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पहले भी एलएसी को पार कर भारत के कई हिस्सों पर कब्जा कर चुका है चीन

सीमा विवाद को लेकर भारत और चीन में विवाद बढ़ता ही जा रहा है. हाल ही में दोनों देशों सैनिकों के बीच हुई हिंसक झड़प में 20 जवान शहीद हो गए. इसके पहले भी कई बार दोनों देशों की सेनाएं एलएसी पर आमने-सामने आती रही हैं. चीन लगातार एलएसी से सटे हुए कई इलाकों पर अपना दावा करता रहा है. यह पहली बार नहीं है जब चीन भारतीय क्षेत्र को अपना बता रहा हो. इसके पहले भी कई बार चीनी सैनिक वास्तविक नियंत्रण रेखा को लांघते हुए भारतीय क्षेत्रों में घुसपैठ कर कब्जा कर चुके हैं.

india china dispute
प्रतीकात्मक तस्वीर
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Published : Jun 19, 2020, 6:12 PM IST

Updated : Jun 19, 2020, 7:22 PM IST

हैदराबाद : भारत और चीन में हिमालयी क्षेत्रों को लेकर पहले से ही विवाद है. इसके अलावा चीनी सेना ने हाल ही में लद्दाख में घुसपैठ करने की कोशिश की. चीनी सेना की इस हरकत से (एलएसी) पर दोनों देशों के बीच सीमा विवाद और बढ़ गया है. भारतीय और चीनी सेना के बीच पैंगोंग त्सो, डेमचोक, गलवान घाटी और दौलत बेग ओल्डी में झड़पें भी हुई हैं.

हाल ही में गलवान घाटी में दोनों देशों की सेनाओं के बीच हुई हिंसक झड़प में भारत के 20 जवान शहीद हो गए और चीन के भी 35 सैनिक हताहत हुए. दरअसल, चीन पूर्वी लद्दाख स्थित गलवान घाटी पर अपना हक जता रहा है.

बता दें कि भारत चीन के साथ 3440 किलोमीटर दूरी साझा करता है. यानी की एलएसी की कुल लंबाई 3440 किलोमीटर है, जो भारत और चीन के क्षेत्रों को अलग करती है.

चीन एलएसी से सटे कई हिस्सों को अपना बताता रहा है. इसलिए चीन इन हिस्सों को अपने क्षेत्र में शामिल करने के लिए सीमा का सहारा ले रहा है. दोनों देशों के सैनिकों के बीच सीमा विवाद को लेकर झड़पें भी होती रहती हैं. बता दें कि एलएसी को तीन हिस्सों में बांटा गया है. पश्चिमी, पूर्वी और मध्य.

  1. 1950 से ही भारत और चीन के बीच अक्साई चिन सबसे विवादित सीमा क्षेत्र है. यह क्षेत्र पश्चिमी एलएसी के अंतर्गत आता है. यह क्षेत्र काराकोरम दर्रे के पश्चिमोत्तर से डेमचोक तक, 1,570 किलोमीटर में फैला है. इसका कुल क्षेत्रफल लगभग 38,000 वर्ग किलोमीटर है. चीन ने 1957 में इस क्षेत्र पर कब्जा कर लिया है, लेकिन भारत का दावा है कि यह क्षेत्र लद्दाख का हिस्सा है.
  2. 1962 में, चीन ने तिब्बत और शिनजियांग को जोड़ने के लिए अक्साई चिन में एक सड़क का निर्माण किया था. भारत और चीन के बीच विवादित डेमचोक सेक्टर में एक गांव और सैन्य छावनी है.
  3. भारत दावा करता है कि दोनों देशों के बीच सीमा दक्षिण-पूर्व तक फैली हुई है, जहां गश्त के दौरान भारतीय और चीनी सैनिकों का बराबर आमना-सामना होता रहता है.
  4. पूर्वी एलएसी का हिस्सा सिक्किम से म्यांमार सीमा तक है, जो 1,325 किलोमीटर है. इस हिस्से में सबसे ज्यादा विवाद अरुणाचल प्रदेश को लेकर है, क्योंकि चीन हमेशा दावा करता है कि अरुणाचल प्रदेश मेरा हिस्सा है.

पढ़ें : चीन ने भारत से कहा, हमारी इच्छा को कमजोर न समझें

  • असाफिला 100 वर्ग किलोमीटर में फैला हुआ जंगल है. जो सुबनसिरी के ऊपरी मंडल में आता है और पहाड़ी इलाका है. 1962 युद्ध के दौरान यह क्षेत्र प्रत्यक्ष रूप से चीन के अंतर्गत आ गया. वर्तमान में यह क्षेत्र किसी भी देश के कब्जे में नहीं है.
  • मिगयितुन, तिब्बत में चीनी सैन्य चौकियों के विपरीत दिशा ऊपरी सुबानसिरी मंडल में लांगजू (Longju) स्थित है. 1959 में चीन की पीपुल्स लिबरेशन आर्मी (पीएलए) और असम राइफल्स के बीच पहली बार हथियारों से लड़ाई हुई.
  • भारत ने दोबारा इस क्षेत्र पर कब्जा नहीं कर पाया, लेकिन लांगजू से 10 किलोमीटर दक्षिण में दूर माजा पोस्ट बनाया. त्वांग से 60 किलोमीटर दूर नमका चु नदी घाटी स्थित है, जहां से 1962 के युद्ध की शुरुआत हुई थी. सुमदोरोंग चू तवांग जिले के कया फो (Kya Pho) क्षेत्र में नामका चू के पूर्व में एक छोटा नाला है, जिसे 1986 में चीनी सेना ने कब्जा कर लिया था. चीन के कब्जे के बदले में भारतीय सेना ने 1986 के उत्तरार्ध में यांगस्ट (तवांग जिले का हिस्सा) पर कब्जा कर लिया.
  • एलएसी का मध्य क्षेत्र डेमचोक से नेपाल सीमा तक है. इसकी कुल दूरी 545 किलोमीटर है, जो भारत के हिमाचल प्रदेश और उत्तराखंड के राज्य से लगा हुआ है. इस क्षेत्र में उत्तराखंड के चमोली जिले में चरागाह हैं. इस क्षेत्र में भी चीनी हमलों का इतिहास रहा है.

पढ़ें : एलएसी पर हथियारों के इस्तेमाल से इसलिए बचते हैं भारत-चीन के सैनिक

पैंगोंग त्सो या पैंगोंग झील हिमालय पर स्थित है. यह 135 किलोमीटर लंबी झील है और यह भारत से तिब्बती स्वायत्त क्षेत्र और चीन तक फैली हुई है. यह लेह से 54 किलोमीटर की दूरी पर स्थित है.

1962 युद्ध के दौरान चीन ने इस झील क्षेत्र को अपना मुख्य आक्रमण केंद्र बनाया. चीन ने पैंगोंग त्सो के पूर्वी छोर तक अपना राष्ट्रीय राजमार्ग बनाया है. यह झील भारत के साथ युद्ध की स्थिति में चीन के लिए रणनीतिक महत्व की है.

गलवान नदी विवादित अक्साई चिन क्षेत्र से भारत के लद्दाख तक बहती है. 1962 के युद्ध में गलवान घाटी उन प्रमुख क्षेत्रों में से एक था, जहां भारतीय और चीनी सैनिक भिड़े थे. इस नदी का नाम कश्मीरी वंश के लद्दाखी खोजकर्ता गुलाम रसूल गलवान के नाम पर रखा गया था. एक तरफ भारत अक्साई चिन पठार पर अपना दावा करता रहा है और चीन गलवान नदी के पश्चिम क्षेत्र को अपना बता रहा है.

दौलत बेग ओल्डी लद्दाख में स्थित एक सैन्य अड्डा है. यह अक्साई चिन से केवल नौ किलोमीटर उत्तर पश्चिम में स्थित है. भारतीय वायु सेना ने 43 वर्षों के अंतराल के बाद 2008 में यहां पर अपना विमान उतारा था. 1962 के युद्ध के बाद यह विवादित क्षेत्र बन गया.

सीमा की घटनाओं के पीछे चीन की साम्राज्यवादी महत्वाकांक्षाएं स्पष्ट हैं. पूर्वी लद्दाख पर दावा करते हुए चीन सेना ने डेमचोक-कुयुल सेक्टर के एक बड़े हिस्से पर घुसपैठ की.

लद्दाख में पहले एलएसी कीगू नारो में थी. बाद में चीनी सैनिक धीरे-धीरे नगात्संग (1984), नकुंग (1991), लुंग्मा सर्दांग (1992) और स्काकजंग (2008) तक बढ़ आए. 2000 में चीन ने विवादित अक्साई चिन क्षेत्र शिनजियांग में बहने वाली चिप चाप नदी पर कब्जा कर लिया है. 2013 में चीन ने फिर से भारत की मुख्य भूमि पर 19 किलोमीटर में घुसपैठ कर कब्जा किया. पूर्व विदेश सचिव श्याम सरन ने कहा कि भारत ने चीनी घुसपैठों से लगभग 640 वर्ग किलोमीटर का क्षेत्र खो दिया है.

गौरतलब है कि भारत-चीन सीमा विवादों का एक लंबा इतिहास रहा है, लेकिन हालिया तनाव नए घटनाक्रम का एक परिणाम है.

भारत ने चीन पर आक्रमण करने के प्रयासों के बदले में अपनी सीमा पर सड़क निर्माण कर रहा है. भारत ने 255 किलोमीटर की दरबूक-श्योक-दौलत बेग ओल्डी सड़क बनाई है. इस निर्माण से चीन गुस्साया हुआ है इसके बाद उसने गलवान नदी में सैन्य चौकियों और पुलों को नष्ट कर दिया. इसके अलावा भारत ने पिछले साल लद्दाख को केंद्र शासित प्रदेश घोषित किया गया था. चीन ने पूर्वी लद्दाख पर अपना दावा जताते हुए भारत के इस कदम की आलोचना की थी.

इसके अलावा, चीन ने जम्मू-कश्मीर के पुनर्गठन को गैरकानूनी बताते हुए संयुक्त राष्ट्र सुरक्षा परिषद में शिकायत की. कई देशों ने चीन पर कोरोना वायरस फैलाने का आरोप लगाया है.

पढ़ें : ईटीवी भारत ने सबसे पहले दी थी दस सैनिकों के लापता होने की खबर, वार्ता के बाद रिहा

हाल ही में अमेरिका ने कोरोना वायरस की उत्पत्ति की जांच के लिए भारत से मदद मांगी है. अन्य देशों के साथ भारत के खिलाफ चेतावनी देने की कोशिश में चीन सीमा हमलों का सहारा ले रहा है.

इसके साथ ही वह नेपाल को भारत के खिलाफ खड़ा कर रहा है. इसके अलावा चीन ने नेपाल पर लिपुलेख और कालापानी क्षेत्र को नए राजनीतिक मानचित्र में डालने के लिए भी दबाव डाला.

हैदराबाद : भारत और चीन में हिमालयी क्षेत्रों को लेकर पहले से ही विवाद है. इसके अलावा चीनी सेना ने हाल ही में लद्दाख में घुसपैठ करने की कोशिश की. चीनी सेना की इस हरकत से (एलएसी) पर दोनों देशों के बीच सीमा विवाद और बढ़ गया है. भारतीय और चीनी सेना के बीच पैंगोंग त्सो, डेमचोक, गलवान घाटी और दौलत बेग ओल्डी में झड़पें भी हुई हैं.

हाल ही में गलवान घाटी में दोनों देशों की सेनाओं के बीच हुई हिंसक झड़प में भारत के 20 जवान शहीद हो गए और चीन के भी 35 सैनिक हताहत हुए. दरअसल, चीन पूर्वी लद्दाख स्थित गलवान घाटी पर अपना हक जता रहा है.

बता दें कि भारत चीन के साथ 3440 किलोमीटर दूरी साझा करता है. यानी की एलएसी की कुल लंबाई 3440 किलोमीटर है, जो भारत और चीन के क्षेत्रों को अलग करती है.

चीन एलएसी से सटे कई हिस्सों को अपना बताता रहा है. इसलिए चीन इन हिस्सों को अपने क्षेत्र में शामिल करने के लिए सीमा का सहारा ले रहा है. दोनों देशों के सैनिकों के बीच सीमा विवाद को लेकर झड़पें भी होती रहती हैं. बता दें कि एलएसी को तीन हिस्सों में बांटा गया है. पश्चिमी, पूर्वी और मध्य.

  1. 1950 से ही भारत और चीन के बीच अक्साई चिन सबसे विवादित सीमा क्षेत्र है. यह क्षेत्र पश्चिमी एलएसी के अंतर्गत आता है. यह क्षेत्र काराकोरम दर्रे के पश्चिमोत्तर से डेमचोक तक, 1,570 किलोमीटर में फैला है. इसका कुल क्षेत्रफल लगभग 38,000 वर्ग किलोमीटर है. चीन ने 1957 में इस क्षेत्र पर कब्जा कर लिया है, लेकिन भारत का दावा है कि यह क्षेत्र लद्दाख का हिस्सा है.
  2. 1962 में, चीन ने तिब्बत और शिनजियांग को जोड़ने के लिए अक्साई चिन में एक सड़क का निर्माण किया था. भारत और चीन के बीच विवादित डेमचोक सेक्टर में एक गांव और सैन्य छावनी है.
  3. भारत दावा करता है कि दोनों देशों के बीच सीमा दक्षिण-पूर्व तक फैली हुई है, जहां गश्त के दौरान भारतीय और चीनी सैनिकों का बराबर आमना-सामना होता रहता है.
  4. पूर्वी एलएसी का हिस्सा सिक्किम से म्यांमार सीमा तक है, जो 1,325 किलोमीटर है. इस हिस्से में सबसे ज्यादा विवाद अरुणाचल प्रदेश को लेकर है, क्योंकि चीन हमेशा दावा करता है कि अरुणाचल प्रदेश मेरा हिस्सा है.

पढ़ें : चीन ने भारत से कहा, हमारी इच्छा को कमजोर न समझें

  • असाफिला 100 वर्ग किलोमीटर में फैला हुआ जंगल है. जो सुबनसिरी के ऊपरी मंडल में आता है और पहाड़ी इलाका है. 1962 युद्ध के दौरान यह क्षेत्र प्रत्यक्ष रूप से चीन के अंतर्गत आ गया. वर्तमान में यह क्षेत्र किसी भी देश के कब्जे में नहीं है.
  • मिगयितुन, तिब्बत में चीनी सैन्य चौकियों के विपरीत दिशा ऊपरी सुबानसिरी मंडल में लांगजू (Longju) स्थित है. 1959 में चीन की पीपुल्स लिबरेशन आर्मी (पीएलए) और असम राइफल्स के बीच पहली बार हथियारों से लड़ाई हुई.
  • भारत ने दोबारा इस क्षेत्र पर कब्जा नहीं कर पाया, लेकिन लांगजू से 10 किलोमीटर दक्षिण में दूर माजा पोस्ट बनाया. त्वांग से 60 किलोमीटर दूर नमका चु नदी घाटी स्थित है, जहां से 1962 के युद्ध की शुरुआत हुई थी. सुमदोरोंग चू तवांग जिले के कया फो (Kya Pho) क्षेत्र में नामका चू के पूर्व में एक छोटा नाला है, जिसे 1986 में चीनी सेना ने कब्जा कर लिया था. चीन के कब्जे के बदले में भारतीय सेना ने 1986 के उत्तरार्ध में यांगस्ट (तवांग जिले का हिस्सा) पर कब्जा कर लिया.
  • एलएसी का मध्य क्षेत्र डेमचोक से नेपाल सीमा तक है. इसकी कुल दूरी 545 किलोमीटर है, जो भारत के हिमाचल प्रदेश और उत्तराखंड के राज्य से लगा हुआ है. इस क्षेत्र में उत्तराखंड के चमोली जिले में चरागाह हैं. इस क्षेत्र में भी चीनी हमलों का इतिहास रहा है.

पढ़ें : एलएसी पर हथियारों के इस्तेमाल से इसलिए बचते हैं भारत-चीन के सैनिक

पैंगोंग त्सो या पैंगोंग झील हिमालय पर स्थित है. यह 135 किलोमीटर लंबी झील है और यह भारत से तिब्बती स्वायत्त क्षेत्र और चीन तक फैली हुई है. यह लेह से 54 किलोमीटर की दूरी पर स्थित है.

1962 युद्ध के दौरान चीन ने इस झील क्षेत्र को अपना मुख्य आक्रमण केंद्र बनाया. चीन ने पैंगोंग त्सो के पूर्वी छोर तक अपना राष्ट्रीय राजमार्ग बनाया है. यह झील भारत के साथ युद्ध की स्थिति में चीन के लिए रणनीतिक महत्व की है.

गलवान नदी विवादित अक्साई चिन क्षेत्र से भारत के लद्दाख तक बहती है. 1962 के युद्ध में गलवान घाटी उन प्रमुख क्षेत्रों में से एक था, जहां भारतीय और चीनी सैनिक भिड़े थे. इस नदी का नाम कश्मीरी वंश के लद्दाखी खोजकर्ता गुलाम रसूल गलवान के नाम पर रखा गया था. एक तरफ भारत अक्साई चिन पठार पर अपना दावा करता रहा है और चीन गलवान नदी के पश्चिम क्षेत्र को अपना बता रहा है.

दौलत बेग ओल्डी लद्दाख में स्थित एक सैन्य अड्डा है. यह अक्साई चिन से केवल नौ किलोमीटर उत्तर पश्चिम में स्थित है. भारतीय वायु सेना ने 43 वर्षों के अंतराल के बाद 2008 में यहां पर अपना विमान उतारा था. 1962 के युद्ध के बाद यह विवादित क्षेत्र बन गया.

सीमा की घटनाओं के पीछे चीन की साम्राज्यवादी महत्वाकांक्षाएं स्पष्ट हैं. पूर्वी लद्दाख पर दावा करते हुए चीन सेना ने डेमचोक-कुयुल सेक्टर के एक बड़े हिस्से पर घुसपैठ की.

लद्दाख में पहले एलएसी कीगू नारो में थी. बाद में चीनी सैनिक धीरे-धीरे नगात्संग (1984), नकुंग (1991), लुंग्मा सर्दांग (1992) और स्काकजंग (2008) तक बढ़ आए. 2000 में चीन ने विवादित अक्साई चिन क्षेत्र शिनजियांग में बहने वाली चिप चाप नदी पर कब्जा कर लिया है. 2013 में चीन ने फिर से भारत की मुख्य भूमि पर 19 किलोमीटर में घुसपैठ कर कब्जा किया. पूर्व विदेश सचिव श्याम सरन ने कहा कि भारत ने चीनी घुसपैठों से लगभग 640 वर्ग किलोमीटर का क्षेत्र खो दिया है.

गौरतलब है कि भारत-चीन सीमा विवादों का एक लंबा इतिहास रहा है, लेकिन हालिया तनाव नए घटनाक्रम का एक परिणाम है.

भारत ने चीन पर आक्रमण करने के प्रयासों के बदले में अपनी सीमा पर सड़क निर्माण कर रहा है. भारत ने 255 किलोमीटर की दरबूक-श्योक-दौलत बेग ओल्डी सड़क बनाई है. इस निर्माण से चीन गुस्साया हुआ है इसके बाद उसने गलवान नदी में सैन्य चौकियों और पुलों को नष्ट कर दिया. इसके अलावा भारत ने पिछले साल लद्दाख को केंद्र शासित प्रदेश घोषित किया गया था. चीन ने पूर्वी लद्दाख पर अपना दावा जताते हुए भारत के इस कदम की आलोचना की थी.

इसके अलावा, चीन ने जम्मू-कश्मीर के पुनर्गठन को गैरकानूनी बताते हुए संयुक्त राष्ट्र सुरक्षा परिषद में शिकायत की. कई देशों ने चीन पर कोरोना वायरस फैलाने का आरोप लगाया है.

पढ़ें : ईटीवी भारत ने सबसे पहले दी थी दस सैनिकों के लापता होने की खबर, वार्ता के बाद रिहा

हाल ही में अमेरिका ने कोरोना वायरस की उत्पत्ति की जांच के लिए भारत से मदद मांगी है. अन्य देशों के साथ भारत के खिलाफ चेतावनी देने की कोशिश में चीन सीमा हमलों का सहारा ले रहा है.

इसके साथ ही वह नेपाल को भारत के खिलाफ खड़ा कर रहा है. इसके अलावा चीन ने नेपाल पर लिपुलेख और कालापानी क्षेत्र को नए राजनीतिक मानचित्र में डालने के लिए भी दबाव डाला.

Last Updated : Jun 19, 2020, 7:22 PM IST
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