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जम्मू को अलग राज्य का दर्जा देने की मांग, कई संगठनों से प्रस्ताव पारित

जम्मू-कश्मीर की 20 से अधिक राजनीतिक पार्टियों और सामाजिक संस्थाओं ने 'जम्मू डिक्लेरेशन' का प्रस्ताव पारित किया है. इसका मकसद जम्मू को अलग राज्य का दर्जा दिलाना है. जिन लोगों ने यह प्रस्ताव पारित किया है उनमें कई बुद्धिजीवी, वकील, छात्र और युवा संगठनों के अलावा व्यापारिक इकाइयां भी शामिल हैं.

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Published : Oct 22, 2020, 9:56 AM IST

श्रीनगर : जम्मू को अलग राज्य का दर्जा देने के संबंध में एक प्रस्ताव पारित किया गया है, जिन राजनीतिक-सामाजिक संगठनों के लोगों ने यह मांग उठाई है, उनका कहना है कि जम्मू क्षेत्र दशकों से नजरअंदाज किया जाता रहा है. लोगों का आरोप है कि इस क्षेत्र में विकास कार्यों के लिए पर्याप्त फंड नहीं मिल पा रहा है. इससे यहां के पर्यटन का भी प्रचार नहीं हो पा रहा. रोजगार के मुद्दे का जिक्र करते हुए 'जम्मू डिक्लेरेशन' से जुड़े लोगों का कहना है कि जम्मू के लोगों को नौकरियों के लिए दूसरी जगह पर जाने के लिए मजबूर होना पड़ रहा है.

दरअसल, बुधवार को आयोजित एक कार्यक्रम में कई दलों ने सर्वसम्मति से 'जम्मू डिक्लेरेशन' पारित किया. लोगों का कहना है कि अनुच्छेद 370 के प्रावधानों में बदलाव होने के बावजूद उन लोगों की जिंदगी पर कोई खास फर्क नहीं पड़ा है और जम्मू क्षेत्र की उपेक्षा लगातार जारी है.

जम्मू डिक्लेरेशन के समर्थकों का कहना है कि जम्मू-कश्मीर के केंद्र शासित प्रदेश बनने के बाद और पुनर्गठन कानून लागू होने के बाद भी जम्मू क्षेत्र पर पर्याप्त ध्यान नहीं दिया जा रहा है.

प्रस्ताव पारित कराने के लिए जम्मू में बैठक का आयोजन हर्ष देव सिंह ने किया था. हर्ष देव सिंह जेकेएनपीपी के अध्यक्ष हैं. वह पूर्व मंत्री भी रह चुके हैं. बैठक में शामिल होने वाले लोगों में जज पवित्र सिंह और पूर्व मंत्री मनीष साहनी भी शामिल हैं.

जम्मू डिक्लेरेशन प्रस्ताव पारित होने के समय हर्ष देव सिंह ने कहा कि अनुच्छेद 370 के प्रावधान निरस्त होने के बाद भी जम्मू में हिंसा हो रही है. उन्होंने कहा कि केंद्र की ओर से मिलने वाली मदद और जम्मू के सशक्तिकरण की बात कोरी साबित हुई है.

हर्ष देव सिंह ने यह भी कहा कि जम्मू कश्मीर पुनर्गठन के समय यह कहा गया था कि राज्य के संसाधनों में जम्मू क्षेत्र का बराबर का हिस्सा रहेगा लेकिन ऐसा नहीं है. उन्होंने कहा कि लद्दाख और कश्मीर को ज्यादा तरजीह दी जा रही है और केंद्र भी उन इलाकों पर ही ज्यादा ध्यान केंद्रित कर रहा है.

उन्होंने कहा कि जम्मू क्षेत्र को जितना हिस्सा मिलना चाहिए वह नहीं मिल पा रहा. हर्ष देव सिंह ने कहा कि पुनर्गठन के बाद यह कहा गया था कि सरकार की ओर से फायर सर्विसेज विभाग में जम्मू को पर्याप्त प्रतिनिधित्व मिलेगा लेकिन फैसले का बड़ा भाग कश्मीर पर केंद्रित है.

जम्मू कश्मीर को केंद्र शासित प्रदेश बनाने के फैसले पर हर्ष देव सिंह ने कहा की इस फैसले का कोई औचित्य नहीं था. उन्होंने कहा कि जम्मू क्षेत्र को कश्मीर की अशांति के कारण बड़ा खामियाजा भुगतना पड़ा है.

यह भी पढ़ें- जम्मू-कश्मीर में पंचायती राज कानून को मंजूरी, जल्द होंगे चुनाव

बकौल हर्ष देव सिंह जम्मू के लोग शांति प्रिय हैं और अपने राष्ट्रवादी, सेकुलर और देश के संविधान के प्रति समर्पित भावना के लिए जाने जाते हैं. उन्होंने कहा कि जम्मू क्षेत्र के लोग देश की अखंडता और संप्रभुता बरकरार रखना चाहते हैं. उन्होंने नागरिकता संशोधन कानून और राष्ट्रीय नागरिक रजिस्टर के दौरान हुई हिंसक घटनाओं का जिक्र करते हुए कहा कि जम्मू सबसे शांत प्रदेश रहा है जबकि अन्य राज्यों में हिंसक विरोध-प्रदर्शन देखा गया है.

प्रशासनिक प्रतिबंधों पर अफसोस जाहिर करते हुए हर्ष देव सिंह ने कहा कि जम्मू को कश्मीर के अशांति के कारण कई बार नुकसान उठाना पड़ता है. उन्होंने कहा कि कश्मीर में हुई समस्याओं के कारण जम्मू क्षेत्र में भी 4G इंटरनेट की सेवाएं बंद कर दी गई इसके अलावा लोगों के लोकतांत्रिक अधिकार भी छीन लिए गए.

श्रीनगर : जम्मू को अलग राज्य का दर्जा देने के संबंध में एक प्रस्ताव पारित किया गया है, जिन राजनीतिक-सामाजिक संगठनों के लोगों ने यह मांग उठाई है, उनका कहना है कि जम्मू क्षेत्र दशकों से नजरअंदाज किया जाता रहा है. लोगों का आरोप है कि इस क्षेत्र में विकास कार्यों के लिए पर्याप्त फंड नहीं मिल पा रहा है. इससे यहां के पर्यटन का भी प्रचार नहीं हो पा रहा. रोजगार के मुद्दे का जिक्र करते हुए 'जम्मू डिक्लेरेशन' से जुड़े लोगों का कहना है कि जम्मू के लोगों को नौकरियों के लिए दूसरी जगह पर जाने के लिए मजबूर होना पड़ रहा है.

दरअसल, बुधवार को आयोजित एक कार्यक्रम में कई दलों ने सर्वसम्मति से 'जम्मू डिक्लेरेशन' पारित किया. लोगों का कहना है कि अनुच्छेद 370 के प्रावधानों में बदलाव होने के बावजूद उन लोगों की जिंदगी पर कोई खास फर्क नहीं पड़ा है और जम्मू क्षेत्र की उपेक्षा लगातार जारी है.

जम्मू डिक्लेरेशन के समर्थकों का कहना है कि जम्मू-कश्मीर के केंद्र शासित प्रदेश बनने के बाद और पुनर्गठन कानून लागू होने के बाद भी जम्मू क्षेत्र पर पर्याप्त ध्यान नहीं दिया जा रहा है.

प्रस्ताव पारित कराने के लिए जम्मू में बैठक का आयोजन हर्ष देव सिंह ने किया था. हर्ष देव सिंह जेकेएनपीपी के अध्यक्ष हैं. वह पूर्व मंत्री भी रह चुके हैं. बैठक में शामिल होने वाले लोगों में जज पवित्र सिंह और पूर्व मंत्री मनीष साहनी भी शामिल हैं.

जम्मू डिक्लेरेशन प्रस्ताव पारित होने के समय हर्ष देव सिंह ने कहा कि अनुच्छेद 370 के प्रावधान निरस्त होने के बाद भी जम्मू में हिंसा हो रही है. उन्होंने कहा कि केंद्र की ओर से मिलने वाली मदद और जम्मू के सशक्तिकरण की बात कोरी साबित हुई है.

हर्ष देव सिंह ने यह भी कहा कि जम्मू कश्मीर पुनर्गठन के समय यह कहा गया था कि राज्य के संसाधनों में जम्मू क्षेत्र का बराबर का हिस्सा रहेगा लेकिन ऐसा नहीं है. उन्होंने कहा कि लद्दाख और कश्मीर को ज्यादा तरजीह दी जा रही है और केंद्र भी उन इलाकों पर ही ज्यादा ध्यान केंद्रित कर रहा है.

उन्होंने कहा कि जम्मू क्षेत्र को जितना हिस्सा मिलना चाहिए वह नहीं मिल पा रहा. हर्ष देव सिंह ने कहा कि पुनर्गठन के बाद यह कहा गया था कि सरकार की ओर से फायर सर्विसेज विभाग में जम्मू को पर्याप्त प्रतिनिधित्व मिलेगा लेकिन फैसले का बड़ा भाग कश्मीर पर केंद्रित है.

जम्मू कश्मीर को केंद्र शासित प्रदेश बनाने के फैसले पर हर्ष देव सिंह ने कहा की इस फैसले का कोई औचित्य नहीं था. उन्होंने कहा कि जम्मू क्षेत्र को कश्मीर की अशांति के कारण बड़ा खामियाजा भुगतना पड़ा है.

यह भी पढ़ें- जम्मू-कश्मीर में पंचायती राज कानून को मंजूरी, जल्द होंगे चुनाव

बकौल हर्ष देव सिंह जम्मू के लोग शांति प्रिय हैं और अपने राष्ट्रवादी, सेकुलर और देश के संविधान के प्रति समर्पित भावना के लिए जाने जाते हैं. उन्होंने कहा कि जम्मू क्षेत्र के लोग देश की अखंडता और संप्रभुता बरकरार रखना चाहते हैं. उन्होंने नागरिकता संशोधन कानून और राष्ट्रीय नागरिक रजिस्टर के दौरान हुई हिंसक घटनाओं का जिक्र करते हुए कहा कि जम्मू सबसे शांत प्रदेश रहा है जबकि अन्य राज्यों में हिंसक विरोध-प्रदर्शन देखा गया है.

प्रशासनिक प्रतिबंधों पर अफसोस जाहिर करते हुए हर्ष देव सिंह ने कहा कि जम्मू को कश्मीर के अशांति के कारण कई बार नुकसान उठाना पड़ता है. उन्होंने कहा कि कश्मीर में हुई समस्याओं के कारण जम्मू क्षेत्र में भी 4G इंटरनेट की सेवाएं बंद कर दी गई इसके अलावा लोगों के लोकतांत्रिक अधिकार भी छीन लिए गए.

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