चरितार्थ करते हुए हंपी ने कई कामयाबियां अपने नाम कर ली हैं.

यह हंपी के लिये पांचवा विश्व खिताब है. इससे पहले उन्होंने, तीन विश्व यूथ गेल्ड मेडल (1997, 1998, 2000) और 2015 में विश्व टीम कांस्य मेडल जीता था. विश्व रैपिड मुकाबले में हंपी की ताजा जीत ने उन्हें, विश्व शतरंज के शिखर पर ला दिया है और इसलिए वे शतरंज की राजकुमारी हैं.

इन सबके साथ ही, हंपी ने अपनी कामयाबियों की सूची में नया कीर्तिमान जोड़ा है. शादी होने के बाद, और मां बनने के बाद, हंपी को शतरंज की दुनिया से करीब दो साल तक दूरी बनानी पड़ी. और अब, दो साल की दूरी के बाद, हंपी ने विश्व शतरंज में धमाकेदार वापसी करते हुए, मौजूदा चैंपियनों के साथ मुकाबला किया और एक बार फिर विश्व चैंपियन का तमग़ा हासिल किया. वो भी खेल के एक ऐसे फॉर्मेट में, जो उनके खेलने की कला से बिलकुल अलग है.

शतरंज की इस ग्रैंडमास्टर कोनेरू हंपी के बारे में और क्या कह सकते हैं?
कोनेरू हंपी, भारतीय महिला शतरंज का चेहरा है. भारतीय शतरंज की शुरुआत से जुड़ी कई कामयाबियों का सेहरा, हंपी के सर है. भारत में शतरंज को लेकर जो सफलता का दौर, विश्वनाथन आनंद ने शुरू किया, उसे हंपी ने उतनी ही कामयाबी से महिला शतरंज में दोहराया. 2002 में, हंपी ने 15 साल और 67 दिन की आयु में, जूडिथ पोल्गर का रिकॉर्ड तोड़ा.

इसके बाद हंपी ने अपने करियर के सर्वोत्तम पलों में कई और कामयाबियां हासिल की. हालांकि, इस सबके बीच, हंपी के नाम कभी भी विश्व विजेता का खिताब नहीं लग सका था. इसकी उम्मीद विश्वनाथ आनंद के साथ साथ भारतीय शतरंज के फैंस को भी थी.

शादी के बाद कांस्य और मां बनने के बाद स्वर्ण पदक
चाहे खेल कोई भी हो, एक आम धारणा है कि शादी और परिवार हो जाने के बाद, महिला खिलाड़ी का करियर नीचे की तरफ जाने लगता है. लेकिन हंपी ने इस धारणा को गलत साबित करते हुए यह सुनिश्चित किया कि शादी और मां बनने के बाद उनका खेल और धारदार हो.

2014 में पसारी अनवेश से शादी करने के बाद, हंपी ने विश्व महिला शतरंज प्रतियोगिता (क्लासिक फॉर्मेट) में कांस्य पदक हासिल किया. हालांकि, इसके अगले साल ही, मां बने के कारण हंपी को शतरंज की दुनिया से दो सालों के लिये दूरी बनानी पड़ी.

अपनी बेटी के एक साल के होने तक हंपी ने शतरंज से दूरी बनाई रखी. दो सालों के अंतराल के बाद, शतरंज की दुनिया में हंपी ने जब वापसी की तो उन्हें कई सवालों का सामना करना पड़ा. इनमें, उनके फ़ॉर्म, और खेल और उनके बीच आये फ़ासले को लेकर लोगों का संशय प्रमुख था. लेकिन हंपी ने अपने प्रदर्शन से सभी का मुंह बंद कर दिया.

बिना किसी पेशेवर कोचिंग के, केवल अपने पिता की मदद से हंपी ने कुछ ही समय में अपना फॉर्म वापस हासिल कर लिया. हंपी ने इस साल की एफआईडीई ग्रां प्री खिताब अपने नाम कर सभी को चौंका दिया. यह उनके करियर की सबसे बड़ी कामयाबी है. लोगों में बिना किसी खास उम्मीद के बावजूद हंपी ने विश्व रैपिड शतरंज प्रतियोगिता में हिस्सा लिया और श्रेष्ठ स्थान हासिल किया. और तो और मीडिया ने भी इस मुकाबले पर ज्यादा ध्यान नहीं दिया था. लेकिन हंपी ने, रैपिड टाइम कंट्रोल के तहत खेले गये इस मुकाबले के सभी मैच एक-एक कर जीते और अंत में, एक टाई ब्रेकर के जरिये खिताब पर कब्जा किया.

अपने खेल के फॉर्मेट से अलग गेम में जीत
हंपी ने विश्व शतरंज मुकाबले में एक ऐसे फॉर्मेट में जीत हासिल कर सबसे चौंका दिया, जिसमें न तो उनका पहले कभी रुझान रहा है और न ही उन्होंने पहले इसमें हिस्सा लिया है. आमतौर पर हंपी क्लासिक फॉर्मेट खेलना पसंद करती हैं, जिसमें खेल लंबे समय तक चलता है. तेज गति वाले, रैपिड फॉर्मेट में हंपी पहले कभी तैयारी से नहीं खेली हैं. इस कारण से उनके चाहने वालों को इस मुकाबले से कोई खास उम्मीद भी नहीं थी. हालांकि, हंपी ने टूर्नामेंट की अच्छी शुरुआत की, और, फाइनल में, मुकाबले की फेवरेट खिलाड़ी ली टिंगजी के हल्के खेल ने हंपी को आत्मविश्वास दिला दिया.

हंपी ने एक टाइ ब्रेकर के जरिए मैच जीतकर खिताब पर अपना कब्जा किया. इस बारे में बोलते हुए हंपी ने कहा कि, 'रैपिड फॉर्मेट मेरा पसंदीदा फॉर्मेट नहीं है. आखिरी दिन मैच की शुरुआत देखकर मुझे अपनी जीत की उम्मीद कम थी. मुझे तो खेल के टाइ ब्रेकर तक पहुंचने की उम्मीद भी नहीं थी. लेकिन एक विश्व खिताब को कड़े मुकाबले में जीतना अच्छी अनुभूति होती है. अपने रेगुलर फॉर्मेट से अलग खेल में जीतना मेरे आत्मविश्वास के लिये काफी अच्छा है.'

नाम की पीछे की कहानी
कोनेरू हंपी के पिता, कोनेरू अशोक खुद एक एथलीट हैं. उन्होंने स्कूल के स्तर पर कई खेलों में हिस्सा लिया और इसके बाद शतरंज को पेशेवर तौर पर अपना लिया. शतरंज उन्होंने राष्ट्रीय स्तर तक खेला. खेल के क्षेत्र से आने के कारण, अशोक ने अपनी बच्ची का नाम भी 'हंपी' रखा, जो अंग्रेज़ी शब्द चैंपियन का हिस्सा है. अपनी विरासत को आगे बढ़ाते हुए अशोक अपनी बेटी को भी शतरंज की दुनिया में ले आए. कोनेरू भी अपने पिता के नाम को रौशन करते हुए विश्व चैंपियन बन गई. अपने नाम को चरितार्थ करते हुए हंपी ने कई कामयाबियां अपने नाम कर ली हैं.

यह हंपी के लिये पांचवा विश्व खिताब है. इससे पहले उन्होंने, तीन विश्व यूथ गेल्ड मेडल (1997, 1998, 2000) और 2015 में विश्व टीम कांस्य मेडल जीता था. विश्व रैपिड मुकाबले में हंपी की ताजा जीत ने उन्हें, विश्व शतरंज के शिखर पर ला दिया है और इसलिए वे शतरंज की राजकुमारी हैं.

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