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कोरोना महामारी : सामाजिक और आर्थिक क्षेत्र में महिलाओं पर प्रभाव

दुनियाभर में कोरोना महामारी फैली हुई है. इस महामारी से निजात पाने के लिए कई देशों में लॉकडाउन लागू किया गया. इसकी वजह से दुनियाभर के देशों में आर्थिक स्थिति पर प्रभाव पड़ा. इस लॉकडाउन में कई लाख लोग बेरोजगार हो गए हैं. कहा जा सकता है कि इस महामारी में हर वर्ग के लोग प्रभावित हुए हैं. वहीं सबसे ज्यादा प्रभावित वर्ग की बात की जाएं तो महिलाएं हैं. जब रोजगार गंवाने की बात होती है तो उसमें भी सबसे पहला नबंर महिलाओं का ही आता है. सबसे ज्यादा नौकरियां महिलाओं की ही छिनी हैं. इसके साथ ही महिलाएं इस कोरोना काल में आर्थिक के साथ-साथ सामाजिक क्षेत्रों में प्रभावित हुई हैं. पढ़ें पूरी खबर...

corona virus
प्रतीकात्मक तस्वीर
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Published : Jul 18, 2020, 6:03 PM IST

हैदराबाद : कोरोना महामारी से वैसे तो दुनिया का हर वर्ग प्रभावित है, लेकिन इसका सबसे ज्यादा प्रभाव महिलाओं पर पड़ा है. इस महामारी के दौरान महिलाएं सामाजिक और आर्थिक दोनों ही क्षेत्रों में प्रभावित हुई हैं. पुरुषों की बात की जाए तो वे आसानी से सामाजिक और आर्थिक क्षेत्रों से उबर सकते हैं, लेकिन महिलाएं को इस संकट से उबरने में काफी वक्त लग सकता है.

भारत जैसे विकासशील देश में कई सामाजिक और आर्थिक कारकों से महिलाओं को ज्यादा नुकसान हुआ है. हालांकि कोरोना से मृतकों की दर देखी जाए तो पुरुषों (2.8%) की अपेक्षा महिलाओं (1.7%) की मौतें कम हुई हैं.

कुछ दिन पहले संयुक्त राष्ट्र के अध्यक्ष एंटनियो गुटेरेस ने कहा था कि कोरोना महामारी के दौरान महिलाओं को उबारने के लिए केंद्र में रखा जाए.

महिलाओं के रोजगार पर प्रभाव
कोरोना की वजह से पिछले तीन से चार महीनों में 3.03 करोड़ लोग बेरोजगार हो चुके हैं. दुनियाभर में लगभग 60 प्रतिशत महिलाएं अनौपचारिक रूप से अर्थव्यवस्था में काम करती हैं, कम कमाती हैं, थोड़ा बचाती हैं. इनके रोजगार जाने से गरीबी बढ़ सकती है.

इंस्टीट्यूट फॉर वुमेन पॉलिसी रिसर्च (IWPR) की एक रिपोर्ट के अनुसार, फरवरी और मार्च 2020 के बीच पेरोल डेटा के आधार पर, महिलाओं को अर्थव्यवस्था के सभी क्षेत्रों में लगभग 60 फीसदी नौकरी का नुकसान, पुरुषों को होने वाली हानि को पछाड़ देना चाहिए.

पढ़ें : डिजिटल गैप कम करेंगे, अंतिम पंक्ति तक नेट की सुविधा होगी : निशंक

सेंटर फॉर मॉनिटरिंग इंडियन इकोनॉमी (CMIE) की रिपोर्ट के मुताबिक अप्रैल में पुरुषों के रोजगार में 29 फीसदी की गिरावट हुई है. वहीं महिलाओं रोजगार में 39% की गिरावट दर्ज की है. इससे साफ पता चलता है कि भारत में हर दस में चार कामकाजी महिलाओं ने लॉकडाउन के दौरान अपनी नौकरी खो दी है. आंकड़ों से पता चलता है कि ग्रामीण महिलाओं को सबसे ज्यादा नुकसान हुआ है.

भारतीय श्रम बाजार में महिलाएं
कुल रोजगार का मात्र 23 प्रतिशत (PLFS 2017-18) का गठन करने वाली महिला श्रमिकों की इस स्थिति को देखा जा सकता है. महिलाएं महामारी के दौरान और बाद में किस तरह से अपने आवास का किराया देंगी, यह हम सबको पता है?

महामारी, भले ही पूरी तरह से नया प्रतिमान है, लेकिन यह सामाजिक-आर्थिक असमानताओं को नहीं छोड़ती है, जो इसके शुरू होने से पहले प्रबल हुई थी. इसे अब भारत के सार्वभौमिक लॉकडाउन और COVID-19 के प्रसार से निबटने के लिए दिशा-निर्देशों और उपायों के रूप में भौतिक गड़बड़ी के साथ विस्तरित किया गया है.

लड़कियों की शिक्षा पर सबसे ज्यादा असर
यूनेस्को ने बताया था कि दुनियाभर में शैक्षणिक संस्थानों को बंद करने से 154 करोड़ से अधिक छात्र बुरी तरह प्रभावित हुए हैं, इसकी सबसे ज्यादा मार लड़कियों पर पड़ेगी, क्योंकि इससे शिक्षा दर में गिरावट के साथ लिंग अंतराल भी बढ़ेगा.

यूनेस्को की एक रिपोर्ट के मुताबिक 154 करोड़ नामित छात्रों में 74 करोड़ छात्राएं हैं. इनमे से 11 करोड़ से अधिक लड़कियां दुनिया के सबसे कम विकसित देशों में रह रही है, जहां पर पहले से ही लड़कियों को शिक्षा प्राप्त करना मुश्किल है.

रिपोर्ट के अनुसार, शरणार्थी शिविरों में रहने वाली या आंतरिक रूप से विस्थापित होने वाली लड़कियों के लिए, स्कूलों को बंद करना सबसे विनाशकारी होगा क्योंकि वे पहले से ही नुकसान में हैं.

पढ़ें : ट्रेनों का निजीकरण, किस को होगा फायदा

कोरोना से घरेलू कामकाजी महिलाएं बुरी तरह प्रभावित
भारत में महिलाओं को अनिवार्य रूप से किसी न किसी उत्पादन कार्य में शामिल किया जाता है, लेकिन उनके ज्यादातर कार्य अदृश्य हैं और वे बहुत कम या कम सामाजिक सुरक्षा वाले कम कुशल, कम वेतन वाले अनौपचारिक क्षेत्रों में कार्यरत हैं.

आवधिक श्रम बल सर्वेक्षण (पीएलएफएस) 2017-18 के अनुसार, महिलाओं का लगभग 88% रोजगार भारत में अनौपचारिक है और 73% नियोजित महिलाएं भारत में अनौपचारिक क्षेत्र में काम करके अपनी आजीविका कमाती हैं.

2017-18 में कुल महिला अनौपचारिक श्रमिकों में से एक तिहाई को दो व्यवसायों में नियुक्त किया गया था- घरेलू काम और घर-आधारित काम - और कुछ (2% से कम) स्ट्रीट वेंडर थीं. अन्य अनौपचारिक क्षेत्रों में, जैसे निर्माण और अपशिष्ट उठाने की गतिविधियां, पुरुष प्रमुख खिलाड़ी दिखाई देते हैं जबकि महिलाएं आमतौर पर सहायक कर्मचारियों की संख्या में शामिल होती हैं.

लॉकडाउन के दूसरे चरण (15 अप्रैल-मई, 2020) के दौरान एक टेलीफोनिक मात्रात्मक सर्वेक्षण और गहराई से टेलीफोनिक गुणात्मक साक्षात्कार के माध्यम से डेटा एकत्रित किया गया था. सर्वेक्षण के परिणामों ने इन श्रमिकों की कमाई पर लॉकडाउन के बड़े प्रभाव की ओर इशारा किया और अध्ययन में शामिल लगभग 83% महिला श्रमिकों को आय में भारी गिरावट का सामना करना पड़ा.

पढ़ें : कोरोना संकट में तेजी से की जा रही दवाओं की कालाबाजारी

आर्थिक सहयोग और विकास संगठन (ओईसीडी) के अनुसार, एक भारतीय महिला, एक पुरुष की तुलना में प्रतिदिन लगभग छह घंटे अवैतनिक काम करती है, जो ऐसे कार्यों को मुश्किल से 51.8 मिनट देती है.

वैतनिक महिलाएं

  • 83% वैतनिक महिलाओं ने अपने परिवारों के लिए मध्यम आर्थिक संकटों को गंभीर रूप से सूचित किया, जिससे नौकरियों की सुरक्षा पर चिंता बढ़ गई.
  • 54% महिलाओं ने बताया कि किसी ने भी घरेलू काम में उनकी मदद नहीं की. पुरुषों के पुलिस उत्पीड़न के बढ़ते मामलों के कारण कुछ महिलाओं को बाहर का काम भी करना पड़ता था, जैसे कि भोजन की व्यवस्था करना, राशन इकट्ठा करना, आटा पिसवाना आदि.
  • 51% महिलाओं को लॉकडाउन के दौरान मूल्य वृद्धि के कारण आवश्यक खाद्य पदार्थों जैसे दूध, सब्जियां, चाय आदि खरीदने में कठिनाई का सामना करना पड़ा.

अवैतनिक महिलाएं

  • 54% घरेलू कामगारों ने घरेलू काम के बोझ को बढ़ाया, जैसे कि सफाई, खाना बनाना, कपड़े धोना आदि.
  • भोजन और अन्य आवश्यक चीजों की व्यवस्था में 23% का समय व्यतीत होता है.
  • 20% ने देखभाल देने वालों की संख्या में वृद्धि की सूचना दी और 14 फीसदी महिलाओं ने पानी एकत्र करने में समय बिताया.

घरेलू दुर्व्यवहार और हिंसा
कोरोना काल में घरेलू हिंसा के मामले पूरी दुनिया में खतरनाक स्थिति में बढ़ गए हैं. 25 मार्च से कोरोना की वजह से अधिक घरेलू हिंसा की संख्या में शिकायतें देखने को मिलीं.

अप्रैल और मई में महिलाओं के खिलाफ अपराध की 22 श्रेणियों में राष्ट्रीय महिला आयोग (एनसीडब्ल्यू) द्वारा प्राप्त 3,027 शिकायतों में से 1,428 (47.2%) घरेलू हिंसा से संबंधित थीं. दूसरी ओर, जनवरी से मार्च तक के आंकड़े बताते हैं कि उस दौरान की गई कुल 4,233 शिकायतों में से लगभग 20.6% (871) घरेलू हिंसा से संबंधित थीं. इन शिकायतों में अप्रैल में एनसीडब्ल्यू के लिए की गई 999 शिकायतों में से 51.45% (514) थीं. मई में घरेलू हिंसा की शिकायतों में कुल 2,028 शिकायतों में से 45.07% (914) थीं.

लॉकडाउन के पहले की अवधि की तुलना करने पर पता चलता है कि जनवरी में कुल 1,462 शिकायतों में घरेलू हिंसा प्रतिशत 18.54 (271) था. घरेलू हिंसा की शिकायतों का प्रतिशत फरवरी में 21.21% (1424 का 302) और मार्च में 22.21% (1347 का 298) था.

हैदराबाद : कोरोना महामारी से वैसे तो दुनिया का हर वर्ग प्रभावित है, लेकिन इसका सबसे ज्यादा प्रभाव महिलाओं पर पड़ा है. इस महामारी के दौरान महिलाएं सामाजिक और आर्थिक दोनों ही क्षेत्रों में प्रभावित हुई हैं. पुरुषों की बात की जाए तो वे आसानी से सामाजिक और आर्थिक क्षेत्रों से उबर सकते हैं, लेकिन महिलाएं को इस संकट से उबरने में काफी वक्त लग सकता है.

भारत जैसे विकासशील देश में कई सामाजिक और आर्थिक कारकों से महिलाओं को ज्यादा नुकसान हुआ है. हालांकि कोरोना से मृतकों की दर देखी जाए तो पुरुषों (2.8%) की अपेक्षा महिलाओं (1.7%) की मौतें कम हुई हैं.

कुछ दिन पहले संयुक्त राष्ट्र के अध्यक्ष एंटनियो गुटेरेस ने कहा था कि कोरोना महामारी के दौरान महिलाओं को उबारने के लिए केंद्र में रखा जाए.

महिलाओं के रोजगार पर प्रभाव
कोरोना की वजह से पिछले तीन से चार महीनों में 3.03 करोड़ लोग बेरोजगार हो चुके हैं. दुनियाभर में लगभग 60 प्रतिशत महिलाएं अनौपचारिक रूप से अर्थव्यवस्था में काम करती हैं, कम कमाती हैं, थोड़ा बचाती हैं. इनके रोजगार जाने से गरीबी बढ़ सकती है.

इंस्टीट्यूट फॉर वुमेन पॉलिसी रिसर्च (IWPR) की एक रिपोर्ट के अनुसार, फरवरी और मार्च 2020 के बीच पेरोल डेटा के आधार पर, महिलाओं को अर्थव्यवस्था के सभी क्षेत्रों में लगभग 60 फीसदी नौकरी का नुकसान, पुरुषों को होने वाली हानि को पछाड़ देना चाहिए.

पढ़ें : डिजिटल गैप कम करेंगे, अंतिम पंक्ति तक नेट की सुविधा होगी : निशंक

सेंटर फॉर मॉनिटरिंग इंडियन इकोनॉमी (CMIE) की रिपोर्ट के मुताबिक अप्रैल में पुरुषों के रोजगार में 29 फीसदी की गिरावट हुई है. वहीं महिलाओं रोजगार में 39% की गिरावट दर्ज की है. इससे साफ पता चलता है कि भारत में हर दस में चार कामकाजी महिलाओं ने लॉकडाउन के दौरान अपनी नौकरी खो दी है. आंकड़ों से पता चलता है कि ग्रामीण महिलाओं को सबसे ज्यादा नुकसान हुआ है.

भारतीय श्रम बाजार में महिलाएं
कुल रोजगार का मात्र 23 प्रतिशत (PLFS 2017-18) का गठन करने वाली महिला श्रमिकों की इस स्थिति को देखा जा सकता है. महिलाएं महामारी के दौरान और बाद में किस तरह से अपने आवास का किराया देंगी, यह हम सबको पता है?

महामारी, भले ही पूरी तरह से नया प्रतिमान है, लेकिन यह सामाजिक-आर्थिक असमानताओं को नहीं छोड़ती है, जो इसके शुरू होने से पहले प्रबल हुई थी. इसे अब भारत के सार्वभौमिक लॉकडाउन और COVID-19 के प्रसार से निबटने के लिए दिशा-निर्देशों और उपायों के रूप में भौतिक गड़बड़ी के साथ विस्तरित किया गया है.

लड़कियों की शिक्षा पर सबसे ज्यादा असर
यूनेस्को ने बताया था कि दुनियाभर में शैक्षणिक संस्थानों को बंद करने से 154 करोड़ से अधिक छात्र बुरी तरह प्रभावित हुए हैं, इसकी सबसे ज्यादा मार लड़कियों पर पड़ेगी, क्योंकि इससे शिक्षा दर में गिरावट के साथ लिंग अंतराल भी बढ़ेगा.

यूनेस्को की एक रिपोर्ट के मुताबिक 154 करोड़ नामित छात्रों में 74 करोड़ छात्राएं हैं. इनमे से 11 करोड़ से अधिक लड़कियां दुनिया के सबसे कम विकसित देशों में रह रही है, जहां पर पहले से ही लड़कियों को शिक्षा प्राप्त करना मुश्किल है.

रिपोर्ट के अनुसार, शरणार्थी शिविरों में रहने वाली या आंतरिक रूप से विस्थापित होने वाली लड़कियों के लिए, स्कूलों को बंद करना सबसे विनाशकारी होगा क्योंकि वे पहले से ही नुकसान में हैं.

पढ़ें : ट्रेनों का निजीकरण, किस को होगा फायदा

कोरोना से घरेलू कामकाजी महिलाएं बुरी तरह प्रभावित
भारत में महिलाओं को अनिवार्य रूप से किसी न किसी उत्पादन कार्य में शामिल किया जाता है, लेकिन उनके ज्यादातर कार्य अदृश्य हैं और वे बहुत कम या कम सामाजिक सुरक्षा वाले कम कुशल, कम वेतन वाले अनौपचारिक क्षेत्रों में कार्यरत हैं.

आवधिक श्रम बल सर्वेक्षण (पीएलएफएस) 2017-18 के अनुसार, महिलाओं का लगभग 88% रोजगार भारत में अनौपचारिक है और 73% नियोजित महिलाएं भारत में अनौपचारिक क्षेत्र में काम करके अपनी आजीविका कमाती हैं.

2017-18 में कुल महिला अनौपचारिक श्रमिकों में से एक तिहाई को दो व्यवसायों में नियुक्त किया गया था- घरेलू काम और घर-आधारित काम - और कुछ (2% से कम) स्ट्रीट वेंडर थीं. अन्य अनौपचारिक क्षेत्रों में, जैसे निर्माण और अपशिष्ट उठाने की गतिविधियां, पुरुष प्रमुख खिलाड़ी दिखाई देते हैं जबकि महिलाएं आमतौर पर सहायक कर्मचारियों की संख्या में शामिल होती हैं.

लॉकडाउन के दूसरे चरण (15 अप्रैल-मई, 2020) के दौरान एक टेलीफोनिक मात्रात्मक सर्वेक्षण और गहराई से टेलीफोनिक गुणात्मक साक्षात्कार के माध्यम से डेटा एकत्रित किया गया था. सर्वेक्षण के परिणामों ने इन श्रमिकों की कमाई पर लॉकडाउन के बड़े प्रभाव की ओर इशारा किया और अध्ययन में शामिल लगभग 83% महिला श्रमिकों को आय में भारी गिरावट का सामना करना पड़ा.

पढ़ें : कोरोना संकट में तेजी से की जा रही दवाओं की कालाबाजारी

आर्थिक सहयोग और विकास संगठन (ओईसीडी) के अनुसार, एक भारतीय महिला, एक पुरुष की तुलना में प्रतिदिन लगभग छह घंटे अवैतनिक काम करती है, जो ऐसे कार्यों को मुश्किल से 51.8 मिनट देती है.

वैतनिक महिलाएं

  • 83% वैतनिक महिलाओं ने अपने परिवारों के लिए मध्यम आर्थिक संकटों को गंभीर रूप से सूचित किया, जिससे नौकरियों की सुरक्षा पर चिंता बढ़ गई.
  • 54% महिलाओं ने बताया कि किसी ने भी घरेलू काम में उनकी मदद नहीं की. पुरुषों के पुलिस उत्पीड़न के बढ़ते मामलों के कारण कुछ महिलाओं को बाहर का काम भी करना पड़ता था, जैसे कि भोजन की व्यवस्था करना, राशन इकट्ठा करना, आटा पिसवाना आदि.
  • 51% महिलाओं को लॉकडाउन के दौरान मूल्य वृद्धि के कारण आवश्यक खाद्य पदार्थों जैसे दूध, सब्जियां, चाय आदि खरीदने में कठिनाई का सामना करना पड़ा.

अवैतनिक महिलाएं

  • 54% घरेलू कामगारों ने घरेलू काम के बोझ को बढ़ाया, जैसे कि सफाई, खाना बनाना, कपड़े धोना आदि.
  • भोजन और अन्य आवश्यक चीजों की व्यवस्था में 23% का समय व्यतीत होता है.
  • 20% ने देखभाल देने वालों की संख्या में वृद्धि की सूचना दी और 14 फीसदी महिलाओं ने पानी एकत्र करने में समय बिताया.

घरेलू दुर्व्यवहार और हिंसा
कोरोना काल में घरेलू हिंसा के मामले पूरी दुनिया में खतरनाक स्थिति में बढ़ गए हैं. 25 मार्च से कोरोना की वजह से अधिक घरेलू हिंसा की संख्या में शिकायतें देखने को मिलीं.

अप्रैल और मई में महिलाओं के खिलाफ अपराध की 22 श्रेणियों में राष्ट्रीय महिला आयोग (एनसीडब्ल्यू) द्वारा प्राप्त 3,027 शिकायतों में से 1,428 (47.2%) घरेलू हिंसा से संबंधित थीं. दूसरी ओर, जनवरी से मार्च तक के आंकड़े बताते हैं कि उस दौरान की गई कुल 4,233 शिकायतों में से लगभग 20.6% (871) घरेलू हिंसा से संबंधित थीं. इन शिकायतों में अप्रैल में एनसीडब्ल्यू के लिए की गई 999 शिकायतों में से 51.45% (514) थीं. मई में घरेलू हिंसा की शिकायतों में कुल 2,028 शिकायतों में से 45.07% (914) थीं.

लॉकडाउन के पहले की अवधि की तुलना करने पर पता चलता है कि जनवरी में कुल 1,462 शिकायतों में घरेलू हिंसा प्रतिशत 18.54 (271) था. घरेलू हिंसा की शिकायतों का प्रतिशत फरवरी में 21.21% (1424 का 302) और मार्च में 22.21% (1347 का 298) था.

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