नई दिल्ली : देश के अगले प्रधान न्यायाधीश (सीजेआई) न्यायमूर्ति शरद अरविंद बोबडे का कहना है कि न्यायाधीशों की उनके कुछ न्यायिक कार्यों के लिए सोशल मीडिया पर की जाने वाली आलोचना गंभीर मसला है. साथ ही उनका यह भी कहना है कि जब वह न्यायाधीशों को 'परेशान' देखते हैं तो उन्हें दुख होता है.
न्यायमूर्ति बोबडे 18 नवम्बर को जस्टिस रंजन गोगोई के स्थान पर देश के 47वें प्रधान न्यायाधीश के रूप में कार्यभार ग्रहण करेंगे. उन्होंने यह भी कहा कि अनियंत्रित आलोचना न केवल निंदनीय है बल्कि यह न्यायाधीशों की प्रतिष्ठा को भी प्रभावित करती है.
63 वर्षीय बोबडे ने एक लंबे साक्षात्कार के दौरान कहा कि फैसलों के बजाय न्यायाधीशों की सोशल मीडिया पर आलोचना वास्तव में 'मानहानि' का अपराध है.
यह पूछे जाने पर कि क्या न्यायाधीशों की आलोचना उन्हें परेशान करती है, न्यायमूर्ति बोबडे ने कहा, 'एक हद तक. हां. यह मुझे परेशान करती है. यह अदालतों के कामकाज को प्रभावित कर सकती है और मैं ऐसे न्यायाधीशों को देखता हूं, जो परेशान महसूस करते हैं. यह मुझे परेशान करता है. कोई भी इसे पसंद नहीं करता है. हर कोई मोटी चमड़ी वाला नहीं है. जो इसकी अनदेखी कर सके. न्यायाधीश भी सामान्य इंसान होते हैं.'
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जस्टिस बोवडे ने हालांकि कहा कि फिलहाल, सर्वोच्च न्यायालय सोशल मीडिया प्लेटफॉर्म पर अनियंत्रित आलोचना पर काबू के लिए कुछ भी नहीं कर सकता है.
उन्होंने कहा, 'हम क्या कर सकते हैं. हम इस तरह के मीडिया के लिए अभी कुछ भी नहीं कर सकते. हम नहीं जानते हैं कि हमें क्या कदम उठाना है. वे न केवल लांछन लगा रहे हैं बल्कि लोगों और न्यायाधीशों की प्रतिष्ठा को प्रभावित कर रहे हैं.'
उन्होंने व्यंग्यात्मक लहजे में कहा, 'उसके ऊपर, यह शिकायत भी है कि बोलने की स्वतंत्रता नहीं है.'
उन्होंने कहा कि फैसले की नहीं, न्यायाधीश की आलोचना करना मानहानि है. बतौर सीजेआई उनका कार्यकाल करीब 18 महीने का होगा.
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न्यायमूर्ति बोबडे ने कहा कि किसी भी न्यायिक प्रणाली की शीर्ष प्राथमिकता समय पर न्याय मुहैया कराना है और इसमें न तो ज्यादा देरी की जा सकती और न ही जल्दबाजी.
उन्होंने कहा कि न्याय में देरी से अपराध में वृद्धि हो सकती है और इससे कानून का शासन भी प्रभावित हो सकता है.
न्यायमूर्ति बोबडे ने कहा कि सरकार बुनियादी सुविधाओं की कमी जैसी न्यायपालिका की जरूरतों से अवगत है और केंद्र तथा राज्य सरकारें इसके लिए पर्याप्त प्रावधान कर रही हैं.
उन्होंने कहा कि समय आ गया है कि न्यायपालिका कामकाज के आधुनिक तरीके का सहारा ले, जिसमें न्याय मुहैया कराने के लिए कृत्रिम बुद्धिमत्ता भी शामिल है. इससे न्यायाधीशों को शीघ्र न्याय देने में सहायता मिलेगी.
न्यायमूर्ति बोबडे ने कहा, 'किसी भी न्यायिक प्रणाली की सर्वोच्च प्राथमिकता न्याय है और किसी भी कीमत पर किसी और चीज के लिए इसका बलिदान नहीं किया जा सकता क्योंकि यही अदालतों के अस्तित्व का कारण है. अगर बलिदान किया जाता है, तो अन्य चीजों का कोई मतलब नहीं रह जाता क्योंकि लक्ष्य केवल न्याय है. उस प्रक्रिया में आपको यह सुनिश्चित करना होगा कि यह उचित समय में हो.'
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उन्होंने कहा कि न्याय में अनुचित देरी नहीं की जा सकती और न ही इसमें अनुचित जल्दबाजी होनी चाहिए. यह तय समय में आना चाहिए क्योंकि हमने देखा है कि न्याय में अनुचित देरी से अपराध में वृद्धि हो सकती है.
यह पूछे जाने पर कि क्या महत्वपूर्ण मुद्दों से निबटने के लिए उच्चतम न्यायालय में पांच न्यायाधीशों की स्थायी संविधान पीठ के गठन का कोई प्रस्ताव है, उन्होंने कहा कि सीजेआई रंजन गोगोई ने इस पर कुछ विचार रखे हैं.
उन्होंने कहा, 'देखते हैं कि मैं इसे कैसे देखूंगा. आप कह सकते हैं कि उच्चतम न्यायालय में स्थायी पीठ होने की संभावना है.'
न्यायपालिका में बुनियादी ढांचे की कमी के बारे में न्यायमूर्ति बोबडे ने कहा, 'मुझे लगता है कि सरकार जरूरत से अवगत है और केंद्र सरकार के साथ-साथ राज्य सरकारें बुनियादी ढांचे के लिए पर्याप्त प्रावधान कर रही हैं.'
देशभर की अदालतों में न्यायाधीशों की भारी रिक्तियों के मुद्दे पर, न्यायमूर्ति बोबडे ने कहा कि वह इस संबंध में मौजूदा सीजेआई द्वारा उठाये गये कदमों को 'तार्किक अंजाम' तक पहुंचाएंगे.