रायपुर: अपनी पहली छत्तीसगढ़ यात्रा (1920) के 13 साल बाद महात्मा गांधी नवंबर 1933 को दोबारा छत्तीसगढ़ आए. गांधी जी ने दलित तबके के उद्धार के लिए, उन्हें बराबरी का हक दिलाने के लिए भारत के भ्रमण करने का ऐलान किया था. इसी कड़ी में 22 नवंबर, 1933 को बापू दुर्ग पहुंचे.
गांधी जी की दूसरी यात्रा के दौरान भी अपार जनसमूह उनको देखने और सुनने के लिए उमड़ा. दुर्ग में बापू, घनश्याम सिंह गुप्त के निवास पर रुके थे. शाम को शहर में गांधी जी सभा को संबोधित करने वाले थे. इस खबर पर बड़ी संख्या में लोगों ने पहुंचना शुरू कर दिया था.
लाउड स्पीकर न मिलने पर आजमाया गया था ये आइडिया
गांधी जी की इस सभा के दौरान एक दिलचस्प वाकया सामने आया. उस दौरान इतने बड़े जन सैलाब को संबोधित करने के लिए लाउड स्पीकर का इंतजाम नहीं हो पाया था. सभा स्थल पर चारों तरफ लोगों की भीड़ थी. इस परेशानी को हल करने के लिए घनश्याम गुप्ता ने एक अनोखा उपाय निकाला. उन्होंने मंच पर एक घूमने वाली कुर्सी का इंतजाम किया. इस कुर्सी को कुछ लोग धीरे-धीरे घुमाते थे.
गांधी जी को भा गया आइडिया
इस तरह चारों तरफ बैठे लोग गांधीजी का दर्शन कर सके और बापू सभी से फेस टू फेस मुखातिब हो गए. गुप्ता जी का ये प्लान बापू को भी बहुत अच्छा लगा. उन्होंने उनकी तारीफ करते हुए कहा कि 'तू तो बड़ा चतुर निकला. ऐसा अब तक किसी ने नहीं किया था। अब दूसरी जगहों पर भी तेरी इस प्रणाली का उपयोग करने के लिए कहूंगा.'
लोगों ने आरती उतारकर, फूल बरसाकर किया था स्वागत
इस सभा को संबोधित करने के बाद गांधी जी उसी शाम रायपुर रवाना हो गए. यहां देर रात तक लोग सड़कों पर आरती उतारकर और पुष्प वर्षा कर स्वागत करते रहे. आमापारा से बूढ़ापारा स्थित रविशंकर शुक्ल के निवास तक पहुंचने में उन्हें तीन घंटे से ज्यादा का वक्त लग गया.
28 नवंबर तक रायपुर में रुके महात्मा गांधी
बापू इसके बाद 28 नवंबर तक रायपुर में रहे. सुबह शुक्ल निवास पर भजन-कीर्तन का आयोजन किया जाता, इसमें शहर के काफी लोग शामिल होते. दिन में गांधी जी आसपास के इलाके का दौरा करते फिर शाम तक लौटकर रायपुर आ जाते.
दीवार तोड़कर गांधी जी ले जाना पड़ा था
इसी दौरान मोतीबाग जिसे तब विक्टोरिया गार्डन कहा जाता था. वहां हुई उनकी सभा में इस कदर भीड़ उमड़ी कि सभा के बाद उन्हें ले जाने के लिए गार्डन की पिछली दीवार को तोड़ना पड़ा था.
महात्मा गांधी ने पंडित सुंदरलाल शर्मा की तारीफ की थी
इस दौरान लोगों ने हरिजन फंड में जमकर दान दिया. इन सामानों को गांधीजी ने नीलाम कर इस फंड के लिए ज्यादा धन एकत्रित कर लिया. सतनामी आश्रम के निरक्षण के दौरान गांधी जी ने पंडित सुंदरलाल शर्मा की तारीफ करते हुए कहा था ‘हरिजनों के उद्धार विषयक कार्य में पं. सुन्दरलाल शर्मा राजिम वाले मुझसे दो वर्ष बड़े हैं. जिन्होंने देश के इस महत्वपूर्ण कार्य को मेरे इस मिशन से पूर्व संपादित कर संचालित करने में एक आदर्श उपस्थित किया है.
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गांधीजी अपनी इस यात्रा के दौरान छूआ-छूत को दूर करने, ऊंच-नीच का भेद मिटाने के संबंध में लगातार लोगों को जागरूक कर रहे थे. अपनी इस यात्रा के दौरान गांधीजी बिलासपुर, भाटापारा, धमतरी समेत कई छोटे कस्बों का दौरा किया, लोगों से मिले और सामाजिक समानता का संदेश दिया. शायद इसका ही असर है कि आज छत्तीसगढ़ समाजिक समरसता के लिए जाना जाता है.