श्रीनगर : कोविड-19 के बढ़ते प्रकोप के बीच विदेश में व्यावसायिक पाठ्यक्रमों में पढ़ने वाले छात्र घाटी वापस लौट आए हैं. तीन महीने से अधिक का समय बीतने के बाद भी छात्र सुरक्षा का हवाला देते हुए अपने संबंधित कॉलेजों में वापस जाने के लिए तैयार नहीं हैं. हालांकि कश्मीर में परामर्श केंद्रों का दावा है कि वे छात्रों के साथ खड़े हैं, लेकिन असहाय हैं क्योंकि 5 अगस्त, 2019 से वे भी आर्थिक रूप से कमजोर हो गए हैं.
करियर काउंसलर अकसा भट ने ईटीवी भारत से कहा कि छात्रों ने हमें किसी भी भारतीय विश्वविद्यालय में प्रवेश कराने के लिए संपर्क किया है. वे अब विदेश वापस जाने के लिए तैयार नहीं हैं. हर किसी के लिए सुरक्षा एक चिंता का विषय है. उनमें से कुछ छात्र अंतिम वर्ष में हैं, कुछ ने इस वर्ष केवल प्रवेश लिया है.
भट ने आगे कहा कि हर जगह अनिश्चितता है और हमें नहीं पता कि चीजों को कैसे सुलझाया जाएगा. भारत के बाहर विश्वविद्यालयों ने ऑनलाइन मोड के माध्यम से फिर से कक्षाएं शुरू की हैं, लेकिन हमारे छात्र भाग नहीं ले सकते क्योंकि इंटरनेट की गति उसके लिए बहुत धीमी है. कोरोना के कारण लगभग सभी विश्वविद्यालयों में परीक्षा लंबित हैं. वे इन परिस्थितियों में नए छात्रों को कैसे दाखिला देंगे?
अनुच्छेद 370 और 35A के निरस्त होने के बाद से भट को लगता है कि करियर काउंसलर्स का काम सबसे बुरी तरह से प्रभावित हुआ है. कोई भी उन पर ध्यान नहीं देता है.
अकसा भट कहती हैं कि 5 अगस्त, 2019 से हम संघर्ष कर रहे हैं. हमें इस साल फरवरी में आशा की एक किरण दिखी, जब एक छात्र का प्रवेश करने माता-पिता आगे आए. ये माता-पिता अपने बच्चों के भविष्य के बारे में चिंतित थे. हमने किर्गिस्तान, बांग्लादेश और अन्य मध्य पूर्व देशों में भी कुछ प्रवेश कराए, लेकिन तब तक कोविड 19 ने सब बरबाद कर दिया.
भट ने कहा कि महामारी के दौरान विदेश में पढ़ने वाले छात्रों के पास साझा करने के लिए कई दर्दनाक किस्से हैं. माता-पिता और बच्चों को विदेश से छात्रों के वीजा और एयरलिफ्टिंग के लिए बहुत नुकसान उठाना पड़ा. भारतीय कॉलेजों में प्रबंधन ने उन छात्रों के लिए कुछ भी नहीं किया जो उन्हें खुद से करना था. यहां हम भी असहाय थे क्योंकि हमारे हाथ में कुछ भी नहीं था.
भट कहती हैं कि विदेशों में बुरे अनुभव के बाद छात्र अब भारतीय कॉलेजों को प्राथमिकता दे रहे हैं. पहले माता-पिता अपने बच्चों को विदेश भेजते थे क्योंकि वे विश्वविद्यालय कम बजट वाले थे. यह गुणवत्ता के लिए नहीं था, लेकिन अब उन्हें लगता है कि यदि इसी तरह की स्थिति फिर से पैदा होती है, तो संभालना बहुत आसान हो जाएगा.
(सज्जाद अमीन और इब्राहिम मूसा)