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संविधान निर्माण में इन 15 महिलाओं का रहा है भगीरथ योगदान, आइए जानें... - महिलाओं

भारतीय संविधान को विश्व का सबसे बड़ा, लिखित, लचीला और कठोर संविधान कहा जाता है. भारतीय संविधान ने देश के हर वर्ग, धर्म, जाति को स्वतंत्रता के साथ रहने का अधिकार दिया है. हमारे संविधान को बनाने में 2 साल 11 महीने और 18 दिन लगे. जानें संविधान के अनछुए पहलुओं के बारे में...

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संविधान निर्माण में इन 15 महिलाओं का रहा है भगीरथ योगदान
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Published : Nov 27, 2019, 12:04 AM IST

भारतीय संविधान का निर्माण करने वाली संविधान सभा का गठन जुलाई, 1946 में किया गया. बाबा साहब भीमराव अंबेडकर को हम संविधान के मुख्य रचयिता के रूप में जानते हैं. अन्य पुरुष सदस्यों के बारे में भी हमने सुना है. लेकिन क्या आपने 389 सदस्यों में से उन 15 महिलाओं का नाम सुना है, जिन्होंने संविधान बनाने में सहायता की. इन महिलाओं ने संविधान पर हस्ताक्षर किए थे. ETV भारत उन 15 महिलाओं को याद कर रहा है.

ये थीं वो 15 महिलाएं -
सुचेता कृपलानी, अम्मू स्वामीनाथन, सरोजिनी नायडू, विजयलक्ष्मी पंडित, दुर्गाबाई देशमुख, राजकुमारी अमृत कौर, हंसा मेहता, बेगम एजाज रसूल, मालती चौधरी, कमला चौधरी, लीला रॉय, दकश्यानी वेलयुद्धन, रेनुका रे, एनी मसकैरिनी, पूर्णिमा बनर्जी.

संविधान निर्माण में इन 15 महिलाओं का रहा है योगदान...

सुचेता कृपलानी
सुचेता कृपलानी का जन्म साल 1908 में वर्तमान हरियाणा के अंबाला शहर में हुआ था. उन्हें 1942 के भारत छोड़ो आंदोलन में उनकी भूमिका के लिए विशेष रूप से याद किया जाता है. सुचेता कृपलानी ने वर्ष 1940 में कांग्रेस पार्टी की महिला शाखा की भी स्थापना की थीं. वह सांसद रहीं. उत्तर प्रदेश सरकार में श्रम, सामुदायिक विकास और उद्योग मंत्री के रूप में भी शामिल थीं. सुचेता कृपलानी 1963 में उत्तर प्रदेश की मुख्यमंत्री बनीं और 1967 तक इस शीर्ष पद पर काबिज रहीं. वह भारत की पहली महिला मुख्यमंत्री थीं

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सुचेता कृपलानी

इसे भी पढ़ें- डॉक्टर सच्चिदानंद सिन्हा : भारत के संविधान निर्माण में बहुमूल्य योगदान

अम्मू स्वामीनाथन
अम्मू स्वामीनाथन का जन्म केरल के पालघाट जिले में हुआ था. वह 1952 में लोकसभा और 1954 में राज्यसभा के लिए चुनी गईं. उन्होंने भारत स्काउट्स एंड गाइड्स (1960-65) और सेंसर बोर्ड की अध्यक्षता भी की. उन्होंने 1917 में मद्रास में एनी बेसेंट, मार्गरेट, मालती पटवर्धन, दादाभोय और अंबुजम्माल के साथ मिलकर महिला इंडिया एसोसिएशन का गठन किया. साथ ही 1946 में मद्रास से संविधान सभा का हिस्सा बनीं. 24 नवम्बर 1949 को संविधान के प्रारूप को पारित करने के लिए डॉ. बी.आर. अंबेडकर द्वारा प्रस्ताव पर चर्चा के दौरान अम्मू ने कहा, 'बाहर के लोग कह रहे हैं कि भारत ने उनकी महिलाओं को समान अधिकार नहीं दिया. अब हम कह सकते हैं कि जब भारतीय लोगों ने स्वयं अपने संविधान की रचना की तो उन्होंने महिलाओं को देश के हर दूसरे नागरिक के बराबर अधिकार दिये.'

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अम्मू स्वामीनाथन

सरोजिनी नायडू
सरोजिनी नायडू का जन्म 13 फरवरी, 1879 को हैदराबाद में हुआ था. वह भारतीय राष्ट्रीय कांग्रेस की अध्यक्ष बनने वालीं और राज्यपाल के रूप में नियुक्त होने वाली पहलीं भारतीय महिला थीं. कविताएं लिखने की अति दिलचस्पी ही थी कि उन्हें नाइटेंगल ऑफ इंडिया (भारत की बुलबुल) के नाम से प्रसिद्धी मिली. सरोजिनी नायडू अपनी साहित्यिक कुशलता के लिए भी जानी जाती थीं.

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सरोजिनी नायडू

इसे भी पढ़ें- खास बातचीत : कानूनविद् अश्विनी कुमार बोले - हमारी राजनीति संविधान के मूल्यों के अनुसार नहीं

विजयलक्ष्मी पंडित
विजयलक्ष्मी पंडित का जन्म 18 अगस्त 1900 में इलाहाबाद में हुआ था और वह भारत के पहले प्रधानमंत्री जवाहरलाल नेहरू की बहन थीं. वर्ष 1932 से 1933, वर्ष 1940 और वर्ष 1942 से 1943 तक अंग्रेजों ने उन्हें तीन अलग-अलग जेलों में कैद किया था. राजनीति में विजया का लंबा करिअर आधिकारिक तौर पर इलाहाबाद नगर निगम के चुनाव के साथ शुरू हुआ. साल 1936 में वह संयुक्त प्रांत की असेंबली के लिए चुनी गईं और साल 1937 में स्थानीय सरकार और सार्वजनिक स्वास्थ्य मंत्री बनीं. ऐसा पहली बार था, जब एक भारतीय महिला कैबिनेट मंत्री बनी. सभी कांग्रेस पार्टी के पदाधिकारियों की तरह उन्होंने साल 1939 में ब्रिटिश सरकार की घोषणा के विरोध में इस्तीफा दे दिया.

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विजयलक्ष्मी पंडित

दुर्गाबाई देशमुख
दुर्गाबाई देशमुख का जन्म 15 जुलाई 1909 को राजमुंदरी में हुआ था. 12 वर्ष की उम्र में उन्होंने असहयोग आंदोलन में भाग लिया और मई 1930 में मद्रास में नमक सत्याग्रह का हिस्सा बनीं. 1936 में उन्होंने आंध्र महिला सभा की स्थापना की, जो एक दशक के भीतर मद्रास शहर में शिक्षा और सामाजिक कल्याण की एक महान संस्था बन गयी. वह केंद्रीय समाज कल्याण बोर्ड, राष्ट्रीय महिला शिक्षा परिषद और लड़कियों की राष्ट्रीय समिति और महिलाओं की शिक्षा जैसे कई केंद्रीय संगठनों की अध्यक्ष थीं. वह संसद सदस्य और योजना आयोग की सदस्य रहीं. उन्हें भारत में साक्षरता को बढ़ावा देने में उत्कृष्ट योगदान के लिए 1971 में चौथे नेहरू साक्षरता पुरस्कार से सम्मानित किया गया था. 1975 में उन्हें 'पद्म विभूषण' से सम्मानित किया गया.

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दुर्गाबाई देशमुख

इसे भी पढ़ें- डॉ. राजेंद्र प्रसाद : संविधान निर्माण को लेकर कभी नहीं मिला अपेक्षित सम्मान

राजकुमारी अमृत कौर
अमृत ​​कौर का जन्म 2 फरवरी 1889 में लखनऊ (उत्तर प्रदेश) में हुआ था. वह भारत की पहली स्वास्थ्य मंत्री थीं और उन्होंने इस पद को 10 साल तक संभाला. वह कपूरथला के पूर्व महाराजा के पुत्र हरनाम सिंह की बेटी थीं. वह अखिल भारतीय आयुर्विज्ञान संस्थान (AIIMS) की संस्थापक थीं और उन्होंने एम्स की स्वायत्तता के लिए तर्क दिया था. अमृत कौर महिलाओं की शिक्षा, खेल में उनकी भागीदारी और उनकी स्वास्थ्य सेवा में दृढ़ विश्वास रखती थीं.

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राजकुमारी अमृत कौर

हंसा मेहता
हंसा मेहता का जन्म 3 जुलाई 1897 को बड़ौदा के दीवान नंदशंकर मेहता के घर हुआ था. उन्होंने पत्रकारिता और समाजशास्त्र की शिक्षा ली. एक सुधारक और सामाजिक कार्यकर्ता होने के साथ-साथ वह एक शिक्षिका और लेखिका भी थीं. उन्होंने गुजराती में बच्चों के लिए कई किताबें लिखीं और गुलिवर्स ट्रेवल्स सहित कई अंग्रेजी कहानियों का अनुवाद भी किया. वह 1926 में बॉम्बे स्कूल्स कमेटी के लिए चुनी गईं और 1945-46 में अखिल भारतीय महिला सम्मेलन की अध्यक्ष बनीं.

बेगम एजाज रसूल
बेगम एजाज रसूल मालरकोटला के रियासत परिवार में पैदा हुई थीं. वह एकमात्र ऐसी मुस्लिम महिला थीं, जिन्होंने भारतीय संविधान बनाने में अपना योगदान दिया. उनका विवाह युवा जमींदार नवाब एजाज रसूल से हुआ था. भारत सरकार अधिनियम 1935 के अधिनियमन के साथ, बेगम और उनके पति मुस्लिम लीग में शामिल हो गए और राजनीति में प्रवेश किया. साल 1950 में भारत में मुस्लिम लीग भंग होने के बाद वह कांग्रेस में शामिल हो गईं. वह 1952 में राज्यसभा के लिए चुनी गईं और 1969 से 1990 तक उत्तर प्रदेश विधान सभा की सदस्य रहीं. 1969 से 1971 के बीच वह समाज कल्याण और अल्पसंख्यक मंत्री रहीं. इसके बाद साल 2000 में उन्हें सामाजिक कार्य में योगदान के लिए पद्म भूषण से सम्मानित किया गया था.

इसे भी पढ़ें- जानिए कितने भागों में बंटा हुआ है भारत का संविधान

मालती चौधरी
मालती चौधरी का जन्म सन् 1904 में पूर्वी बंगाल (अब बांग्लादेश) में एक प्रतिष्ठित परिवार में हुआ था. वर्ष 1921 में 16 साल की उम्र में मालती चौधरी को शांति-निकेतन भेजा गया, जहां उन्हें विश्व भारती में भर्ती कराया गया. उन्होंने नाबकृष्ण चौधरी से विवाह किया, जो बाद में ओडिशा के मुख्यमंत्री बने. नमक सत्याग्रह के दौरान मालती चौधरी और उनके पति भारतीय राष्ट्रीय कांग्रेस में शामिल हो गये और आंदोलन में भाग लिया. 1933 में उन्होंने अपने पति के साथ उत्कल कांग्रेस समाजवादी कर्म संघ का गठन किया, जिसे बाद में अखिल भारतीय कांग्रेस सोशलिस्ट पार्टी की ओडिशा प्रांतीय शाखा के रूप में जाना जाने लगा.

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मालती चौधरी

कमला चौधरी
कमला चौधरी का जन्म लखनऊ के समृद्ध परिवार में हुआ था. अपने परिवार की तरह शाही सरकार की वफादारी के इतर वह राष्ट्रवादियों में शामिल हो गईं और साल 1930 में गांधी द्वारा शुरू किये गये नागरिक अवज्ञा आंदोलन में भी उन्होंने सक्रियता से हिस्सा लिया. अखिल भारतीय कांग्रेस समिति के 50वें सत्र में वह इसकी उपाध्यक्ष थीं. 70 के दशक के अंत में वह लोकसभा की सदस्य चुनी गईं. कमला एक प्रसिद्ध लेखिका भी थीं और उनकी कहानियां आमतौर पर महिलाओं की आंतरिक दुनिया या भारत के आधुनिक राष्ट्र के रूप में उभरने से जुड़ी हैं.

लीला रॉय
लीला रॉय का जन्म अक्टूबर 1900 में असम के गोलपाड़ा में हुआ था. उनके पिता डिप्टी मजिस्ट्रेट थे और राष्ट्रवादी आंदोलन के साथ सहानुभूति रखते थे. उन्होंने साल 1921 में बेथ्यून कॉलेज से स्नातक की उपाधि प्राप्त की और बंगाल महिला उत्पीड़न समिति की सहायक सचिव बनीं. उन्होंने महिलाओं के अधिकारों की मांग के लिए मीटिंग की व्यवस्था की. साल 1923 में अपने दोस्तों के साथ उन्होंने दीपाली संघ और स्कूलों की स्थापना की, जो राजनीतिक चर्चा के केंद्र बन गये. इसमें उल्लेखनीय नेताओं ने भाग लिया. साल 1937 में वह कांग्रेस में शामिल हो गईं और अगले वर्ष बंगाल प्रांतीय कांग्रेस महिला संगठन की स्थापना की. वह सुभाष चंद्र बोस द्वारा गठित महिला उपसमिति की भी सदस्य बन गईं. भारत छोड़ने से पहले नेताजी ने लीला रॉय और उनके पति को पार्टी गतिविधियों का पूरा प्रभार दिया. साल 1960 में वह फॉरवर्ड ब्लॉक (सुभाषिस्ट) और प्रजा समाजवादी पार्टी के विलय के साथ गठित नई पार्टी की अध्यक्ष बन गईं.

इसे भी पढ़ें- जानें, कितनी बार भारत का संविधान संशोधित किया गया

दकश्यानी वेलयुद्धन
दक्षिणानी वेलायुद्ध का जन्म 4 जुलाई 1912 को कोचीन में बोल्गाटी द्वीप पर हुआ था. वह शोषित वर्गों की नेता थीं. साल 1945 में उन्हें कोचीन विधान परिषद में राज्य सरकार द्वारा नामित किया गया था. वह साल 1946 में संविधान सभा के लिए चुनी गईं पहली और एकमात्र दलित महिला थीं. संविधान सभा की बहस के दौरान उन्होंने अनुसूचित जाति समुदाय से जुड़े कई मुद्दों पर डॉ. बी.आर. अंबेडकर के साथ विचार-विमर्श किया.

रेनुका रे
रेनुका एक आईसीएस अधिकारी सतीश चंद्र मुखर्जी और अखिल भारतीय महिला सम्मेलन (AIWC) की सदस्य चारूलता मुखर्जी की बेटी थीं. उन्होंने लंदन स्कूल ऑफ इकोनॉमिक्स से बीए की पढ़ाई पूरी की. साल 1934 में AIWC के कानूनी सचिव के रूप में उन्होंने ‘भारत में महिलाओं की कानूनी विकलांगता’ नामक एक दस्तावेज प्रस्तुत किया. साल 1943 से साल 1946 तक वह केंद्रीय विधानसभा, संविधान सभा और अनंतिम संसद की सदस्य थीं. साल 1952 से 1957 तक उन्होंने पश्चिम बंगाल विधानसभा में राहत और पुनर्वास के मंत्री के रूप में कार्य किया. उन्होंने अखिल बंगाल महिला संघ और महिला समन्वयक परिषद की स्थापना की थी.

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रेनुका रे

एनी मसकैरिनी
एनी मसकैरिनी का जन्म केरल के तिरुवनंतपुरम में हुआ था. वह त्रावणकोर राज्य से कांग्रेस में शामिल होने वाली पहली महिलाओं में से एक थीं और त्रावणकोर राज्य कांग्रेस कार्यकारिणी का हिस्सा बनने वाली पहली महिला बनीं. वह त्रावणकोर राज्य में स्वतंत्रता और भारतीय राष्ट्र के साथ एकीकरण के आंदोलनों के नेताओं में से एक थीं. राजनीतिक सक्रियता के लिए उन्हें साल 1939 से साल 1977 से विभिन्न अवधि के लिए कैद किया गया था. मसकैरिनी भारतीय आम चुनाव में साल 1951 में पहली बार लोकसभा के लिए चुनी गयी थीं. वह केरल की पहली महिला सांसद थीं.

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एनी मसकैरिनी

पूर्णिमा बनर्जी
पूर्णिमा बनर्जी उत्तर प्रदेश के इलाहाबाद में भारतीय राष्ट्रीय कांग्रेस समिति की सचिव थीं. वग उत्तर प्रदेश की महिलाओं के उस समूह की सदस्य थीं, जो 1930 के दशक के अंत और 40 के दशक में स्वतंत्रता आंदोलन में सबसे आगे था. उन्हें सत्याग्रह और भारत छोड़ो आंदोलन में भाग लेने के लिए गिरफ्तार किया गया था. संविधान सभा में पूर्णिमा बनर्जी के भाषणों का एक और खास पहलू समाजवादी विचारधारा के प्रति उनकी दृढ़ प्रतिबद्धता थी. शहर समिति के सचिव के रूप में वह ट्रेड यूनियनों, किसान सभाओं को शामिल करने, व्यवस्थित करने और अधिक से अधिक ग्रामीण जुड़ाव की दिशा में काम करने के लिए जिम्मेदार थीं.

भारतीय संविधान का निर्माण करने वाली संविधान सभा का गठन जुलाई, 1946 में किया गया. बाबा साहब भीमराव अंबेडकर को हम संविधान के मुख्य रचयिता के रूप में जानते हैं. अन्य पुरुष सदस्यों के बारे में भी हमने सुना है. लेकिन क्या आपने 389 सदस्यों में से उन 15 महिलाओं का नाम सुना है, जिन्होंने संविधान बनाने में सहायता की. इन महिलाओं ने संविधान पर हस्ताक्षर किए थे. ETV भारत उन 15 महिलाओं को याद कर रहा है.

ये थीं वो 15 महिलाएं -
सुचेता कृपलानी, अम्मू स्वामीनाथन, सरोजिनी नायडू, विजयलक्ष्मी पंडित, दुर्गाबाई देशमुख, राजकुमारी अमृत कौर, हंसा मेहता, बेगम एजाज रसूल, मालती चौधरी, कमला चौधरी, लीला रॉय, दकश्यानी वेलयुद्धन, रेनुका रे, एनी मसकैरिनी, पूर्णिमा बनर्जी.

संविधान निर्माण में इन 15 महिलाओं का रहा है योगदान...

सुचेता कृपलानी
सुचेता कृपलानी का जन्म साल 1908 में वर्तमान हरियाणा के अंबाला शहर में हुआ था. उन्हें 1942 के भारत छोड़ो आंदोलन में उनकी भूमिका के लिए विशेष रूप से याद किया जाता है. सुचेता कृपलानी ने वर्ष 1940 में कांग्रेस पार्टी की महिला शाखा की भी स्थापना की थीं. वह सांसद रहीं. उत्तर प्रदेश सरकार में श्रम, सामुदायिक विकास और उद्योग मंत्री के रूप में भी शामिल थीं. सुचेता कृपलानी 1963 में उत्तर प्रदेश की मुख्यमंत्री बनीं और 1967 तक इस शीर्ष पद पर काबिज रहीं. वह भारत की पहली महिला मुख्यमंत्री थीं

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सुचेता कृपलानी

इसे भी पढ़ें- डॉक्टर सच्चिदानंद सिन्हा : भारत के संविधान निर्माण में बहुमूल्य योगदान

अम्मू स्वामीनाथन
अम्मू स्वामीनाथन का जन्म केरल के पालघाट जिले में हुआ था. वह 1952 में लोकसभा और 1954 में राज्यसभा के लिए चुनी गईं. उन्होंने भारत स्काउट्स एंड गाइड्स (1960-65) और सेंसर बोर्ड की अध्यक्षता भी की. उन्होंने 1917 में मद्रास में एनी बेसेंट, मार्गरेट, मालती पटवर्धन, दादाभोय और अंबुजम्माल के साथ मिलकर महिला इंडिया एसोसिएशन का गठन किया. साथ ही 1946 में मद्रास से संविधान सभा का हिस्सा बनीं. 24 नवम्बर 1949 को संविधान के प्रारूप को पारित करने के लिए डॉ. बी.आर. अंबेडकर द्वारा प्रस्ताव पर चर्चा के दौरान अम्मू ने कहा, 'बाहर के लोग कह रहे हैं कि भारत ने उनकी महिलाओं को समान अधिकार नहीं दिया. अब हम कह सकते हैं कि जब भारतीय लोगों ने स्वयं अपने संविधान की रचना की तो उन्होंने महिलाओं को देश के हर दूसरे नागरिक के बराबर अधिकार दिये.'

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अम्मू स्वामीनाथन

सरोजिनी नायडू
सरोजिनी नायडू का जन्म 13 फरवरी, 1879 को हैदराबाद में हुआ था. वह भारतीय राष्ट्रीय कांग्रेस की अध्यक्ष बनने वालीं और राज्यपाल के रूप में नियुक्त होने वाली पहलीं भारतीय महिला थीं. कविताएं लिखने की अति दिलचस्पी ही थी कि उन्हें नाइटेंगल ऑफ इंडिया (भारत की बुलबुल) के नाम से प्रसिद्धी मिली. सरोजिनी नायडू अपनी साहित्यिक कुशलता के लिए भी जानी जाती थीं.

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सरोजिनी नायडू

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विजयलक्ष्मी पंडित
विजयलक्ष्मी पंडित का जन्म 18 अगस्त 1900 में इलाहाबाद में हुआ था और वह भारत के पहले प्रधानमंत्री जवाहरलाल नेहरू की बहन थीं. वर्ष 1932 से 1933, वर्ष 1940 और वर्ष 1942 से 1943 तक अंग्रेजों ने उन्हें तीन अलग-अलग जेलों में कैद किया था. राजनीति में विजया का लंबा करिअर आधिकारिक तौर पर इलाहाबाद नगर निगम के चुनाव के साथ शुरू हुआ. साल 1936 में वह संयुक्त प्रांत की असेंबली के लिए चुनी गईं और साल 1937 में स्थानीय सरकार और सार्वजनिक स्वास्थ्य मंत्री बनीं. ऐसा पहली बार था, जब एक भारतीय महिला कैबिनेट मंत्री बनी. सभी कांग्रेस पार्टी के पदाधिकारियों की तरह उन्होंने साल 1939 में ब्रिटिश सरकार की घोषणा के विरोध में इस्तीफा दे दिया.

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विजयलक्ष्मी पंडित

दुर्गाबाई देशमुख
दुर्गाबाई देशमुख का जन्म 15 जुलाई 1909 को राजमुंदरी में हुआ था. 12 वर्ष की उम्र में उन्होंने असहयोग आंदोलन में भाग लिया और मई 1930 में मद्रास में नमक सत्याग्रह का हिस्सा बनीं. 1936 में उन्होंने आंध्र महिला सभा की स्थापना की, जो एक दशक के भीतर मद्रास शहर में शिक्षा और सामाजिक कल्याण की एक महान संस्था बन गयी. वह केंद्रीय समाज कल्याण बोर्ड, राष्ट्रीय महिला शिक्षा परिषद और लड़कियों की राष्ट्रीय समिति और महिलाओं की शिक्षा जैसे कई केंद्रीय संगठनों की अध्यक्ष थीं. वह संसद सदस्य और योजना आयोग की सदस्य रहीं. उन्हें भारत में साक्षरता को बढ़ावा देने में उत्कृष्ट योगदान के लिए 1971 में चौथे नेहरू साक्षरता पुरस्कार से सम्मानित किया गया था. 1975 में उन्हें 'पद्म विभूषण' से सम्मानित किया गया.

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दुर्गाबाई देशमुख

इसे भी पढ़ें- डॉ. राजेंद्र प्रसाद : संविधान निर्माण को लेकर कभी नहीं मिला अपेक्षित सम्मान

राजकुमारी अमृत कौर
अमृत ​​कौर का जन्म 2 फरवरी 1889 में लखनऊ (उत्तर प्रदेश) में हुआ था. वह भारत की पहली स्वास्थ्य मंत्री थीं और उन्होंने इस पद को 10 साल तक संभाला. वह कपूरथला के पूर्व महाराजा के पुत्र हरनाम सिंह की बेटी थीं. वह अखिल भारतीय आयुर्विज्ञान संस्थान (AIIMS) की संस्थापक थीं और उन्होंने एम्स की स्वायत्तता के लिए तर्क दिया था. अमृत कौर महिलाओं की शिक्षा, खेल में उनकी भागीदारी और उनकी स्वास्थ्य सेवा में दृढ़ विश्वास रखती थीं.

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राजकुमारी अमृत कौर

हंसा मेहता
हंसा मेहता का जन्म 3 जुलाई 1897 को बड़ौदा के दीवान नंदशंकर मेहता के घर हुआ था. उन्होंने पत्रकारिता और समाजशास्त्र की शिक्षा ली. एक सुधारक और सामाजिक कार्यकर्ता होने के साथ-साथ वह एक शिक्षिका और लेखिका भी थीं. उन्होंने गुजराती में बच्चों के लिए कई किताबें लिखीं और गुलिवर्स ट्रेवल्स सहित कई अंग्रेजी कहानियों का अनुवाद भी किया. वह 1926 में बॉम्बे स्कूल्स कमेटी के लिए चुनी गईं और 1945-46 में अखिल भारतीय महिला सम्मेलन की अध्यक्ष बनीं.

बेगम एजाज रसूल
बेगम एजाज रसूल मालरकोटला के रियासत परिवार में पैदा हुई थीं. वह एकमात्र ऐसी मुस्लिम महिला थीं, जिन्होंने भारतीय संविधान बनाने में अपना योगदान दिया. उनका विवाह युवा जमींदार नवाब एजाज रसूल से हुआ था. भारत सरकार अधिनियम 1935 के अधिनियमन के साथ, बेगम और उनके पति मुस्लिम लीग में शामिल हो गए और राजनीति में प्रवेश किया. साल 1950 में भारत में मुस्लिम लीग भंग होने के बाद वह कांग्रेस में शामिल हो गईं. वह 1952 में राज्यसभा के लिए चुनी गईं और 1969 से 1990 तक उत्तर प्रदेश विधान सभा की सदस्य रहीं. 1969 से 1971 के बीच वह समाज कल्याण और अल्पसंख्यक मंत्री रहीं. इसके बाद साल 2000 में उन्हें सामाजिक कार्य में योगदान के लिए पद्म भूषण से सम्मानित किया गया था.

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मालती चौधरी
मालती चौधरी का जन्म सन् 1904 में पूर्वी बंगाल (अब बांग्लादेश) में एक प्रतिष्ठित परिवार में हुआ था. वर्ष 1921 में 16 साल की उम्र में मालती चौधरी को शांति-निकेतन भेजा गया, जहां उन्हें विश्व भारती में भर्ती कराया गया. उन्होंने नाबकृष्ण चौधरी से विवाह किया, जो बाद में ओडिशा के मुख्यमंत्री बने. नमक सत्याग्रह के दौरान मालती चौधरी और उनके पति भारतीय राष्ट्रीय कांग्रेस में शामिल हो गये और आंदोलन में भाग लिया. 1933 में उन्होंने अपने पति के साथ उत्कल कांग्रेस समाजवादी कर्म संघ का गठन किया, जिसे बाद में अखिल भारतीय कांग्रेस सोशलिस्ट पार्टी की ओडिशा प्रांतीय शाखा के रूप में जाना जाने लगा.

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मालती चौधरी

कमला चौधरी
कमला चौधरी का जन्म लखनऊ के समृद्ध परिवार में हुआ था. अपने परिवार की तरह शाही सरकार की वफादारी के इतर वह राष्ट्रवादियों में शामिल हो गईं और साल 1930 में गांधी द्वारा शुरू किये गये नागरिक अवज्ञा आंदोलन में भी उन्होंने सक्रियता से हिस्सा लिया. अखिल भारतीय कांग्रेस समिति के 50वें सत्र में वह इसकी उपाध्यक्ष थीं. 70 के दशक के अंत में वह लोकसभा की सदस्य चुनी गईं. कमला एक प्रसिद्ध लेखिका भी थीं और उनकी कहानियां आमतौर पर महिलाओं की आंतरिक दुनिया या भारत के आधुनिक राष्ट्र के रूप में उभरने से जुड़ी हैं.

लीला रॉय
लीला रॉय का जन्म अक्टूबर 1900 में असम के गोलपाड़ा में हुआ था. उनके पिता डिप्टी मजिस्ट्रेट थे और राष्ट्रवादी आंदोलन के साथ सहानुभूति रखते थे. उन्होंने साल 1921 में बेथ्यून कॉलेज से स्नातक की उपाधि प्राप्त की और बंगाल महिला उत्पीड़न समिति की सहायक सचिव बनीं. उन्होंने महिलाओं के अधिकारों की मांग के लिए मीटिंग की व्यवस्था की. साल 1923 में अपने दोस्तों के साथ उन्होंने दीपाली संघ और स्कूलों की स्थापना की, जो राजनीतिक चर्चा के केंद्र बन गये. इसमें उल्लेखनीय नेताओं ने भाग लिया. साल 1937 में वह कांग्रेस में शामिल हो गईं और अगले वर्ष बंगाल प्रांतीय कांग्रेस महिला संगठन की स्थापना की. वह सुभाष चंद्र बोस द्वारा गठित महिला उपसमिति की भी सदस्य बन गईं. भारत छोड़ने से पहले नेताजी ने लीला रॉय और उनके पति को पार्टी गतिविधियों का पूरा प्रभार दिया. साल 1960 में वह फॉरवर्ड ब्लॉक (सुभाषिस्ट) और प्रजा समाजवादी पार्टी के विलय के साथ गठित नई पार्टी की अध्यक्ष बन गईं.

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दकश्यानी वेलयुद्धन
दक्षिणानी वेलायुद्ध का जन्म 4 जुलाई 1912 को कोचीन में बोल्गाटी द्वीप पर हुआ था. वह शोषित वर्गों की नेता थीं. साल 1945 में उन्हें कोचीन विधान परिषद में राज्य सरकार द्वारा नामित किया गया था. वह साल 1946 में संविधान सभा के लिए चुनी गईं पहली और एकमात्र दलित महिला थीं. संविधान सभा की बहस के दौरान उन्होंने अनुसूचित जाति समुदाय से जुड़े कई मुद्दों पर डॉ. बी.आर. अंबेडकर के साथ विचार-विमर्श किया.

रेनुका रे
रेनुका एक आईसीएस अधिकारी सतीश चंद्र मुखर्जी और अखिल भारतीय महिला सम्मेलन (AIWC) की सदस्य चारूलता मुखर्जी की बेटी थीं. उन्होंने लंदन स्कूल ऑफ इकोनॉमिक्स से बीए की पढ़ाई पूरी की. साल 1934 में AIWC के कानूनी सचिव के रूप में उन्होंने ‘भारत में महिलाओं की कानूनी विकलांगता’ नामक एक दस्तावेज प्रस्तुत किया. साल 1943 से साल 1946 तक वह केंद्रीय विधानसभा, संविधान सभा और अनंतिम संसद की सदस्य थीं. साल 1952 से 1957 तक उन्होंने पश्चिम बंगाल विधानसभा में राहत और पुनर्वास के मंत्री के रूप में कार्य किया. उन्होंने अखिल बंगाल महिला संघ और महिला समन्वयक परिषद की स्थापना की थी.

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रेनुका रे

एनी मसकैरिनी
एनी मसकैरिनी का जन्म केरल के तिरुवनंतपुरम में हुआ था. वह त्रावणकोर राज्य से कांग्रेस में शामिल होने वाली पहली महिलाओं में से एक थीं और त्रावणकोर राज्य कांग्रेस कार्यकारिणी का हिस्सा बनने वाली पहली महिला बनीं. वह त्रावणकोर राज्य में स्वतंत्रता और भारतीय राष्ट्र के साथ एकीकरण के आंदोलनों के नेताओं में से एक थीं. राजनीतिक सक्रियता के लिए उन्हें साल 1939 से साल 1977 से विभिन्न अवधि के लिए कैद किया गया था. मसकैरिनी भारतीय आम चुनाव में साल 1951 में पहली बार लोकसभा के लिए चुनी गयी थीं. वह केरल की पहली महिला सांसद थीं.

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एनी मसकैरिनी

पूर्णिमा बनर्जी
पूर्णिमा बनर्जी उत्तर प्रदेश के इलाहाबाद में भारतीय राष्ट्रीय कांग्रेस समिति की सचिव थीं. वग उत्तर प्रदेश की महिलाओं के उस समूह की सदस्य थीं, जो 1930 के दशक के अंत और 40 के दशक में स्वतंत्रता आंदोलन में सबसे आगे था. उन्हें सत्याग्रह और भारत छोड़ो आंदोलन में भाग लेने के लिए गिरफ्तार किया गया था. संविधान सभा में पूर्णिमा बनर्जी के भाषणों का एक और खास पहलू समाजवादी विचारधारा के प्रति उनकी दृढ़ प्रतिबद्धता थी. शहर समिति के सचिव के रूप में वह ट्रेड यूनियनों, किसान सभाओं को शामिल करने, व्यवस्थित करने और अधिक से अधिक ग्रामीण जुड़ाव की दिशा में काम करने के लिए जिम्मेदार थीं.

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भारतीय संविधान का निर्माण करने वाली संविधान सभा का गठन जुलाई, 1946 में किया गया. बाबा साहब भीमराव अंबेडकर को हम संविधान के मुख्य रचयिता के रूप में जानते हैं. अन्य पुरुष सदस्यों के बारे में भी हमने सुना है लेकिन क्या आपने 389 सदस्यों में से उन 15 महिलाओं का नाम सुना है, जिन्होंने संविधान बनाने में सहायता की. इन महिलाओं ने संविधान पर हस्ताक्षर किए थे. ETV भारत उन 15 महिलाओं को याद कर रहा है. 

 



ये थीं वो 15 महिलाएं- 

सुचेता कृपलानी, अम्मू स्वामीनाथन, सरोजिनी नायडू, विजयलक्ष्मी पंडित, दुर्गाबाई देशमुख, राजकुमारी अमृत कौर, हंसा मेहता, बेगम ऐजाज रसूल, मालती चौधरी, कमला चौधरी, लीला रॉय, दकश्यानी वेलयुद्धन, रेनुका रे, एनी मसकैरिनी, पूर्णिमा बनर्जी. 







सुचेता कृपलानी-

सुचेता कृपलानी का जन्म साल 1908 में वर्तमान हरियाणा के अंबाला शहर में हुआ था. उन्हें 1942 के भारत छोड़ो आंदोलन में उनकी भूमिका के लिए विशेष रूप से याद किया जाता है. सुचेता कृपलानी ने वर्ष 1940 में कांग्रेस पार्टी की महिला शाखा की भी स्थापना की थी. वे सांसद रहीं. उत्तर प्रदेश सरकार में श्रम, सामुदायिक विकास और उद्योग मंत्री के रूप में भी शामिल थीं. सुचेता कृपलानी 1963 में उत्तर प्रदेश की मुख्यमंत्री बनीं और 1967 तक इस शीर्ष पद पर काबिज रहीं. वे भारत की पहली महिला मुख्यमंत्री थीं. 







अम्मू स्वामीनाथन- 

अम्मू स्वामीनाथन का जन्म केरल के पालघाट जिले में हुआ था. वे 1952 में लोकसभा और 1954 में राज्यसभा के लिए चुनी गईं. उन्होंने भारत स्काउट्स एंड गाइड्स (1960-65) और सेंसर बोर्ड की अध्यक्षता भी की. 

उन्होंने 1917 में मद्रास में एनी बेसेंट, मार्गरेट, मालती पटवर्धन, दादाभोय और अंबुजम्माल के साथ मिलकर महिला इंडिया एसोसिएशन का गठन किया. साथ ही 1946 में मद्रास से संविधान सभा का हिस्सा बनीं. 



24 नवंबर, 1949 को संविधान के प्रारूप को पारित करने के लिए डॉ बी आर अंबेडकर द्वारा प्रस्ताव पर चर्चा के दौरान अम्मू ने कहा, “बाहर के लोग कह रहे हैं कि भारत ने उनकी महिलाओं को समान अधिकार नहीं दिया. अब हम कह सकते हैं कि जब भारतीय लोगों ने स्वयं अपने संविधान की रचना की तो उन्होंने महिलाओं को देश के हर दूसरे नागरिक के बराबर अधिकार दिए”.







सरोजिनी नायडू-  

सरोजिनी नायडू का जन्म 13 फरवरी, 1879 को हैदराबाद में हुआ था. वह भारतीय राष्ट्रीय कांग्रेस की अध्यक्ष बनने वाली और राज्यपाल के रूप में नियुक्त होने वाली पहली भारतीय महिला थीं. कविताएं लिखने के कारण उन्हें नाइटेंगल ऑफ इंडिया (भारत की बुलबुल) के नाम से प्रसिद्धी मिली. सरोजिनी नायडू अपनी साहित्यिक कुशलता के लिए भी जानी जाती थीं. 











विजयलक्ष्मी पंडित

विजयलक्ष्मी पंडित का जन्म 18 अगस्त 1900 में इलाहाबाद में हुआ था और वह भारत के पहले प्रधानमंत्री जवाहरलाल नेहरू की बहन थीं. साल 1932 से 1933, साल 1940 और साल 1942 से 1943 तक अंग्रेजों ने उन्हें तीन अलग-अलग जेल में कैद किया था. 







राजनीति में विजया का लंबा करियर आधिकारिक तौर पर इलाहाबाद नगर निगम के चुनाव के साथ शुरू हुआ. साल 1936 में वे संयुक्त प्रांत की असेंबली के लिए चुनी गईं और साल 1937 में स्थानीय सरकार और सार्वजनिक स्वास्थ्य मंत्री बनी. ऐसा पहली बार था जब एक भारतीय महिला कैबिनेट मंत्री बनी. सभी कांग्रेस पार्टी के पदाधिकारियों की तरह उन्होंने साल 1939 में ब्रिटिश सरकार की घोषणा के विरोध में इस्तीफा दे दिया. 





दुर्गाबाई देशमुख- 

दुर्गाबाई देशमुख का जन्म 15 जुलाई 1909 को राजमुंदरी में हुआ था. 12 वर्ष की उम्र में उन्होंने असहयोग आंदोलन में भाग लिया और मई 1930 में मद्रास में नमक सत्याग्रह का हिस्सा बनीं. 1936 में उन्होंने आंध्र महिला सभा की स्थापना की, जो एक दशक के भीतर मद्रास शहर में शिक्षा और सामाजिक कल्याण की एक महान संस्था बन गई. वो केंद्रीय समाज कल्याण बोर्ड, राष्ट्रीय महिला शिक्षा परिषद और लड़कियों की राष्ट्रीय समिति और महिलाओं की शिक्षा जैसे कई केंद्रीय संगठनों की अध्यक्ष थीं. 



वे संसद सदस्य और योजना आयोग की सदस्य रहीं. उन्हें भारत में साक्षरता को बढ़ावा देने में उत्कृष्ट योगदान के लिए 1971 में चौथे नेहरू साक्षरता पुरस्कार से सम्मानित किया गया था. 1975 में उन्हें पद्म विभूषण से सम्मानित किया गया.



राजकुमारी अमृत कौर- 

अमृत ​​कौर का जन्म 2 फरवरी 1889 में लखनऊ (उत्तर प्रदेश) में हुआ था. वह भारत की पहली स्वास्थ्य मंत्री थीं और उन्होंने इस पद को 10 साल तक संभाला. वे कपूरथला के पूर्व महाराजा के पुत्र हरनाम सिंह की बेटी थीं. वे अखिल भारतीय आयुर्विज्ञान संस्थान (AIIMS) की संस्थापक थीं और उन्होंने एम्स की स्वायत्तता के लिए तर्क दिया था. अमृत कौर महिलाओं की शिक्षा, खेल में उनकी भागीदारी और उनकी स्वास्थ्य सेवा में दृढ़ विश्वास रखती थीं. 



हंसा मेहता-

हंसा मेहता का जन्म 3 जुलाई साल 1897 को बड़ौदा के दीवान नंदशंकर मेहता के घर हुआ था. उन्होंने पत्रकारिता और समाजशास्त्र की शिक्षा ली. एक सुधारक और सामाजिक कार्यकर्ता होने के साथ-साथ वह एक शिक्षिका और लेखिका भी थीं. उन्होंने गुजराती में बच्चों के लिए कई किताबें लिखीं और गुलिवर्स ट्रेवल्स सहित कई अंग्रेजी कहानियों का अनुवाद भी किया. वे 1926 में बॉम्बे स्कूल्स कमेटी के लिए चुनी गईं और 1945-46 में अखिल भारतीय महिला सम्मेलन की अध्यक्ष बनीं. 



बेगम ऐजाज रसूल- 

बेगम एजाज रसूल मालरकोटला के रियासत परिवार में पैदा हुई थीं. वे एकमात्र ऐसी मुस्लिम महिला थीं, जिन्होंने भारतीय संविधान बनाने में अपना योगदान दिया. उनका विवाह युवा जमींदार नवाब ऐजाज रसूल से हुआ था. भारत सरकार अधिनियम 1935 के अधिनियमन के साथ, बेगम और उनके पति मुस्लिम लीग में शामिल हो गए और राजनीति में प्रवेश किया. साल 1950 में भारत में मुस्लिम लीग भंग होने के बाद वह कांग्रेस में शामिल हो गईं. वे 1952 में राज्यसभा के लिए चुनी गईं और 1969 से 1990 तक उत्तर प्रदेश विधान सभा की सदस्य रहीं. 1969 से 1971 के बीच वह समाज कल्याण और अल्पसंख्यक मंत्री रहीं. इसके बाद साल 2000 में उन्हें सामाजिक कार्य में योगदान के लिए पद्म भूषण से सम्मानित किया गया था. 



मालती चौधरी- 

मालती चौधरी का जन्म साल 1904 में पूर्वी बंगाल (अब बांग्लादेश) में एक प्रतिष्ठित परिवार में हुआ था. साल 1921 में 16 साल की उम्र में मालती चौधरी को शांति-निकेतन भेजा गया, जहां उन्हें विश्व भारती में भर्ती कराया गया. उन्होंने नाबकृष्ण चौधरी से विवाह किया, जो बाद में ओडिशा के मुख्यमंत्री बने. नमक सत्याग्रह के दौरान मालती चौधरी और उनके पति भारतीय राष्ट्रीय कांग्रेस में शामिल हो गए और आंदोलन में भाग लिया.  1933 में उन्होंने अपने पति के साथ उत्कल कांग्रेस समाजवादी कर्म संघ का गठन किया, जिसे बाद में अखिल भारतीय कांग्रेस सोशलिस्ट पार्टी की ओडिशा प्रांतीय शाखा के रूप में जाना जाने लगा. 

 



कमला चौधरी- 

कमला चौधरी का जन्म लखनऊ के समृद्ध परिवार में हुआ था. अपने परिवार की तरह शाही सरकार की वफादारी के इतर वे राष्ट्रवादियों में शामिल हो गईं और साल 1930 में गांधी द्वारा शुरू किए गए नागरिक अवज्ञा आंदोलन में भी उन्होंने सक्रियता से हिस्सा लिया. अखिल भारतीय कांग्रेस समिति के 50वें सत्र में वे इसकी उपाध्यक्ष थीं. 70 के दशक के अंत में वे लोकसभा की सदस्य चुनी गईं. कमला एक प्रसिद्ध लेखिका भी थीं और उनकी कहानियां आमतौर पर महिलाओं की आंतरिक दुनिया या भारत के आधुनिक राष्ट्र के रूप में उभरने से जुड़ी हैं. 





लीला रॉय- 

लीला रॉय का जन्म अक्टूबर 1900 में असम के गोलपाड़ा में हुआ था. उनके पिता डिप्टी मजिस्ट्रेट थे और राष्ट्रवादी आंदोलन के साथ सहानुभूति रखते थे. उन्होंने साल 1921 में बेथ्यून कॉलेज से स्नातक की उपाधि प्राप्त की और बंगाल महिला उत्पीड़न समिति की सहायक सचिव बनीं. उन्होंने महिलाओं के अधिकारों की मांग के लिए मीटिंग की व्यवस्था की. साल 1923 में अपने दोस्तों के साथ उन्होंने दीपाली संघ और स्कूलों की स्थापना की जो राजनीतिक चर्चा के केंद्र बन गए. इसमें उल्लेखनीय नेताओं ने भाग लिया.  साल 1937 में वे कांग्रेस में शामिल हो गईं और अगले वर्ष बंगाल प्रांतीय कांग्रेस महिला संगठन की स्थापना की.



वह सुभाष चंद्र बोस द्वारा गठित महिला उपसमिति की भी सदस्य बन गईं. भारत छोड़ने से पहले नेताजी ने लीला रॉय और उनके पति को पार्टी गतिविधियों का पूरा प्रभार दिया.  साल 1960 में वे फॉरवर्ड ब्लॉक (सुभाषिस्ट) और प्रजा समाजवादी पार्टी के विलय के साथ गठित नई पार्टी की अध्यक्ष बन गईं.



दकश्यानी वेलयुद्धन- 

दक्षिणानी वेलायुद्ध का जन्म 4 जुलाई 1912 को कोचीन में बोल्गाटी द्वीप पर हुआ था. वह शोषित वर्गों की नेता थीं. साल 1945 में उन्हें कोचीन विधान परिषद में राज्य सरकार द्वारा नामित किया गया था. वह साल 1946 में संविधान सभा के लिए चुनी गईं पहली और एकमात्र दलित महिला थीं. संविधान सभा की बहस के दौरान उन्होंने अनुसूचित जाति समुदाय से जुड़े कई मुद्दों पर बी आर अंबेडकर के साथ विचार-विमर्श किया. 



रेनुका रे-

रेनुका एक आईसीएस अधिकारी सतीश चंद्र मुखर्जी और अखिल भारतीय महिला सम्मेलन (AIWC) की सदस्य चारूलता मुखर्जी की बेटी थीं. उन्होंने लंदन स्कूल ऑफ इकोनॉमिक्स से बीए की पढ़ाई पूरी की. साल 1934 में AIWC के कानूनी सचिव के रूप में उन्होंने ‘भारत में महिलाओं की कानूनी विकलांगता’ नामक एक दस्तावेज प्रस्तुत किया. 



साल 1943 से साल 1946 तक वे केन्द्रीय विधान सभा, संविधान सभा और अनंतिम संसद की सदस्य थीं. साल 1952 से 1957 तक उन्होंने पश्चिम बंगाल विधानसभा में राहत और पुनर्वास के मंत्री के रूप में कार्य किया. उन्होंने अखिल बंगाल महिला संघ और महिला समन्वयक परिषद की स्थापना की थी. 



एनी मसकैरिनी- 

एनी मसकैरिनी का जन्म केरल के तिरुवनंतपुरम में हुआ था. वह त्रावणकोर राज्य से कांग्रेस में शामिल होने वाली पहली महिलाओं में से एक थीं और त्रावणकोर राज्य कांग्रेस कार्यकारिणी का हिस्सा बनने वाली पहली महिला बनीं. वह त्रावणकोर राज्य में स्वतंत्रता और भारतीय राष्ट्र के साथ एकीकरण के आंदोलनों के नेताओं में से एक थीं. राजनीतिक सक्रियता के लिए उन्हें साल 1939 से साल 1977 से विभिन्न अवधि के लिए कैद किया गया था. मसकैरिनी भारतीय आम चुनाव में साल 1951 में पहली बार लोकसभा के लिए चुनी गयी थीं. वे केरल की पहली महिला सांसद थीं.



पूर्णिमा बनर्जी-

पूर्णिमा बनर्जी उत्तर प्रदेश के इलाहाबाद में भारतीय राष्ट्रीय कांग्रेस समिति की सचिव थीं. वे उत्तर प्रदेश की महिलाओं के उस समूह की सदस्य थीं, जो 1930 के दशक के अंत और 40 के दशक में स्वतंत्रता आंदोलन में सबसे आगे था. उन्हें सत्याग्रह और भारत छोड़ो आंदोलन में भाग लेने के लिए गिरफ्तार किया गया था. संविधान सभा में पूर्णिमा बनर्जी के भाषणों के एक और खास पहलू समाजवादी विचारधारा के प्रति उनकी दृढ़ प्रतिबद्धता थी.  शहर समिति के सचिव के रूप में वो ट्रेड यूनियनों, किसान सभाओं को शामिल करने, व्यवस्थित करने और अधिक से अधिक ग्रामीण जुड़ाव की दिशा में काम करने के लिए जिम्मेदार थीं. 














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