ETV Bharat / bharat

कोरोना काल : जल्द ही सामाजिक संकट में बदल सकता है रोजगार संकट - युवाओं और मजदूरों की आय

ऑर्गनाइजेशन फॉर इकोनॉमिक को-ऑपरेशन एंड डेवलपमेंट की रिपोर्ट के मुताबिक कोरोना के कारण महिलाओं, युवाओं और मजदूरों की आय पर सबसे अधिक प्रभाव पड़ा है.

कॉन्सेप्ट इमेज
कॉन्सेप्ट इमेज
author img

By

Published : Jul 9, 2020, 10:01 PM IST

हैदराबाद : प्रवासी श्रमिकों के जीवन को बुरी तरह से प्रभावित करने के बाद कोरोना अब लोगों के रोजगार को छीन रहा है. इसका सबसे ज्यादा प्रभाव महिलाओं, युवाओं और मजदूरों की आय पर पड़ा है. यह आर्थिक संकट, सामाजिक संकट में बदल सकता है. ऑर्गनाइजेशन फॉर इकोनॉमिक को-ऑपरेशन एंड डेवलपमेंट (OECD) की एक रिपोर्ट के अनुसार, महिला, युवा और श्रमिक कम आय पर काम करने को मजबूर हैं.

रिपोर्ट के मुताबिक मई 2020 में बेरोजगारी की दर घटकर 8.4 प्रतिशत रह गई थी, जो अप्रैल में 3.0 प्रतिशत अंक की वृद्धि के बाद, एक दशक में 8.5 प्रतिशत के साथ अपने उच्च स्तर पर पहुंच गई. OECD की रिपोर्ट के अनुसार मई में बेरोजगारों की 54.5 मिलियन थी.

एक ओर जहां संयुक्त राज्य अमेरिका में डोनाल्ड ट्रंप ने अर्थव्यवस्था को फिर से खोल दिया है. छुट्टी पर गए कर्मी काम पर लौट आए हैं. यहां तक वहां कर्मियों की छटनी लगभग खत्म हो गई है, वहीं दूसरी ओर भारत सहित कई अन्य देशों में छंटनी सामान्य बात हो गई है.

OECD एम्प्लॉयमेंट आउटलुक 2020 का कहना है कि अधिक आशावादी परिदृश्य में देखें तो, व्यापक बेरोजगारी दर 2020 की चौथी तिमाही में बढ़कर 9.4 प्रतिशत तक पहुंच सकती है, जो कि महामंदी के बाद शीर्ष पर होगी.

काम करने में लोगों की हिस्सेदारी 2021 के अंत में भी पूर्व-संकट के स्तर से नीचे रहने की उम्मीद है. इसके अलावा काम करने के कुल घंटों में भी गिरावट आई है.

रिपोर्ट के अनुसार, 2008 के वैश्विक वित्तीय संकट के पहले तीन महीनों के मुकाबले में मौजूदा संकट के पहले तीन महीनों में काम करने के दर में दस गुना तेजी से कमी आई है.

ओईसीडी देशों के बीच हुई मंत्रिस्तरीय बैठक में बोलते हुए ओईसीडी के महासचिव एंजेल गुरिया ने कहा कि इस संकट से बचने और नौकरियों को बचाने के लिए सभी देशों को अब हर वो काम करना होगा, जो वह कर सकते हैं.

पढ़ें- भारत में कोरोना का कम्युनिटी ट्रांसमिशन नहीं : स्वास्थ्य मंत्री हर्षवर्धन

उन्होंने कहा कि लंबे समय तक मंदी और युवा पीढ़ी के जोखिम को कम करने के लिए मैक्रोइकॉनॉमिक नीतियों को संकट के दौरान सहायक बने रहना चाहिए. ताकि श्रम बाजार की संभावनाओं को नुकसान से बचाया जा सके. नहीं तो नौकरी का संकट जल्द ही सामाजिक संकट में बदल सकता है.

कोरोना के कारण पुरुषों की तुलना में महिलाओं को अधिक नुकसान हुआ है.

साथ ही स्व-नियोजित और अस्थायी या अंशकालिक अनुबंध पर काम कर रहे लोगों को विशेष रूप से नौकरी गंवानी पड़ी या फिर उनकी आय कम हो गई.

हैदराबाद : प्रवासी श्रमिकों के जीवन को बुरी तरह से प्रभावित करने के बाद कोरोना अब लोगों के रोजगार को छीन रहा है. इसका सबसे ज्यादा प्रभाव महिलाओं, युवाओं और मजदूरों की आय पर पड़ा है. यह आर्थिक संकट, सामाजिक संकट में बदल सकता है. ऑर्गनाइजेशन फॉर इकोनॉमिक को-ऑपरेशन एंड डेवलपमेंट (OECD) की एक रिपोर्ट के अनुसार, महिला, युवा और श्रमिक कम आय पर काम करने को मजबूर हैं.

रिपोर्ट के मुताबिक मई 2020 में बेरोजगारी की दर घटकर 8.4 प्रतिशत रह गई थी, जो अप्रैल में 3.0 प्रतिशत अंक की वृद्धि के बाद, एक दशक में 8.5 प्रतिशत के साथ अपने उच्च स्तर पर पहुंच गई. OECD की रिपोर्ट के अनुसार मई में बेरोजगारों की 54.5 मिलियन थी.

एक ओर जहां संयुक्त राज्य अमेरिका में डोनाल्ड ट्रंप ने अर्थव्यवस्था को फिर से खोल दिया है. छुट्टी पर गए कर्मी काम पर लौट आए हैं. यहां तक वहां कर्मियों की छटनी लगभग खत्म हो गई है, वहीं दूसरी ओर भारत सहित कई अन्य देशों में छंटनी सामान्य बात हो गई है.

OECD एम्प्लॉयमेंट आउटलुक 2020 का कहना है कि अधिक आशावादी परिदृश्य में देखें तो, व्यापक बेरोजगारी दर 2020 की चौथी तिमाही में बढ़कर 9.4 प्रतिशत तक पहुंच सकती है, जो कि महामंदी के बाद शीर्ष पर होगी.

काम करने में लोगों की हिस्सेदारी 2021 के अंत में भी पूर्व-संकट के स्तर से नीचे रहने की उम्मीद है. इसके अलावा काम करने के कुल घंटों में भी गिरावट आई है.

रिपोर्ट के अनुसार, 2008 के वैश्विक वित्तीय संकट के पहले तीन महीनों के मुकाबले में मौजूदा संकट के पहले तीन महीनों में काम करने के दर में दस गुना तेजी से कमी आई है.

ओईसीडी देशों के बीच हुई मंत्रिस्तरीय बैठक में बोलते हुए ओईसीडी के महासचिव एंजेल गुरिया ने कहा कि इस संकट से बचने और नौकरियों को बचाने के लिए सभी देशों को अब हर वो काम करना होगा, जो वह कर सकते हैं.

पढ़ें- भारत में कोरोना का कम्युनिटी ट्रांसमिशन नहीं : स्वास्थ्य मंत्री हर्षवर्धन

उन्होंने कहा कि लंबे समय तक मंदी और युवा पीढ़ी के जोखिम को कम करने के लिए मैक्रोइकॉनॉमिक नीतियों को संकट के दौरान सहायक बने रहना चाहिए. ताकि श्रम बाजार की संभावनाओं को नुकसान से बचाया जा सके. नहीं तो नौकरी का संकट जल्द ही सामाजिक संकट में बदल सकता है.

कोरोना के कारण पुरुषों की तुलना में महिलाओं को अधिक नुकसान हुआ है.

साथ ही स्व-नियोजित और अस्थायी या अंशकालिक अनुबंध पर काम कर रहे लोगों को विशेष रूप से नौकरी गंवानी पड़ी या फिर उनकी आय कम हो गई.

ETV Bharat Logo

Copyright © 2024 Ushodaya Enterprises Pvt. Ltd., All Rights Reserved.