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अयोध्या विवाद: मुस्लिम पक्ष राम चबूतरे को जन्मस्थल बताने के अपने बयान से पलटा

सुप्रीम कोर्ट अयोध्या राम जन्मभूमि विवाद केस की सुनवाई कर रही है. इस केस में आज एक नाटकीय मोड़ आ गया जब मुस्लिम पक्ष अपने बयान से पीठे हट गया. जानें क्या है पूरा मामला

सुप्रीम कोर्ट
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Published : Sep 26, 2019, 12:00 AM IST

Updated : Oct 2, 2019, 1:12 AM IST

नई दिल्ली: उच्चतम न्यायालय में अयोध्या राम जन्मभूमि विवाद पर सुनवाई जारी है. बुधवार को सुनवाई के दौरान मुस्लिम पक्ष अपने एक बयान से पीछे हट गया.

मुस्लिम पक्ष अपने उस बयान से पीछे हट गया, जिसमें मुस्लिम पक्ष ने कहा था कि अयोध्या के विवादित स्थल के बाहरी हिस्से में स्थित 'राम चबूतरा' ही भगवान राम का जन्मस्थल है.

साथ ही मुस्लिम पक्ष ने भारतीय पुरातत्व सर्वेक्षण (एएसआई) की उस रिपोर्ट पर चोट किया जिसमें संकेत दिया गया है कि यह ढांचा बाबरी मस्जिद से पहले स्थित था.

मुस्लिम पक्ष ने उच्चतम न्यायालय को बताया कि उसके इस रुख में कोई बदलाव नहीं हुआ है कि इस बात के कोई साक्ष्य नहीं हैं कि 2.27 एकड़ का विवादित स्थल भगवान राम का जन्मस्थान था.

उन्होंने यह भी कहा कि उनका सिर्फ यही आशय था कि मुस्लिम पक्ष ने फैजाबाद के जिला न्यायाधीश के 18 मई 1886 के फैसले को चुनौती नहीं दी थी.

मुस्लिम पक्ष ने एएसआई की 2003 की उस रिपोर्ट पर हमला बोला जिसमें पाए गए अवशेषों, प्रतिमाओं एवं कलाकृतियों के आधार पर यह संकेत दिया गया है, कि बाबरी मस्जिद से पहले एक ढांचा था. मुस्लिम पक्ष ने कहा कि इसमें पुष्टि योग्य कोई भी निष्कर्ष नहीं है तथा यह अधिकतर अनुमान पर आधारित हैं.

बहरहाल, न्यायालय ने कहा कि यदि एएसआई रिपोर्ट पर कोई आपत्ति थी तो विरोध करने वाले पक्ष को उसे उच्च न्यायालय के समक्ष उठाना चाहिए था क्योंकि कानून के तहत कानूनी समाधान उपलब्ध हैं.

प्रधान न्यायाधीश रंजन गोगोई की अगुवाई वाली पांच सदस्यीय पीठ ने कहा, 'आपकी जो भी आपत्ति हो, भले ही वह कितनी भी मजबूत हो, उसपर हम विचार नहीं कर सकते.'

पीठ ने दीवानी प्रक्रिया संहिता के प्रावधानों की चर्चा करते हुए यह बात कही. इन प्रावधानों के तहत स्वामित्व वाले मुकदमे के पक्षकार अदालत के आयुक्त की रिपोर्ट पर आपत्ति उठा सकते हैं.

पीठ में न्यायमूर्ति एस ए बोबडे, न्यायमूर्ति डी वाई चन्द्रचूड़, न्यायमूर्ति अशोक भूषण और न्यायमूर्ति एस अब्दुल नजीर भी शामिल हैं.

सुन्नी वक्फ बोर्ड की ओर से पेश हुए वरिष्ठ अधिवक्ता जफरयाब जिलानी ने कहा, 'हमारे रुख में कोई बदलाव नहीं आया है तथा हमारा रुख यही बना हुआ है कि ऐसा कोई साक्ष्य नहीं है जिसमें कहा गया है कि विवादित स्थल विशेषकर राम चबूतरा ही भगवान राम का जन्मस्थल हो.'

जफरयाब जिलानी ने कहा, 'हमारा रुख है कि यह उनकी (हिन्दू पक्ष की) मान्यता है तथा मुस्लिम पक्ष ने 18 मई 1886 के उस आदेश को चुनौती नहीं दी है जिसमें यह कहा था कि हिन्दुओं की मान्यता है कि राम चबूतरा भगवान राम का जन्मस्थल है.'

पढ़ेंः आयोध्या केस : सप्रीम कोर्ट सोमवार से एक घंटा अतिरिक्त सुनवाई करेगा

इससे पहले जिलानी ने मंगलवार को स्वीकार किया था कि यह मान्यता सही है कि अयोध्या भगवान राम का जन्मस्थान है तथा इस बात को लेकर कोई विवाद नहीं है कि बाहरी परिसर में स्थित राम चबूतरा जन्मस्थल है. इससे पहले निचली अदालत ने भी ऐसा कहा था तथा उसके आदेश के खिलाफ कोई अपील नहीं की गयी.

अपनी दलीलों को आगे बढ़ाते हुए जिलानी ने 1828 के वाल्टर हैमिल्टन के गजेटियर का उल्लेख किया और कहा कि इन दस्तावेजों में हिन्दुओं की इस मान्यता का उल्लेख नहीं है कि अयोध्या भगवान राम का जन्मस्थान है अथवा बाबरी मस्जिद बनाने के लिए मंदिर को कथित तौर पर तोड़ा गया.

न्यायमूर्ति चन्द्रचूड़ ने जिलानी से सवाल किया और कहा कि ब्रिटिश पुरातत्वविद पैट्रिक कारनेगी की रिपोर्ट एवं दो अन्य दस्तावेजों से संकेत मिलता है कि 1857 तक हिन्दू एवं मुस्लिम, दोनों मस्जिद में पूजा-अर्चना एवं नमाज पढ़ते थे. 1857 में दंगों के बाद उन्हें अलग करने के लिए लोहे का एक जंगला खड़ा किया गया.

न्यायमूति चन्द्रचूड़ ने कहा, 'इन दस्तावेजों से यह स्पष्ट है कि वे (हिन्दू एवं मुस्लिम) मस्जिद के भीतर पूजा-नमाज करते थे तथा 1857 की एक घटना के बाद उन्हें अलग करने के लिए लोहे का एक जंगला लगाया गया तथा उसके बाद हिन्दुओं की पूजा अर्चना के लिए राम चबूतरा बनाया गया. इन तीनों दस्तावेजों से तस्वीर स्पष्ट हो जाती है.'

वरिष्ठ वकील पीठ के सुझाव से सहमत नहीं हुए और उन्होंने कहा कि ये सभी मौखिक साक्ष्य हैं तथा न्यायालय को इन्हें स्वीकार करने से पहले इनकी समग्रता से जांच करनी चाहिए.

जिलानी ने कहा, 'न्यायालय केवल एक पंक्ति नहीं निकाल सकता और उसकी इस तरह से व्याख्या नहीं कर सकता. कुछ आधार होना चाहिए. पूरा परिप्रेक्ष्य देखा जाना चाहिए कि किस प्रकार से साक्ष्य उपलब्ध कराये जा रहे हैं? मैंने यात्रा वृत्तांतों, गजेटियरों एवं अन्य साक्ष्यों को देखा है और वे ऐसी किसी मान्यता का उल्लेख नहीं करते कि मस्जिद का मुख्य गुंबद भगवान राम का जन्मस्थल है.'

उन्होंने कहा कि हिन्दुओं ने पहले दावा किया कि स्थल भगवान राम की जन्मस्थली है और 1865 के बाद वे चहारदीवारी के भीतर चले गये.

उन्होंने सुझाव दिया कि 1858 में एक सिख मुख्य गुंबद के भीतर प्रवेश कर गया और उसे वहां एक ध्वज लगा दिया और उसने बाहर आने से इंकार किया. बाद में उसे वहां से जबरदस्ती हटाया गया.

न्यायमूर्ति बोबडे ने पूछा कि क्या सिख भी भगवान राम की पूजा करते हैं.

जिलानी ने कहा कि हिन्दुओं का संपत्ति पर स्वामित्व अधिकार नहीं है कि राम जन्मभूमि मस्जिद के अन्दर है तथा 1989 तक दाखिल याचिकाओं में ऐसा कोई दावा नहीं किया गया.

मुस्लिम पक्ष की इसी दलील को आगे बढ़ाते हुए वरिष्ठ वकील मीनाक्षी अरोड़ा ने इलाहाबाद उच्च न्यायालय के आदेश पर तैयार की गयी एएसआई की रिपोर्ट को खारिज करते हुए इसे त्रुटिपूर्ण और विरोधाभासों से भरी हुई बताया. उन्होंने कहा कि इसे अधिक से अधिक विद्वानों की राय के रूप में लिया जा सकता है.

उन्होंने कहा कि इस रिपोर्ट में पुष्टि योग्य निष्कर्ष नहीं मिलते हैं और यह अनुमान पर आधारित है.

नई दिल्ली: उच्चतम न्यायालय में अयोध्या राम जन्मभूमि विवाद पर सुनवाई जारी है. बुधवार को सुनवाई के दौरान मुस्लिम पक्ष अपने एक बयान से पीछे हट गया.

मुस्लिम पक्ष अपने उस बयान से पीछे हट गया, जिसमें मुस्लिम पक्ष ने कहा था कि अयोध्या के विवादित स्थल के बाहरी हिस्से में स्थित 'राम चबूतरा' ही भगवान राम का जन्मस्थल है.

साथ ही मुस्लिम पक्ष ने भारतीय पुरातत्व सर्वेक्षण (एएसआई) की उस रिपोर्ट पर चोट किया जिसमें संकेत दिया गया है कि यह ढांचा बाबरी मस्जिद से पहले स्थित था.

मुस्लिम पक्ष ने उच्चतम न्यायालय को बताया कि उसके इस रुख में कोई बदलाव नहीं हुआ है कि इस बात के कोई साक्ष्य नहीं हैं कि 2.27 एकड़ का विवादित स्थल भगवान राम का जन्मस्थान था.

उन्होंने यह भी कहा कि उनका सिर्फ यही आशय था कि मुस्लिम पक्ष ने फैजाबाद के जिला न्यायाधीश के 18 मई 1886 के फैसले को चुनौती नहीं दी थी.

मुस्लिम पक्ष ने एएसआई की 2003 की उस रिपोर्ट पर हमला बोला जिसमें पाए गए अवशेषों, प्रतिमाओं एवं कलाकृतियों के आधार पर यह संकेत दिया गया है, कि बाबरी मस्जिद से पहले एक ढांचा था. मुस्लिम पक्ष ने कहा कि इसमें पुष्टि योग्य कोई भी निष्कर्ष नहीं है तथा यह अधिकतर अनुमान पर आधारित हैं.

बहरहाल, न्यायालय ने कहा कि यदि एएसआई रिपोर्ट पर कोई आपत्ति थी तो विरोध करने वाले पक्ष को उसे उच्च न्यायालय के समक्ष उठाना चाहिए था क्योंकि कानून के तहत कानूनी समाधान उपलब्ध हैं.

प्रधान न्यायाधीश रंजन गोगोई की अगुवाई वाली पांच सदस्यीय पीठ ने कहा, 'आपकी जो भी आपत्ति हो, भले ही वह कितनी भी मजबूत हो, उसपर हम विचार नहीं कर सकते.'

पीठ ने दीवानी प्रक्रिया संहिता के प्रावधानों की चर्चा करते हुए यह बात कही. इन प्रावधानों के तहत स्वामित्व वाले मुकदमे के पक्षकार अदालत के आयुक्त की रिपोर्ट पर आपत्ति उठा सकते हैं.

पीठ में न्यायमूर्ति एस ए बोबडे, न्यायमूर्ति डी वाई चन्द्रचूड़, न्यायमूर्ति अशोक भूषण और न्यायमूर्ति एस अब्दुल नजीर भी शामिल हैं.

सुन्नी वक्फ बोर्ड की ओर से पेश हुए वरिष्ठ अधिवक्ता जफरयाब जिलानी ने कहा, 'हमारे रुख में कोई बदलाव नहीं आया है तथा हमारा रुख यही बना हुआ है कि ऐसा कोई साक्ष्य नहीं है जिसमें कहा गया है कि विवादित स्थल विशेषकर राम चबूतरा ही भगवान राम का जन्मस्थल हो.'

जफरयाब जिलानी ने कहा, 'हमारा रुख है कि यह उनकी (हिन्दू पक्ष की) मान्यता है तथा मुस्लिम पक्ष ने 18 मई 1886 के उस आदेश को चुनौती नहीं दी है जिसमें यह कहा था कि हिन्दुओं की मान्यता है कि राम चबूतरा भगवान राम का जन्मस्थल है.'

पढ़ेंः आयोध्या केस : सप्रीम कोर्ट सोमवार से एक घंटा अतिरिक्त सुनवाई करेगा

इससे पहले जिलानी ने मंगलवार को स्वीकार किया था कि यह मान्यता सही है कि अयोध्या भगवान राम का जन्मस्थान है तथा इस बात को लेकर कोई विवाद नहीं है कि बाहरी परिसर में स्थित राम चबूतरा जन्मस्थल है. इससे पहले निचली अदालत ने भी ऐसा कहा था तथा उसके आदेश के खिलाफ कोई अपील नहीं की गयी.

अपनी दलीलों को आगे बढ़ाते हुए जिलानी ने 1828 के वाल्टर हैमिल्टन के गजेटियर का उल्लेख किया और कहा कि इन दस्तावेजों में हिन्दुओं की इस मान्यता का उल्लेख नहीं है कि अयोध्या भगवान राम का जन्मस्थान है अथवा बाबरी मस्जिद बनाने के लिए मंदिर को कथित तौर पर तोड़ा गया.

न्यायमूर्ति चन्द्रचूड़ ने जिलानी से सवाल किया और कहा कि ब्रिटिश पुरातत्वविद पैट्रिक कारनेगी की रिपोर्ट एवं दो अन्य दस्तावेजों से संकेत मिलता है कि 1857 तक हिन्दू एवं मुस्लिम, दोनों मस्जिद में पूजा-अर्चना एवं नमाज पढ़ते थे. 1857 में दंगों के बाद उन्हें अलग करने के लिए लोहे का एक जंगला खड़ा किया गया.

न्यायमूति चन्द्रचूड़ ने कहा, 'इन दस्तावेजों से यह स्पष्ट है कि वे (हिन्दू एवं मुस्लिम) मस्जिद के भीतर पूजा-नमाज करते थे तथा 1857 की एक घटना के बाद उन्हें अलग करने के लिए लोहे का एक जंगला लगाया गया तथा उसके बाद हिन्दुओं की पूजा अर्चना के लिए राम चबूतरा बनाया गया. इन तीनों दस्तावेजों से तस्वीर स्पष्ट हो जाती है.'

वरिष्ठ वकील पीठ के सुझाव से सहमत नहीं हुए और उन्होंने कहा कि ये सभी मौखिक साक्ष्य हैं तथा न्यायालय को इन्हें स्वीकार करने से पहले इनकी समग्रता से जांच करनी चाहिए.

जिलानी ने कहा, 'न्यायालय केवल एक पंक्ति नहीं निकाल सकता और उसकी इस तरह से व्याख्या नहीं कर सकता. कुछ आधार होना चाहिए. पूरा परिप्रेक्ष्य देखा जाना चाहिए कि किस प्रकार से साक्ष्य उपलब्ध कराये जा रहे हैं? मैंने यात्रा वृत्तांतों, गजेटियरों एवं अन्य साक्ष्यों को देखा है और वे ऐसी किसी मान्यता का उल्लेख नहीं करते कि मस्जिद का मुख्य गुंबद भगवान राम का जन्मस्थल है.'

उन्होंने कहा कि हिन्दुओं ने पहले दावा किया कि स्थल भगवान राम की जन्मस्थली है और 1865 के बाद वे चहारदीवारी के भीतर चले गये.

उन्होंने सुझाव दिया कि 1858 में एक सिख मुख्य गुंबद के भीतर प्रवेश कर गया और उसे वहां एक ध्वज लगा दिया और उसने बाहर आने से इंकार किया. बाद में उसे वहां से जबरदस्ती हटाया गया.

न्यायमूर्ति बोबडे ने पूछा कि क्या सिख भी भगवान राम की पूजा करते हैं.

जिलानी ने कहा कि हिन्दुओं का संपत्ति पर स्वामित्व अधिकार नहीं है कि राम जन्मभूमि मस्जिद के अन्दर है तथा 1989 तक दाखिल याचिकाओं में ऐसा कोई दावा नहीं किया गया.

मुस्लिम पक्ष की इसी दलील को आगे बढ़ाते हुए वरिष्ठ वकील मीनाक्षी अरोड़ा ने इलाहाबाद उच्च न्यायालय के आदेश पर तैयार की गयी एएसआई की रिपोर्ट को खारिज करते हुए इसे त्रुटिपूर्ण और विरोधाभासों से भरी हुई बताया. उन्होंने कहा कि इसे अधिक से अधिक विद्वानों की राय के रूप में लिया जा सकता है.

उन्होंने कहा कि इस रिपोर्ट में पुष्टि योग्य निष्कर्ष नहीं मिलते हैं और यह अनुमान पर आधारित है.

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SC-AYODHYA-ASI REPORT
Ayodhya title dispute: Muslim parties attack ASI's 2003 report in SC
         New Delhi, Sep 25 (PTI) Muslim parties Wednesday attacked in the Supreme Court the 2003 report of Archeological Survey of India (ASI) which had found that a structure pre-existed the Babri Masjid, saying it does not provide a "verifiable conclusion" and is mostly based on "inferences".
         The top court was told by the Muslim parties that the report, which was commissioned by the Allahabad High Court to ascertain whether there existed any structure or temple at the disputed site, was an opinion.
         A 5-judge bench headed by Chief Justice Ranjan Gogoi was told by senior advocate Meenakshi Arora that the report, which has 10 chapters attributed to an author, had a summary that was not attributed to anybody.
         She said the ASI team comprised 14 members that was initially headed by B R Mani and later by Hari Manjhi did not hold any meetings among themselves to finalise the summary.
         The bench, also comprising Justices S A Bobde, D Y Chandrachud, Ashok Bhushan and S Abdul Nazeer, questioned Arora's submission saying that the Muslim parties should have objected to the findings in the report before the high court.
         "Whatever, may have been your objections, however, strong it may have been, it cannot be entertained by us," said the bench, while referring to the provisions of Civil Procedure Code which empowers parties to the title suit to make objections to the court commissioner's report.
         Arora said they had raised the issue before the Allahabad High Court but the judges said that it would be decided at the final stage but unfortunately it was not dealt with.
         "The report suffers from palpable, apparent inconsistencies. It does not provide a verifiable conclusion and is mostly based on inferences," she said.
         She further stated that though Archeology is a science, it is not a natural science like Physics and Chemistry and takes into account various other things like sociology, anthropology and geology, which means it cannot be exact and accurate.
         "Archeology is mostly an expert opinion based on inferences. It is a weak evidence which has to be tested along with other things. It only gives perspective," she said, adding that the report should not be taken as it is.
         She said a firm in its Geo-Radiology has found that there were 184 anomalies (possible structures) at 0.5 to 5.5 metres in depth that could be associated with ancient and contemporaneous structures such as pillars, foundation walls and slab flooring extending over a large portion of the site.
         "Interim report of ASI was filed in the high court on June 6, 2003 and it stated that only eight anomalies as per the Geo Penetrating Radar were confirmed after excavation but 14 were not found," she said, adding that later the ASI found only 39 anomalies in total.
         The ASI report appears to be inconclusive with respect to the direction of the Allahabad High Court, she said.
         "The index and the head note to the report clearly indicate the authors of those chapters. Significantly, the summary of report i.e chapter 10, which is the significant analysis of the report of various chapters is not attributed to any of the team members or for that matter even the team leaders," Arora said.
         "The readers of the ASI report are completely in the dark as to who analysed the entire data in the report and came to the conclusions in the said 'summary of results', she added".
         "It is important to know which member of the ASI authored because it entails the entire analysis and is not completely reasoned," she said, adding, "It is unsigned and it is unknown as to who has done the final analysis of the report and prepared the summary of results".
         "The said summary by itself is therefore not reliable, however, the high court has relied upon the summary of results," she said.
         Arora's argument's remain inconclusive and would continue on Thursday.
         The Allahabad High Court, in its judgment of 2010 on four civil lawsuits, had partitioned the 2.77-acre disputed land equally among Sunni Waqf Board, Nirmohi Akhara and Ram Lalla. Fourteen appeals have been filed in the Supreme Court against the verdict. PTI MNL RKS ABA
SA
09252101
NNNN
Last Updated : Oct 2, 2019, 1:12 AM IST
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