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कोरोना : बीमारी से ज्यादा दहशत निजी अस्पताल से, जानें क्यों

कोरोना से ग्रसित होने के बाद कोई व्यक्ति अस्पताल में ठीक होने की उम्मीद लेकर जाता है. अस्पताल से बाहर आकर उसकी बीमारी तो निकल जाती है, साथ ही जेब भी खाली हो जाती है. ऐसे में लाखों का बिल मरीज के हाथों में थमा कर उसका मानसिक रूप से शोषण किया जा रहा है. हाल में तेलंगाना हाई कोर्ट ने अस्पतालों के इस अमानवीय व्यवहार को लेकर नाराजगी भी व्यक्त की है.

inhumanity of hospitals during corona crisis
बीमारी से ज्यादा दहशत अस्पताल से
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Published : Aug 11, 2020, 4:50 PM IST

हैदराबाद : कोरोना के इस दौर में लोग अपने प्रियजनों के जीवन को बचाने के लिए किसी तरह कर्ज लेकर चिकित्सा का खर्च वहन कर रहे हैं. ऐसे में अस्पतालों द्वारा ओवरचार्ज करना इन मरीजों और उनके रिश्तेदारों के जख्मों पर नमक छिड़कने जैसा काम करता है. कोरोना वायरस के इस कठिन दौर में अस्पतालों की इस तरह की अमानवीयता मरीज और उसके परिजनों का सीधे तौर पर शोषण है.

स्वास्थ्य का मंदिर कहे जाने वाले अस्पताल ही जब लुटेरे बन जाएं, तो कोरोना के खिलाफ जंग में लड़ाई भला कैसे संभव है?

अपने परिजनों को बचाने में जब लोगों के सारे पैसे अस्पतालकर्मियों की जेब भरने में चले जाते हैं, तो हर साल तकरीबन छह करोड़ लोग गरीबी के अंधेरे में धकेल दिए जाते हैं.

खुद की सुरक्षा करना ही लोगों के लिए एक बड़ी चुनौती बनकर रह गई है. कोरोना से देश में 40 हजार लोग मर चुके हैं और 22 लाख लोग इसकी चपेट में हैं. सरकारों की बात करें, तो उन्होंने पहले कोरोना के उपचार के लिए अस्पतालों का प्रबंधन किया था. कोरोना के बढ़ते मामले देख उन्होंने निजी सेवाओं को अनुमति दी.

तेलंगाना उच्च न्यायालय ने मई के तीसरे सप्ताह में स्पष्ट किया कि स्वास्थ्य लोगों का मौलिक अधिकार है और उन्हें अपनी इच्छानुसार इलाज कराने की स्वतंत्रता है.

निजी अस्पतालों पर नाराजगी व्यक्त करने के लिए तेलंगाना उच्च न्यायालय के पास मजबूत कारण हैं.

इलाज का बिल चिंताजनक
सरकारों का कहना है कि सरकारी अस्पतालों में बिस्तर खाली हैं और चिकित्सा देखभाल भी मुफ्त है, लेकिन हजारों परिवारों का मानना है कि निजी अस्पतालों की चिकित्सा देखभाल उनके और उनके प्रियजनों की जिंदगी बचा सकती है.

ऐसे में लाखों रुपयों का बिल, स्वास्थ्य बीमा सुविधा से वंचित रखना, काले धन के भुगतान की मांग और बिल का भुगतान न करने पर शवों को न सौंपा जाना वाकई में हैरान कर देने वाला है.

इन अस्पतालों के काम करने के तरीकों के खिलाफ दायर जनहित याचिका की सुनवाई के दौरान उच्च न्यायालय का गुस्सा सामने आया.

निजी अस्पताल दिन-प्रतिदिन धनउगाही की मशीन बनते जा रहे हैं.

सरकार ने भी अपनी बात रखते हुए दुख प्रकट किया है कि जिन अस्पतालों को इस वादे के साथ मुफ्त जमीन या सस्ती जमीन मिली थी कि वह समाज के लोगों को मुफ्त सेवाएं देंगे, वह अपना वादा नहीं निभा रहे.

अब समय आ गया है जब कोरोना के खिलाफ लड़ाई में फ्रंट लाइन योद्धाओं के रूप में देश की तारीफ पाने वाले डॉक्टर्स आत्मनिरीक्षण करें.

हैदराबाद : कोरोना के इस दौर में लोग अपने प्रियजनों के जीवन को बचाने के लिए किसी तरह कर्ज लेकर चिकित्सा का खर्च वहन कर रहे हैं. ऐसे में अस्पतालों द्वारा ओवरचार्ज करना इन मरीजों और उनके रिश्तेदारों के जख्मों पर नमक छिड़कने जैसा काम करता है. कोरोना वायरस के इस कठिन दौर में अस्पतालों की इस तरह की अमानवीयता मरीज और उसके परिजनों का सीधे तौर पर शोषण है.

स्वास्थ्य का मंदिर कहे जाने वाले अस्पताल ही जब लुटेरे बन जाएं, तो कोरोना के खिलाफ जंग में लड़ाई भला कैसे संभव है?

अपने परिजनों को बचाने में जब लोगों के सारे पैसे अस्पतालकर्मियों की जेब भरने में चले जाते हैं, तो हर साल तकरीबन छह करोड़ लोग गरीबी के अंधेरे में धकेल दिए जाते हैं.

खुद की सुरक्षा करना ही लोगों के लिए एक बड़ी चुनौती बनकर रह गई है. कोरोना से देश में 40 हजार लोग मर चुके हैं और 22 लाख लोग इसकी चपेट में हैं. सरकारों की बात करें, तो उन्होंने पहले कोरोना के उपचार के लिए अस्पतालों का प्रबंधन किया था. कोरोना के बढ़ते मामले देख उन्होंने निजी सेवाओं को अनुमति दी.

तेलंगाना उच्च न्यायालय ने मई के तीसरे सप्ताह में स्पष्ट किया कि स्वास्थ्य लोगों का मौलिक अधिकार है और उन्हें अपनी इच्छानुसार इलाज कराने की स्वतंत्रता है.

निजी अस्पतालों पर नाराजगी व्यक्त करने के लिए तेलंगाना उच्च न्यायालय के पास मजबूत कारण हैं.

इलाज का बिल चिंताजनक
सरकारों का कहना है कि सरकारी अस्पतालों में बिस्तर खाली हैं और चिकित्सा देखभाल भी मुफ्त है, लेकिन हजारों परिवारों का मानना है कि निजी अस्पतालों की चिकित्सा देखभाल उनके और उनके प्रियजनों की जिंदगी बचा सकती है.

ऐसे में लाखों रुपयों का बिल, स्वास्थ्य बीमा सुविधा से वंचित रखना, काले धन के भुगतान की मांग और बिल का भुगतान न करने पर शवों को न सौंपा जाना वाकई में हैरान कर देने वाला है.

इन अस्पतालों के काम करने के तरीकों के खिलाफ दायर जनहित याचिका की सुनवाई के दौरान उच्च न्यायालय का गुस्सा सामने आया.

निजी अस्पताल दिन-प्रतिदिन धनउगाही की मशीन बनते जा रहे हैं.

सरकार ने भी अपनी बात रखते हुए दुख प्रकट किया है कि जिन अस्पतालों को इस वादे के साथ मुफ्त जमीन या सस्ती जमीन मिली थी कि वह समाज के लोगों को मुफ्त सेवाएं देंगे, वह अपना वादा नहीं निभा रहे.

अब समय आ गया है जब कोरोना के खिलाफ लड़ाई में फ्रंट लाइन योद्धाओं के रूप में देश की तारीफ पाने वाले डॉक्टर्स आत्मनिरीक्षण करें.

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