नई दिल्ली: सुप्रीम कोर्ट में रामजन्म भूमि विवाद पर आज से रोजाना सुनवाई शुरू हो गई है. मध्यस्थता के माध्यम से कोई आसान हल निकलने का प्रयास विफल होने के बाद उच्चतम न्यायालय ने मामले की रोजाना सुनवाई करने का फैसला किया है.
कोर्ट में सुनवाई के बाद महंत धर्मदास ने खुशी जताते हुए कहा कि उन्हें उम्मीद है कि एक महीने के अंदर राम मंदिर का फैसला हो जाएगा.
निर्मोही अखाड़े ने कहा कि 16 दिसंबर 1949 को आखिरी बार जन्मभूमि पर बनाई गई मस्जिद में नमाज पढ़ी गई थी, जिसके बाद 1961 में वक्फ बोर्ड ने अपना दावा दाखिल किया था.
बता दें निर्मोही अखाड़े की तरफ से इस मामले के इतिहास और बाबर शासन काल का जिक्र किया जा रहा है. सुनवाई के दौरान चीफ जस्टिस रंजन गोगोई ने कहा, हमारे सामने वहां के स्ट्रक्चर पर स्थिति को साफ करें.
चीफ जस्टिस ने वहां पर एंट्री को लेकर पूछा कि वहां पर एंट्री कहां से होती है? सीता रसोई से या फिर हनुमान द्वार से? CJI ने पूछा कि निर्मोही अखाड़ा कैसे रजिस्टर किया हुआ?
जस्टिस नजीर ने निर्मोही अखाड़े से पूछा कि आप बहस में सबसे पहले अपनी बात रख रहे हैं, आपको हमें इसकी पूरी जानकारी देनी चाहिए. निर्मोही अखाड़े ने अदालत को बताया कि 1961 में वक्फ बोर्ड ने इस पर दावा ठोका था.
उन्होंने कहा लेकिन हम ही वहां पर लंबे समय से पूजा कर रहे हैं, हमारे पुजारी ही प्रबंधन को संभाल रहे थे. इस दौरान निर्मोही अखाड़े ने अदालत से कहा कि हमसे पूजा का अधिकार छीना गया है.
आपको बता दें सुप्रीम कोर्ट ने बहस के दौरान निर्मोही अखाड़े से पूछा कि क्या कोर्टयार्ड के बाहर सीता रसोई है?
पुरातन काल से उस जगह पर हमारा नियंत्रण, प्रबंधन है और राम लला की पूजा करते रहे हैं : निर्मोही आखाड़ा.
निर्मोही आखाड़ा ने रामजन्मभूमि-बाबरी मस्जिद की 2.77 एकड़ विवादित जमीन पर मालिकाना हक का दावा किया.
निर्मोही आखाड़ा ने न्यायालय से कहा, मैं इस क्षेत्र का प्रबंधन और नियंत्रण मांग रहा हूं. गौरतलब है कि प्रधान न्यायाधीश रंजन गोगोई की अध्यक्षता वाली पांच सदस्यीय संविधान पीठ मामले की सुनवाई कर रही है.
निर्मोही अखाड़े की तरफ से सुशील जैन ने आंतरिक कोर्ट यार्ड पर मालिकाना हक का दावा किया. उन्होंने कहा कि सैकड़ों वर्षों से इस जमीन और मन्दिर पर अखाड़े का ही अधिकार और कब्ज़ा रहा है, इस अखाड़े के रजिस्ट्रेशन से भी पहले से ही है.
निर्मोही अखाड़े ने कहा कि सदियों पुराने रामलला की सेवा पूजा और मन्दिर प्रबंधन के अधिकार को छीन लिया गया है. पीठ में न्यायाधीश एस ए बोबडे, न्यायमूर्ति डी वाई चंद्रचूड़, न्यायमूर्ति अशोक भूषण और न्यायमूर्ति एस ए नजीर भी शामिल हैं. पीठ ने दो अगस्त को तीन सदस्यीय मध्यस्थता समिति की रिपोर्ट का संज्ञान लिया था.
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मध्यस्थता समिति के प्रमुख उच्चतम न्यायालय के पूर्व न्यायाधीश एफ एम आई कलीफुल्ला थे. पीठ ने कहा था कि करीब चार महीने चली मध्यस्थता प्रक्रिया का अंतत: कोई परिणाम नहीं निकला.
इसी संबंध में वरिष्ठ अधिवक्ता अश्विनी उपाध्याय ने कहा कि सुप्रीम कोर्ट में हमेशा हाई कोर्ट के जजमेंट के आधार पर ही पूरी बहस होती है और हाई कोर्ट कह चुका है कि मस्जिद बनाने का कोई साक्ष्य नहीं था. बता दें कि अश्विनी वकील होने के अलावा भारतीय जनता पार्टी (BJP) से भी जुड़े रहे हैं.
उन्होंने कहा कि यदि इस मामले को छोड़ देते तो हिंदू मुस्लिम में सौहार्द स्थापित हो सकता था. लेकिन अब मध्यस्थता भी असफल हो चुकी है. अब इस मामले की सुनवाई 6 से 7 हफ्तों तक चलेगी. अक्टूबर या नवंबर तक इसका फैसला भी आ जाएगा.
बकौल अश्विनी, इस्लाम में लिखा हुआ है कि ऐसी जमीन जो शुद्ध न हो या फिर कहीं से हड़पी हुई हो, उसमें नमाज कुबूल नहीं होती. उन्होंने कहा, यह भी स्पष्ट हो चुका है कि यह मस्जिद बाबर ने नहीं बनाई है.
असल बात तो यह है कि वहां के मुसलमानों को मस्जिद से कोई लेना देना नहीं है, क्योंकि वहां न तो कभी नमाज हुई है. यह राजनीतिक लोगों का मात्र एक हिडन एजेंडा है. साथ ही यह ऐसे लोगों का एजेंडा है जो मस्जिद के नाम पर चंदा इकट्ठा करते हैं.
मेरा मानना है कि ऐसे लोगों को लगता है कि जब तक यह मामला जिंदा रहेगा उनकी जिंदगी अच्छी तरीके से चलेगी, लेकिन हमें पूरा भरोसा है कि अक्टूबर या नवंबर तक इसका फैसला हो जाएगा.