नई दिल्ली: अयोध्या विवाद मामले में मंगलवार को मामला भारत के मुख्य न्यायाधीश रंजन गोगोई की अध्यक्षता वाली संविधान पीठ के समक्ष उच्चतम न्यायालय में आज 35 वें दिन की सुनवाई हुई.
सुनवाई के दौरान हिंदू महासभा के अधिवक्ता विष्णु शंकर ने कहा कि हिंदू पार्टी ने आज मुस्लिम पक्ष की दलीलों के जवाब में एक प्रतिवाद प्रस्तुत किया.
रामलला की ओर से पेश वरिष्ठ अधिवक्ता, के प्रसारन ने कहा कि मंदिर के लिए किसी स्थान पर मूर्ति होने जरूरी नहीं है.
उन्होंने कहा कि मंदिर के लिए किसी भी जगह पर केवल आस्था, विश्वास और दैवत्व ही काफी है.
तमिलनाडु के एक मामले का हवाला देते हुए, प्रसारन ने कहा कि मंदिर के खंडहरों में एक शिवलिंग पाया गया था, जिसे कनाडा सरकार ने यह कहकर कोर्ट में लौटा दिया था कि एक बार जो संपत्ति देवताओं की हो जाए वो हमेशा उन्हीं की रहती है.
वरिष्ठ अधिवक्ता ने मुस्लिम पक्ष का जवाब देते हुए कहा कि यह साबित करने के लिए कि वहां ईदगाह मौजूद थी. अदालत में एएसआई की जो रिपोर्ट मीनाक्षी अरोड़ा द्वारा पेश की गई थी झूठी है.
इसके अलावा वैद्यनाथन ने कहा कि दीवार नंबर -16 के बगल में कई केवल एक ही नहीं बल्कि कई दीवारें थीं जो यह साबित करता है कि यह एक ईदगाह नहीं थी.वैद्यनाथन ने यह भी कहा कि यह संभव नहीं था कि बाबर ने ईदगाह को ध्वस्त कर दिया और वहां एक मस्जिद का निर्माण कर दिया.
इस दौरान मुस्लिम पक्ष द्वारा बार-बार हस्तक्षेप करने पर, CJI ने नाराजगी जताते हुए कहा कि उन्होंने बार-बार कहा है कि जो पार्टी ने तर्क दिया है उनके पास वही है और उन्हें बार-बार हस्तक्षेप करने की आवश्यकता नहीं है.
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गौरतलब है कि गुरुवार तक हिंदू पक्ष की सुनवाई पूरी हो जाएगी और फिर शुक्रवार से डॉ धवन अपने तर्कों को फिर से शुरू करेंगे.
बता दें कि मुख्य न्यायधीश के नेतृत्व में सुप्रीम कोर्ट की एक संविधानिक पीठ अयोध्या मामले में इलाहाबाद उच्च न्यायालय के सितंबर, 2010 के फैसले के खिलाफ दायर अपीलों पर
सुनवाई कर रही है.उच्च न्यायालय ने अयोध्या में विवादित 2.77 एकड़ भूमि सुन्नी वक्फ बोर्ड, निर्मोही अखाड़ा और राम लला के बीच बराबर बराबर बांटने का आदेश दिया था.
वहीं राम जन्मभूमि-बाबरी मस्जिद भूमि विवाद के मामले में हिंदू पक्षकारों ने उच्चतम न्यायालय में कहा कि सुनवाई के दौरान उन्होंने कभी ऐसी दलील नहीं दी, जो सांप्रदायिक सौहार्द और शांति को बिगाड़ती हो. हिंदू पक्ष ने दावा किया कि उनके प्रतिद्वंद्वियों के दावे में सांप्रदायिक पहलू शामिल है.
उन्होंने मुस्लिम पक्षकारों की इस दलील को अनुचित और दुर्भाग्यपूर्ण भी बताया कि पुरातत्विक रिपोर्ट को नष्ट किया जा सकता है. उन्होंने कहा कि अब वे आरोप लगा रहे हैं कि जो दीवार खुदाई में निकली, वह ईदगाह की थी.
दलीलों पर प्रश्न करते हुए राम लला के वरिष्ठ वकील ने कहा कि इसका आशय है कि मुगल शासक बाबर आया था और उसने ईदगाह को गिराकर मस्जिद बनाई. इसने उनके पुराने रुख का भी विरोध किया कि मस्जिद खाली जमीन पर बनाई गयी थी. हिंदू पक्षकारों की दलीलों पर मुस्लिम पक्ष की तीखी प्रतिक्रिया आई.
दलीलों पर बहस के दौरान दोनों पक्षों के वरिष्ठ वकीलों के बीच तीखी नोकझोंक हो गयी. वे प्रधान न्यायाधीश रंजन गोगोई की अध्यक्षता वाली पांच न्यायाधीशों की संविधान पीठ के समक्ष दलील रख रहे थे. पीठ ने इस संवेदनशील मामले पर 35वें दिन की सुनवाई पूरी की.
राम लला की ओर से वरिष्ठ अधिवक्ता सी एस वैद्यनाथन ने कहा, 'सुनवाई के दौरान उन्होंने (मुस्लिम पक्ष ने) अनावश्यक टिप्पणियां कीं और हमने कभी ऐसी कोई दलील नहीं दी जो सांप्रदायिक शांति और सौहार्द के खिलाफ हो.'
उन्होंने कहा, 'दुर्भाग्यपूर्ण है कि (सुन्नी) वक्फ बोर्ड ने इलाहाबाद उच्च न्यायालय के फैसले को ‘ज्ञात अनुमान’ की तरह पेश किया.' इस पर मुस्लिम पक्षों के वकील राजीव धवन ने आपत्ति जताते हुए कहा, 'मैंने इसे चित्रित नहीं किया, बल्कि न्यायाधीशों ने खुद इसे ज्ञात अनुमान की तरह चित्रित किया है.'
धवन ने कहा, 'हम ऐसी दलीलों से बचते हैं जिनसे सांप्रदायिक विभाजन की आशंका हो. हमने कहा था कि गतिविधियां गैरकानूनी थीं और सांप्रदायिक विभाजन पर कुछ नहीं कहा था.'
जब कहासुनी जारी रही तो पीठ ने नाराजगी जताई और राम लला की ओर से पक्ष रख रहे वैद्यनाथन के दलीलें रखे जाने के दौरान मुस्लिम पक्षकारों के वकील के बार-बार हस्तक्षेप पर कहा, 'इस तरह से सुनवाई जारी रखना मुमकिन नहीं है.'
पीठ में न्यायमूर्ति एस ए बोबडे, न्यायमूर्ति डी वाई चंद्रचूड़, न्यायमूर्ति अशोक भूषण तथा न्यायमूर्ति एस ए नजीर भी शामिल हैं. पीठ ने कहा, 'ऐसी धारणा पेश की जा रही है कि इस तरफ बैठे लोग अपना दिमाग नहीं लगाते और बार-बार वही चीज दोहराई जा रही है.' इसके बाद धवन को माफी मांगनी पड़ी.