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जगन्नाथ पुरी मंदिर के देवताओं का जन्मस्थान है गुंडिचा मंदिर

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Published : Jun 21, 2020, 10:17 PM IST

भगवान जगन्नाथ रथ यात्रा के समय नौ दिनों तक श्रीमंदिर को छोड़कर गुंडिचा मंदिर में वार्षिक निवास करते हैं. इस मंदिर को पुरी मंदिर के सभी देवताओं का जन्मस्थान कहा जाता है. कथाओं के अनुसार भगवान जगन्नाथ की मूर्ति यहीं पर बनाई गई थी. कहा जाता है कि इस स्थान पर भगवान के दर्शन करने से 100 जन्मों के पाप धुल हो जाते हैं.

Gundicha Temple
गुंडिचा मंदिर

पुरी : भगवान जगन्नाथ रथ यात्रा के समय नौ दिनों तक अन्यत्र वार्षिक निवास करते हैं. श्रीमंदिर के सिंहासन को छोड़कर भगवान जगन्नाथ, उनके बड़े भाई बलभद्र और बहन सुभद्रा जिस स्थान पर जाते हैं, उस स्थान को गुंडिचा मंदिर कहते हैं. इस स्थान को भगवान जगन्नाथ की मौसी का घर भी कहा जाता है. इसी स्थान पर भगवान जगन्नाथ, बलभद्र और देवी सुभद्रा की मूर्तियों को समुद्र में उतराई लकड़ी से बनाया गया था, इसलिए इसे देवताओं की जन्मस्थान कहा जाता है.

इस मंदिर में स्थित उच्च सिंहासन को जन्मवेदी (भगवान की मूल वेदी), यज्ञवेदी (यज्ञ की वेदी) महावेदी (भव्य वेदी) या अडापा मंडप भी कहा जाता है. अडापा मंडप का अर्थ है भव्य स्थान.

रथ महोत्सव के दौरान त्रिमूर्ति को श्री जगन्नाथ मंदिर में लकड़ी के रथ से गुंडिचा मंदिर लाया जाता है, जहां वे सात दिनों तक सिंहासन पर विराजते हैं.

जगन्नाथ भगवान का जन्मस्थान है गुंडिचा मंदिर.

बता दें कि लकड़ी के रथों से गुंडिचा मंदिर के पास पहुंचने के बाद देवताओं को सेवकों द्वारा अडापा मंडप में लाया जाता है. इस प्रक्रिया को गोटी पहांडी कहा जाता है.

चतुर्थमूर्ति (भगवान जगन्नाथ, भगवान बलभद्र, देवी सुभद्रा और भगवान सुदर्शन) गुंडिचा मंदिर में प्रवेश करते हैं और यहां निवास के बाद मुख्य मंदिर में लौटते हैं. इस अवधि में देवताओं को जो पकाया गया भोजन अर्पित किया जाता है, उसे अडापा अबढ़ा कहा जाता है.

यह माना जाता है कि अगर कोई श्रीगुंडिचा मंदिर में भगवान के दर्शन करता है और फिर अडापा मंडप का दर्शन कर लेता है तो उसके सौ जन्मों के पाप धुल जाते हैं. इसी तरह उसके पूर्वज भी अंतिम मोक्ष प्राप्त करने के लिए 'अडापा अबढ़ा' का इंतजार करते रहते हैं.

पढ़ें : 'पाटली श्रीक्षेत्र' में 144 वर्षों तक भूमिगत थे भगवान श्री जगन्नाथ

इस प्रकार श्रद्धालु पूरे वर्ष तक अडापा मंडप में चतुर्थमूर्ति के दर्शन और प्रसाद 'अडापा अबढ़ा' का इंतजार करते हैं.

पुरी : भगवान जगन्नाथ रथ यात्रा के समय नौ दिनों तक अन्यत्र वार्षिक निवास करते हैं. श्रीमंदिर के सिंहासन को छोड़कर भगवान जगन्नाथ, उनके बड़े भाई बलभद्र और बहन सुभद्रा जिस स्थान पर जाते हैं, उस स्थान को गुंडिचा मंदिर कहते हैं. इस स्थान को भगवान जगन्नाथ की मौसी का घर भी कहा जाता है. इसी स्थान पर भगवान जगन्नाथ, बलभद्र और देवी सुभद्रा की मूर्तियों को समुद्र में उतराई लकड़ी से बनाया गया था, इसलिए इसे देवताओं की जन्मस्थान कहा जाता है.

इस मंदिर में स्थित उच्च सिंहासन को जन्मवेदी (भगवान की मूल वेदी), यज्ञवेदी (यज्ञ की वेदी) महावेदी (भव्य वेदी) या अडापा मंडप भी कहा जाता है. अडापा मंडप का अर्थ है भव्य स्थान.

रथ महोत्सव के दौरान त्रिमूर्ति को श्री जगन्नाथ मंदिर में लकड़ी के रथ से गुंडिचा मंदिर लाया जाता है, जहां वे सात दिनों तक सिंहासन पर विराजते हैं.

जगन्नाथ भगवान का जन्मस्थान है गुंडिचा मंदिर.

बता दें कि लकड़ी के रथों से गुंडिचा मंदिर के पास पहुंचने के बाद देवताओं को सेवकों द्वारा अडापा मंडप में लाया जाता है. इस प्रक्रिया को गोटी पहांडी कहा जाता है.

चतुर्थमूर्ति (भगवान जगन्नाथ, भगवान बलभद्र, देवी सुभद्रा और भगवान सुदर्शन) गुंडिचा मंदिर में प्रवेश करते हैं और यहां निवास के बाद मुख्य मंदिर में लौटते हैं. इस अवधि में देवताओं को जो पकाया गया भोजन अर्पित किया जाता है, उसे अडापा अबढ़ा कहा जाता है.

यह माना जाता है कि अगर कोई श्रीगुंडिचा मंदिर में भगवान के दर्शन करता है और फिर अडापा मंडप का दर्शन कर लेता है तो उसके सौ जन्मों के पाप धुल जाते हैं. इसी तरह उसके पूर्वज भी अंतिम मोक्ष प्राप्त करने के लिए 'अडापा अबढ़ा' का इंतजार करते रहते हैं.

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इस प्रकार श्रद्धालु पूरे वर्ष तक अडापा मंडप में चतुर्थमूर्ति के दर्शन और प्रसाद 'अडापा अबढ़ा' का इंतजार करते हैं.

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