कोरबा : इनसाइक्लोपीडिया ऑफ रामायण (विश्वकोश) की महत्वाकांक्षी परियोजना पर छत्तीसगढ़ के जानकारों को शामिल किया जा रहा है. उत्तर प्रदेश की योगी आदित्यनाथ सरकार देश के कोने-कोने और विदेशों में रामायण से जुड़ी सामाग्री को इनसाइक्लोपीडिया में संजोने की ओर बढ़ रही है. काम शुरू हो चुका है. परियोजना में छत्तीसगढ़ के जानकारों को महत्वपूर्ण जिम्मेदारी मिली है. बता दें वीडियो कॉन्फ्रेंसिंग के जरिए इस परियोजना के लिए दो बैठकें भी हो चुकी हैं.
मान्यता है कि छत्तीसगढ़ की धरती भगवान राम की माता कौशल्या की जन्मस्थली है. और छत्तीसगढ़ भगवान राम का ननिहाल है. मान्यता ये भी है कि 14 वर्षों के वनवास के दौरान भगवान राम ने सबसे ज्यादा वक्त छत्तीसगढ़ के जंगलों मे बिताया था. राम वन गमन पथ से जुड़ी हर जानकारी को इनसाइक्लोपीडिया ऑफ रामायण में शामिल किया जाएगा. ऐसे में रामायण विश्वकोष परियोजना के लिए छत्तीसगढ़ में उपलब्ध जानकारी महत्वपूर्ण है.
हर छोटी जानकारी होगी शामिल
इनसाइक्लोपीडिया ऑफ रामायण का स्वरूप वृहद होगा. इसमे कुल मिलाकर 200 वॉल्यूम प्रकाशित किए जाएंगे. प्रत्येक वॉल्यूम में कम से कम 11 सौ पन्ने होंगे. रामायण से जुड़ी हर छोटी जानकारी इनसाइक्लोपीडिया ऑफ रामायण में शामिल की जाएगी. पूरी दुनिया में जिस व्यक्ति के पास भी रामायण के जो भी साक्ष्य मौजूद हैं, उसे व्यक्ति के साथ उप्लब्ध साक्ष्य और जानकारी को किताब में सचित्र स्थान दिया जाएगा. कुछ दिन पहले वीडियो कॉन्फ्रेंसिंग से पहली मीटिंग हुई थी. जिसमें बताया गया था कि इस परियोजना के लिए न सिर्फ भारत बल्कि यूरोप, होंडुरास और इंडोनेशिया जैसे देश के जानकार भी शामिल किए जाएंगे.
छत्तीसगढ़ की टीम हो रही तैयार
इस के राष्ट्रीय संयोजक उत्तर प्रदेश सरकार में संस्कृति विभाग के संयुक्त निदेशक डॉ योगेंद्र प्रताप सिंह हैं. जिनकी अगुवाई में टीम तैयार की जा रही है. छत्तीसगढ़ से ललित शर्मा के अलावा पुरातत्व के जानकार डॉक्टर शंभू नाथ यादव, प्रभात मिश्रा, डॉ. नितेश मिश्रा के साथ ही कोरबा के पुरातत्व संग्रहालय के मार्गदर्शक हरि सिंह क्षत्रीय का नाम शामिल है.
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छत्तीसगढ़ में कई साक्ष्य
बता दें कि छत्तीसगढ़ में रामायण से जुड़े कई साक्ष्य है. कोरबा जिले के सूअरलोट में भगवान राम से जुड़े महत्वपूर्ण शिलालेख मिले हैंं. जिसमें सीता हरण का जिक्र भी है. इसके अलावा कोरबा के सीतामणी में सीता गुफा है. कोरबा के जंगलों में भगवान राम के कई प्रमाण हैं. इसके अलावा राम वन गमन पथ के कई प्रमाण हैं. बस्तर दशहरा जैसी संस्कृति है. इसके अलावा अपने पूरे शरीर पर राम का नाम गुदवाने वाले जांजगीर जिले के आदिवासी रामनामी समाज का जिक्र भी किताब में हो सकता है. शिवरीनारायण से लेकर रायपुर और बस्तर के जंगलों में राम वन गमन पथ की हर छोटी से छोटी बात इनसाइक्लोपीडिया ऑफ रामायण का हिस्सा बनेंगे.
इनसाइक्लोपीडिया ऑफ रामायण में रामायण से जुड़े हर तरह के साहित्य को शामिल किया जाएगा. इसमें मूर्ति कला, शिल्पकला, लोक कला, स्थानीय आदिवासियों की संरक्षित मान्यता, लोक साहित्य, क्षेत्रीय रामायण, स्थापत्य, गायन, वादन, नृत्य, रामलीला, जनजाति साहित्य जैसे हर तरह की जानकारी जिसमें भी राम जी का जिक्र हो. उसे इनसाइक्लोपीडिया ऑफ रामायण में प्रमुखता से स्थान दिया जाएगा.
5 साल की समयसीमा निर्धारित
इनसाइक्लोपीडिया ऑफ रामायण को पूरा करने के लिए 5 साल की समय सीमा निर्धारित की गई है. टीम के सभी सदस्यों को हर तरह से रिसर्च कर जानकारी और डाटा एकत्र करने का काम सौंप दिया गया है. अब हर हफ्ते वीडियो कॉन्फ्रेंसिंग के माध्यम से मीटिंग होगी. जिसमें परियोजना की वर्तमान स्थिति पर चर्चा की जाएगी.