नई दिल्ली/ नैरोबी: भारत ने संयुक्त राष्ट्र पर्यावरण सभा में दो महत्वपूर्ण वैश्विक पर्यावरण मुद्दों का समर्थन किया है. ये मुद्दे एक बार उपयोग की जाने वाली प्लास्टिक और सतत नाइट्रोजन प्रबंधन से जुड़े हैं.
दोनों प्रस्तावों को सभा में शुक्रवार शाम सर्वसम्मति से मंजूरी दे दी गई. वैश्विक नाइट्रोजन उपयोग दक्षता कम है, जिसके परिणामस्वरूप प्रतिक्रियाशील नाइट्रोजन से प्रदूषण होता है, जो मानव स्वास्थ्य, पर्यावरणीय सेवाओं के लिए खतरा है और साथ ही यह जलवायु परिवर्तन और स्ट्रेटोस्फेयरिक (समताप मंडल) ओजोन के क्षरण में योगदान देता है.
विश्व स्तर पर उत्पादित प्लास्टिक का केवल एक छोटा-सा हिस्सा ही रिसाइकिल होता है और अधिकांश प्लास्टिक पर्यावरण और जलीय जैव-विविधता को नुकसान पहुंचा रहा है.
ये दोनों वैश्विक चुनौतियां हैं और विधानसभा में भारत द्वारा उठाए गए प्रस्ताव इन समस्याओं से निपटने और वैश्विक समुदाय का ध्यान आकर्षित करने की दिशा में महत्वपूर्ण शुरुआती कदम हैं.
केन्या की राजधानी नैरोबी में आयोजित चौथे संयुक्त राष्ट्र पर्यावरण सभा में पांच दिनों की चर्चा के बाद संयुक्त राष्ट्र के 170 से अधिक सदस्य देशों के नेताओं ने बदलाव के लिए एक साहसिक खाका पेश किया, जिसमें कहा गया है कि दुनिया को विकास के एक नए मॉडल की दिशा में कदम बढ़ाने की जरूरत है.
मंत्रियों ने संयुक्त राष्ट्र महासभा में एक अंतिम घोषणा-पत्र में कहा है, "हम प्लास्टिक उत्पादों के निरंतर उपयोग और निपटान के कारण हमारे पर्यावरण को होने वाले नुकसान से निपटेगे, जिसमें 2030 तक एक बार उपयोग की जाने वाली प्लास्टिक के उत्पादों को पर्याप्त मात्रा में घटाना शामिल है और हम सस्ते और पर्यावरण अनुकूल उत्पादों को खोजने के लिए निजी क्षेत्र के साथ काम करेंगे."
भारत ने भी इस उच्चस्तरीय सभा में 'ग्लोबल पार्टनरशिप : की टू अनलॉकिंग रिसोर्स इफिशिएंसी एंड इन्क्लूसिव ग्रीन इकोनॉमिक्स' पर एक सत्र की मेजबानी की.
भारतीय उच्चायुक्त राहुल छाबड़ा के नेतृत्व में भारतीय प्रतिनिधिमंडल ने सार्वजनिक वित्तपोषण की अतिरिक्त प्रतिबद्धताओं की आवश्यकता और जलवायु वित्तपोषण को बढ़ाने के तरीकों पर उच्चस्तरीय पैनल चर्चा में भाग लिया.