श्रीनगरः दक्षिण कश्मीर के शोपियां में पिछले महीने हुई एक मुठभेड़ जांच के घेरे में आ गयी है. जम्मू क्षेत्र में राजौरी के परिवारों ने उसी इलाके से परिवार के अपने सदस्यों के लापता होने के संबंध में पुलिस के समक्ष शिकायत दर्ज करायी है, जिसके बाद सैन्य अधिकारियों ने जांच शुरू कर दी है.
18 जुलाई 2020 को जम्मू-कश्मीर के शोपियां जिले में सैनिकों द्वारा तीन मजदूरों की हत्या के मामले में पूछताछ कर रहे भारतीय सेना के अधिकारियों की रिपोर्टों का जवाब देते हुए, एमनेस्टी इंटरनेशनल इंडिया के कार्यकारी निदेशक अविनाश कुमार ने बताया कि एमनेस्टी इंटरनेशनल इंडिया चाहती है कि इस हत्याकांड की जांच और मुकदमा स्वतंत्र सिविलियन अथॉरिटी द्वारा चलाया जाए. एमनेस्टी इंटरनेशनल इंडिया का कहना है कि उन्हें मिलिट्री जांच पर भरोसा नहीं है, क्योंकि यह स्वतंत्र और पारदर्शी तरीके से जांच नहीं कर सकती. इसलिए इसकी जांच सिविलियन तरीके से हो और कोर्ट में मुकदमा चलाया जाए.
संयुक्त राष्ट्र मानवाधिकार समिति जो नागरिक और राजनीतिक अधिकारों पर अंतरराष्ट्रीय रूप से कार्यान्वयन की निगरानी करती है जिसमें भारत एक पार्टी है, कहा कि सुरक्षा बलों द्वारा मानवाधिकारों के उल्लंघन के मामलों में जांच अदालत द्वारा की जानी चाहिए ताकि मामले में पारदर्शिता कायम रह सके. भारत के सर्वोच्च न्यायालय ने भी सैन्य न्याय प्रणाली की आलोचना की है और कई अवसरों पर सुधारों की सिफारिश की है. भारत में सैन्य कानून विशेषज्ञों ने भारतीय सैन्य न्याय प्रणाली के भीतर निहित दोषों को स्वीकार किया है.
एमनेस्टी इंटरनेशनल इंडिया ने उन मामलों को उठाया, जिसमें सेना ने अपने लोगों के खिलाफ मानवाधिकार के उल्लंघन के आरोपों को सिरे से खारिज कर दिया था.
18 जुलाई 2020 को भारतीय सेना ने कहा कि दक्षिण कश्मीर में शोपियां की ऊंचाई वाले इलाकों में तीन आतंकवादी मार गिराए गए लेकिन इसके बारे में कोई और जानकारी नहीं दी गई.
6 अगस्त 2020 को जम्मू क्षेत्र के राजौरी में परिवारों ने लिखित शिकायतें दर्ज कराई, जिसमें कहा गया कि उनके परिवार के तीन लोग जो मजदूर थे उसी इलाके से गायब हुए हैं जहां सेना द्वारा आतंकवादियों के मारे जाने की बात कही जा रही है.
19 अगस्त 2020 को रक्षा प्रवक्ता ने एक बयान जारी कर कहा कि सेना ने सोशल मीडिया में वायरल हो रही जानकारियों को भी जांच का हिस्सा बनाया है और इस मामले की जांच की जा रही है.
सशस्त्र बल विशेष अधिकार अधिनियम जो कि जम्मू और कश्मीर में लागू एक ऐसा कानून है जो कि आर्म्ड फोर्सेस को मानवाधिकार उल्लंघन मामले में सुरक्षा प्रदान करता है.
2018 में संसद में अपने बयान में रक्षा मंत्रालय ने कहा कि पिछले 26 वर्षों में जम्मू-कश्मीर में सैनिकों पर मुकदमा चलाने के लिए कोई अनुमति नहीं दी गई है. इनमें गैरकानूनी हत्याओं, अत्याचार और बलात्कार के मामले शामिल हैं.
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