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आईआईटी मद्रास के शोधकर्ताओं ने की माइक्रोआरएनए की पहचान, जीभ कैंसर के इलाज में होगा कारगर

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Published : Jun 10, 2020, 12:50 AM IST

भारतीय प्रौद्योगिकी संस्थान (आईआईटी) मद्रास के शोधकर्ताओं को जीभ के कैंसर के इलाज के क्षेत्र में बड़ी सफलता मिली है. आईआईटी मद्रास के शोधकर्ताओं ने एक विशिष्ट माइक्रोआरएनए (miRNAs) की पहचान की है, जिसे 'miR-155' कहा जाता है, जोकि जीभ के कैंसर में पाया जाता है.

IIT Madras
आईआईटी मद्रास

चेन्नई: भारतीय प्रौद्योगिकी संस्थान (आईआईटी) मद्रास के शोधकर्ताओं को जीभ के कैंसर के इलाज के क्षेत्र में बड़ी सफलता मिली है. शोधकर्ताओं ने एक विशिष्ट माइक्रोआरएनए (miRNAs) की पहचान की है, जिसे 'एमआईआर-155' कहा जाता है, जोकि जीभ के कैंसर में पाया जाता है. यह खोज जीभ के कैंसर के इलाज के लिए महत्वपूर्ण मानी जा रही है. इससे जीभ के कैंसर का इलाज संभव हो सकता है.

शोधकर्ताओं के मुताबिक, miRNAs निश्चित प्रोटीन्स के कार्यों को रोककर या उसमें सुधार करके कैंसर के विकास को प्रभावित कर सकता है. उदाहरण के लिए, शोध में देखा गया है कि एक प्रकार का प्रोटीन जिसे प्रोग्राम्ड सेल डेथ 4 कहा जाता है, कैंसर कोशिकाओं को बढ़ने और फैलने से रोकने में मदद करता है. इस प्रोटीन में रुकावट के कारण मुंह, फेफड़े, स्तन, लिवर, ब्रेन और पेट के कैंसर होते हैं.

आईआईटी मद्रास के जैव प्रौद्योगिकी विभाग के प्रमुख देवराजन करुणागरण और उनके रिसर्च स्कॉलर शबीर जरगर ने विशिष्ट माइक्रोआरएनए की पहचान करने वाली शोधकर्ताओं की टीम का नेतृत्व किया. इस टीम में भारतीय विज्ञाान संस्थान, बेंगलुरु और कैंसर इंस्टिट्यूट तथा श्री बालाजी डेंटल कॉलेज एंड हॉस्पिटल चेन्नई के शोधकर्ता शामिल थे.

यह शोध प्रतिष्ठित जर्नल मॉलेक्युलर एंड सेलुलर बायोलॉजी में प्रकाशित हुआ है. इस महत्वपूर्ण शोध के बारे में विस्तार से बताते हुए प्रोफेसर देवराजन करुणागरण ने कहा, 'माइक्रोआरएनए 20-24 न्यूक्लियोटाइड युक्त लघु नॉन-कोडिंग RNAs हैं, जो जानवरों की लगभग सभी जैविक प्रक्रियाओं में भाग लेते हैं. यह कई प्रकार के कैंसर विकसित करने में महत्वपूर्ण भूमिका निभाते हैं. कैंसर से संबंधित माइक्रोआरएनए को 'Oncomirs' कहा जाता है.'

प्रोफेसर करुणागरण ने आगे कहा कि बहुत से Oncomirs ट्यूमर सप्रेसिंग एजेंट्स के प्रदर्शन को रोककर कैंसर को प्रभावित करते हैं, जो कैंसर कोशिकाओं के विकास और प्रसार को रोक सकते हैं. हालांकि कुछ Oncomirs खुद भी ट्यूमर के विकास को रोकते हैं. इसलिए माइक्रोआरएनए के प्रकारों की पहचान करना महत्वपूर्ण है, जो कैंसर कोशिकाओं के दमन और प्रसार दोनों से जुड़े हैं.'

miR-155 को खत्म करने से कैंसर कोशिकाओं की मृत्यु हो जाती है: शोधकर्ता

शोधकर्ताओं की टीम ने miR-155 और pdcd4 के बीच संबंध दिखाते हुए साबित किया कि miR-155 को खत्म करने से कैंसर कोशिकाओं की मृत्यु हो जाती है, सेल चक्र नियंत्रित हो जाता है और एनिमल मॉडल में ट्यूमर के आकार का पतन हो जाता है. साथ ही यह बेंच टॉप परीक्षण में सेल व्यवहार्यता और कॉलोनी फॉर्मेशन को कम कर देता है.

पढ़ें- विशेष : कोरोना संकट के दौर में बच्चों का रखें विशेष ख्याल

शोधकर्ता शबीर जरगर ने बताया कि लंबे समय से इस बात का संदेह है कि miR-155 पीडीसीडी4 (pdcd4) को नियंत्रित कर सकता है, जबकि अभी तक इस तरह की अंत:क्रिया का कोई सबूत नहीं है.

शोधकर्ताओं ने दिखाया कि miR-155 जीभ कैंसर कोशिकाओं और जीभ ट्यूमर के ऊतकों में पाया जाता है. miR-155 की यह गतिविधि pdcd4 की क्रिया में बाधा डालती है, जिसके कारण जीभ के कैंसर का प्रसार और विकास होता है.

miRNA मैनिपुलेशन को पारंपरिक कैंसर उपचार विधियों जैसे किमोथेरेपी, रेडियोथेरेपी और इम्यूनोथेरेपी के साथ जोड़ा जा रहा है. आईआईटी मद्रास के शोधकर्ताओं का यह नया अध्ययन कैंसर के लिए इस तरह की उभरती चिकित्सा को और मजबूत कर सकता है.

चेन्नई: भारतीय प्रौद्योगिकी संस्थान (आईआईटी) मद्रास के शोधकर्ताओं को जीभ के कैंसर के इलाज के क्षेत्र में बड़ी सफलता मिली है. शोधकर्ताओं ने एक विशिष्ट माइक्रोआरएनए (miRNAs) की पहचान की है, जिसे 'एमआईआर-155' कहा जाता है, जोकि जीभ के कैंसर में पाया जाता है. यह खोज जीभ के कैंसर के इलाज के लिए महत्वपूर्ण मानी जा रही है. इससे जीभ के कैंसर का इलाज संभव हो सकता है.

शोधकर्ताओं के मुताबिक, miRNAs निश्चित प्रोटीन्स के कार्यों को रोककर या उसमें सुधार करके कैंसर के विकास को प्रभावित कर सकता है. उदाहरण के लिए, शोध में देखा गया है कि एक प्रकार का प्रोटीन जिसे प्रोग्राम्ड सेल डेथ 4 कहा जाता है, कैंसर कोशिकाओं को बढ़ने और फैलने से रोकने में मदद करता है. इस प्रोटीन में रुकावट के कारण मुंह, फेफड़े, स्तन, लिवर, ब्रेन और पेट के कैंसर होते हैं.

आईआईटी मद्रास के जैव प्रौद्योगिकी विभाग के प्रमुख देवराजन करुणागरण और उनके रिसर्च स्कॉलर शबीर जरगर ने विशिष्ट माइक्रोआरएनए की पहचान करने वाली शोधकर्ताओं की टीम का नेतृत्व किया. इस टीम में भारतीय विज्ञाान संस्थान, बेंगलुरु और कैंसर इंस्टिट्यूट तथा श्री बालाजी डेंटल कॉलेज एंड हॉस्पिटल चेन्नई के शोधकर्ता शामिल थे.

यह शोध प्रतिष्ठित जर्नल मॉलेक्युलर एंड सेलुलर बायोलॉजी में प्रकाशित हुआ है. इस महत्वपूर्ण शोध के बारे में विस्तार से बताते हुए प्रोफेसर देवराजन करुणागरण ने कहा, 'माइक्रोआरएनए 20-24 न्यूक्लियोटाइड युक्त लघु नॉन-कोडिंग RNAs हैं, जो जानवरों की लगभग सभी जैविक प्रक्रियाओं में भाग लेते हैं. यह कई प्रकार के कैंसर विकसित करने में महत्वपूर्ण भूमिका निभाते हैं. कैंसर से संबंधित माइक्रोआरएनए को 'Oncomirs' कहा जाता है.'

प्रोफेसर करुणागरण ने आगे कहा कि बहुत से Oncomirs ट्यूमर सप्रेसिंग एजेंट्स के प्रदर्शन को रोककर कैंसर को प्रभावित करते हैं, जो कैंसर कोशिकाओं के विकास और प्रसार को रोक सकते हैं. हालांकि कुछ Oncomirs खुद भी ट्यूमर के विकास को रोकते हैं. इसलिए माइक्रोआरएनए के प्रकारों की पहचान करना महत्वपूर्ण है, जो कैंसर कोशिकाओं के दमन और प्रसार दोनों से जुड़े हैं.'

miR-155 को खत्म करने से कैंसर कोशिकाओं की मृत्यु हो जाती है: शोधकर्ता

शोधकर्ताओं की टीम ने miR-155 और pdcd4 के बीच संबंध दिखाते हुए साबित किया कि miR-155 को खत्म करने से कैंसर कोशिकाओं की मृत्यु हो जाती है, सेल चक्र नियंत्रित हो जाता है और एनिमल मॉडल में ट्यूमर के आकार का पतन हो जाता है. साथ ही यह बेंच टॉप परीक्षण में सेल व्यवहार्यता और कॉलोनी फॉर्मेशन को कम कर देता है.

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शोधकर्ता शबीर जरगर ने बताया कि लंबे समय से इस बात का संदेह है कि miR-155 पीडीसीडी4 (pdcd4) को नियंत्रित कर सकता है, जबकि अभी तक इस तरह की अंत:क्रिया का कोई सबूत नहीं है.

शोधकर्ताओं ने दिखाया कि miR-155 जीभ कैंसर कोशिकाओं और जीभ ट्यूमर के ऊतकों में पाया जाता है. miR-155 की यह गतिविधि pdcd4 की क्रिया में बाधा डालती है, जिसके कारण जीभ के कैंसर का प्रसार और विकास होता है.

miRNA मैनिपुलेशन को पारंपरिक कैंसर उपचार विधियों जैसे किमोथेरेपी, रेडियोथेरेपी और इम्यूनोथेरेपी के साथ जोड़ा जा रहा है. आईआईटी मद्रास के शोधकर्ताओं का यह नया अध्ययन कैंसर के लिए इस तरह की उभरती चिकित्सा को और मजबूत कर सकता है.

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