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शोध : मशीन लर्निंग से करेंगे कोरोना मरीजों में हृदय संबंधी रोगों की पहचान

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Published : May 21, 2020, 1:58 PM IST

जॉन्स हॉपकिन्स यूनिवर्सिटी के शोधकर्ताओं को 195,000 अमेरिकी डॉलर का रैपिड रिस्पांस रिसर्च अनुदान मिला है. इससे ये मशीन लर्निंग के जरिए कोरोना रोगियों में होने वाली दिल की गंभीर दिक्कतों का पता लगा सकेंगे. पढ़ें विस्तार से...

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सांंकेतिक चित्र

हैदराबाद : मशीन लर्निंग के जरिए, जॉन्स हॉपकिन्स के शोधकर्ता कोरोना मरीजों में हृदय गति रुकने, असामान्य दिल की धड़कन, दिल के दौरे, हृदयाघात और मृत्यु जैसी हृदय संबंधी रोगों का खतरा पहचानने की कोशिश कर रहे हैं.

टीम को हाल ही में राष्ट्रीय विज्ञान फाउंडेशन से 195,000 अमेरिकी डॉलर रैपिड रिस्पांस रिसर्च अनुदान प्राप्त हुआ है.

शोधकर्ताओं ने कहा कि हृदय प्रणाली पर कोविड-19 के नकारात्मक प्रभावों के बढ़ते प्रमाण मिले हैं. इस वजह से दिल की समस्याओं के जोखिम वाले कोरोना रोगियों की पहचान करना करना बहुत जरूरी हो गया है.

जॉन्स हॉपकिन्स यूनिवर्सिटी स्कूल ऑफ इंजीनियरिंग एंड मेडिसिन के डिपार्टमेंट ऑफ बायोमेडिकल इंजीनियरिंग में प्रोफेसर मरे बी और परियोजना की मुख्य अन्वेषक नताल्या ट्रायनोवा ने कहा कि यह परियोजना चिकित्सकों को दिल की बीमारी से जुड़े शुरुआती चेतावनी के संकेत देने के साथ मरीजों को संस्थाओं द्वारा संसाधनों आवंटन सुनिश्चित करेगी, जो सबसे बड़ी जरूरत है.

जॉन्स हॉपकिन्स हेल्थ सिस्टम (JHHS) ने भर्ती किए गए 300 कोरोना मरीजों का ईसीजी, कार्डियक-विशिष्ट प्रयोगशाला परीक्षणों, हृदय गति और ऑक्सीजन संतृप्ति जैसे लगातार प्राप्त महत्वपूर्ण संकेतों और सीटी स्कैन और इकोकार्डियोग्राफी जैसे इमेजिंग डेटा एकत्र करेगा. इस डेटा के माध्यम से, वे एल्गोरिथ्म को प्रशिक्षित किए जांएंंगे.

जेएचएचएस या आसपास के अन्य अस्पतालों में हृदयाघात वाले सीओवीआईडी ​​-19 रोगियों के डेटा के साथ एल्गोरिथ्म का परीक्षण किया जाएगा.

शोधकर्ता एक पूर्वानुमानित जोखिम स्कोर बनाना चाहते हैं, जिससे रोगियों में होने वाली प्रतिकूल हृदय संबंधी घटनाओं का 24 घंटे पता लगाया जा सकता है.

पढ़ें : कनाडा में शोध : पौधों पर आधारित वैक्सीन से हो सकता है कोरोना का इलाज

जॉन्स हॉपकिन्स यूनिवर्सिटी स्कूल ऑफ मेडिसिन डिवीजन ऑफ कार्डियोलॉजी की एसोसिएट प्रोफेसर और मेडिसिन की नैदानिक ​​सहयोगी एलीसन जी हेस का कहना है कि अब भी चिकित्सक कोरोना मरीजों में होने वाली दिल की नई बीमारी का पता लगाने में असमर्थ हैं. जो सामान्या है और जानलेवा साबित हो सकती है.

इस शोध से यह जानने में मदद मिलेगी कि कोरोना से संबंधित हृदय की चोट अचानक मृत्यु और हृदय रोग का कारण कैसे बन सकती हैं.

अनुसंधान टीम बनाने और उनके एल्गोरिथ्म का परीक्षण करने के बाद किसी भी इच्छुक स्वास्थ्य संस्थान के लिए इसे व्यापक रूप से उपलब्ध कराया जा सकता है.

ट्रायनोवा ने कहा कि दिल की बीमारी से जुड़े खतरे का पहले पता लगाकर डॉक्टर सबसे बेहतर तरीकों से इलाज कर सकेंगे, जिससे लोगों की जान बचाई जा सकेगी.

चिकित्सकों को यह निर्धारित करने में सहायता मिल सकती है कि कौन से बायोमार्कर इस परियोजना के साथ प्रतिकूल नैदानिक ​​परिणामों की सबसे अधिक भविष्यवाणी कर रहे हैं.

हैदराबाद : मशीन लर्निंग के जरिए, जॉन्स हॉपकिन्स के शोधकर्ता कोरोना मरीजों में हृदय गति रुकने, असामान्य दिल की धड़कन, दिल के दौरे, हृदयाघात और मृत्यु जैसी हृदय संबंधी रोगों का खतरा पहचानने की कोशिश कर रहे हैं.

टीम को हाल ही में राष्ट्रीय विज्ञान फाउंडेशन से 195,000 अमेरिकी डॉलर रैपिड रिस्पांस रिसर्च अनुदान प्राप्त हुआ है.

शोधकर्ताओं ने कहा कि हृदय प्रणाली पर कोविड-19 के नकारात्मक प्रभावों के बढ़ते प्रमाण मिले हैं. इस वजह से दिल की समस्याओं के जोखिम वाले कोरोना रोगियों की पहचान करना करना बहुत जरूरी हो गया है.

जॉन्स हॉपकिन्स यूनिवर्सिटी स्कूल ऑफ इंजीनियरिंग एंड मेडिसिन के डिपार्टमेंट ऑफ बायोमेडिकल इंजीनियरिंग में प्रोफेसर मरे बी और परियोजना की मुख्य अन्वेषक नताल्या ट्रायनोवा ने कहा कि यह परियोजना चिकित्सकों को दिल की बीमारी से जुड़े शुरुआती चेतावनी के संकेत देने के साथ मरीजों को संस्थाओं द्वारा संसाधनों आवंटन सुनिश्चित करेगी, जो सबसे बड़ी जरूरत है.

जॉन्स हॉपकिन्स हेल्थ सिस्टम (JHHS) ने भर्ती किए गए 300 कोरोना मरीजों का ईसीजी, कार्डियक-विशिष्ट प्रयोगशाला परीक्षणों, हृदय गति और ऑक्सीजन संतृप्ति जैसे लगातार प्राप्त महत्वपूर्ण संकेतों और सीटी स्कैन और इकोकार्डियोग्राफी जैसे इमेजिंग डेटा एकत्र करेगा. इस डेटा के माध्यम से, वे एल्गोरिथ्म को प्रशिक्षित किए जांएंंगे.

जेएचएचएस या आसपास के अन्य अस्पतालों में हृदयाघात वाले सीओवीआईडी ​​-19 रोगियों के डेटा के साथ एल्गोरिथ्म का परीक्षण किया जाएगा.

शोधकर्ता एक पूर्वानुमानित जोखिम स्कोर बनाना चाहते हैं, जिससे रोगियों में होने वाली प्रतिकूल हृदय संबंधी घटनाओं का 24 घंटे पता लगाया जा सकता है.

पढ़ें : कनाडा में शोध : पौधों पर आधारित वैक्सीन से हो सकता है कोरोना का इलाज

जॉन्स हॉपकिन्स यूनिवर्सिटी स्कूल ऑफ मेडिसिन डिवीजन ऑफ कार्डियोलॉजी की एसोसिएट प्रोफेसर और मेडिसिन की नैदानिक ​​सहयोगी एलीसन जी हेस का कहना है कि अब भी चिकित्सक कोरोना मरीजों में होने वाली दिल की नई बीमारी का पता लगाने में असमर्थ हैं. जो सामान्या है और जानलेवा साबित हो सकती है.

इस शोध से यह जानने में मदद मिलेगी कि कोरोना से संबंधित हृदय की चोट अचानक मृत्यु और हृदय रोग का कारण कैसे बन सकती हैं.

अनुसंधान टीम बनाने और उनके एल्गोरिथ्म का परीक्षण करने के बाद किसी भी इच्छुक स्वास्थ्य संस्थान के लिए इसे व्यापक रूप से उपलब्ध कराया जा सकता है.

ट्रायनोवा ने कहा कि दिल की बीमारी से जुड़े खतरे का पहले पता लगाकर डॉक्टर सबसे बेहतर तरीकों से इलाज कर सकेंगे, जिससे लोगों की जान बचाई जा सकेगी.

चिकित्सकों को यह निर्धारित करने में सहायता मिल सकती है कि कौन से बायोमार्कर इस परियोजना के साथ प्रतिकूल नैदानिक ​​परिणामों की सबसे अधिक भविष्यवाणी कर रहे हैं.

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