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विशेष लेख : सुरक्षित पेयजल की उपलब्धता के लिए कारगर कदम उठाने की जरूरत

इंसान को साफ और सुरक्षित पेयजल मिले, इस ओर सरकार को ज्यादा से ज्यादा ध्यान देने की जरूरत है. आज मौजूदा आंकड़ों की मानें तो कई लोग पानी को साफ करने का कोई तरीके अपनाए बिना सीधे पी लेते हैं, जिससे दस्त, हैजा, टायफाइड और पोलियो जैसी कई बीमारियां उन्हें जकड़ कर अपना घर बना लेती हैं. पढ़ें ईटीवी भारत की ओर से पेश किया गया विशेष लेख...

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Published : Dec 4, 2019, 8:04 PM IST

मनुष्य को जीने के लिए जितने पानी की आवश्यकता होती है, उसकी गुणवत्ता उतनी ही अधिक महत्वपूर्ण है. मानव शरीर में लगभग 50 से 75 प्रतिशत पानी मौजूद रहता है. पानी शरीर के तापमान को विनियमित करने और चयापचय कार्यों को बनाए रखने में महत्वपूर्ण भूमिका निभाता है.

अगर हम जो पानी पीते हैं, वह गुणवत्ता मानकों पर खरा उतरता है, तो कई स्वास्थ्य समस्याओं से बचा जा सकता है. विश्व स्वास्थ्य संगठन (2019) की रिपोर्ट के अनुसार 14.6 करोड़ (लगभग 19%) लोगों की साफ और सुरक्षित पीने के पानी तक पहुंच नहीं है.

नवीनतम राष्ट्रीय प्रतिदर्श सर्वेक्षण (एनएसएस) से पता चला है कि ज्यादातर लोग पानी को बिना किसी साफ करने के तरीके को अपनाए सीधे पीते हैं और ऐसा खासकर ग्रामीण इलाकों में होता है.

सर्वेक्षण की विभिन्न रिपोर्ट बताती है कि दुनिया भर में लगभग 80% बीमारियां मुख्य रूप से दूषित पानी पीने के कारण होती हैं. दस्त, हैजा, टाइफाइड और पोलियो कुछ ऐसी बीमारियां हैं, जो मुख्य रूप से खराब गुणवत्ता वाले पानी की वजह से होती हैं.

यह अनुमान है कि सिर्फ दस्त के कारण दुनिया भर में पचास लाख से अधिक बच्चे प्रतिवर्ष मर जाते हैं.

दूषित पानी पीने के कारण लोग हेपेटाइटिस और पेट के संक्रमण से पीड़ित हैं. लगभग 68.5 करोड़ लोग पेट के रोगों से पीड़ित हैं. लगभग 32.5 करोड़ लोग हेपेटाइटिस से संक्रमित हैं. कई देशों में, स्वास्थ्य देखभाल, स्वच्छता और अपशिष्ट प्रबंधन निराशाजनक हैं.

इन दिनों, लोगों में व्यक्तिगत स्वच्छता की कमी है और इस मुद्दे पर भारत में भी कोई अपवाद नहीं है. विश्व स्वास्थ्य संगठन के नवीनतम आंकड़ों के अनुसार, दुनिया भर में 7.85 करोड़ से अधिक लोगों के पास उचित पीने के पानी तक पहुंच नहीं है.

इनमें से 1.44 करोड़ पानी के उपसतह पर रहते हैं, जो तेजी से प्रदूषित हो रही है. संयुक्त राष्ट्र के अनुसार, दुनिया भर में सुरक्षित पानी तक पहुंच लोगों का मूल अधिकार है. लेकिन ऐसा प्रतीत होता है कि सरकारें इसे अपेक्षित महत्व नहीं दे रही हैं.

जल संसाधनों के साथ सामाजिक, आर्थिक और विकासात्मक परिस्थितियों को ध्यान में रखते हुए, संयुक्त राष्ट्र ने 2010 से सार्वजनिक जीवन प्रत्याशा पर डेटा जारी किया है, जिसका शीर्षक 'मानव विकास सूचकांक' है.

सर्वेक्षण के लिए कुल 189 देशों को शामिल किया गया. सबसे छोटा देश, नॉर्वे इस सूचकांक में सबसे ऊपर हैं. नाइजीरिया 189वें स्थान पर है, जो सूचकांक में सबसे नीचे है.

भारत 128वें स्थान पर है. पड़ोसी देश श्रीलंका 75वें पायदान पर हमसे बेहतर स्थान पर है. ये संकेत बताते हैं कि विभिन्न देशों में सामाजिक, आर्थिक और विकासात्मक परिस्थितियों के साथ-साथ पेयजल संसाधनों की स्थिति कैसी है.

नवीनतम सरकारी सर्वेक्षण (2019) के अनुसार, देशभर में केवल 18.33% ग्रामीण घरों में नल के पानी की आपूर्ति की जा रही है. लगभग 90% शहरी घरों में पीने के पानी की आपूर्ति की जाती है. भारत की राष्ट्रीय राजधानी यानी दिल्ली की स्थिति और भी बदतर है. अध्ययन में पाया गया कि नलों के माध्यम से दिया जाने वाला पानी पीने लायक नहीं है. इस पानी में काफी मैला शामिल होता है.

ये भी पढ़ें : मातृ-मृत्यु दर भारत के लिए बड़ी चुनौती

पानी की गुणवत्ता का परीक्षण करने के लिए कुल 28 मापदंडों पर विचार किया जा रहा है. कोलकाता, जयपुर, देहरादून, रांची और रायपुर जैसे शहरों में आपूर्ति किए जाने वाले नल के पानी की गुणवत्ता भी खराब है.

इन शहरों में पानी की गुणवत्ता सुनिश्चित करने के लिए विभिन्न पहलुओं पर विचार किया गया है. हैदराबाद, भुवनेश्वर, तिरुवनंतपुरम, पटना, भोपाल, अमरावती, शिमला, बैंगलोर, चंडीगढ़, लखनऊ और जम्मू जैसे अन्य शहरों में, जनता को आपूर्ति की जाने वाली पानी की गुणवत्ता स्पष्ट रूप से गुणवत्ता के मापदंड से कहीं नीचे है.

देश की वित्तीय राजधानी मुंबई में स्थिति काफी बेहतर है. परीक्षणों से पता चला है कि जनता को प्रदान किया जाने वाला पानी गुणवत्ता मानकों के अनुपालन में है.

इसके अलावा, देश के लगभग 20 राज्यों के कई शहर अपने लोगों को सुरक्षित पेयजल उपलब्ध नहीं कराते हैं. भारतीय जल पोर्टल (2019) की एक रिपोर्ट के अनुसार, देश में 37.3 करोड़ लोग सालाना जलजनित बीमारियों से पीड़ित हो जाते हैं. इनमें से करीब 10.5 लाख बच्चे डायरिया से मर जाते हैं.

पूरे देश में, जो लोग दूषित पानी से संक्रमित होते हैं, वह अपने कामकाजी दिनों को खो देते हैं और आर्थिक रूप से काफी हद तक प्रभावित हो जाते हैं. सरकार इस स्थिति से उबरने के लिए कुछ कदम उठा रही है लेकिन वह पर्याप्त रूप से संतोषजनक नहीं हैं.

हाल ही में, केंद्र सरकार ने 2020 तक पूर्वोत्तर राज्यों के शहरों समेत सौ स्मार्ट शहरों और जिला मुख्यालयों में पानी का परीक्षण करने का निर्णय लिया है. इसके अलावा, केंद्र सरकार ने 2024 तक देश के सभी घरों में सुरक्षित नल का पानी उपलब्ध कराने की घोषणा की और इसके लिए लगभग तीन लाख करोड़ से भी अधिक की धनराशि बजट में रखी.

गुणवत्ता वाले पंपों के माध्यम से पानी की आपूर्ति से बीमारियों को कुछ हद तक रोका जा सकता है. जिस क्षेत्र में पानी की आपूर्ति की जाती है, वहां नियमित गुणवत्ता परीक्षण किए जाने चाहिए. इन सबसे सर्वोपरि है, जन जागरूकता जो एक मुख्य उपकरण है जिससे पानी से होने वाली बीमारियों से लड़ने में मदद की जा सकती है.

-आचार्य नंदीपति सुब्बाराव
(लेखक और भूविज्ञानी)

मनुष्य को जीने के लिए जितने पानी की आवश्यकता होती है, उसकी गुणवत्ता उतनी ही अधिक महत्वपूर्ण है. मानव शरीर में लगभग 50 से 75 प्रतिशत पानी मौजूद रहता है. पानी शरीर के तापमान को विनियमित करने और चयापचय कार्यों को बनाए रखने में महत्वपूर्ण भूमिका निभाता है.

अगर हम जो पानी पीते हैं, वह गुणवत्ता मानकों पर खरा उतरता है, तो कई स्वास्थ्य समस्याओं से बचा जा सकता है. विश्व स्वास्थ्य संगठन (2019) की रिपोर्ट के अनुसार 14.6 करोड़ (लगभग 19%) लोगों की साफ और सुरक्षित पीने के पानी तक पहुंच नहीं है.

नवीनतम राष्ट्रीय प्रतिदर्श सर्वेक्षण (एनएसएस) से पता चला है कि ज्यादातर लोग पानी को बिना किसी साफ करने के तरीके को अपनाए सीधे पीते हैं और ऐसा खासकर ग्रामीण इलाकों में होता है.

सर्वेक्षण की विभिन्न रिपोर्ट बताती है कि दुनिया भर में लगभग 80% बीमारियां मुख्य रूप से दूषित पानी पीने के कारण होती हैं. दस्त, हैजा, टाइफाइड और पोलियो कुछ ऐसी बीमारियां हैं, जो मुख्य रूप से खराब गुणवत्ता वाले पानी की वजह से होती हैं.

यह अनुमान है कि सिर्फ दस्त के कारण दुनिया भर में पचास लाख से अधिक बच्चे प्रतिवर्ष मर जाते हैं.

दूषित पानी पीने के कारण लोग हेपेटाइटिस और पेट के संक्रमण से पीड़ित हैं. लगभग 68.5 करोड़ लोग पेट के रोगों से पीड़ित हैं. लगभग 32.5 करोड़ लोग हेपेटाइटिस से संक्रमित हैं. कई देशों में, स्वास्थ्य देखभाल, स्वच्छता और अपशिष्ट प्रबंधन निराशाजनक हैं.

इन दिनों, लोगों में व्यक्तिगत स्वच्छता की कमी है और इस मुद्दे पर भारत में भी कोई अपवाद नहीं है. विश्व स्वास्थ्य संगठन के नवीनतम आंकड़ों के अनुसार, दुनिया भर में 7.85 करोड़ से अधिक लोगों के पास उचित पीने के पानी तक पहुंच नहीं है.

इनमें से 1.44 करोड़ पानी के उपसतह पर रहते हैं, जो तेजी से प्रदूषित हो रही है. संयुक्त राष्ट्र के अनुसार, दुनिया भर में सुरक्षित पानी तक पहुंच लोगों का मूल अधिकार है. लेकिन ऐसा प्रतीत होता है कि सरकारें इसे अपेक्षित महत्व नहीं दे रही हैं.

जल संसाधनों के साथ सामाजिक, आर्थिक और विकासात्मक परिस्थितियों को ध्यान में रखते हुए, संयुक्त राष्ट्र ने 2010 से सार्वजनिक जीवन प्रत्याशा पर डेटा जारी किया है, जिसका शीर्षक 'मानव विकास सूचकांक' है.

सर्वेक्षण के लिए कुल 189 देशों को शामिल किया गया. सबसे छोटा देश, नॉर्वे इस सूचकांक में सबसे ऊपर हैं. नाइजीरिया 189वें स्थान पर है, जो सूचकांक में सबसे नीचे है.

भारत 128वें स्थान पर है. पड़ोसी देश श्रीलंका 75वें पायदान पर हमसे बेहतर स्थान पर है. ये संकेत बताते हैं कि विभिन्न देशों में सामाजिक, आर्थिक और विकासात्मक परिस्थितियों के साथ-साथ पेयजल संसाधनों की स्थिति कैसी है.

नवीनतम सरकारी सर्वेक्षण (2019) के अनुसार, देशभर में केवल 18.33% ग्रामीण घरों में नल के पानी की आपूर्ति की जा रही है. लगभग 90% शहरी घरों में पीने के पानी की आपूर्ति की जाती है. भारत की राष्ट्रीय राजधानी यानी दिल्ली की स्थिति और भी बदतर है. अध्ययन में पाया गया कि नलों के माध्यम से दिया जाने वाला पानी पीने लायक नहीं है. इस पानी में काफी मैला शामिल होता है.

ये भी पढ़ें : मातृ-मृत्यु दर भारत के लिए बड़ी चुनौती

पानी की गुणवत्ता का परीक्षण करने के लिए कुल 28 मापदंडों पर विचार किया जा रहा है. कोलकाता, जयपुर, देहरादून, रांची और रायपुर जैसे शहरों में आपूर्ति किए जाने वाले नल के पानी की गुणवत्ता भी खराब है.

इन शहरों में पानी की गुणवत्ता सुनिश्चित करने के लिए विभिन्न पहलुओं पर विचार किया गया है. हैदराबाद, भुवनेश्वर, तिरुवनंतपुरम, पटना, भोपाल, अमरावती, शिमला, बैंगलोर, चंडीगढ़, लखनऊ और जम्मू जैसे अन्य शहरों में, जनता को आपूर्ति की जाने वाली पानी की गुणवत्ता स्पष्ट रूप से गुणवत्ता के मापदंड से कहीं नीचे है.

देश की वित्तीय राजधानी मुंबई में स्थिति काफी बेहतर है. परीक्षणों से पता चला है कि जनता को प्रदान किया जाने वाला पानी गुणवत्ता मानकों के अनुपालन में है.

इसके अलावा, देश के लगभग 20 राज्यों के कई शहर अपने लोगों को सुरक्षित पेयजल उपलब्ध नहीं कराते हैं. भारतीय जल पोर्टल (2019) की एक रिपोर्ट के अनुसार, देश में 37.3 करोड़ लोग सालाना जलजनित बीमारियों से पीड़ित हो जाते हैं. इनमें से करीब 10.5 लाख बच्चे डायरिया से मर जाते हैं.

पूरे देश में, जो लोग दूषित पानी से संक्रमित होते हैं, वह अपने कामकाजी दिनों को खो देते हैं और आर्थिक रूप से काफी हद तक प्रभावित हो जाते हैं. सरकार इस स्थिति से उबरने के लिए कुछ कदम उठा रही है लेकिन वह पर्याप्त रूप से संतोषजनक नहीं हैं.

हाल ही में, केंद्र सरकार ने 2020 तक पूर्वोत्तर राज्यों के शहरों समेत सौ स्मार्ट शहरों और जिला मुख्यालयों में पानी का परीक्षण करने का निर्णय लिया है. इसके अलावा, केंद्र सरकार ने 2024 तक देश के सभी घरों में सुरक्षित नल का पानी उपलब्ध कराने की घोषणा की और इसके लिए लगभग तीन लाख करोड़ से भी अधिक की धनराशि बजट में रखी.

गुणवत्ता वाले पंपों के माध्यम से पानी की आपूर्ति से बीमारियों को कुछ हद तक रोका जा सकता है. जिस क्षेत्र में पानी की आपूर्ति की जाती है, वहां नियमित गुणवत्ता परीक्षण किए जाने चाहिए. इन सबसे सर्वोपरि है, जन जागरूकता जो एक मुख्य उपकरण है जिससे पानी से होने वाली बीमारियों से लड़ने में मदद की जा सकती है.

-आचार्य नंदीपति सुब्बाराव
(लेखक और भूविज्ञानी)

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