नई दिल्ली : केंद्र सरकार द्वारा अधिसूचना जारी कर देश में 27 कीटनाशकों को प्रतिबंधित करने की जानकारी सार्वजनिक होने के बाद इस मुद्दे पर उद्योग जगत, कृषि विशेषज्ञ और किसान नेताओं ने अपनी प्रतिक्रियाएं जाहिर की हैं. सरकार द्वारा वर्ष 2013 में गठित अनुपम वर्मा कमिटी को कुल 66 कीटनाशकों समीक्षा का जिम्मा सौंपा गया था, जिनमें से 18 पेस्टिसाइड्स को 2018 में ही प्रतिबंधित किया जा चुका है और अब बीते सोमवार को जारी अधिसूचना में 27 और कीटनाशक भी प्रतिबंधित सूची में आ गए हैं.
बताया जा रहा है कि इन कीटनाशकों का मनुष्य, पशु पक्षी, पानी में रहने वाले जीवों पर होने वाले प्रभाव के अध्ययन के बाद ऐसे निर्णय लिए गए हैं, लेकिन इनमें से कई कीटनाशकों का इस्तेमाल बड़े स्तर पर किसानों द्वारा लंबे समय से किया जा रहा है और उनका मानना है कि कीटनाशकों का इस्तेमाल अगर सीमित तरीके से किया जाए तो इनका कोई दुष्प्रभाव नहीं होता.
ईटीवी भारत से बातचीत में भारतीय कृषक समाज के अध्यक्ष कृष्ण वीर चौधरी ने कहा कि केंद्र सरकार द्वारा पहले 18 और अब जिन 27 कीटनाशकों को प्रतिबंधित किया गया है. उनसे लगभग 130 उत्पाद बनते हैं और कुल 300 उत्पाद पंजीकृत हैं, जो भारत में बनाए जाते हैं और कई अन्य देशों में निर्यात भी किए जाते हैं. आज भारत से 80फीसदी कीटनाशक अमरीका, जापान, ब्राजील, में निर्यात किये जा रहे हैं और ये लगभग 18000 करोड़ का निर्यात है. एक तरफ प्रधानमंत्री निर्यात को बढ़ावा देने की बात करते हैं, लेकिन दूसरी तरफ हमारे नीति बनाने वाले चाहते क्या हैं ये स्पष्ट नहीं है.
मेंकोजोब नामक कीटनाशक का इस्तेमाल आम तौर पर देश भर के किसान आलू और अंगूर की खेती में करते हैं और अन्य देश में भी इस कीटनाशक का इस्तेमाल फसलों को बचाने के लिए किया जाता है, लेकिन ऐसे उत्पादों को प्रतिबंधित कर के हम अपने पैरों पर कुल्हाड़ी मार रहे हैं.
दूसरा उत्पाद है एसीफेट जो सस्ता भी है और 30 सालों से इसका प्रयोग किसान कर रहे हैं. 500 रुपये प्रति किलो मिलने वाले इस उत्पाद का इस्तेमाल कपास और धान की खेती में किया जाता है. 300 ग्राम कीटनाशक का प्रयोग एक एकड़ की फसल में किया जाता है, लेकिन इसी का निर्यातित विकल्प इससे चार से पांच गुना महंगे हैं, ऐसे में इन्हें सोचना पड़ेगा कि ये चाहते क्या हैं.'
आज जहां एक तरफ कोरोना नामक वायरस से आज पूरा विश्व और देश परेशान है, तो वहीं दूसरी तरफ सरकार पेस्टिसाइड मैनेजमेंट बिल के माध्यम से और नए वायरस को आयात करने की व्यवस्था कर रही है.
कृष्ण बीर चौधरी ने भारतीय कृषक समाज की ओर से प्रधानमंत्री मोदी से आग्रह किया है कि निर्यात को बढ़ावा देने कि उनकी सोच के विरुद्ध काम कर रहे अधिकारियों पर उन्हें सख्त कार्रवाई करनी चाहिए.
इसके अलावा कृषि व्यवसाय विशेषज्ञ और अधिवक्ता विजय सरदाना ने ईटीवी भारत से बातचीत में कहा कि पेस्टिसाइड कृषि के लिये महत्वपूर्ण है बशर्ते कि इसे संतुलित मात्रा में उपयोग किया जाए. सरकार ऐसे निर्णय लेने से पहले सभी तथ्यों पर विचार करती है और अगर पेस्टिसाइड उद्योग से जुड़े लोगों को इस पर आपत्ती यही तो उनके पास सरकार के सामने अपना पक्ष रखने का विकल्प और समय दोनों उपलब्ध है.
आम तौर पर सरकार सभी पक्षों पर विचार करती है और उद्योग से भी इस तरह के उत्पादों और उनसे प्रभाव या दुष्प्रभाव का ब्यौरा मांगती है. ऐसे में ये सवाल भी उठते हैं कि क्या कीटनाशक उद्योग ने सरकार से संवाद करते हुए सही विवरण दिए ? क्या उन्होंने अपना पक्ष पूरी मजबूती से सरकार के सामने रखा? या फिर यह भी संभव है कि इन कीटनाशकों के बारे में उद्योग जगत द्वारा प्रस्तुत किये गए विवरण से सरकार संतुष्ट नहीं हो सकी और इन्हें प्रतिबंधित करने का निर्णय लिया गया.
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जहां एक तरफ बड़ी कंपनियों के दबाव में पश्चिमी देशों ने HCQ को परित्यक्त कर दिया था, वहीं हमारे देश में बनाई जाने वाली यह पुरानी दवा कोरोना संकट में उयोगी साबित हुई और अमरीका जैसे विकसित देश को भी हमसे मदद लेनी पड़ी. उसी तरह जब टिड्डियों के हमले से किसानों की फसल बड़े स्तर पर बर्बाद हो रही थी तब क्लोरपिरिफॉस जैसी जेनेरिक रसायन ही इससे लड़ने में कारगर साबित हुई, लेकिन अब यह कीटनाशक प्रतिबंधित रसायनों की सूची में है. विजय सरदाना ने इन पर सावधानी पूर्वक विश्लेषण कर योजना बनाने की बात भी कही है.
14 मई को जारी अधिसूचना के मुताबिक कंपनिया अपनी आपत्ती या सुझाव 45 दिनों तक दे सकती हैं ऐसे में कीटनाशक उद्योग से जुड़े संगठनों ने भी एकजुट हो कर इसका विरोध करने के संकेत दिए हैं और सूत्रों से मिली जानकारी के मुताबिक कीनाशक कम्पनियां इस मुद्दे को ले कर न्यायालय का रुख भी कर सकती हैं. गौरतलब है कि प्रतिबंधित कीटनाशकों पर पहले भी मामले सुप्रीम कोर्ट में लंबित हैं.