जैसा कि हम सबको पता है इस साल राष्ट्रपिता की 150वीं जयंती मनाई जा रही है और हमारे मन में सबसे पहले यही ख्याल आ रहा है कि पिछले 72 सालों में हमने उनके आदर्शों की कितनी अवहेलना की. उनके प्रति कितनी उदासीनता बरती. इस परिप्रेक्ष्य में हमें अपने देश के भविष्य की कितनी चिंता है. वैश्विकरण के इस दौर में बेतहासा खर्च और भोगवादी जिंदगी यही प्रमुख लक्ष्य हो गया है. ऐसे लोगों को यदि गांधी के आदर्श विचारों के बारे में बताया जाए, तो वे लोग बताने वाले को मध्ययुगीन मानसिकता वाला और असभ्य ठहरा देंगे.
लेकिन आज की यह नई युवा पीढ़ी, जिनकी भागीदारी आबादी में 50 फीसदी से भी ज्यादा है, निश्चित तौर पर गांधी की उस विरासत के बारे में जानना चाहेगी, जिसे हमने उनसे प्राप्त किया था. गांधीवादी आदर्श और उनके मूल्य कितने प्रासंगिक हैं, यह पीढ़ी उसे जरूर पसंद करेगी.
आज का युवा अपने लक्ष्य को कम से कम समय में हासिल करना चाहता है. इसके लिए मेहनत करनी पड़े, तो वे करने के लिए तैयार रहते हैं. निश्चित तौर पर वे हमारी संस्कृति की जड़ों और हमारे मूल्यों को भी समझना चाहेंगे. बल्कि वे उसे समझने की योग्यता भी रखते हैं.
युवा पीढ़ी को यह जानकर गर्व महसूस होगा कि पिछली सदी के महान व्यक्ति आइंस्टीन जैसे वैज्ञानिक, रसेल जैसे दार्शनिक, बर्नार्ड शॉ जैसे साहित्यिक दिग्गज और विभिन्न संप्रदायों के नोबेल पुरस्कार विजेताओं ने गांधी को असाधारण पथ-प्रदर्शक बताया था. उन्होंने गांधी को ऐसा व्यक्ति बताया, जो लोगों को अंधेरे से उजाले में जाने का रास्ता बताते हैं.
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बुद्ध और जीसस क्राइस्ट की तरह गांधी गरीबों के लिए संघर्ष करते थे. संपूर्ण मानवता के लिए जीते और मरते थे. राजमोहन गांधी की क्लासिक किताब 'मोहनदास' में उद्धृत एक अरबी कवि मिखाइल नूमा के शब्दों में इसे संक्षेप में कहा गया है...'गांधी के हाथ में लगने वाली तकली भी तलवार से ज्यादा धारदार हो जाती थी, गांधी के शरीर को ढंकने वाली साधारण सफेद चादर कवच बन गई थी, जिसे बंदूक भी भेद नहीं सकती थी और गांधी की बकरी ब्रिटिश शेर से ज्यादा मजबूत हो गई थी.'
आज हमें उस सवाल का जवाब चाहिए, जिसे हर युवा पूछ रहा है. वे जानना चाहते हैं कि क्या हम इसी भारत के लिए लड़ाई लड़ रहे थे, जैसा हम आज देख रहे हैं. क्या गांधी ने ऐसे ही भारत की कल्पना की थी. हम हर साल 15 अगस्त और 26 जनवरी पर साल में दो बार धूमधाम से उत्सव मना लेते हैं और उसके बाद उस भावना को बंद बस्ते में डाल देते हैं. दो अक्टूबर और 30 जनवरी को हमारे नेता राजघाट पर जाकर क्या प्रार्थना करते हैं. गांधी के स्वराज और स्वतंत्रता का उद्देश्य क्या था. क्या आज देश के हालात को देखकर गांधी खुश रहते.
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आज की पीढ़ी को यह बताने की जरूरत है कि गांधी के लिए स्वराज समाज के कमजोर और वंचित तबकों का सशक्तिकरण था. क्या यह सच्चाई नहीं है कि आजादी के समय जितनी आबादी थी, आज उतने ही लोग गरीबी रेखा के नीचे जीवन यापन कर रहे हैं. गांधी ने स्वतंत्रता की परिभाषा को आत्म निपुणता और आत्म अनुशासन की कसौटी पर कसा था, ना कि लालच और स्वार्थ के आधार पर. सरल जीवन और उच्च सोच के गांधीवादी दर्शन का अनुसरण करते हुए एल्डस हक्सले ने न केवल भारत को बल्कि पूरे विश्व को यह आगाह किया था कि प्रौद्योगिकी और संगठन तुच्छ मानव प्राणी को एक अलौकिक प्राणी में बदलने की शक्ति रखता है. यह आध्यात्मिक प्राप्ति का एक विकल्प प्रदान करता है.
मई 1893 में जब दक्षिण अफ्रीका के पीटरमैरिट्जबर्ग में ठंडी रात को गांधी को ट्रेन के फर्स्ट क्लास डब्बे से निकाल दिया गया था, तब से लेकर 30 जनवरी 1948 तक, जब उनकी हत्या कर दी गई थी, गांधी का जीवन सत्य और अहिंसा से प्रेरित रहा है. वो हमेशा शोषण, लालच और अन्याय के खिलाफ संघर्ष करते रहे.
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संभवत: मानव इतिहास में किसी भी एक व्यक्ति ने इतने लंबे समय तक त्याग और बलिदान नहीं किया, जितना गांधीजी ने किया. इसीलिए महान वैज्ञानिक आइंस्टीन ने भविष्यवाणी की थी कि गांधी की कहानी सुनकर अविश्वास से आंखें चौंधिया जाएंगी, कोई यकीन नहीं करेगा, ऐसा कोई हाड़-मास का व्यक्ति था. हमारा कर्तव्य है कि हम जो कुछ जानते हैं, युवा पीढ़ी को बताएं और हम सभी और आने वाली पीढ़ी हमेशा-हमेशा के लिए गांधी के ऋणी रहेंगे.
(लेखक- प्रोफेसर ए प्रसन्नाकुमार)
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