कम से कम लागत में अधिकतम उत्पादन प्राप्त करना गांधी के सिद्धान्तों का एक प्रमुख उदाहरण है. मशूहर वैज्ञानिक आरए माशेलकर ने जयपुर फुट को गांधीवादी इंजीनियरिंग का एक उदाहरण बताया है. भारत सहित 32 देशों में अब तक करीब 18 लाख दिव्यांग लोग लाभान्वित हो चुके हैं.
जयपुर फुट की लागत काफी कम होती है, लेकिन प्रौद्योगिकी काफी उच्च स्तर की है. यह एक कृत्रिम अंग है. इसकी कीमत लगभग 4,100 रुपये है. भगवान महावीर विकास सहयोग समिति ने इस प्रोस्थेटिक का नवाचार किया है. दिव्यांगों की जिंदगी में इससे सम्मानजनक बदलाव लाए हैं.
भगवान महावीर विकास सहयोग समिति के संस्थापक, देवेंद्र राज मेहता, एक सिविल सेवक थे और भारतीय रिज़र्व बैंक (RBI) के उप गवर्नर और फिर भारतीय प्रतिभूति और विनिमय बोर्ड के संस्थापक अध्यक्ष बने. उन्होंने जयपुर फुट के मूल निकाय बीएमवीएसएस की स्थापना की थी. वह एक ऐसे परिवार से आते हैं, जिन्होंने गांधीवाद का पालन किया, और उन्होंने बीएमवीएसएस की स्थापना उन सहकर्मियों की मदद करने के लिए की, जिन्होंने अपने अंगों को खो दिया था, जिससे उन लोगों की सामाजिक समस्याएं बढ़ गई थी. उनके घर में आय का जरिया कम हो गया था.
डीआर मेहता ने कहा कि उन्होंने 44 साल पहले गांधीवाद के सिद्धान्त का पालन करते हुए बीएमवीएसएस की स्थापना की थी. उनके अनुसार उनकी संस्था दूसरों के दर्द को समझती है. उन्होंने कहा कि एक व्यक्ति जो यहां रेंगकर आता है या फिर कटे-फटे अंगों के साथ आता है, और जब यहां से वह जाता है, तो वह गरिमापूर्ण तरीके से चलकर जाता है. यह देखकर सबसे अधिक संतोष मिलता है. यह गांधी के प्रसिद्ध भजन, वैष्णव जन को तेने कहिए, जो पीर पराये जान रे, को ही चरितार्थ करता है.
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प्रसिद्ध वैज्ञानिक आइंस्टीन की जिंदगी को बार-बार पढ़ने वाले मेहता ने कहा कि भारत को 20 वीं सदी का सबसे बड़ा उपहार गांधी के रूप में मिला. जबकि 21वीं सदी में हमें गांधीवादी इंजीनियरिंग का उपयोग देखने को मिलेगा.
गांधीवादी इंजीनियरिंग नवाचारों पर जोर देती है. यह न केवल सस्ती होनी चाहिए, बल्कि यह बेहद सस्ती होनी चाहिए. यानि अधिक से अधिक के लिए कम से कम लागत और अधिक से अधिक लोगों की भागीदारी.
नवाचार (इन्नोवेशन) का असली उद्देश्य तभी देखा जाता है, जब यह अपने लक्ष्य तक पहुंच जाता है. प्रभावित लोगों के जीवन में यथार्थपरक बदलाव लाता है. सिर्फ साधन बढ़ा देना ही उद्देश्य नहीं होता है.
कारीगर स्वर्गीय मास्टर रामचंद्र ने सबसे पहले जयपुर फुट के बारे में कल्पना की थी और उन्होंने इसे बनाया. इसके बाद तीन डॉक्टर इस नवाचार में शामिल हुए. 1968 में दुनिया को पहला जयपुर फुट पेश किया. जयपुर फुट के सर्वश्रेष्ठ निर्माता स्थानीय कारीगर हैं. 1968 में जयपुर फुट की कीमत 250 रुपये थी, 44 वर्षों के बाद इसकी कीमत 4100 रुपये है.
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पश्चिमी दुनिया में भी ऐसा अंग बनाया गया है, लेकिन उसकी कीमत दस हजार डॉलर से भी ज्यादा है. जयपुर फुट की लागत मात्र 66 डॉलर होती है. जब भारतीय विदेश मंत्रालय ने गांधी की150 वीं जयंती कार्यक्रम मनाने की अपनी योजना बनाई, तो इसने इंडिया फॉर ह्यूमैनिटी कार्यक्रम के तहत देश का प्रतिनिधित्व करने के लिए जयपुर फुट को चुना.
महात्मा गांधी के करुणा, देखभाल और मानवता की सेवा के दर्शन पर ध्यान देने के साथ, इस पहल में दुनिया भर के कई देशों में कृत्रिम अंग फिट करने के शिविरों की एक साल तक श्रृंखला होगी. इसके लिए विदेश मंत्रालय ने सहयोग के रूप में बीएमवीएसएस को चुना है.
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इस कार्यक्रम के लॉन्च पर बात करते हुए, पिछले साल, दिवंगत विदेश मंत्री सुषमा स्वराज ने कहा था 'यह इस भावना में है कि हम इस अद्भुत पहल, भारत फॉर ह्यूमैनिटी को लॉन्च करें. यह पहल उन हजारों लोगों के जीवन को स्पर्श करेगी, जिन्हें ऐसी सहायता की आवश्यकता है, और कई देशों को कवर करने के लिए एक वर्ष से अधिक का समय होगा.'
सुषमा स्वराज ने कहा था 'हमने बड़ा उद्देश्य इसलिए रखा है कि क्योंकि आसपास के अलग-अलग रहने वाले लोगों के शारीरिक, आर्थिक और सामाजिक पुनर्वास के लिए उनकी मदद कर सकें. हम चाहते हैं कि वे लोग फिर से अपनी शारीरिक गतिशीलता को प्राप्त कर सकें, सम्मान के साथ जिंदगी जी सकें और समाज में अपना बेहतरीन योगदान कर सकें.'
(लेखक- प्रकाश भंडारी)
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