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550वां प्रकाश पर्व : एक सदन में पंजाब-हरियाणा के विधायक, उप राष्ट्रपति भी ऐतिहासिक पल के गवाह - उप राष्ट्रपति वैंकेया नायडू

हरियाणा के गठन के 53 वर्षों बाद पंजाब और हरियाणा विधानसभाओं का संयुक्त अधिवेशन आयोजित किया गया. इस सदन में उप राष्ट्रपति वेंकैया नायडू, पूर्व प्रधानमंत्री मनमोहन सिंह, हरियाणा के मुख्यमंत्री मनोहर लाल खट्टर और पंजाब के मुख्यमंत्री कैप्टन अमरिंदर सिंह मौजूद रहे. पढे़ं पूरा विवरण...

53 साल बाद पंजाब और हरियाणा विधानसभा का संयुक्त आयोजन
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Published : Nov 6, 2019, 6:27 PM IST

चंडीगढ़ : पंजाब सरकार की तरफ से गुरुनानक देव जी के 550वें प्रकाश उत्सव को लेकर बुधवार को एक दिन का विशेष सत्र बुलाया गया, जिसमें हरियाणा के विधायकों को भी आमंत्रित किया गया. हरियाणा के गठन के बाद 53 वर्षों में यह पहला मौका था, जब दोनों राज्यों का संयुक्त अधिवेशन आयोजित किया गया.

पंजाब गुरुनानक देव जी की कर्मभूमि : मनमोहन सिंह
पूर्व प्रधानमंत्री मनमोहन सिंह ने सदन को संबोधित करते कहा कि देव गुरुनानक जी ने एकता का संदेश दिया. उन्होंने साथ ही इकबाल के एक शेर का भी जिक्र किया. साथ ही कहा कि पंजाब गुरुनानक देव जी की कर्मभूमि है. पंजाब का कोई युवक हिन्दू और मुसलमान नहीं गुरु जी का बंदा है.

उप राष्ट्रपति वैंकेया बोले - हमें गुरुनाक देव के बताये रास्ते पर चलने की जरूरत
इस ऐतिहासिक पल के साक्षी बने उप राष्ट्रपति वैंकेया नायडू ने गुरु नानक देव जी के जीवन एवं उनकी शिक्षाओं के बारे में चर्चा की. उन्होंने कहा कि हमें उनके दिखाये रास्ते पर चलने की आवश्यकता है.

गुरुनानक देव महान शख्सियत थे, जिन्होंने कौम को जन्म दिया - कैप्टन अमरिंदर
वहीं पंजाब के मुख्यमंत्री कैप्टन अमरिंदर सिंह ने अपने संबोधन में कहा कि वह महान शख्सियत थे, जिन्होंने हमें जन्म दिया, कौम को जन्म दिया. आज जरूरत है कि जो गलत रास्ते पर चले गये हैं, वो वापस आ जाएं. गुरु नानक जी ने कहा था - पवन पिता, पानी गुरु, माता धरती. कैप्टन ने प्रदूषण की समस्या का भी जिक्र किया.

पढे़ं : NDA का परिणाम घोषित, उत्तराखंड के रिपुंजय नैथानी को मिला शीर्ष स्थान

1 नवम्बर, 1966 को अस्तित्व में आया था हरियाणा
देश 15 अगस्त 1947 को आजाद हुआ, लेकिन हरियाणा राज्य 1 नवम्बर 1966 को अस्तित्व में आया था. इससे पहले एक ही राज्य पंजाब हुआ करता था. तब एक ही विधानसभा हुआ करती थी, लेकिन हरियाणा बनने के बाद हरियाणा की विधानसभा अलग हो गई और दोनों राज्य अलग-अलग सदनों में अपने सत्र का आयोजन करने लगे, अब करीब 53 साल बाद फिर से पंजाब सदन में दोनों राज्यों का संयुक्त अधिवेशन आयोजित किया गया.

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53 साल बाद पंजाब और हरियाणा विधानसभा का संयुक्त आयोजन

ये सत्र गुरु नानक देव के जीवन पर केंद्रित रहा. इस दौरान विधानसभा स्पीकर का आसन नहीं लगा जबकि उप राष्ट्रपति, पूर्व पीएम मनमोहन सिंह के अलावा पंजाब के राज्यपाल, सीएम, स्पीकर, नेता प्रतिपक्ष और अन्य नेताओं ने भी गुरुनानक देव पर विचार व्यक्त किये.

एक ही बिल्डिंग में हैं दोनों राज्यों के सदन
चंडीगढ़ विधानभवन में पंजाब और हरियाणा दोनों राज्यों के लिए अलग-अलग सदन हैं. पंजाब विधानसभा का सत्र पंजाब सदन में चलता है और हरियाणा विधानसभा का सत्र हरियाणा सदन में चलता है. हरियाणा की तुलना में पंजाब सदन स्थल काफी बड़ा है, जिसके तीन मुख्य दरवाजे हैं. वहीं हरियाणा सदन स्थल छोटा है और इसमें दो दरवाजे हैं.

हरियाणा के अलग राज्य बनने का संघर्ष
अब हरियाणा पंजाब का हिस्सा नहीं है, लेकिन लंबे समय तक ब्रिटिश भारत में पंजाब प्रांत का एक भाग रहा है.

सन् 1952 में पहले आम चुनाव हुए, जिनमें हरियाणा क्षेत्र से चौ. देवीलाल समेत कांग्रेस के 38 विधायक चुने गये. अलग राज्य बनवाने के लिए चौ. देवीलाल एवं चौ. चरण सिंह ने उत्तरप्रदेश एवं हरियाणा क्षेत्र से 125 विधायकों का हस्ताक्षरयुक्त ज्ञापन तत्कालीन केन्द्रीय गृहमंत्री जीबी पंत को दिल्ली में दिया. 1953 में चौ. देवीलाल ने भारत सरकार द्वारा बनाये गये राज्य पुनर्गठन आयोग के सामने अलग हरियाणा राज्य बनाने की मांग रखी.

ये भी पढ़ें : वकील-पुलिस जंग : दिल्ली पुलिस का अभूतपूर्व विरोध प्रदर्शन खत्म

वर्ष 1955 में अकाली नेताओं ने धर्म के आधार पर पंजाब को बांटने की मांग रखी. उधर पंजाबी प्रांत की मांग को लेकर संत फतेह सिंह ने 16 अगस्त 1965 को आमरण अनशन की घोषणा करते हुए कहा कि यदि सरकार ने पंजाबी सूबा नहीं बनने दिया तो वह आत्मदाह कर लेंगे. केंद्र सरकार ने पार्लियामेंट्री कमेटी की सिफारिशों को सैद्धांतिक आधार पर स्वीकार कर लिया और 23 अप्रैल 1966 को तीनों राज्यों के अलग-अलग गठन के लिए पंजाब सीमा आयोग का गठन किया गया.

संत फतेह सिंह के अनशन से मिला हरियाणा!
अलग पंजाब की मांग को लेकर भी आंदोलन चरम पर था. 1965 में संत फतह सिंह अनशन पर बैठ गये और आत्मदाह की धमकी दे दी. इस आंदोलन के दबाव में पंजाब के बंटवारे की मांग जनसंघ को छोड़कर सभी ने मान ली. इसके बाद 1966 में इंदिरा गांधी प्रधानमंत्री बनीं और उन्होंने पंजाब के बंटवारे को मंजूरी दे दी और 23 अप्रैल 1966 को जेसी शाह के नेतृत्व में एक सीमा आयोग का गठन किया गया. जिसने 31 मई 1966 को अपनी रिपोर्ट सरकार को सौंपी.

इसके बाद तीन सितम्बर 1966 को तत्कालीन गृह मंत्री गुलजारी लाल नंदा ने पंजाब पुनर्गठन बिल लोकसभा में पेश किया. जिसमें कहा गया कि हरियाणा और पंजाब के उच्च न्यायालय, विश्व विद्यालय, बिजली बोर्ड और भंडारण निगम एक ही रहेंगे. इसके अलावा चंडीगढ़ दोनों राज्यों की राजधानी होगी. 7 सितम्बर 1966 को पंजाब पुनर्गठन बिल लोकसभा से पास हो गया और 18 सितम्बर 1966 को राष्ट्रपति ने इस बिल पर मुहर लगायी. अंततः एक नवम्बर 1966 को हरियाणा अलग राज्य बन गया.

चंडीगढ़ : पंजाब सरकार की तरफ से गुरुनानक देव जी के 550वें प्रकाश उत्सव को लेकर बुधवार को एक दिन का विशेष सत्र बुलाया गया, जिसमें हरियाणा के विधायकों को भी आमंत्रित किया गया. हरियाणा के गठन के बाद 53 वर्षों में यह पहला मौका था, जब दोनों राज्यों का संयुक्त अधिवेशन आयोजित किया गया.

पंजाब गुरुनानक देव जी की कर्मभूमि : मनमोहन सिंह
पूर्व प्रधानमंत्री मनमोहन सिंह ने सदन को संबोधित करते कहा कि देव गुरुनानक जी ने एकता का संदेश दिया. उन्होंने साथ ही इकबाल के एक शेर का भी जिक्र किया. साथ ही कहा कि पंजाब गुरुनानक देव जी की कर्मभूमि है. पंजाब का कोई युवक हिन्दू और मुसलमान नहीं गुरु जी का बंदा है.

उप राष्ट्रपति वैंकेया बोले - हमें गुरुनाक देव के बताये रास्ते पर चलने की जरूरत
इस ऐतिहासिक पल के साक्षी बने उप राष्ट्रपति वैंकेया नायडू ने गुरु नानक देव जी के जीवन एवं उनकी शिक्षाओं के बारे में चर्चा की. उन्होंने कहा कि हमें उनके दिखाये रास्ते पर चलने की आवश्यकता है.

गुरुनानक देव महान शख्सियत थे, जिन्होंने कौम को जन्म दिया - कैप्टन अमरिंदर
वहीं पंजाब के मुख्यमंत्री कैप्टन अमरिंदर सिंह ने अपने संबोधन में कहा कि वह महान शख्सियत थे, जिन्होंने हमें जन्म दिया, कौम को जन्म दिया. आज जरूरत है कि जो गलत रास्ते पर चले गये हैं, वो वापस आ जाएं. गुरु नानक जी ने कहा था - पवन पिता, पानी गुरु, माता धरती. कैप्टन ने प्रदूषण की समस्या का भी जिक्र किया.

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1 नवम्बर, 1966 को अस्तित्व में आया था हरियाणा
देश 15 अगस्त 1947 को आजाद हुआ, लेकिन हरियाणा राज्य 1 नवम्बर 1966 को अस्तित्व में आया था. इससे पहले एक ही राज्य पंजाब हुआ करता था. तब एक ही विधानसभा हुआ करती थी, लेकिन हरियाणा बनने के बाद हरियाणा की विधानसभा अलग हो गई और दोनों राज्य अलग-अलग सदनों में अपने सत्र का आयोजन करने लगे, अब करीब 53 साल बाद फिर से पंजाब सदन में दोनों राज्यों का संयुक्त अधिवेशन आयोजित किया गया.

joint-assembly-session-of-haryana-and-punjab-after-53-year
53 साल बाद पंजाब और हरियाणा विधानसभा का संयुक्त आयोजन

ये सत्र गुरु नानक देव के जीवन पर केंद्रित रहा. इस दौरान विधानसभा स्पीकर का आसन नहीं लगा जबकि उप राष्ट्रपति, पूर्व पीएम मनमोहन सिंह के अलावा पंजाब के राज्यपाल, सीएम, स्पीकर, नेता प्रतिपक्ष और अन्य नेताओं ने भी गुरुनानक देव पर विचार व्यक्त किये.

एक ही बिल्डिंग में हैं दोनों राज्यों के सदन
चंडीगढ़ विधानभवन में पंजाब और हरियाणा दोनों राज्यों के लिए अलग-अलग सदन हैं. पंजाब विधानसभा का सत्र पंजाब सदन में चलता है और हरियाणा विधानसभा का सत्र हरियाणा सदन में चलता है. हरियाणा की तुलना में पंजाब सदन स्थल काफी बड़ा है, जिसके तीन मुख्य दरवाजे हैं. वहीं हरियाणा सदन स्थल छोटा है और इसमें दो दरवाजे हैं.

हरियाणा के अलग राज्य बनने का संघर्ष
अब हरियाणा पंजाब का हिस्सा नहीं है, लेकिन लंबे समय तक ब्रिटिश भारत में पंजाब प्रांत का एक भाग रहा है.

सन् 1952 में पहले आम चुनाव हुए, जिनमें हरियाणा क्षेत्र से चौ. देवीलाल समेत कांग्रेस के 38 विधायक चुने गये. अलग राज्य बनवाने के लिए चौ. देवीलाल एवं चौ. चरण सिंह ने उत्तरप्रदेश एवं हरियाणा क्षेत्र से 125 विधायकों का हस्ताक्षरयुक्त ज्ञापन तत्कालीन केन्द्रीय गृहमंत्री जीबी पंत को दिल्ली में दिया. 1953 में चौ. देवीलाल ने भारत सरकार द्वारा बनाये गये राज्य पुनर्गठन आयोग के सामने अलग हरियाणा राज्य बनाने की मांग रखी.

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वर्ष 1955 में अकाली नेताओं ने धर्म के आधार पर पंजाब को बांटने की मांग रखी. उधर पंजाबी प्रांत की मांग को लेकर संत फतेह सिंह ने 16 अगस्त 1965 को आमरण अनशन की घोषणा करते हुए कहा कि यदि सरकार ने पंजाबी सूबा नहीं बनने दिया तो वह आत्मदाह कर लेंगे. केंद्र सरकार ने पार्लियामेंट्री कमेटी की सिफारिशों को सैद्धांतिक आधार पर स्वीकार कर लिया और 23 अप्रैल 1966 को तीनों राज्यों के अलग-अलग गठन के लिए पंजाब सीमा आयोग का गठन किया गया.

संत फतेह सिंह के अनशन से मिला हरियाणा!
अलग पंजाब की मांग को लेकर भी आंदोलन चरम पर था. 1965 में संत फतह सिंह अनशन पर बैठ गये और आत्मदाह की धमकी दे दी. इस आंदोलन के दबाव में पंजाब के बंटवारे की मांग जनसंघ को छोड़कर सभी ने मान ली. इसके बाद 1966 में इंदिरा गांधी प्रधानमंत्री बनीं और उन्होंने पंजाब के बंटवारे को मंजूरी दे दी और 23 अप्रैल 1966 को जेसी शाह के नेतृत्व में एक सीमा आयोग का गठन किया गया. जिसने 31 मई 1966 को अपनी रिपोर्ट सरकार को सौंपी.

इसके बाद तीन सितम्बर 1966 को तत्कालीन गृह मंत्री गुलजारी लाल नंदा ने पंजाब पुनर्गठन बिल लोकसभा में पेश किया. जिसमें कहा गया कि हरियाणा और पंजाब के उच्च न्यायालय, विश्व विद्यालय, बिजली बोर्ड और भंडारण निगम एक ही रहेंगे. इसके अलावा चंडीगढ़ दोनों राज्यों की राजधानी होगी. 7 सितम्बर 1966 को पंजाब पुनर्गठन बिल लोकसभा से पास हो गया और 18 सितम्बर 1966 को राष्ट्रपति ने इस बिल पर मुहर लगायी. अंततः एक नवम्बर 1966 को हरियाणा अलग राज्य बन गया.

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:धार्मिक व शिक्षण संस्थानों की दीवारों पर शरारती तत्वों ने लिखा खालिस्तान ज़िंदाबाद।



थाना शहर पुलिस ने जांच की शुरू।



यमुनानगर कुछ शरारती तत्वों द्वारा धार्मिक व शिक्षण संस्थानों की दीवारों पर खालिस्तान जिंदाबाद लिखा गया जब धार्मिक संस्थान व शिक्षण संस्थान के लोगों ने उसको देखा तो इस पर आपत्ति जताई। वही जैन स्थानक के प्रधान ने दीवार पर लिखे गए खालिस्तान जिंदाबाद की शिकायत थाना शहर पुलिस को दी। थाना शहर पुलिस ने सभी जगह पर मौका मुआयना कर इस मामले और जिन शरारती तत्वों द्वारा किया गया है उसकी जांच शुरू कर दी है। वही शाम ढलते ढलते जिन भी जगहों पर खालीस्तान में लिखा गया उन दीवारों को पेंट से साफ कर दिया गया। वहीं इससे धार्मिक भावनाएं आहत हुई हैं। यमुनानगर के सिटी एसएचओ कमलजीत सिंह का कहना है कि उनके पास एक शिकायत आई है और मामले की जांच की जा रही है जो कोई भी इस तरह की शरारत कर रहा है उसके खिलाफ कड़ी कार्रवाई की जाएगी। शरारती तत्वों द्वारा किसी भी प्रकार का माहौल खराब नहीं करने दिया जाएगा।


Conclusion:
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