छतरपुर: 1930 में जिस समय महात्मा गांधी का असहयोग आंदोलन अपने चरम पर था, तब बापू के इस आंदोलन से रोजाना बड़ी संख्या में लोग जुड़ रहे थे और विदेशी सामानों का बहिष्कार कर उसकी होली जला रहे थे. बुंदेलखंड में भी असहयोग आंदोलन की आग धीरे-धीरे धधकती जा रही थी. इसी क्रम में छतरपुर जिले के सिंहपुर में लगभग 60 हजार लोग एकजुट हुए और स्वदेशी वस्तुओं का उपयोग करने के अलावा लगान नहीं देने की मुनादी कर दी.
बुंदेलखंड में अंग्रेजों के खिलाफ इसके पहले इतना बड़ा आंदोलन कभी नहीं हुआ था, इसके बाद विदेशी वस्तुओं का बहिष्कार और देशी उत्पादों को बढ़ावा देने के लिए 14 जनवरी, 1931 को सिंहपुर में मकर संक्राति मेले के दिन बड़ी बैठक आयोजित की गई, जिसमें 7000 से भी ज्यादा लोग शामिल हुए.
14 जनवरी, 1931 की तारीख इतिहास के पन्नों पर खूनी अक्षरों में हमेशा के लिए दर्ज हो गई, क्योंकि इस बैठक को नाकाम करने के लिए अंग्रेजों ने बुंदेलखंड की धरती को भी खून से लाल कर जलियांवाला बाग जैसा बना दिया. अंग्रेज सैनिकों ने क्रांतिकारियों पर अंधाधुंध गोलियां दागी. 200 आंदोलनकारी मौके पर ही ढेर हो गए.
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इतनी बड़ी संख्या में हुए इस नरसंहार को लोगों ने बुंदेलखंड का 'जलियांवाला बाग' नाम दिया, जिसके बाद लोगों में अंग्रेजी शासन के खिलाफ आक्रोश और अधिक बढ़ गया. इस घटना के बाद पूरे बुंदेलखंड में अंग्रेजों के खिलाफ क्रांति की ज्वाला भड़क उठी, जो अंग्रेजों के उल्टे पांव भागने तक धधकती रही.
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आजादी मिलने के बाद सिंहपुर के इस स्थान को चरण पादुका के नाम से जाना गया. यहां क्रांतिकारियों की शहादत की याद में बलिदान स्थल पर एक स्मारक तामीर कराया गया है, जो आज भी आजादी के मतवालों के जोश-जज्बे-जुनून की कहानी बयां करती है.