नई दिल्ली : हैदराबाद में महिला पशु चिकित्सक से बलात्कार और उसकी हत्या के आरोपियों के कथित पुलिस मुठभेड़ में मारे जाने पर दिल्ली उच्च न्यायालय के सेवानिवृत्त न्यायाधीश आर.एस. सोढ़ी ने एतराज जताया है. उनका कहना है कि किसी भी मामले में आरोपियों की सुरक्षा करना पुलिस का धर्म होता है और इस मुल्क में 'तालिबानी इंसाफ' के लिए कोई जगह नहीं है.
न्यायमूर्ति सोढ़ी ने एक साक्षात्कार में कहा, 'अदालत ने चार आरोपियों को आपकी (पुलिस की) हिरासत में भेजा था, तो उनकी हिफाजत करना, उनकी देखभाल करना आपका (पुलिस का) धर्म है. यह कह देना कि वे भाग रहे थे. वे भाग कैसे सकते हैं? आप 15 हैं और वे चार हैं. आपने कहा कि उन्होंने पत्थर फेंके तो आप 15 आदमी थे, क्या आप उन्हें पकड़ नहीं सकते थे? पत्थर से अगर आपको चोट आई तो पत्थर मारने वाला आदमी कितनी दूर होगा. यह कहानी थोड़ी जल्दबाजी में बना दी. आराम से बनाते तो थोड़ी ठीक बनती.'
उन्होंने कहा, 'यह कहानी मुझे जंचती नहीं है. यह हिरासत में की गई हत्या है. कानून कहता है कि जांच करो और जांच निष्पक्ष होनी चाहिए. यह जांच भले ही इनके खिलाफ नहीं हो, लेकिन यह चीज कैसे हुई, कहां से शुरू हुई, सब कुछ जांच में सामने आ जाएगा. इसलिए जांच बेहद जरूरी है.'
न्यायमूर्ति ने कहा, 'दूसरी बात, यह किसने कह दिया कि आरोपियों ने बलात्कार किया था. यह तो पुलिस कह रही है और आरोपियों ने यह पुलिस के सामने ही कहा. पुलिस की हिरासत में किसी से भी कोई भी जुर्म कबूल कराया जा सकता है. अभी तो यह साबित नहीं हुआ था कि उन्होंने बलात्कार किया था. वे सभी कम उम्र के थे. वे भी किसी के बच्चे थे. आपने उनकी जांच कर ली, मुकदमा चला लिया और मार भी दिया.'
उन्होंने कहा, 'पुलिस अदालती कार्यवाही को अपने हाथ में ले ले तो उसका कदम कभी जायज नहीं हो सकता. अगर पुलिस कानून के खिलाफ जाएगी तो वह भी वैसी ही मुल्जिम है, जैसे वे (आरोपी) मुल्जिम हैं. उसका काम सिर्फ जांच करना है और जांच में मिले तथ्यों को अदालत के सामने रखना है. इसमें प्रतिवादी को भी बता दिया जाता है कि आपके खिलाफ ये आरोप हैं और आपको अपनी सफाई में कुछ कहना है तो कह दें.'
उन्होंने कहा, 'अगर प्रतिवादी को अपनी बेगुनाही साबित करने का मौका नहीं दिया जाएगा और गोली मार दी जाएगी. हो सकता है कि किसी और मुल्क में ऐसा इंसाफ होता हो, लेकिन हमारे संविधान के मुताबिक यह इंसाफ नहीं है. इसलिए यह तालिबानी इंसाफ कहीं और हो सकता है. इस मुल्क में नहीं.'
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किसी भी मुठभेड़ के बाद पुलिस को शक की नजर से देखने के सवाल पर न्यायमूर्ति सोढ़ी ने कहा, 'मुठभेड़ के बाद पुलिस पर शक का नजरिया आज तक इसलिए नहीं बदला क्योंकि पुलिस नहीं बदली. हिरासत में मौत हुई है तो कोई एजेंसी तो जांच करेगी कि कहीं आपने हत्या तो नहीं कर दी. अगर हत्या की है तो उसकी सजा आपको मिलेगी. उच्चतम न्यायालय के दिशा-निर्देश हैं कि बिलकुल स्वतंत्र जांच होनी चाहिए. इसके बाद जो भी तथ्य आएंगे, उसके तहत आगे कार्रवाई की जा सकती है.'
यह पूछे जाने पर कि राष्ट्रीय अपराध रिकॉर्ड ब्यूरो (एनसीआरबी) के आंकड़ों के मुताबिक, 2017 में देश में दुष्कर्म के मामलों में दोषसिद्धि की दर बहुत कम थी, इस पर न्यायमूर्ति सोढ़ी ने कहा, 'करीब 33 फीसदी दोषसिद्धि है और 67 फीसदी को बरी किया गया है तो इसका यही मतलब है कि वे निर्दोष थे. आप इसे इस नजर से क्यों नहीं देखते हैं कि निर्दोष को भी फंसाया जा रहा है. यह आप मानने को तैयार क्यों नहीं हैं? अगर कानूनी प्रक्रिया का पालन किया गया है और इसके बाद भी 60 फीसदी आरोपी छूट जाते हैं तो वे बेगुनाह थे, इसलिए छूट गए.'
उन्होंने कहा, 'जहां तक पुलिस के अपना काम ठीक तरह से नहीं करने की बात है तो इसका मतलब यह नहीं है कि आरोपी को गोली मार दी जाए. इसके लिए जांच एजेंसी को मजबूत किया जाए. उसे प्रशिक्षण ठीक तरह से दिया जाए. मारपीट से अपराध कबूल कराया गया है तो इसके आधार पर दोषसिद्धि हो ही नहीं सकती. जांच सही होगी और अदालत के सामने सही तथ्य आएंगे तो अदालत निष्पक्ष होकर फैसला देगी. अदालत दबाव में काम नहीं कर सकती है.'
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निर्भया मामले के बाद कानून को सख्त करने के बावजूद दुष्कर्म नहीं रुकने के सवाल पर उन्होंने कहा, 'कानून चाहे कितने ही बना लें, जब तक इसको लागू ठीक से नहीं किया जाएगा, तब तक कुछ नहीं होगा. जांच और दोषसिद्धि की प्रक्रिया तथा सजा को लागू करने में जब तक तेजी नहीं लाई जाएगी, तब तक किसी के मन में कानून का खौफ ही नहीं होगा. कानून भी खौफ के साथ ही चलता है.'
उन्होंने कहा, 'मेरे हिसाब से मामले बढ़ नहीं रहे हैं बल्कि ज्यादा उजागर हो रहे हैं, जो अच्छी बात है. मामले जितने उजागर होंगे, जनता में उतनी ही जागरूकता आएगी. जब किसी लड़की को सड़क पर छेड़ा जाता है तो लोग उसे बचाते नहीं, बल्कि उसकी फोटा या वीडियो बनाने को तैयार हो जाते हैं. ऐसे मामलों को रोकने के लिए लोगों की भागीदारी भी होनी चाहिए. हर इंसान को निजी तौर पर जिम्मेदार होना होगा.'